BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Saturday, October 11, 2014

देवी सोनागाछी - पवन करण की ताजा कविता


बंगाल ही नहीं भारत भर के
कारीगरों ने इस बार नहीं गढ़ीं
मिट्टी से मूर्तियां 


सोनागाछी ही नहीं भारत भर की
उन बस्तियों से निकालकर 
बाहर लाये वे वेश्याओं को 


उन्होंने रखा इस बात का ख्यााल 
उनमें से कोई बूढ़ी-पुरानी 
दर्द से कराहती, खांसती-मरती 
नहीं छूटे उस अंधेरे में भीतर के


कारीगरों ने इस बार उन सबका 
किया ठीक वैसा ही श्रृंगार जैसा
करते आये वे मूर्तियों का अब तक 
और उन्हें बिठाया जगमगाते 
उन मंडपों में ले जाकर, आखिर 
उन्हें हमने ही तो गढ़ा अब तक


लगातार हमारा होना झेलती 
कोई देवी नहीं थी इससे पहले 
हमारे पास, इस बार उन्होंने
गढ़ी दसवी देवी 
जिसका नाम पड़ा देवी सोनागाछी


 [नोट - परम्परा से कलकत्ते के मशहूर यौन- हाट सोनागाछी मुहल्ले की मिट्टी से बनी  दुर्गा की प्रतिमाएं सब से अधिक पवित्र मानी जाती हैं ]


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  • Manjari Dubey आशुतोष जी इस कविता पर सब पुरूष ही तय कर लेना चाहते हैं। पुरूषों के अधिकतर कमेंटस देखिये और स्त्रियों के चुनिंदा कमेंट देखिये स्थिति स्पष्ट हो जायेगी कि इस कविता को लेकर पुरूष क्या सोचते हैं और स्त्रियां क्या सोचती हैं। मुझे लगता है कि कवि ने बस इतना किया है कि सोनागाछी और देवियों के माध्यम से स्त्री—जीवन के इस दुखद और नारकीय हिस्से में झांकने और उसे एक बार फिर से सामने लाने का प्रयास किया है। मैं चाहूंगी कि आप इस कविता पर बात रखने के लिये स्त्रियों को आमंत्रित करें। और उनकी प्रतिक्रियाओं पर इस कविता से निर्णयकारी बदलाव की उम्मीद रख रहे पुरूष—पाठक अपनी बात कहें। स्त्रियों के पक्ष में किसी शुरूआत को हर बार कठिन बनाना हमारे स्यवंभू प्रवक्ताओं को खूब आता है।
  • Manjari Dubey या रब वे न समझे हैं और न समझेंगे मेरी बात 
    दे और दिल उनको जो न दे मुझको जुबां और
  • Manjari Dubey मैंने इस कविता को शेयर किया तो मेरे पेज पर भी इस कविता को एक महाशय ने कवि को मेंटल केस बताया है। और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अतिक्रमण माना है। यहां अभिव्यक्ति के तरीके पर बात की जा रही है। बात के महत्व के स्थान पर उसके कहने के ढंग् पर ठीक उस ढंग से उंगली उठायी जा रही है। जैसे किसी पीड़िता से कहा जा रहा हो कि देखो हमनी तुम्हारी पीड़ा का कितना सुंदर वर्णन किया है। और अब जो मोल है वो हमारे कहने का है न कि तुम्हारी पीड़ा का।कविता मजा नहीं दे रही इन्हें। वह इनसे पवन करण् की ही एक कविता कील की उस कील की तरह व्यवहार कर रही है जो टेविल में उभर आई है और नजर न आने की वजह से सटकर निकलने वालों के कपड़े फाड़ रही है।
  • Ashutosh Kumar सहमत हूँ Manjari Dubey.

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