BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Monday, July 16, 2012

न्‍याय के लिए लड़ने वालों के लिए बथानीटोला एक प्रतीक है

http://mohallalive.com/2012/07/16/justice-for-bathani-tola-national-convention-in-delhi/

न्‍याय के लिए लड़ने वालों के लिए बथानीटोला एक प्रतीक है

16 JULY 2012 NO COMMENT
बथानीटोला जनसंहार के दोषियों को दंडित करने तथा गरीब-मेहनतकशों के लिए न्याय सुनिश्चित करने की मांग के साथ संपन्न हुआ सिटिजंस फॉर जस्टिस फॉर बथानीटोला का कन्वेंशन


16साल पहले 11 जुलाई 1996 को बिहार के भोजपुर जिले के बथानी टोला में भूस्वामियों की कुख्यात निजी सेना- रणवीर सेना द्वारा 21 भूमिहीन गरीबों की हत्या कर दी गयी थी। दलित, पसमांदा मुस्लिम एवं अत्यंत पिछड़े समुदाय से आने वाले इन मृतकों में अधिेकांश महिलाएं और बच्चे थे, जिन्हें बेरहमी से मौत के घाट उतारा गया था। सन 2010 में आरा सेशन कोर्ट ने तीन अभियुक्तों को फांसी तथा शेष 20 को आजीवन कारावास की सजा सुनायी थी, लेकिन 2012 में बिहार हाईकोर्ट ने इस फैसले को पूरी तरह पलटते हुए सारे अभियुक्तों का रिहा कर दिया। अभियुक्तों के इस तरह रिहा होने पर कई जाने माने न्यायविदों, अधिवक्ताओं, बुद्धिजीवियों और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने अपना एतराज जताया और उनकी पहल पर 'सिटिजंस फॉर जस्टिस फॉर बथानीटोला' गठित हुआ।

'सिटिजंस फॉर जस्टिस फॉर बथानीटोला' की ओर से कल देश की राजधानी दिल्ली के कॉन्‍स्टीट्यूशन क्लब के स्पीकर हॉल में एक कन्वेंशन किया गया, जिसमें 1996 के बथानी टोला जनसंहार के दोषियों को दंडित करने की मांग की गयी। यह कन्वेंशन दो सत्रों में संपन्न हुआ। पहले सत्र में बथानी टोला के पीड़ितों, आरा के दलित छात्रावास के छात्रों सहित बिहार के अमौसी में दस महादलितों की फांसी, दरभंगा के नौजवानों को आतंकी ठहराकर उत्पीड़ित करने और हत्या कर देने की साजिश से संबंधित रिपोर्ट तथा तमिलनाडु के दलित जनसंहार और ग्रेटर नोएडा के रामगढ़ में दलित उत्पीड़न से संबंधित अनुभव रखे गये। सत्र की अध्यक्षता प्रसिद्ध इतिहासकार उमा चक्रवर्ती ने की।

बथानी के पीड़ितों ने उस खौफनाक दिन को याद किया

श्रीकिशुन चौधरी और नईमुद्दीन अंसारी, जो बथानी टोला जनसंहार में बच गये थे और जो मुकदमे के मुख्य गवाह भी रहे हैं, उन्होंने कन्वेंशन को संबोधित किया। श्रीकिशुन चौधरी जिन्होंने बथानी जनसंहार का एफआईआर दर्ज कराया था, उन्होंने ही सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध अपील दायर की है। श्रीकिशुन चौधरी उस जनसंहार में अपनी पत्नी सुंदरी देवी और 3 और 8 साल की अपनी बेटियों – रमावती कुमारी और कलावती कुमारी को हमेशा के लिए खो चुके हैं।

नईमुद्दीन अंसारी के परिवार के 6 सदस्य इस जनसंहार में मारे गये थे। उनकी तीन माह की बेटी आस्मां को हवा में उछालकर तलवार से काट दिया गया था, 3 साल के आमिर सुबहानी और 7 साल के बेटे सद्दाम हुसैन, जिसके गले को भी तलवार से काटा गया था, उसने अस्पताल में जीवन के लिए संघर्ष करते हुए दम तोड़ दिया था। इस जनसंहार में नईमुद्दीन की बेटी धनवरती खातुन (18 वर्ष), साली नज्मा खातुन (25 वर्ष) और बहन जैगून निशा (40 वर्ष) भी मारी गयीं थी।

श्रीकिशुन चौधरी और नईमुद्दीन अंसारी ने दिनदहाड़े हुए उस जनसंहार को याद करते हुए बताया कि किस तरह पड़ोस के बड़की खड़ाव गांव से आग्नेयास्त्रों और तलवारों के साथ हमलावरों ने बथानी टोला पर हमला किया था। कर्बला की जमीन की मुक्ति के लिए चलने वाले संघर्ष में भागीदारी और चुनाव में भाकपा-माले को वोट देने की गुस्ताखी के कारण रणवीर सेना ने बथानी टोला को निशाना बना रखा था। बथानी टोला के निवासियों ने रोजाना हमलों और धमकियों के मद्देनजर पुलिस सुरक्षा के लिए गुहार लगायी थी। बथानी टोला के आसपास तीन पुलिस कैंप थे। लेकिन जनसंहार के वक्त पुलिस जानबूझकर आंखें मूंदे रही, बल्कि पुलिस के पक्षपातपूर्ण रवैये का इसी से पता चलता है कि तीन पुलिस वाले, जो जनसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे, वे बचाव पक्ष के गवाह के तौर पर पेश हुए।

हमलावरों ने लोगों को गोली मार दी। मारवाड़ी चौधरी के जिस घर में औरतें और बच्चे छिपे हुए थे, उसमें उन लोगों ने आग लगा दी और औरतों और बच्चों को तलवारों से काट डाला, एक बुजुर्ग महिला के स्तन काट डाले।

श्रीकिशुन चौधरी और नईमुद्दीन अंसारी इससे वाकिफ लगे कि किस तरह 1996 के लालूराज में तथा 2012 के नीतीश राज में पुलिस और अभियोजन पक्ष ने मुकदमे को कमजोर करने की कोशिश की। पर वे जानना चाहते हैं कि न्यायपालिका ने जनसंहार के प्रत्यक्षदर्शियों और मरने से बच गये उन लोगों की गवाही को सही क्यों नहीं माना, जिन्होंने अपने प्रियजनों को इस जनसंहार में खोया। उन्हें पता है कि बिहार सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में अपील की है, लेकिन उन्होंने कहा कि वे नीतीश सरकार पर जरा भी भरोसा नहीं कर सकते कि वह न्याय के लिए काम करेगी, क्योंकि इसी सरकार ने रणवीर सेना के राजनीतिक संरक्षकों की जांच के लिए बनाये गये अमीरदास आयोग को भंग कर दिया था और इसी सरकार ने रणवीर सेना प्रमुख ब्रह्मेश्वर सिंह को जमानत दी थी। इसी कारण बथानी के पीड़ितों ने अपनी ओर से खुद सुप्रीम कोर्ट में अपील की है। इस अपील पर 16 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने वाली है। श्रीकिशुन चौधरी और नईमुद्दीन अंसारी उत्सुकता के साथ सुप्रीम कोर्ट के रिस्पांस की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इस अपील को मंजूर करेगी और वे एक अच्छी खबर के साथ अपने घर लौटेंगे।

आरा के दलित छात्रावास पर हमला : सामंती हिंसा अतीत की चीज नहीं

क जून को एकदम सुबह आरा के कतिरा मुहल्ले में रणवीर सेना प्रमुख ब्रह्मेश्वर सिंह की हत्या हुई। ठीक उसी दिन रणवीर सेना समर्थकों ने भारी पैमाने पर आगजनी और तोड़पोड़ किया और खासतौर पर दलित छात्रावास को निशाना बनाया। ये घटनाएं जाहिर करती हैं कि राज्य प्रायोजित सांमती हिंसा आज के बिहार में भी अतीत की चीज नहीं है।

वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के पास मौजूद अंबेडकर कल्याण छात्रावास, कतिरा के छात्र शिवप्रकाश रंजन और सबीर ने कन्वेंशन में उस घटना और उसके बाद की स्थितियों के बारे में बताया।

उनलोगों ने बताया : एक जून को सुबह रणवीर सेना के गुंडों ने युवा जद-यू के जिला अध्यक्ष नवीन कुमार के साथ 'एके 56 जिंदाबाद', 'एक का बदला सौ से लेंगे' और 'रणवीर सेना जिंदाबाद' के नारे लगाते और फायरिंग करते हुए छात्रावास पर हमला किया। उन लोगों ने छात्रों की साइकिलों में आग लगा दी और छात्रावास की खिड़कियों और दरवाजों को तोड़ने लगे। खौफजदा छात्रों ने कमरों को बंद कर लिया था और अपने बेड के नीचे छिप गये थे। पूरे एक घंटे तक छात्रावास में आगजनी और लूट होती रही, पर पुलिस नदारद रही। आखिरकार पुलिस जब पहुंची, तो उसने बदमाशों को रोकने और छात्रों की सुरक्षा करने के बजाय उन पर भाग जाने के लिए दबाव बनाया।

छात्रावास के सोलह कमरे पूरी तरह जला दिये गये और उनमें मौजूद कीमती सामानों को लूट लिया गया। तीस छात्रों के प्रमाणपत्र, अंकपत्र और अन्य दस्तावेज जल गये। 40-50 साइकिल और तीन मोटरसाइकिल जला दिये गये। लैपटॉप, टीवी सेट, गैस सिलेंडर, कुकर, बरतन लूट लिये गये या उनको तोड़फोड़ दिया गया। डॉ अंबेडकर की एक प्रतिमा तोड़ दी गयी। हमलावरों ने छात्रावास पर तीन बार हमला किया, पर पुलिस ने उन्हें रोकने और छात्रावास और वहां के छात्रों को बचाने के लिए कुछ नहीं किया। दो अन्य दलित छात्रावासों पर उन लोगों ने फायरिंग और पत्थरबाजी की।

अपने नुकसान के मुआवजे, भविष्य में होने वाले हमलों से सुरक्षा और छात्रावास के शीघ्र पुनर्निमाण तथा अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर छात्रों ने छात्र संगठन आइसा के साथ आरा और पटना में आंदोलन किया। जब दलित होस्टल जलाये गये, तब नीतीश सरकार मौन साधे रही। आखिर नीतीश कुमार क्यों खुद को नरेंद्र मोदी से अलग बताते हैं, जबकि खुद उनका व्यवहार छोटे-मोदी की तरह रहा? ब्रह्मेश्वर सिंह के श्राद्ध के दौरान गैस सिलेंडर फटे तो उनकी सरकार ने तुरत मुआवजा दिया, पर दलित छात्रावास के छात्रों के लिए मुआवजा देने के लिए कुछ नहीं किया।

दलित छात्रों को अभी भी धमकाया जा रहा है। 13 जुलाई को नशे में धुत दो युवाओं को होस्टल के छात्रों ने बाहर जाने को कहा, तो वे उनको एक जून की घटना की याद दिलाकर धमकाने लगे। उसी रोज दोपहर बाद राज्य अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग के अध्यक्ष जद-यू के छात्र-युवा शाखाओं के उन नेताओं के साथ होस्टल पहुंचे, जो एक जून के हमले में लिप्त थे, तो सरकार की निष्क्रियता, उसके द्वारा अपराधियों के बचाव और उसके पाखंड के खिलाफ छात्रों ने आक्रोशित होकर अनुसूचित जाति, जनजाति आयोग के अध्यक्ष के चेहरे पर कालिख पोत दी और उन्हें उन जूतों और चप्पलों की माला पहना दी, जो उस आगजनी के बाद आज भी होस्टल में बिखरे हुए हैं। इसके बाद अध्यक्ष ने छात्रों पर कई फर्जी धाराओं के तहत केस कर दिया है।

न्यायविदों, बुद्धिजीवियों और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं का संबोधन

हले सत्र में सामाजिक कार्यकर्ता विनीत तिवारी ने बिहार के अमौसी जनसंहार के बारे में बताया, जिसमें बिल्कुल कमजोर आधारों पर दस महादलितों को फांसी की सजा दे दी गयी है। गरीब दलितों के प्रति न्याय का यह जो मानदंड है, वह ऊंची जाति की रणवीर सेना के मामले में बिल्कुल अलग रहा है। एक दोहरा मानदंड साफ तौर पर दिख रहा है।

पिछले साल तमिलनाडु के परमकुडी में पुलिस द्वारा किये गये दलित जनसंहार, जिसमें 45 वर्षीय पन्नीरसेलवन की मृत्यु हुई थी, उनके भाई और आंदोलन के कार्यकर्ता सिंपसन ने जयललिता सरकार के जातीय विद्वेष की नीति का जिक्र करते हुए दोषी पुलिसकर्मियों को दंडित करने के मामले में आने वाली मुश्किलों के बारे में बताया।

कन्वेंशन में दरभंगा के उन मुस्लिम नौजवानों के परिजनों ने भी अपने दुख-दर्द को रखा, जिन पर आतंकवाद के फर्जी आरोप लगाये जा रहे हैं। उन्होंने केंद्रीय एजेंसियों, केंद्रीय सरकार और बिहार सरकार द्वारा हो रहे अन्याय के विरोध किया और मुस्लिम युवाओं के अधिकारों की रक्षा की बात की। विकास ने रामगढ़ ग्रेटर नोएडा में दलित उत्पीड़न के अनुभवों को साझा किया।

युवा फिल्मकार कुंदन के बथानी टोला जनसंहार पर बनाये गये लघु वृत्त चित्र के प्रदर्शन से कन्वेंशन शुरू हुआ। इस मौके पर चिंटू कुमारी के नेतृत्व में क्रांतिकारी गीत पेश किये गये। जनकवि विद्रोही ने अपनी कविताओं का पाठ भी किया।

न्यायमूर्ति राजेंद्र सच्चर ने दलित-पिछड़ों की बात करने वाली पार्टियों की गरीब विरोधी भूमिका पर सवाल उठाया और कहा कि जैसी दहशतगर्दी और गरीबों के ऊपर जैसा जुल्म हो रहा है, वह तरक्की के सारे दावों को खंडित करता है। प्रो तुलसी राम सामंती हिंसा के लिए हिंदू धर्म को जिम्मेवार ठहराया। प्रो कमल मित्र चिनॉय ने कहा कि बथानी जनसंहार और उस पर हाईकोर्ट के फैसले ने पूरे लोकतंत्र पर सवाल खड़ा कर दिया है। प्रो नंदिनी सुंदर ने उम्मीद जाहिर की सुप्रीम कोर्ट से बथानी के उत्पीड़ितों को न्याय मिलेगा। भाकपा-माले के पूर्व सांसद रामेश्वर प्रसाद ने कहा कि सत्ता की तलवार गरीबों पर चल रही है, बथानी जनसंहार और अमौसी जनसंहार के फैसले इसके उदाहरण हैं। लेकिन इसके खिलाफ जबर्दस्त आक्रोश भी विकसित हो रहा है, जिसे माले संगठित कर रही है।

दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो मैनेजर पांडेय ने कहा कि भारत में पूंजीवाद और सामंतवाद के गठजोड़ के कारण जो बर्बर हिंसा और लूट है, उसके खिलाफ जोरदार संघर्ष वक्त की जरूरत है। यह हिंदुस्तान में लोकतंत्र और समाजवाद लाने के लिए जरूरी है।

दूसरे सत्र के मुख्य वक्ता भाकपा-माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि बथानीटोला उन सबके लिए प्रतीक है, जो न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सामंतवाद को खत्म करके लोकतांत्रिक समाज बनाने की जो लड़ाई है, उसका प्रतीक है बथानी टोला। उन्होंने कहा कि बथानीटोला कोई आम घटना नहीं थी, बल्कि सामंती-सांप्रदायिक हिंसा का रूप जिसे देश ने बाद में गुजरात में देखा, उसका पूर्वाभास था। रणवीर सेना एक राजनीतिक सेना थी, जिसके स्पष्ट वैचारिक उद्देश्य थे। उसने बथानीटोला और लक्ष्मणपुर बाथे जैसे जनंसहार रचाकर यह सोचा था कि वह बिहार में न्याय और प्रगति के संघर्ष को पीछे धकेल देगी और लाल झंडे को बिहार की मिट्टी से उखाड़ फेंकेगी। लेकिन लाल झंडे ने साबित किया कि जनसंहार झेलते हुए भी उसमें संघर्ष को आगे बढ़ाने की ताकत है। बथानीटोला रणवीर सेना और लालूराज के अंत की शुरुआत भी था। लालू यादव किसके पक्ष में खड़े हैं, इसे बथानी जनसंहार ने स्पष्ट तौर पर पर्दाफाश कर दिया था। रणवीर सेना को किसानों की सेना कहा गया था और माले की प्रतिक्रिया बताया गया था, लेकिन उसका किसानों से कोई वास्ता नहीं रहा, बल्कि अपने पूरे चरित्र में वह संघ परिवार का विस्तार है। रणवीर सेना ने जो राष्ट्रवादी किसान संघ बनाया, उसका घोषणापत्र संघ से उसके जुड़ाव को दर्शाता है। ब्रह्मेश्वर सिंह जिस नेता की तारीफ की, वह नरेंद्र मोदी थे। इन सामंती शक्तियों ने सोचा था कि नीतीश सरकार के संरक्षण में वे आज फिर से ताकतवर हो जाएंगी। लेकिन उनकी जो कारगुजारी है, वह उनके फस्ट्रेशन को ही जाहिर करता है, खासतौर से जो उनके द्वारा ब्रह्मेश्वर सिंह की शवयात्रा में गुंडागर्दी और हिंसा को जो नमूना पेश किया गया, वह इसी की बानगी है। उन्होंने बथानी टोला और बिहार की जनता के न्याय के संघर्ष के साथ खड़े होने के लिए नागरिकों को बधाई दी।

कन्वेंशन को संबोधित करते हुए लाल निशान पार्टी-लेनिनिस्ट (महाराष्ट्र) के सचिव भीमराव बंसोड ने खैरलांजी जनसंहार और रमाबाई पुलिस कॉलोनी पुलिस फायरिंग का जिक्र करते हुए कहा कि न्यायालय के अन्यायपूर्ण फैसलों के बावजूद न्याय का संघर्ष जारी है।

सीपीएम पंजाब के सचिव मंगतराम पासला ने बथानी पीड़ितों के न्याय के संघर्ष के प्रति पूरा समर्थन और सहयोग जाहिर करते हुए कहा कि नीतीश की सरकार अन्याय को बढ़ावा दे रही है और सामंती ताकतों की गोद में बैठ गयी है। इसके खिलाफ संघर्ष करते हुए रणवीर सेना को उन्होंने हमेशा के लिए खत्म करने की जरूरत पर जोर दिया। कन्वेंशन के इस दूसरे सत्र में अनिल चमड़िया और चितरंजन सिंह ने भी अपने विचार रखे। इस मौके पर प्रो अनुराधा चिनॉय, सत्या शिवरमरण, कवि मंगलेश डबराल, चित्रकार अशोक भौमिक जिन्होंने इस कन्वेंशन का पोस्टर बनाया है, के साथ जेएनयू छात्रसंघ की अध्यक्ष सुचेता डे, जसम के महासचिव प्रणय कृष्ण, आलोचक आशुतोष कुमार आदि भी मौजूद थे।

आखिर में कविता कृष्णन ने कन्वेंशन का प्रस्ताव पढ़ा। प्रस्ताव के अनुसार बथानी टोला के मामले में न्यायपालिका खुद कटघरे में है, इसलिए वह अपनी निष्पक्षता का परिचय दे और अगर जरूरी हो तो इस जनसंहार की दुबारा जांच करायी जाए। उन पुलिसकर्मियों को, जिन्होंने सही तरीके से जांच नहीं किया या गलत सूचनाएं दीं, उन्हें दंडित किया जाए। बथानीटोला के पीड़ितों और गवाहों की सुरक्षा और आत्मसुरक्षा की गारंटी की जाए। कन्वेंशन ने प्रस्ताव लिया कि आरा के दलित छात्रावास पर हमले के जिम्मेवार लोगों पर तुरत केस दर्ज हो और उन पर लादे गये फर्जी मुकदमे को वापस लिया जाए। छात्रों को मुआवजा देने की मांग का भी प्रस्ताव लिया गया। अमौसी जनसंहार की नये सिरे से जांच और असली अपराधी को दंडित करने तथा मुस्लिम नौजवानों पर आतंकवाद के फर्जी आरोपों और उनके दमन-उत्पीड़न की जांच के लिए एक राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल बनाने और उनके नागरिक अधिकार को बहाल करने की गारंटी का प्रस्ताव भी कन्वेंशन ने लिया। तमिलनाडु के परमकुडी पुलिस फायरिंग और ग्रेटर नोएडा के दलितों पर हमले के दोषियों को दंडित करने तथा खैरलांजी मामले में न्याय सुनिश्चित करने का प्रस्ताव भी लिया गया। सीमा आजाद और विश्वविजय की रिहाई की मांग भी कन्वेंशन द्वारा की गयी। कन्वेंशन ने बिहार में न्याय के लिए चल रहे अभियान का समर्थन करते हुए भैयाराम यादव और छोटू कुशवाहा की हत्या तथा फारबिसगंज हत्याकांड के दोषियों को दंडित करने का प्रस्ताव भी लिया।

सिटिजंस फॉर जस्टिस फॉर बथानीटोला

आनंद पटवर्धन, बेला भाटिया, उमा चक्रवर्ती, आनंद चक्रवर्ती, आनंद तैलतुमडे, वी गीता, सीमा मुस्तफा, हीरेन गोहैन, तुलसीराम, तनिका सरकार, निर्मलांग्शु मुखर्जी, सिंम्पसन (ओडुकापोट्र विडुथलई मुन्नानी, तमिलनाडु) जया मेहता, निवेदिता मेनन, आनंद प्रधान, किरन शाहीन, अनिल चमड़ि‍या, निर्मला पुतुल, पीके विजयन, संघमित्रा मिश्रा, कमलमित्र चिनॉय, अनुराधा चिनॉय, केजे मुखर्जी, जसपाल सिंह सि़द्धू, अशोक भौमिक, मंगलेश डबराल, प्रणय कृष्ण, सुधीर सुमन, संजय जोशी, चितरंजन सिह, सत्या शिवरामन, कविता कृष्णन, उमा गुप्ता

संपर्क : 9560756628 और 9868034224

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