BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Saturday, July 7, 2012

यूएनआई की दयनीय दशा: आठ महीने से नहीं मिला पत्रकारों को वेतन

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यूएनआई की दयनीय दशा: आठ महीने से नहीं मिला पत्रकारों को वेतन

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देश में न्यूज एजंसियों के मामले में किसी एक एजंसी का एकाधिकार न हो इसलिए दूसरी समाचार एजंसी यूएनआई की स्थापना की गई थी. लेकिन पांच दशक के बाद तकनीकि तौर पर भले ही दोनों एजंसियां समाचार सेवा दे रही हों लेकिन व्यावहारिक तौर पर उस पीटीआई का प्रभुत्व बना हुआ है जिसे तोड़ने के लिए यूएनआई की स्थापना की गई थी. आज यूएनआई की दशा इतनी दयनीय है कि वह पीटीआई को टक्कर देने की बजाय खुद ही टूटकर बिखरने के कगार पर खड़ी नजर आ रही है.

इतिहास बताता है कि यूएनआई की स्थापना विधानचंद राय की पहल पर भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के हस्तक्षेप के बाद हुआ था. 1961 में जब यूएनआई की स्थापना की गई तब यही सोचा गया था कि समाचार सेवा के मामले में किसी एक एजंसी पर निर्भर रहना लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं होगा. इसलिए यूनाइटेड न्यूज आफ इंडिया की स्थापना की गई.

लेकिन आज इस यूएनआई की दशा यह है कि पत्रकारों और कर्मचारियों को पिछले आठ महीने से वेतन मिलने भी भारी दिक्कत हो रही है. बताते हैं कि इस समाचार सेवा के कर्मचारियों और पत्रकारों का वेतन के रूप में करीब 20 करोड़ रूपया बकाया हो चुका है. सिर्फ कर्मचारी ही इस समाचार सेवा पर बोझ नहीं बने हुए है. इस समाचार सेवा के पास दिल्ली में योजना भवन के ठीक पीछे लंबा चौड़ा परिसर है. कुछ वैसा ही जैसा पीटीआई के पास संसद मार्ग पर है. पीटीआई ने अपने लिए उपलब्ध जगह पर नया भवन बनाकर उसका एक हिस्सा किराये पर उठा दिया जिससे उसकी अतिरिक्त आय होने लगी. लेकिन यूएनआई के पास जगह होते हुए भी वह अपनी जगह का ऐसा कोई उपयोग नहीं कर पा रहा है.

यूएनआई की स्थापना पीटीआई का एकाधिकार रोकने के लिए किया गया था शायद यही कारण है कि इस संस्था के खून में लोकतांत्रिक प्रक्रिया मौजूद है. यहां आज भी कर्मचारी यूनियन संगठित है और इसी यूनियन ने जी न्यूज के मालिक सुभाष चंद्र को यूएनआई बोर्ड से बाहर करवा दिया था. सुभाष चंद्रा यूएनआई को हासिल करके इसका पुनरुद्धार करना चाहते थे लेकिन अगर ऐसा होता तो इसका लोकतांत्रिक स्वरूप बिखर जाता. लंबे समय तक चंद्रा के खिलाफ आंदोलन चला और आखिरकार उनको बोर्ड से बाहर जाना पड़ा. यह पूछे जाने पर कि आर्थिक तंगी के बावजूद यूनियन ने चंद्रा का विरोध क्यों किया? इसके जवाब में जो उत्तर मिलता है वह यह कि यूएनआई की स्थापना कंपनी अधिनियम की धारा 25 (ए) के तहत किया गया है. जिसका मतलब है कि इसे एक लाभकमाऊ कंपनी की तरह संचालित नहीं किया जा सकता. अगर चंद्रा इसमें पूंजीनिवेश करते तो यह कानूनन इसकी स्थापना के ही खिलाफ चला जाता.

चंद्रा के हटने के बाद परिस्थितियां और विकट होती चली गईं. यूएनआई के बोर्ड और प्रबंधन तंत्र में लगभग सभी बड़े मीडिया घरानों के प्रतिनिधि मौजूद हैं लेकिन यूएनआई का प्रबंधन लगातार बिगड़ता जा रहा है. कर्मचारी बिना सैलेरी के काम करते भी रहें तो वे अखबार भी सब्सक्राइबर होने से कतराते हैं जो इसके बोर्ड में मौजूद हैं. जब सब्सक्राइबर ही नहीं हैं तो खबरें जारी करने के बाद भी उनका कोई खास महत्व नहीं रहता है. यूएनआई से जुड़े सूत्रों का कहना है कि असल में यूएनआई के साथ न सिर्फ उसके सदस्य मीडिया समूह बल्कि सरकार भी सौतेला व्यवहार कर रही है. एक ओर जहां पीटीआई को न सिर्फ अच्छे सब्सक्रिप्शन का आधार मिला हुआ है वहीं दूसरी ओर सरकार भी तरह तरह से उसकी मदद करती रहती है. जबकि यूएनआई के मामले में दोनों पक्ष नदारद हैं. न सब्सक्राइबर साथ दे रहा है और न सरकार कोई मदद कर रही है, इसलिए इसकी दशा लगातार दयनीय होती चली जा रही है. 

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