BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Wednesday, July 4, 2012

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के हवाले कर दो आदिवासी प्रश्न

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अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के हवाले कर दो आदिवासी प्रश्न

By | July 4, 2012 at 8:36 am | No comments | हस्तक्षेप

विद्या भूषण रावत

छत्तीसगढ़ राज्य के बीजापुर जिले के सारकेगुडा में हुए नरसंहार में २० आदिवासियों की मौत ने देश में वोह हलचल पैदा नहीं की जो एक 'बार गर्ल' की हत्या के बाद टाइम्स ऑफ इंडिया और एनडीटीवी के अन्दर हुइ।. यहाँ पर अभी मोमबत्ती जलने वाले नहीं दिखाई दे रहे और ना आंसुओं वाले आमिर खान और बरखा दत्त भी नहीं हैं। यहाँ चिल्ला- चिल्ला कर बोलने वाले अर्नब गोस्वामी भी नहीं है जो आदिवासियों के प्रश्न को रख सकें। जिस आदिवासी अस्मिता के नाम पर संगमा साहब राष्ट्रपति का चुनाव लड़ रहे हैं उन्हें शायद इसकी फुर्सत भी नहीं होगी। और जहाँ तक हमारे विचारको का प्रश्न है उनकी तो दुनिया ही निराली है, वो हमारी 'बहादुर' सेनाओ को गरियाते हैं। हमारे मान्यवर नेता मंडली तो आसानी से बच निकलती है।
आज़ादी के ६५ वर्षों बाद भी हमारे समाज ने आदिवासी समाज के प्रश्नों को हमेशा हाशिये पर ही रखा। उनके संसाधनों पर कब्ज़ा करने के लिए हमारी सेनाएं अपने नायको का आदेश पालन कर रही हैं और हमारे नेता अब प्रोपर्टी डीलर हो गए हैं जिनका काम संसाधनो को पूंजीपतियों के हाथो सौंपना है। दलित आदिवासी सभी अस्मिता की बात करने वाले चुप रहते हैं। नेट पर एक दूसरे को गरियाएंगे और एक दूसरे के विचारों को कोसेंगे और छोटा दिखाने की कोशिश करेंगे लेकिन जब लोग जल रहे हैं, मर रहे हैं, दूर तक सहानुभूति दिखाने के लिए भी नहीं दिखाई देते। कोई कहता है नक्सल दलितों को बहकाते हैं, कोई माओवाद को गरियाता है लेकिन ये समझ नहीं आता कि आदिवासी और दलितों के लिए भी यह वाद कोई मायने नहीं रखते। प्रश्न उनकी जिंदगी और जमीन का है। जब सीधे जीवन पर हमला हो वह बड़े बड़े सैद्धांतिक प्रश्न कोई मायने नहीं रखते और वो ही हमारा हीरो होता है जो हमारे साथ खड़ा होता है चाहे वो हमारी जाति का है या अन्य किसी जाति का। झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के जंगलो में ऐसे ही हो रहा है जब हमारे सुरक्षा बल, माओवाद के नाम पर आदिवासियों के जीवन से खेल रहे हैं। गलती उनकी नहीं है क्योंकि उन्हें तो सरकारी हुक्मरानों के आदेशों का पालन करना है। सवाल करना उन्हें सिखाया नहीं जाता। ऐसे होता तो हमारी सेना में हर हवालदार और सूबेदार वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली होता क्योंकि उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के आदेश को नहीं माना जिसने लाहौर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर गोलाबारी करने को कहा था।
आज हमारे देश की संसद को विशेष सत्र बुला कर आदिवासियों से माफ़ी मांगनी चाहिए। देश ने जिस तरीके से आदिवासी अस्मिता और उनके संसाधनों के साथ लूट पाट की है वह सरेआम धोखाधड़ी कहलाएगी। बहुत से मुल्कों ने अपने मूल निवासियों के साथ हो रहे दुव्र्यवहार पर माफ़ी मांगी है परन्तु हमारा राष्ट्र राज्य, महान लोकतंत्र ऐसा करेगा? बिलकुल भी नहीं, आदिवासी और दलित प्रश्न हमारे लोकतंत्र की पोल खोलते हैं और उसकी महानता के अच्छे दर्शन करा सकते हैं इसलिए हमारी सरकारों ने मूल निवासियों के प्रश्नों को ख़ारिज कर दिया था, क्योंकि वोह तो यह मानकर चलते हैं कि बा्रह्मण ने ही यह देश बसाया और उसकी सर्वोच्चता के बगैर यह देश आगे नहीं बढ़ सकता।
छत्तीसगढ़ की पाखंडी हिंदुत्व की सरकार को जवाब देना होगा कि कब तक आदिवासियों को हनुमान बनाकर राम नाम की माला जपवाकर उनके संसाधनो को लूटते रहोगे। समय आ गया है कि अब हम यह प्रश्न अपने राजनैतिक नेताओं के समक्ष रखें। आदिवासियों के भोलेपन को उनकी कमजोरी समझने वाले राष्ट्र राज्य को उनके संसाधनो को लूटना बंद करना पड़ेगा और लालची कंपनियों को भी अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के हवाले करना पड़ेगा। आदिवासी प्रश्न भी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में लिया जाना चाहिए ताकि हमारे हुक्मरान अपने अहम् से उसे न दबा सकें।

विद्या भूषण रावत, लेखक स्वतंत्र पत्रकार व मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं।


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