BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Welcome

Website counter
website hit counter
website hit counters

Friday, March 2, 2012

थियेटर इंसान की जिंदगी का अभिन्न हिस्सा है विष्णुचंद्र शर्मा

थियेटर इंसान की जिंदगी का अभिन्न हिस्सा है 

विष्णुचंद्र शर्मा 


http://www.aksharparv.com/punasmaran.asp?Details=24

जर्मनी में बर्तोल्त ब्रेख्त और ब्राजील में अगस्तो बाओल और भारत में हबीब तनवीर ने अपने-अपने देश में लाख विरोध के बावजूद इंसान की जिंदगी का थियेटर को अभिन्न हिस्सा बनाया। उस दिन जब ब्राजील से चला हुआ एयर-फ्रांस का जहाज 228 यात्रियों के साथ समुद्र में डूब गया था, मुझे ब्राजील के निर्देशक, संस्कृतिकर्मी और राजनीतिक विचारक अगस्तो बाओल की बहुत याद आयी थी। याद आने का एक कारण मेरा निजी था। मैं पेरिस और अमेरिका होते हुए इस बार अर्जेन्टीना और ब्राजील जाने का सपना देख रहा था। जिस दिन फ्रांस का वीजा मुझे मिला, ठीक उसी दिन 7 जून 2009 के जनसत्ता में यह लेख महेंद्र पाल का पढ़ा- हम एक थियेटर हैं। अगस्तो बाओल लंबे समय से बीमार थे। अगस्तो बाओल की याद में महेन्द्र पाल ने लिखा है: जो रंगमंच अभिजात्यता के कथित कुलीन शिकंजे में सिकुड़ा समाज के अघाए तबके के लिए मात्र मनोरंजन का जरिया बन गया था उसे ब्रेख्त जैसे तमाम संस्कृतिकर्मियों ने एक लंबे रचनात्मक संघर्ष द्वारा नुक्कड़ शैली के नाटकों के जरिए विकसित कर आम आदमी के हाथ का सशक्त हथियार बनाया और उसी हथियार को और पैना करते हुए अगस्तो बाओल ने उत्पीड़ितों की थियेटर शैली विकसित की। (जनसत्ता 7 जून 2009) दिल्ली का रंगमंच वाकई अघाए हुए तबकों का रंगमंच बन गया है। मेरे मित्र बा.वे.कारंत नेशनल स्कूल आफ ड्रामा में बनारस से आकर पढ़े थे और थियेटर की एक नयी शैली विकसित करना चाहते थे। पर जिस व्यक्ति ने लगातार थियेटर को उत्पीड़ितों का एक पहलू यानि फोरम थियेटर बनाया वह था हबीब तनवीर। जब मैं कारंत पर अभी सोच रहा था, तभी दूरदर्शन पर एक खबर देखी- हबीब तनवीर नहींरहे। वह भी अगस्तो बाओल की तरह लंबे समय से बीमार थे। बाओल और तनवीर में कई समानताएं थीं। इस पर लेटिन अमेरिका और भारत के रंगनिर्देशक लंबे समय तक करेंगे या मैं काशी की रंगशैली पर बात करते हुए कुंवरजी अग्रवाल से बातचीत आगे बढ़ाऊंगा। भारतेंदु के समय के मानव रिश्ते, तुलसीदास की मानस की खुली रंगशाला हिन्दी दुनिया के लिए प्रेरणास्त्रोत रहे हैं। मुझे याद है, वह लड़की लंदन से आयी थी और दुनिया की खुली रंगशाला (ओपन थियेटर) पर काम कर रही थी। मैंने उसे भिखारी ठाकुर और तुलसीदास की खुली रंगशाला दिखायी थी। पूरा भोजपुर क्षेत्र भिखारी ठाकुर की जनता का एक थियेटर बन जाता था। वह लड़की पूरे समय यह देखती रही, कैसे तुलसीदास ने खुली रंगशाला का निर्देशन और मंचन किया। हबीब तनवीर उसी रंगशाला के अनोखे रंगकर्मी थे। एक अंतर था शासन से विरोध या संवाद का, हबीब तनवीर, अगस्तो बाओल और बर्तोल्त ब्रेख्त का। 
महेन्द्रपाल ने ठीक लिखा है- बाओल अपनी इसी विशिष्ट शैली के कारण ब्राजीली सैनिक शासन की आंख का कांटा बने। उनकी शिक्षाएं विद्रोही किस्म की रहीं हैं और एक सांस्कृतिक कार्यकर्ता के बतौर वे ब्राजीली सैनिक शासन के लिए खतरा बन गए। उन्हें ब्रेख्त के नाटक के मंचन के बाद 1971 में गिरफ्तार कर लिया गया। उनको अर्जेन्टीना निर्वासित होना पड़ा, जहां उन्होंने अपनी पहली किताब थियेटर आफ द आप्रेस्ड लिखी। इसके बाद उनकी गेम फार एक्टर्स एंड नान एक्टर्स आदि कई पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिसमें रंगमंचीय दुनिया अधिक यर्थाथवादी व समृध्द हुई है। अपने निर्वासित जीवन में वे यूरोप खासतौर पर पेरिस में रहे। जहां बारह साल तक उन्होंने अपनी विशिष्ट शैली का अध्यापन किया और उत्पीड़ितों के थियेटर के कई रंचमंचीय समूह के निर्माण के प्रेरक बने।
बनारस, इलाहाबाद, कोटा और दिल्ली में (सहमत) भी उत्पीड़ितों के थियेटर काम कर रहे हैं। और उनके रंगमंचीय समूह का इतिहास अभी हबीब तनवीर, बा.वे.कारंत, बर्तोल्त ब्रेख्त और अगस्तो बाओल के प्रेमी कभी लिखेंगे। अभी मुझे पेरिस में अगस्तो बाओल के अध्यापन पर नोट लेना है और ज्यां पाल सार्त्र के प्रिय कैफे ला कापोल में काफी पीते हुए उनकी पुस्तक द क्रिटिक आफ डायलेक्टिकल रियलिज्म को पढ़ कर जनता के रंगमंच और विवादास्पद सिध्दांत पर सोचना है। उस सोच में बार-बार ब्रेख्त, हबीब तनवीर और अगस्तो के संवाद जनता में सुनाई पड़ेंगे। और सार्त्र के नाटकों नो एग्जिट, प्रिजनर आफ एलोना, द फ्लाइज़ और मैन विदाउट शैडोज के एकान्त से टकराना पड़ेगा। क्या हम बुध्दिजीवी सेठों की बालकनी की पिछली कतार के मात्र दर्शक बने रहेंगे या खतरा उठाकर जनता से उसके रंगमंच पर संवाद करेंगे। ब्रेख्त, हबीब तनवीर और अगस्तो बाओल ने हमें विचारों और धैर्य से टकराने के लिए हम एक थियेटर हैं का पाठ पढ़ाया है।
द्वारा- अलेक्सांद्र ए. क्लीमेन्को
पेरिस (फ्रांस)
 

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...