BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Saturday, March 24, 2012

कुपोषित शरीर में स्‍वाभिमान का इंजेक्‍शन? हद है जनाब!

http://mohallalive.com/2012/03/24/a-poem-by-abhiranjan-kumar/

 आमुखमोहल्ला पटनाशब्‍द संगत

कुपोषित शरीर में स्‍वाभिमान का इंजेक्‍शन? हद है जनाब!

24 MARCH 2012 ONE COMMENT

♦ अभिरंजन कुमार

पिछले दिनों जब मार्कंडेय काटजू बिहार गये, तो उन्‍होंने एक सभा में वहां के मीडिया को सरकार के हाथों गिरवी बता दिया। यह बिहार का सच है। मौजूदा सरकार ने वहां के मीडिया का मुंह विज्ञापन से ठूंस दिया है और कोई सरकार को नाराज नहीं करना चाहता। सारे संपादक सरकार के आगे लोटते हुए नजर आते हैं। ऐसे में उम्‍मीद की तरह बिहार से चल कर एक कविता हमारे पास आयी है। बिहार-झारखंड में प्रसारित और पटना से संचालित आर्यन टीवी के संपादक अभिरंजन कुमार ने यह कविता भेजी है। गरीबी पर केंद्र सरकार के नये रुख और दुर्गंध को खूबसूरत चादर से ढंकने की बिहार सरकार की बाजीगरी पर उन्‍होंने इस कविता में तंज कसा है : मॉडरेटर

न दिनों बिहार में हूं, इसलिए बिहार को, बिहार की जनता को और बिहार की सरकार को – सबको करीब से देख पा रहा हूं। दिल्ली तक बिहार की कई सच्चाइयां नहीं पहुंच पाती थीं। बिहार शताब्दी महोत्सव का शोर है और इसी बीच मनमोहन-मोंटेक प्रायोजित गरीबी की नयी परिभाषा भी आयी है। सो इन्हीं संदर्भों में पेश है एक ताजा कविता।

अभिरंजन कुमार


तुम्हारी नीली रोशनी के नाम

सुना है, मेरे बिहार में हो रही है एक खूबसूरत घटना
नीली रोशनी में नहा गया है पूरा पटना।
लेकिन क्या तुम्हारी रोशन राजधानी
कभी देख पाएगी मेरी आंखों का पानी?
जिस वक्त तुम अपनी राजधानी में नीली रोशनी देखना चाहते हो
ठीक उसी वक्त मैं अपनी बिटिया की आंखों में नीली चमक देखना चाहता हूं।
क्या तुम मेरी बिटिया की आंखों में वो चमक भर सकते हो?

मनमोहन सिंह ने जबसे कहा है कि रोज दो रुपये सत्रह पैसे का दूध पीकर
और छियासठ पैसे का फल खाकर मेरी बिटिया जिंदा रह सकती है,
तबसे मैं तो मरघट ही बन गया हूं।
फिर भी तुम्हारे आबाद गांधी मैदान में मैं पहुंचना चाहता हूं
बेतिया से, बांका से, कटिहार से,
भभुआ से, बक्सर से, समूचे बिहार से
पर 32 पैसे में कौन-से जूते-मोजे पहनकर आऊं मैं?
किराये के लिए भी मेरे पास सिर्फ एक रुपये सड़सठ पैसे हैं।
मोंटेक सिंह अहलुवालिया का नाम लेकर सोचता हूं कि अपना खून बेच दूं
और तुम्हारे गांधी मैदान में पहुंच जाऊं,
लेकिन मुझे एक बात की गारंटी दो
तुम्हारे सिपाही मेरी छाती पर लाठी लगाकर मुझे गेट पर ही तो नहीं रोक देंगे।
या फिर ये तो नहीं कहेंगे कि इस गेट से नहीं, उस गेट से जाओ।
जबकि मेरे देखते-देखते कई वीआईपी लोगों की गाड़ियां उसी गेट से पार कर जाएंगी।

तुम मेरे कुपोषित शरीर में स्वाभिमान का इंजेक्शन लगाना चाहते हो
यह इंजेक्शन लेने के लिए ही सही, मैं गांधी मैदान आना चाहता हूं
मैं तुम्हारे पेड़ों के ऊपर सजे भुकभुकिया की नीली छटा को
नीचे गिरे हुए सूखे पत्तों की तरह देख लूंगा,
बशर्ते कि तुम्हारे सफाईकर्मी मुझ पर झाड़ू न चला दें।

दिल से कहूं तो चाहे मैं जितना भी घायल हूं
तुम्हारी कलात्मकता का बड़ा ही कायल हूं।
तुम ठूंठ पर रंग चढ़ाकर या उसे रंग-बिरंगी पन्नियों में लपेटकर
कितना खूबसूरत बना देते हो?
तुम्हारी कलात्मकता का मैं सचमुच ही कायल हूं।
मुझे पूरा यकीन है, एक दिन समूचे बिहार को तुम
रंग-बिरंगी पन्नियों में लिपटे हुए ठूंठ की तरह खूबसूरत बना दोगे।

(अभिरंजन कुमार। वरिष्‍ठ टीवी पत्रकार। इंटरनेट के शुरुआती योद्धा। एनडीटीवी इंडिया और पी सेवेन में वरिष्‍ठ पदों पर रहे। इन दिनों आर्यन टीवी के संपादक। दो कविता संग्रह प्रकाशित: उखड़े हुए पौधे का बयान और बचपन की पचपन कविताएं। उनसे abhiranjankumar@yahoo.co.in पर संपर्क किया जा सकता है।)

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