BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Saturday, March 24, 2012

भूमि-सुधार के अनसुलझे सवाल कुमार कृष्णन पटना से

http://raviwar.com/news/654_land-reforms-nitish-kumar-in-bihar-kumar-krishnan.shtml

मुद्दा

 

भूमि-सुधार के अनसुलझे सवाल

कुमार कृष्णन पटना से


बिहार की नीतीश कुमार की सरकार ने अपनी दूसरी पारी भूमि सुधार पर केन्द्रित की है. इसके तहत सरकार ने सौ साल बाद फिर से ज़मीनों का सर्वे-चकवंदी कराने का न सिर्फ फैसला लिया है, बल्कि इसके लिये विधानमंडल के चालू सत्र में विधेयक भी पारित कर दिया है. सरकार की मंशा है कि भूमि विवादों की संख्या घटे. भूमि विवादों की पृष्ठभूमि में बिहार में खूनी संघर्षों का इतिहास रहा है.

नीतीश कुमार


सरकारी घोषणा के अनुरूप तीन साल में अत्याधुनिक तरीके से सर्वे होगा. सेटेलाइट से ज़मीन की तस्वीर ली जाएगी. इसका कंप्यूटर के जरिये नक्शे से मिलान होगा, फिर ज़मीन चिन्हित करके अंचलों में मौजूद खानापुरी की टीम ज़मीन के टुकड़ों पर नंबर अंकित करेगी. 

कानूनगो स्तर के अधिकारी की अनुमति के बाद मुखिया, सरपंच के प्रतिनिधियों के साथ अंचलाधिकारी ज़मीन मालिक को उसकी ज़मीन बताएंगे. ड्राफ्ट प्रकाशन का काम अंचलाधिकारी करेंगे. गड़बडी की शिकायत भूमि सुधार उप समाहर्ता से की जा सकेगी. ड्राफ्ट के अंतिम प्रकाशन का काम भूमि उप समाहर्ता स्तर से ही होगा. सर्वे के काम में नौ करोड़ रुपये खर्च होंगे. तीन साल में सर्वे का काम पूरा होने के बाद चकबंदी का काम पांच वर्षों में पूरा कराने का लक्ष्य है. 

दरअसल सर्वे का काम 1902 में शुरू हुआ था, जो 1912 से 1914 में पूरा हो सका था. 1962 में जिला स्तर पर सर्वे हुआ लेकिन संपूर्ण सर्वे नहीं हो सका. नये सर्वे से ज़मीन के वास्तविक मालिकों के नाम सामने आएंगे. साथ ही सरकारी दस्तावेज अद्यतन किये जा सकेंगे. गैरमजरूआ, आम, खास, और खास महल की ज़मीनों का बास्तविक अंदाजा मिल सकेगा. इस कार्य को अंजाम देने के लिये 742 पद सृजित कर बहाली भी की जायेगी.

बेशक ये दोनों चीजें राज्य के लिये बेहद जरूरी हैं. लेकिन जो कुछ बताया जा रहा है, क्या उसकी हकीकत भी वैसी ही है ? सरकारी दावे की परत दर परत बटाने पर पता चलता है कि यह महज नीतीश कुमार का सब्जबाग ही है.

यह बात पूरी तरह से साबित हो चुकी है कि भूमि-सुधार के मोर्चो पर नीतीश कुमार की सरकार बहुत कमजोर रही है. राज्य में सत्ता की बागडोर संभालने के बाद नीतीश कुमार ने भूमिसुधार आयोग का गठन देवव्रत बंदोपाध्याय की अध्यक्षता में किया था. बाद में सरकार ने आयोग की सिफारिशों की ओर से अपनी आंखें बंद कर ली. 

सरकार ने गरीबों को एक एकड़ और भूमिहीनों को 10 डिसमल ज़मीन देने की सिफारिश को दरकिनार करते हुए सिर्फ तीन डिसमल ज़मीन देने की बात कही और फिर इस वायदे से भी सरकार मुकर गयी. 

बंदोपाध्याय ने बिहार में नया बटाईदार कानून लाने, वर्तमान कानून में संशोधन करने, गैरमजरूआ ज़मीन का उचित इस्तेमाल करने, भूहदबंदी को सही तरीके से लागू करने तथा भूदान से मिली ज़मीन को विवादों के निपटारे का सुझाव दिया था. लेकिन बिहार जैसे सामंती प्रदेश में नीतीश कुमार को मुंह की खानी पड़ी. नया भूमि सर्वे तथा चकबंदी के बारे में भी यही प्रचारित किया जा रहा है कि यह बंटाईदारी कानून का ही दूसरा रूप है. ऐसे में पुराने अनुभव के आधार पर यह मानने का कोई कारण नज़र नहीं आता कि सरकार को इसमें सफलता मिलेगी. 

असल में समस्या का जुबानी समाधान या वाहवाही वाले मुद्दे की तलाश किसी को सीखनी हो तो वह नीतीश कुमार से सीखे. बंटाईदारी कानून के मोर्चे पर पूरी तरह विफल रहने के बाद राज्य सरकार ने सर्वे तथा चकबंदी का सहारा लिया. भूमि के मामलो में ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है, जो यह साबित कर सकें कि राजग सरकार के छह साल के शासन के दौरान कुछ भी नहीं हुआ है. 

दरअसल राजग का वोट बैंक वही है, जो वाकई ज़मीन का मालिकाना हक रखते हैं. स्थिति तो यह है कि सरकार कह कर भी महादलितों को मकान बनाने के लिये ज़मीन नहीं दे सकती है. हां, भूमिसुधार के नाम पर ऐलान दर ऐलान जरूर हो रहे हैं.
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