BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Welcome

Website counter
website hit counter
website hit counters

Thursday, January 19, 2017

दुनिया बदल रही है और वतन ट्रंप के हवाले। बेहद खुश हैं वतन के रखवाले। पलाश विश्वास

दुनिया बदल रही है और वतन ट्रंप के हवाले।

बेहद खुश हैं वतन के रखवाले।

पलाश विश्वास

कल दुनिया डोनाल्ड ट्रंप के हाथों में होगी।कल्कि अवतार कम थे।अब सोने पर सुहागा।20 जनवरी को बराक ओबामा की जगह राष्ट्रपति पद संभालने से पहले ही मैडम तुसाद म्यूजियम में डॉनल्ड ट्रंप ने ओबामा की जगह ले ली है। अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की मोम की प्रतिमा का लंदन के मैडम तुसाद म्यूजियम में अनावरण किया गया। इस प्रतिमा में धूप में टैन हुई उनकी त्वचा और खास तरह से संवारे गए उनके बालों का दिखाया गया है। म्यूजियम के ट्विटर पर साझा की गई जानकारी के मुताबिक इस प्रतिमा को 20 आर्टिस्ट्स ने छह महीने में बनाया है। लगभग सवा करोड़ की लागत से बनी ट्रंप की प्रतिमा ने गहरे नीले रंग का सूट, सफेद शर्ट और लाल टाई पहनी है।

बहरहाल एजंडे के मुताबिक दस लाख टके के सूट से बहुत मैचिंग है यह मोम की प्रतिमा।ढर यही है कि अमेरिका में गृहयुद्ध और बाकी दुनिया में जो युद्ध घनघोर है और जिसमें फिर अमेरिका और इजराइल के साथ भारत पार्टनर है,दिशा दिशा में सुलगते ज्वालामुखियों की आग में दुनिया अगर बदल रही है तो दुनिया किसहद तक कितनी बदलेगी,क्या भगवा झंडा व्हाइट हाउस पर भी लहरायेगा और सर्वव्यापी इस भीषण आग में मोम की यह प्रतिमा कितनी सही सलामत रहेगी।

सूट भी मैचिंग और मंकी बातों का अंदाज भी वही।अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी सनसनीखेज घोषणाओं और आलोचना को लेकर टि्वटर पर छाए रहते हैं, हालांकि उनका यह कहना है कि उन्हें ट्वीट करना बिल्कुल पसंद नहीं है लेकिन बेईमान मीडिया के खिलाफ अपने बचाव में यह करना पड़ता है। ट्रंप ने समाचार चैनल फॉक्स न्यूज से कहा कि देखिए, मुझे ट्वीट करना पसंद नहीं। मेरा पास दूसरी चीजें हैं जो मैं कर सकता हूं। परंतु मैं देखता हूं कि बहुत ही बेईमान मीडिया है, बहुत बेईमान प्रेस है। ऐसे में यही मेरे पास यही एक रास्ता है जिससे मैं जवाब दे सकता हूं। जब लोग मेरे बारे में गलत बयानी करते हैं तो मैं इस जवाब दे पाता हूं।

खेती और किसान मजदूर कर्मचारी तबाह हैं।रोजगार आजीविका खत्म हैं।कारोबार,उद्योग धंधे भी मेकिंग इन इंडिया से लेकर नोटबंदी और डिजिटल कैशलैस इंडिया हवा हवाई है।तबाही के दिन शुरु हो गये और न जाने सुनहले दिन कब आयेंगे।अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप 20 जनवरी को शपथ लेंगे। शपथ ग्रहण समारोह का थीम "मेक अमेरिका ग्रेट अगेन" है।इतिहास का यह पुनरूत्थान नस्ली सत्ता की चाबी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेशी निवेशकों को रिझाने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं लेकिन कारोबार में जोखिम पर रिपोर्ट तैयार करने वाली एक एंजेंसी क्रॉल का मानना है कि भारत में अभी भी बिजनेस में फर्जीवाड़ा काफी ज्यादा है। हालांकि इस साल हालात पहले से बेहतर हुए हैं। एक सर्वे के मुताबिक करीब 100 में 68 फीसदी निवेशकों ने माना है कि उनके साथ फर्जीवाड़ा हुआ है जबकि 73 फीसदी लोगों के साथ साइबर हैकिंग हुई है।

हालात हमारे नियंत्रण से बाहर है।भारतीय रिजर्व बैंक के साथ भारतीय बैंकिंग का जो दिवालिया हाल है,बजट में भी कालाधन का राजकाज मजबूत होना है और नस्ली नरसंहार का सिलसिला थमने वाला नहीं है।बीमा का विनिवेश तय है।रेलवे का निजीकरण तेज है और रक्षा आंतरिक सुरक्षा विदेशी कंपनियों और विदेशी हितों के हवाले है।यही संघ परिवार का रामराज्य है औऱ उनका राम अब डोनाल्ड ट्रंप हैं।कल जिनके हवाले दुनिया है।

रोहित वेमुला की बरसी पर उसकी मां की गिरफ्तारी भीम ऐप और नोट पर गांधी के बदले बाबासाहेब का सच है।संविधान के बदले मनुस्मृतिविधान है।

संघ एजंडा में बाबासाहेब का वही स्थान है जैसा कि डोनाल्ड ट्रंप के कुक्लाक्सक्लान का नया अश्वेत सौंदर्यबोध का सत्ता रसायन  है।पहले ही वे जूनियर मार्टिन लूथर किंग से मुलाकात करके भारत में अंबेडकर मिशन की तर्ज पर मार्टिन लूथर किंग के सपने को जिंदा ऱकने का वादा किया है और नस्ली नरसंहार के खिलाफ निर्मायक जीत हासिल करने वाले अब्राहम लिंकन की विरासत पर दावा ठोंक दिया है जो काम हमारे कल्कि अवतार का भीम ऐप है और जयभीम का विष्णुपद अवतार है और तथागत का तिरोधान परानिर्वाण है। गौर करें, अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप शुक्रवार (20 जनवरी) को 2 बाइबल का इस्तेमाल करते हुए शपथ ग्रहण करेंगे, जिनमें एक बाइबल वह होगी, जिसका इस्तेमाल अब्राहम लिंकन ने अपने पहले शपथ ग्रहण में किया था, जबकि दूसरी बाइबिल ट्रंप के बचपन के समय की है। यह बाइबिल 12 जून 1955 को उनकी मां ने उन्हें भेंट की थी। अमेरिका के मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स ट्रंप को शपथ दिलाएंगे। 'प्रेसिडेंसियल इनैग्रेशन कमेटी (पीआईसी) ने शपथ ग्रहण कार्यक्रम के ब्यौरे का एलान किया। पीआईसी प्रमुख टॉम बराक ने कहा, 'अपने शपथग्रहण संबोधन में राष्ट्रपति लिंकन ने कुदरत के खास फरिश्तों से अपील की थी।

उत्तराखंड में एनडी तिवारी और यशपाल आर्य की संघ से नत्थी हो जाने पर पहाड़ों का क्या होना है,यह सोचकर दहल गया हूं तो यूपी में भी नोटबंदी के करिश्मे के बीच मूसलपर्व के अवसान बाद आखिरकार चुनाव नतीजे में जनादेश का ऊंट करवट बदलने के लिए कितना स्वतंत्र है,यह फिलहाल अबूझ पहेली है।पंजाब में भी संघी अकाली सत्यानाश का सिलसिला खत्म होते नजर नहीं आ रहा है।

ग्लोबल हालात के साथ साथ भारत में भी नस्ली कुक्लाक्स क्लान केसरिया है।ओबामा केयर (स्वास्थ्य सेवा से संबंधित कार्यक्रम) को रद्द करने की ट्रंप की धमकी से वैसे दो करोड़ अमेरिकियों को सदमा लगा है, जो उससे लाभान्वित हो रहे हैं। उनका मंत्रिमंडल सफल अरबपति व्यावसायियों और वाल स्ट्रीट अधिकारियों के एक क्लब की तरह लगता है, जिनकी संयुक्त संपत्ति 12 अरब अमेरिकी डॉलर है! भारत में मीडिया एक दामाद के कथित कारनामों का राग अलापता रहता है, लेकिन अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति को इस संदर्भ में किसी तरह की नैतिक दुविधा का कष्ट नहीं भुगतना पड़ रहा । उन्होंने अपने दामाद जारेड कशनर को अपना वरिष्ठ सलाहकार नामित किया है.हालात का मिलान करके आजमा लीजिये कि युगलबंदी का नजारा जलवा क्या है।हमारे यहं नोटबंदी है तो वहां ओबामा केयर बंद है।

आज सुबह नींद खुलते ही टीवी स्क्रीन पर लावारिश किताबों और स्कूल बैग के बीच बच्चों की लाशों के सच का सामना करना पड़ा है।एटा की दुर्घटना में स्कूली बच्चों की लाशों की गिनती से कलेजा कांप गया है और रोज तड़के बच्चों को नींद से जगाकर स्कूल भेजने वाले तमाम मां बाप देश भर में इस दृश्य की भयावहता से जल्द उबर नहीं सकेंगे।उत्तर भारत में कड़ाके की सर्दी है और कुहासा घनघोर है।ऐसे में कुहासा के मध्य स्कूलों को जारी रखने का औचित्य समझ से परे हैं,जिस वजह से यह दुर्घटना हो गयी।

सोदपुर में सुबह सुबह रेलवे स्टेशन पर अफरा तफरी,तोड़ फोड़ और रेल अवरोद का सिलसिला देर तक जारी रहा और सियालदह से रेलयातायात बाधित हो गयी।थ्रू ट्रेन की सूचना न मिलने की वजह से सरपट  दौड़ती ट्रेन की चपेट में एक वृद्ध की यहां सुबह ही मौत हो गयी है और यह रोज रोज का रोजनामचा कहीं न कहीं दोहराया जाता है।

इन तमाम हादसों में सबसे भयानक हादसा अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप का उत्थान है जो फिर हिरोशिमा और नागासाकी का अनंत सिलसिला है और नस्ली नरसंहार का यह ग्लोबल हिंदुत्व पूरीतरह जायनी विपर्यय है ,जिसके खिलाफ अमेरिकी जनता प्रतिरोध के मिजाज में ओबामा की विदाई के साथ साथ सड़कों पर लामबंद है और इसके विपरीत भारत में और अमेरिका में भी बजरंगियों में जश्न का माहौल है।जश्न में नाचने गाने वाले भी खूब हिंदुस्तानी हैं,स्टार सुपरस्टार,ब्रांड एबेसैडर है।

कल अपनी विदाई प्रेस कांफ्रेस में बाराक ओबामा ने अबतक का उनका सर्वश्रेष्ठ भाषण दिया है  और अमेरिकियों को उम्मीद भी है कि उनका सपना मरा नहीं है।बाराक और मिसेल ने बहुलता और विविधता का लोकतंत्र बचाने के लिए जाते जाते अमेरिका में सुनामी रच दिया है,ऐसा राजनीतिक प्रतिरोध हमारे देश में फिलहाल अनुपस्थित है।

प्रेजीडेंट चुने जाने के बाद से शून्य से पांच सात डिग्री सेल्सियस के नीचे तापमान से बेपरवाह ट्रंप महल के सामन खुले आसमान के नीचे बर्फवारी के बीच जनता का हुजूम अब भी चीख रही हैःनाट आवर प्रेजीडेंट।कल उनके शपथ ग्हणके बाद महिलाएं उनके खिलाफ मार्च करेंगी।अमेरिकी इतिहास में वे सबसे अलोकप्रिय अमेरिकी राष्ट्रपति हैं और जिनका चेहरा फासिस्ट और नात्सी दोनों है।फिरभी भारत में उनके पदचाप का उत्सव है।

बहरहाल,अमेरिकी प्रेस एसोसिएशन ने कल शपथ ले रहे अमेरिकी हिटलर के नस्ली राजकाज के खिलाफ कड़ी चेतावनी देते हुए कहा है कि आप हद से हद आठ साल तक व्हाइट हाउस में होंगे लेकिन प्रेस अमेरिकी लोकतंत्र का हिस्सा है ,जो रहा है और रहेगा।हम क्या छापेंगे,क्या नहीं छापेंगे ,यह हमारे विवेक पर निर्भर है और आप क्या बतायेंगे या नहीं बतायेंगे,यह आपकी मर्जी होगी लेकिन सच कहने से आप हमें रोक नहीं सकते और न आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर किसी तरह का अंकुश सकते हैं।

डोनाल्ड ट्रंप के हवाले दुनिया है तो उस दुनिया में निरंकुश सत्ता के नस्ली नरसंहार के खिलाफ इंसानियत का प्रतिरोध भी तेज होने वाला है।हम अपने यहां ऐसा नहीं देख रहे हैं।न आगे देखने के कोई आसार हैं।

इस बुरे वक्त के लिए यह सबसे अच्छी खबर है।अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप शुक्रवार को पद की शपथ लेंगे। उनके शपथ ग्रहण करने से पहले अमेरिकी प्रेस कोर ने साफ तौर पर कह दिया है कि ट्रंप उन पर फरमान जारी नहीं कर सकते बल्कि पत्रकार अपने एजेंडा खुद सेट करेंगे।

काश! भारतीय मीडिया निरंकुश सत्ता को इसतरह की कोई चुनौती दे पाता।

समझा जाता है कि नये अमेरिकी राष्ट्रपति प्रेस को व्हाइट हाउस से बाहर रखने की तैयारी कर रहे हैं।

गौरतलब है कि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप आगामी शुक्रवार को शपथ ग्रहण करने के बाद 40 फीसदी लोगों के समर्थन के साथ हाल के समय के सबसे कम लोकप्रियता वाले राष्ट्रपति होंगे। मौजूदा राष्ट्रपति बराक ओबामा के मुकाबले ट्रंप की लोकप्रियता का आंकड़ा 44 अंक कम है। सीएनएन-ओरआरसी के नए सर्वेक्षण के अनुसार हाल के तीन राष्ट्रपतियों से तुलना करें तो ट्रंप की लोकप्रियता उनके मुकाबले 20 अंक कम हैं। ओबामा ने 2009 में जब दूसरे कार्यकाल के लिए शपथ ली थी तो उनकी लोकप्रियता का ग्राफ 84 फीसदी तक था।

गौरतलब है कि राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनते ही डोनाल्ड ट्रंप ने अपने आपको हिंदुत्व का बड़ा प्रशंसक बताते हुए कहा कि अगर वह राष्ट्रपति बनते हैं तो हिंदू समुदाय व्हाइट हाउस के सच्चे मित्र होंगे।

ट्रंप ने पीएम मोदी को महान शख्सियत करार देते हुए कहा कि वह भारतीय प्रधानमंत्री के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं। ट्रंप ने कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, वह अमेरिका का स्वाभाविक सहयोगी है।

ट्रंप ने आतंकवाद के खिलाफ भारत द्वारा चलाए जा रहे मुहिम को बेहतरीन बताते हुए कहा कि इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका भारत के साथ है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि अगर वह राष्ट्रपति बनते हैं तो भारत के साथ दोस्ती को और मजबूत करेंगे।

इस बीच प्रतिष्ठित भारतीय-अमेरिकी विद्वान एश्ले टेलिस ने चेतावनी दी है कि नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट की नीति भारत और अमेरिका के संबंधों को नुकसान पहुंचा सकती है। साथ ही उन्होंने कहा कि ट्रंप को चीन से मिल रही चुनौतियों से निपटने के लिए द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने की जरूरत है।

एक शीर्ष अमेरिकी थिंक टैंक के सीनियर फेलो टेलिस ने कहा कि ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट की रणनीति अमेरिका-भारत के रिश्ते को नुकसान पहुंचा सकती है। ट्रंप को चीन से मिलने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए भारत के साथ संबंध मजबूत करने चाहिए। मुम्बई में जन्मे 55 वर्षीय टेलिस ने एशिया पॉलिसी में प्रकाशित एक लेख में कहा कि जॉर्ज डब्ल्यू बुश प्रशासन के समय में अमेरिका की भारत से घनिष्ठता इस आधार पर थी कि दोनों देश चीन के बढ़ने और उससे अमेरिका की प्रधानता और भारत की सुरक्षा को पैदा होने वाले खतरे का सामना कर रहे थे।

टेलिस का कहना है कि बुश प्रशासन के दौरान भारत के उभरती शक्ति की तरफ अमेरिका की प्रतिबद्धता संतुलित थी लेकिन ओबामा प्रशासन के समय कुछ अच्छे कारणों से यह आगे जारी रही। अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार आगामी ट्रंप प्रशासन टेलिस को भारत में अमेरिका का अगला दूत बनाने पर विचार कर रहा है। अभी टेलिस और ट्रंप की टीम ने इन खबरों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

दो साल पहले मोदी से आसमानी उम्मीदें थीं। अब दो साल हो गए हैं। तो कितनी उम्मीदें पूरी हुईं। मेक इन इंडिया का क्या हुआ? कितना डिजिटल हुआ इंडिया? कितना स्वच्छ हुआ भारत? अर्थव्यवस्था में कितना सुधार हुआ? अच्छे दिन कोई हकीकत है या अब भी ख्वाब है? मोदी सरकार के दो साल पूरे होने पर देखिए सीएनबीसी-आवाज़ पर महाकवरेज.... लगातार और शुरुआत मेक इन इंडिया पर रियलिटी चेक से।

मेक इन इंडिया का बड़ा पहलू ये है कि इसके लिए कितना विदेशी निवेश हो रहा है। यानी यहां कितनी कंपनियां आकर काम कर रही हैं या करने को तैयार हैं। मोदी सरकार अपने दो साल पूरे करने जा रही है। इस मौके पर हम सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक मेक इन इंडिया की जमीनी हकीकत का जायजा ले रहे हैं। अपनी स्पेशल सीरीज की शुरुआत हम कर रहे हैं एफडीआई यानी विदेशी निवेश की स्टेटस रिपोर्ट के साथ।

आज से करीब दो दशक पहले अलीशा चिनॉय के इस गाने ने मेड इन इंडिया को घर घर तक पहुंचा दिया। ये अलग बात है कि ये सिर्फ गाने तक ही सीमित रहा। जबकि पूरी दुनिया में मेड इन चाइना ने तहलका मचाया। करीब दो साल पहले इसे घर-घर तक पहुंचाने का जिम्मा उठाया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने, लेकिन एक नए अंदाज के साथ।


मेक इन इंडिया योजना के प्रतीक बब्बर शेर ने दहाड़ तो खूब लगाई, लेकिन इसकी रफ्तार कैसी है, आइए जानते हैं। साल 2015 में विदेशी निवेश के मामले में भारत ने सभी एशियाई देशों को काफी पीछे छोड़ दिया, फिर चाहे वो सबसे बड़ी एशियाई अर्थव्यवस्था चीन हो या फिर जापान। एफडीआई इंटेलिजेंस के मुताबिक साल 2015 में भारत में 63 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया, जबकि चीन में ये आंकड़ा 56.5 अरब डॉलर के करीब रहा। बात यहीं खत्म नहीं होती। मेक इन इंडिया योजना के तहत अब तक डिफेंस सेक्टर में 56 विदेशी कंपनियां निवेश के लिए तैयार हैं, जिनमें फ्रांस की एयरबस, इजरायल की राफेल और अमेरिका की बोइंग जैसे नाम शामिल हैं।

पावर और इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में भी दुनिया की दिग्गज कंपनियां भारत में पैसा लगा रही हैं। इनमें पहला नाम है ताइवानी कंपनी फॉक्सकॉन का, जो अगले पांच सालों मे 5 अरब डॉलर का निवेश करेगी। फॉक्सकॉन के अलावा चाइनीज कंपनी श्याओमी और कोरियाई कंपनी एलजी ने भी भारत में स्मार्टफोन्स का प्रोडक्शन शुरू कर दिया है। ली ईको जैसे विदेशी स्टार्टअप भी निवेश के लिए भारत को फर्स्ट च्वाइस मानते हैं।

रेलवे को भी बिहार में दो इंजन कारखाने लगाने के लिए 10 हजार करोड़ रुपये का विदेशी निवेश जुटाने में कामयाबी मिली है, जो अब तक का रेलवे में सबसे बड़ा विदेशी निवेश है। वहीं मिसौरी की पावर कंपनी सन एडिसन ने देश में 4 अरब डॉलर की लागत से एक सोलर पैनल फैक्ट्री लगाने का एलान किया है। साफ तौर पर सरकार के पास खुश होने के लिए वजहें तो मौजूद हैं।


मेक इन इंडिया मुहिम के तहत आ रहे भारी विदेशी निवेश के मोर्चे पर मिल रही सफलता को लेकर मोदी सरकार उत्साहित है लेकिन जानकारों के मुताबिक ये भारी निवेश फिलहाल कागजों में ही और हकीकत में बदलने में 4-5 साल का वक्त और लगेगा।

विदेशी निवेशकों के सेंटिमेंट भले ही सुधरने का दावा किया जा रहा हो लेकिन निवेश अभी उस रफ्तार से नहीं आ रहा है जिसकी दरकार है। वैसे देश में कारोबार की राह आसान किए बिना मेक इन इंडिया मुहिम को सफल बनाना मुश्किल है। बीते दो सालों में सरकार ने कारोबार को आसान करने के लिए कई कदम तो उठाए हैं, लेकिन इसका कितना फायदा कारोबारी उठा पा रहे हैं, आइए जानते हैं।

मिनिमम गर्वमेंट, मैक्सिमम गर्वनेंस - ये है मोदी सरकार का नारा और इसे ध्यान में रखते हुए हर वर्ग के लोगों के लिए सरकारी कामकाज आसान बनाने की कोशिश की जा रही है। इसी का हिस्सा है कारोबार के लिए सरकारी मंजूरी मिलने में आसानी यानी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस। इसके लिए पिछले दो सालों में सरकार ने इंडस्ट्री लाइसेंस की प्रकिया को आसान बनाने से लेकर सभी तरह के रिटर्न्स ऑनलाइन जमा करने की सुविधा जैसे कई कदम उठाए हैं।

दुनिया भर में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की रैंकिंग में भारत ने सुधार तो दिखाया है, लेकिन अभी भी हम दुनिया के 129 देशों से पीछे हैं। साल 2015 में हमारी रैंकिंग 142 थी जो इस साल 130वें नंबर पर पहुंच गई है। दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए ये रैंकिंग एक आईना है कि यहां बिजनेस करना कितना मुश्किल है। हालांकि सरकार को भरोसा है कि अगले तीन साल में वो देश को दुनिया के 50 टॉप देशों की लिस्ट में पहुंचा देगी।

सरकार अपनी पीठ जरूर ठोक रही है, लेकिन दो सालों में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां सरकार के दावों पर सवाल खड़े हुए हैं। चाहे वो वोडाफोन के साथ चल रहा टैक्स मामला हो या नेस्ले का मैगी विवाद, या फिर उबर जैसी कंपनियों के बिजनेस मॉडल को कठघरे में लाने की कई राज्य सरकारों की कोशिश। इन मामलों में केंद्र सरकार का रुख भी विदेशी निवेशकों के लिए असमंजस बढ़ाने वाला ही रहा। कंपनियां भी दबी जुबान में ही सही, सरकार की नीतियों पर नाखुशी जताती रही हैं। लेकिन सरकार के कामकाज पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट उसके इस दावे पर ही सवालिया निशान लगा रहे हैं कि देश में बिजनेस करना पहले से आसान हुआ है।

दूसरी तरफ सरकार की दलील है कि वोडाफोन और उबर जैसे इक्का-दुक्का मामलों के आधार पर राय नहीं बनानी चाहिए। सरकार के मुताबिक उसकी नीतियां किसी सेक्टर को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं, किसी खास कंपनी को देखकर नहीं। हाल ही में संसद से पास हुए बैंकरप्सी बिल को भी कारोबार आसान करने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।

जानकारों के मुताबिक इससे भारत की दुनिया में रैंकिंग भी सुधरेगी। लेकिन साथ ही वो कह रहे हैं कि इतना ही काफी नहीं है, लेबर और टैक्सेशन के मोर्चे पर सरकार को काफी कुछ करने की जरूरत है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की दिशा में अभी सरकार ने शुरुआती कदम भर उठाए हैं, अभी तो मीलों का सफर बाकी है।

प्रधानमंत्री मोदी का हर हाथ को काम देने का वादा था। उन्होंने कहा था कि देश के एक्सपोर्ट सेक्टर को वो चमका देंगे लेकिन मेक इन इंडिया मुहिम एक्सपोर्ट सेक्टर के अच्छे दिन लाने में अभी तक नाकाम रही है। बीते डेढ साल में एक्सपोर्ट में लगातार गिरावट आई है। हालत ये है कि मंदी की मार के चलते अब घरेलू एक्सपोर्टर्स अपना धंधा बंद करने को मजबूर हैं और लोगों की नौकरियां खतरे में है।

करीब 2 साल पहले मोदी सरकार ने अच्छे दिन लाने का वादा किया था, उन्हीं वादों पर भरोसा करते हुए एक्सपोर्टर्स ने इंफ्रास्ट्रक्चर पर बड़ा निवेश भी किया लेकिन वैश्विक मंदी और कमजोर सरकारी नीतियों के चलते नौबत यहां तक आ गई है कि वही बढ़ा हुआ निवेश एक्सपोर्टर्स पर भारी पड़ रहा है।

गुरुग्राम में पिछले 25 सालों से प्रीमियम फैशन गारमेंट्स का प्रोडक्शन कर रहे संजय चूड़ीवाला के ग्राहक यूरोप, स्पेन, फ्रांस और डेनमार्क जैसे देशों के बड़े ब्रांड्स हैं। लेकिन पिछले डेढ़ सालों से इनका कारोबार ठंडा पड़ा है। ग्लोबल मंदी की वजह से कम हुई मांग ने संजय को अपना प्रोडक्शन कम करने पर मजबूर कर दिया। नतीजतन, पहले जहां 250 से ज्यादा कारीगर संजय की एक्सपोर्ट यूनिट में काम करते थे, अब वो 15-20 तक सिमट गए हैं।

एक्सपोर्ट में मंदी का दुष्प्रभाव तो बिमल मावंडिया पर भी पड़ा है। बिमल जारा और फोरएवर 21 जैसे ब्रांड्स को रेडीमेड गारमेंट्स एक्सपोर्ट करते हैं। वो पिछले 40 साल से इस बिजनेस से जुड़े हैं, लेकिन इतने बुरे दिन उन्होंने कभी नहीं देखे। 2 साल पहले बिमल की 3 फैक्ट्रीज थी, जिनमें से दो अब बंद हो चुकी हैं। बिमल के मुताबिक एक्सपोर्ट सेक्टर की हालत सुधारने के लिए पुराने और घिसे-पिटे उपाय करने से काम नहीं चलेगा।

एक्सपोर्टर्स इस बात से भी नाखुश हैं कि मोदी सरकार ने प्रो-एक्सपोर्ट पॉलिसी लाने के बजाय उन्हें मिलने वाले इंसेंटिव्स पर ही कैंची चला दी है। एक्सपोर्टर्स की संस्था फियो यानी फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक साल 2014 में जहां एक्सपोर्ट 323.3 बिलियन डॉलर था वो साल 2015 में 21 फीसदी गिरकर 243.46 बिलियन डॉलर रह गया। लेकिन सरकार इस गिरावट का जिम्मा अंतर्राष्ट्रीय वजहों को बताकर पल्ला झाड़ने में लगी है।

वजह चाहे जो हो, सच्चाई यही है कि तमाम प्रोडक्ट्स के एक्सपोर्ट में पिछले 8 महीनों से लगातार गिरावट आई है। और, सरकार के प्रयास इस सेक्टर में कोई सुधार लाने में नाकाम हैं। मोदी सरकार की मेक इन इंडिया मुहिम की कामयाबी काफी हद तक एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने पर भी निर्भर करती है। और अगर एक्सपोर्ट सुधारने की गंभीर कोशिशें जल्द शुरू नहीं हुईं तो इस मुहिम को फ्लॉप होने से कोई नहीं रोक पाएगा।





No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...