BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Friday, September 4, 2015

उदय प्रकाश के बारे में विष्‍णु खरे का ताज़ा पत्र

(हिंदी के लेखक उदय प्रकाश के साहित्‍य अकादेमी पुरस्‍कार लौटाने पर थोड़ी ही देर पहले हिंदी के कवि विष्‍णु खरे का यह पत्र ई-मेल से प्राप्‍त हुआ है और इसे छापने का आग्रह किया गया है। नीचें पढ़ें विष्‍णु खरे जी की पूरी पाती - मॉडरेटर) 


विष्‍णु खरे 


मैं श्री उदय प्रकाश के साहित्य, विचारों, वक्तव्यों, कार्यों,मनःस्थितियों और कार्रवाइयों पर कुछ  भी नहीं कहता हूँ क्योंकि उसे भी वह उसी वैश्विक षड्यंत्र का हिस्सा मान लेंगे जो अकेले उनके खिलाफ मुसल्सल चल रहा है, किन्तु मुझे उनका यह साहित्य अकादेमी पुरस्कार लौटाना बिलकुल समझ में नहीं आया।

अकादेमी और अन्य संदिग्ध पुरस्कारों पर मैं वर्षों से लिखता रहा हूँ। कुछ पुरस्कारों को लेकर मेरी भी भर्त्सना हुई है। प्रस्तावित होने पर कुछ पुरस्कार मैंने लेने से इन्कार भी किया है।

मैं अकादेमी पुरस्कारों और प्रो. मल्लेशप्पा मदिवलप्पा कलबुर्गी की नृशंस हत्या के बीच कोई करण-कारण सम्बन्ध नहीं देख पा रहा हूँ। यदि उदय प्रकाश साहित्य अकादेमी को केन्द्रीय सरकार का एक उपक्रम मान रहे हैं और इस तरह मोदी शासन, भाजपा, आर.एस.एस., विहिप, बजरंग दल आदि को किसी तरह प्रो. कलबुर्गी की हत्या के लिए ज़िम्मेदार मानकर उसका विरोध कर रहे हैं तो 2011 के उनके पुरस्कार के पहले और बाद में भी सभी केन्द्रीय सरकारें और उनके समर्थक कई हत्याओं और अन्य अपराधों के लिए नैतिक रूप से ज़िम्मेदार रहे हैं और होंगे। सच तो यह है कि केन्द्रीय साहित्य अकादेमी पुरस्कार अपने आप में वर्षों से इतना कुख्यात हो चुका है कि उसे स्वीकार ही नहीं किया जाना चाहिए - न कांग्रेस के शासन में, न भाजपा के शासन में।

और भी विचित्र यह है कि डॉ. दाभोलकर की हत्या 20 अगस्त 2013 को की गई थी और कॉमरेड गोविन्द पानसरे को 20 फ़रवरी 2015 को मारा गया लेकिन यह दोनों क़त्ल श्री उदय प्रकाश को इस योग्य नहीं लगे कि उनके प्रतिवाद में वह अकादेमी पुरस्कार लौटा दें। शायद उन्हें रघुवीर सहाय की तर्ज़ पर बता यह दिया गया था फिर एक हत्या होगी। लेकिन हत्याएँ तो अनिवार्यतः और होंगी ही। सब हो लेने देते।

मुझे अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि मैं उदय प्रकाशजी की इस कार्रवाई को an insult to intelligence समझने और प्रो. कलबुर्गी की हत्या को exploit करने जैसा मानने के लिए विवश हूँ। यह एक तरह से उनका दूसरा क़त्ल है। लेकिन कल 5 सितम्बर को प्रगतिकामी-वामपंथियों की एक सार्वजनिक प्रतिवाद-सभा दिल्ली में है और संभव है उदय प्रकाशजी ने यह कार्रवाई एक उम्दा sense of timing के तहत आयोजकों का मनोबल बढाने के लिए की हो। तब यदि वह राजधानी में हों तो उन्हें बोलने के लिए बुलाया जाना चाहिए। बहुत असर पड़ेगा।


विष्णु खरे

-- जनपथ
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