BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Tuesday, September 22, 2015

नेताजी को लेकर इतनी घृणित साजिशें आखिर किसलिए हैं,किसके हक में है? नेताजी के मरने या जीने का सच अभी इस महादेश को मालूम नहीं,लेकिन दो डाक्टरों ने उनकी मौत के तीन प्रमाणपत्र जारी कर दिये! डेथ सर्टिफिकेट 1946, 1955 और 1988 में जारी हुए। भारत सरकार ने भी मरणोपरांत नेताजी को भारत रत्न देकर निर्णायक मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करने लगा था,भूल गये? जिस शख्स ने हिंदु्स्तान की सरजमीं पर फासिस्टों का हर कदम पर मुकाबला किया,हमने उन्हें फासिस्ट बना दिया। उससे बड़ी शर्म यह इस खंड खंड अब भी खंडित हो रहे लहूलुहान, झलसते महादेश के महानायक को हमने जिंदा दफना दिया। দেশনায়ক নেতাজীর মৃত্যু নিয়েও চলেছে ঘৃন্য ষড়যন্ত্র। লোক এক জনই কিন্তু death certificate দিয়েছেন দুজন। তার থেকেও বেশী তাজ্জব ব্যপার হলো মৃত্যু সার্টিফিকেটের সংখ্যা তিনটে। সেই তিনটে সার্টিফিকেটে মৃত্যুর দিন ও সময় আবার ভিন্ন ভিন্ন। একটা মানুষ তিনটে আলাদা দিন ও সময়ে মরতে পারেন? এতেই বোঝা যাচ্ছে যার নির্দেশে এই কাজ হয়েছে তার I.Q লেভেল কি বিশাল! আর যে ডাক্তারেরা মৃত্যু সার্টিফিকেট লিখেছেন তারা কতো বড় চিকিৎসক! এই সব ডাক্তার দেশে থাকলে দেশ ধন্য হয়ে যাবে।

नेताजी को लेकर इतनी घृणित साजिशें आखिर किसलिए हैं,किसके हक में है?

नेताजी के मरने या जीने का सच अभी इस महादेश को मालूम नहीं,लेकिन दो डाक्टरों ने उनकी मौत के तीन प्रमाणपत्र जारी कर दिये!

डेथ सर्टिफिकेट 1946, 1955 और 1988 में जारी हुए।

भारत सरकार ने भी मरणोपरांत नेताजी को भारत रत्न देकर निर्णायक  मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करने लगा था,भूल गये?

जिस शख्स ने हिंदु्स्तान की सरजमीं पर फासिस्टों का हर कदम पर मुकाबला किया,हमने उन्हें फासिस्ट बना दिया।

उससे बड़ी शर्म यह इस खंड खंड अब भी खंडित हो रहे लहूलुहान, झलसते महादेश के महानायक को हमने जिंदा दफना दिया।

দেশনায়ক নেতাজীর মৃত্যু নিয়েও চলেছে ঘৃন্য ষড়যন্ত্র। লোক এক জনই কিন্তু death certificate দিয়েছেন দুজন। তার থেকেও বেশী তাজ্জব ব্যপার হলো মৃত্যু সার্টিফিকেটের সংখ্যা তিনটে। সেই তিনটে সার্টিফিকেটে মৃত্যুর দিন ও সময় আবার ভিন্ন ভিন্ন। একটা মানুষ তিনটে আলাদা দিন ও সময়ে মরতে পারেন? এতেই বোঝা যাচ্ছে যার নির্দেশে এই কাজ হয়েছে তার I.Q লেভেল কি বিশাল! আর যে ডাক্তারেরা মৃত্যু সার্টিফিকেট লিখেছেন তারা কতো বড় চিকিৎসক! এই সব ডাক্তার দেশে থাকলে দেশ ধন্য হয়ে যাবে। লজ্জা! লজ্জা!


पलाश विश्वास


कोलकाता में हाले में राजनीतिक वजहों से राजनीतिक गेम के तहत जो नेताजी धमाका हुआ पर्वतस्यमुशिप्रसव की तर्ज पर अश्वडिम्ब, उससे कुछ भी साबित नहीं हुआ है।हालांकि उसमें से नेताजी के भाषण की पुलुस रिपोर्टिंग हूबहू हमने आपसे साझा किया है जो नेताजी के दिलोदिमाम और उनके ख्वाबों और हकीकत के हिंदुस्तान का नक्सा तो बताता है,लकिन उनके जिंदा या मुर्दा होने का किस्सा खोलता नहीं है।

हम ওয়েবসাইট : www.missionnetaji.org के एक दस्तावेज से आज निबट रहे हैं ,जो मुखर्जी कमीशन की फाइंडिंग के आधार पर है और सीधे तौर पर नेताजी के मृत्युरहस्य से मुखातिब होता है।इसमं बी कुछ हासिल शायद न हो क्योंकि सच सिरे से लापता है बल्कि इस दस्तावेज को सच की खोज में एक सफर कह सकते हैं और इस सफर में जो हमारे हमसफर हैं,हस्तक्षेप पर उनका स्वागत है।

हम हूबहू अनुवाद नहीं कर रहे हैं।साथ में बांग्ला में मूल दस्तावेज नत्थी है और तथ्यों मे कोई गड़बड़ी हुई कि नहीं,आप खुदै जांच सकते हैं।हम तथ्यों को हूबहू सजोते हुए उनके गर्भ में छुपे अमोघ सवालों के सामने खड़े होकर झुसल रहे हैं।झलसने और लहूलुहान होने का शौक आपका भी है तो हमसफर बनकर आइये  और हस्तक्षेप पर आपाक नियमत आगमन प्रस्थान स्वागत है।

हम किसी दलदल में नहीं हैं,डिसक्लेमर यह हम बार बार दे रहे हैं और सावन के अंधों को अपने रंग को छोड़ बाकी तमाम लोग रंगीन नजर आत हैं। सवालों से जूझे बिना जो गालियां बकने के शौकीन है तो उनकी गालीगलौज की हदों से टकराने का माद्दा भी हममें हैं।हम किसी को डीफ्रेंड भी नहीं करते हैं।लोग खुद भाग खड़े होते हैं या तमामो गदहे घोड़े बेचकर बेफिक्र सो जाते हैं।हम जानते हैं कि सोये हुए मुल्क को नेताजी जगा नहीं सके और हम नेताजी हैं नहीं।हम उनके आभारी हैं जो नेताजी को गरियाने के बजाय हमे गिराय रहे हैं।क्योंकि,सच पूछो तो दिल चाक चाक है।


सच पूछो तो हम इस देश का इतिहास कुछो नहीं जानते हैं।कुछ जालसाजों ने अपने कुनबों का इतिहास हमारे मत्थे मढ़ दिया और हम बल्ले है।हम झूठ का पुलिंदा ढोते हुए गधों की तरह सच का समाना करने से डर इसलिए रहे हैं कि हम आज भी वे गुलाम हैं,जिन्हें आजादी दिलाने के लिए किसी नेताजी ने सबकुछ दांव लगा दिया।


जिनके लिए देश सा बड़ा न सियासत थी और न मजहब था।जिस गोमांस के सवाल पर इतना बवाल हो रहा है,नेताजी के भारतछोड़ते वक्त उनके साथी तलवार जी का आंखोदेखा हाल पढ़ लें,नेताजी ने देश की आजादी के लिए हिटलर से मिलने की राह मुस्लिम मुल्क अफगानिस्तान में बेहिचक अपे छद्मवेश की प्रामाणिकता के लिए गोमांस भी खा लिया।

गोमांस काकर वे हिंदू रहे या नहीं,इस पर कोई भी फतवा जारी कर सकता है या नेताजी को भी मुस्लिम की औलाद कह सकता है।


देश निकाला उन्हें बहरहाल दिया जा नहीं सकता क्योंकि वे तो देश को आजाद करने के लिए जब बाकी लोग पके हुए आम की तरह आजादी और सत्ता,एक के साथ एक फ्री लपकने के लिए पूरे मुल्क को आग के हवाले कर रहे थे और जाहिरा तौर पर ब्रिटिश हुकूमत से टकराने के बजायउससे सौदा करके सबकुछ हासिल कर लेने के फिराक में थे,तब इस महादेश के नेता अकेले दम अंग्रेजी हुकूमत से टकराने चल पड़े थे और वापस अभीतक लौटे नहीं है।हमें अहसास तक नहीं है कि इस देश का सच्चा सपूतअबी घर वापस हुआ नहीं है।

गांदी के बाद न जाने किस किसकी हत्या होती रही और न जाने कितने कत्लेआम हुए और न जाने कितने मारे गये,ताजातरीन पनसारे,कलबुर्गी और दाभोलकर भी मारे गये।


गनीमत है कि वे इस हिंदूराष्ट्र में नहीं है और उकी कोई हत्या भी कर नहीं सकता यकीनन।

क्या पता कि कभी वे लौटकर आते तो न जाने कैसे हम उनसे सलूक करते जो पूरे सात दशक तक उनको जिंदा दफनाते रहे।

बेहद शर्म की बात है कि आजादी के सात दशक पूरे होने जा रहे हैं और लोकतंत्र छीज गया है।संविधान मर गया है और मेहनतकश मर मर कर जी रहे हैं।आजादी सिरे से लापता है।

विकास हरिकथा अनंत में बेदखली और हादसों का सिलसिला है।देश आजादी के लिए बंटा,हम शुरु से अब तक यही मानते रहे हैं।

यह झूठ जिताना सच है, यह झूटा इतिहास जितना सचहै, नेताजी के बारे में पूरा सच भी किसी को मालूम नहीं है।


सिर्फ इतना तय है कि सत्ता पर काबिज होने वालों ने उन्हें झूठो ही फासिज्म से जोड़ दिया है जबकि वे स्टालिन के नक्शेकदम चलकर दूसरे विश्वयुद्ध को आजादी का निर्णायक मौका मानकर आजादी के लड़ रहे थे और उनकी फौज मुकम्मल हिंदुस्तानी थी जिसमें इंद्रधनुष के सारे रंग हजारोंहजार फूलों की तरह खिल रहे थे।

जिस शख्स ने हिंदु्स्तान की सरजमीं पर फासिस्टों का हर कदम पर मुकाबला किया,हमने उन्हें फासिस्ट बना दिया।

उससे बड़ी शर्म यह इस खंड खंड अब भी खंडित हो रहे लहूलुहान, झुलसते महादेश के महानायक को हमने जिंदा दफना दिया।

हमने भारत छोड़ने से पहले नेताजी के भाषण को आपसे साझा करके अनुरोध किया कि समझ लें कि नेताजी के दिलोदिमाग में आखिर चल क्या रहा था।

बंगाल के युवाजनों को संबोधित करते हुए नेताजी ने हिदुत्व पुनरूत्थान को मुल्क और इंसानियत के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया और युवाजनों से साम्राज्यवाद और पूंजी के साथ साथ फासीवादी तत्वों का मुकाबला करने के लिए वक्त रहते तैयार हो जाने की नसीहत दी।

वह भाषण साझा करने के बाद हमें थोक भाव से गालियां मिल रही हैं।गालियां देने वाले बेहद मेहरबान हैं।लेकिन नेताजी के विचारों को साझा करने के लिए ये गालियां दरअसल हमारे लिए नहीं हैं।


दरअसल ये गालियां नेताजी,तमाम शहीदों और हमारे पुरखों के लिए हैं,जिनमें आजादी के लिए हर जंग लड़ने का जिगरा था।

हम चूंकि कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं और हम चूंकि बिना खून,बिना रीढ़ के शुतुरमुर्ग हैं,गालियां हमारे लिए खूब जायज है कि हम मेहनतकशों के हकहकूक लूटते देख रहे हैं बेबस।

हम रीढ़ विहीन लोग शहीदों की शहादतों का सौदा होते देख रहे हैं तमाशबीन।हम पल पल देश को बिकते हुए देख रहे हैं।

हम आजादी गिरवी होते हुए देख रहे हैं और हम भारत की जनता को लगातार बेदखल होते देख रहे हैं।हम कत्लेआम देख रहे हैं।हम तमाम हत्यारों को रंग बिरंगे रब बना रहे हैं तो नेताजी खी फिर फिक्र क्यों करनी है।


हम कयामतों के इस सिलसिले में वसंत बहार देख रहे हैं और चारों तरफ आगजनी हैं और हम मदहोश हैं।

मैं तो अपने को लेखक भी नहीं मानता और इसलिए कालजयी होने की कोई कोशिश भी नहीं करता और मेरे पांव फिरभी धंसे हुए हैं या बसंतीपुर के गोबर कीचड़ में या हिमालय में धंसकती इंसानियत के टुकड़ा टुकड़ा होते वजूद में।

मेरे पिता पुलिनबाबू और मेरे ब्रह्मराक्षस गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी कहते थे कि लिखकर अगर दुनिया न बदल सकें तो लिखना मत।


खेत जोतते हो और पैदावर कुछ नहीं तो जैसे किसान नहीं वैसे ही लिखते हैं और दुनिया बदलती नहीं,तो ससुरा कोई लेखक है ही नहीं।  

फिरभी लिखने की बदतमीज जुर्रत करता हूं तो दस जूते हमारे सर पर मारो लेकिन उस नेताजी को उनके कहे के लिए बख्श दो,जिनको हमने जिंदा दफना दिया।

ऩेताजी के भाषण के बाद ऐसे दस्तावेज को साझा कर रहा हूं,जिससे रोंगटे खड़े हो जाने चाहिए और इंसानियत का कोई जब्जा हो तो चुल्लूभर पानी में डूब मरना चाहिए।

इसके बावजूद गालियां देने में जिन्हें मजा आता है,उनसे निवेदन है कि उनकी गालियां सर माथे हैं बशर्ते कि वे सच को जानने की कोशिश भी करें और सचा का समाना बहादुरी के साथ करें भी।

गौरतलब है कि यह दस्तावेज नेताजी के मृत्यु रहस्य के खुलासे के लिए गठित मुखर्जी कमीशन के निष्कर्षों,शोधार्थी पूरबी राय की रपट और www.missionnetaji.org के तथ्यों के आधार पर हैं,जो नेताजी के बारे में अब तक हुई पड़ताल का निचोड़ भी कहा जा सकता है।हम पर भरोसा न हो तो ककुद अनुवाद भी करवा लें।


हूबहू अनुवाद कर नहीं रहे हैं क्योंकि मूल दस्तावेज बांग्ला में साझा भी कर रहे हैं।अब अपने तरकश भी तमाम गालियां लामबंद कर लें क्योंकि हम इंसानियत के मुल्क को लामबंद कर रहे हैं और भारत में सांस्कृतिक विविधता,लोकतंत्र और स्वराज के सबसे प्रामाणिक दिलों के महानायक की बात कर रहे हैं।

इस दस्तावेज का बुनियादी मुद्दा यही है कि नेताजी को लेकर इतनी घृणित साजिशें आखिर किसलिए हैं,किसके हक में है?

इस दस्तावेज में खुलासा हुआ है कि नेताजी के मरने या जीने का सच अभी इस महादेश को मालूम नहीं,लेकिन दो दो डाक्टरों ने उनकी मौत के तीन प्रमाणपत्र जारी कर दिये!

गौरतलब संजोग भी देखिये कि भारत सरकार ने भी मरणोपरांत नेताजी को भारत रत्न देकर निर्णायक  मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करने लगा था,भूल गये?

नेताजी के परिजनों के कड़े विरोध के बाद गनीमत है कि नेताजी को जिंदा दफनाने की वह वैदिकी रस्म अदा हो ही नहीं सकी।

इस दस्तावेज का सार यही है जो उनके पहले से साझा भाषण का सार है,जिसके लिए भगवा हिंदुत्व के झंडेवरदार तमाम बजरंगी गुस्से से लालपीला हो रहे हैं.यह इसलिए कि  जिस शख्स ने हिंदु्स्तान की सरजमीं पर फासिस्टों का हर कदम पर मुकाबला किया,हमने उन्हें फासिस्ट बना दिया।

कहना न होगा,हम अहसान फरामोश लोगों के लिए उससे बड़ी शर्म यह कि इस खंड खंड अब भी खंडित हो रहे लहूलुहान,झुलसते महादेश के महानायक को हमने जिंदा दफना दिया।

इसदस्तावेज के मुताबिक इस महदेश के महानायक की मौत साबित करने के लिए घृणित साजिशें परत दर परत हैं।


सोचें,ऐसा किसके हित में हुआ और वे कौन लोग हैं,उन्हें भी पहचान लें,जो पिछले सात दशकों से ये साजिशें रचते रहे हैं।

शख्सियत एक और मौत के सर्टिफिकेट तीन तीन,वाह कि आनंदो।

नेताजी की मृत्यु के प्रमाणपत्र जारी किये दो डाक्टरों ने और डेथ सर्टिफिकेट कुल तीन हैं।

इसमें भी मजा यह है कि तीन मृत्यु प्रमणपत्र में नेताजी की मृत्युतिथि और समय भिन्न भिन्न हैं।

एक व्यक्ति तीन तीन बार अलग अलग तिथि पर अलग अलग समय पर मर गया यह तो कुदरत का चमत्कार है।

हमने फर्जी आजादी,फर्जी लोकतंत्र का इतिहास गढ़ने के सिलिसे में जो पवित्र देवमंडल का सृजन किया है,उसमें ईश्वर की कृपा से यह अनहोनी है।

पूजा पाठ,होम यज्ञ बहुत हुआ ,अब तो भइये,सच्चा भक्त हैं तो उस ईश्वर का दर्शन भी कर लें जिनकी यह रचना विचित्र है।परदा पर परदा है।रहस्य घनघोर और किसी को मालूम ही नहीं कि यह रचनाक्रम किस विभूति का कला कौशल है।

ऐसा करिश्मा जिनने कर दिया,उनका  I.Q लेवेल का लोहा मानना ही होगा।जिन डाक्टरों ने ये सर्टिफिकेट जारी कर दिये,वे अब संपूर्ण निजीकरण,संपूर्ण एफडीआई समय में चप्पे चप्पे तैनात है और महामारियों का आयात हैं।हम बाकायदा मृत्यु कार्निवाल मना रहे हैं।यही आजाद भारत का मुक्त बाजार और नस्ली राजकाज है।

यह शर्म कैसे सहेजें,इसका भी कोई उपाय कीजिये।दुई चार नरसंहार का इंतजाम और करके देख लीजिये कि हुकूमत सियासत मजहब और मुक्ता बाजार का त्रिशुल है।

विमान दुर्गटना में नेताजीकी मौत साबित करने में बड़ी रचनाधर्मिता दीख रही है।

आखिरी वक्त नेताजी की चिकित्सा करने वाले चिकित्सक बतौर दो डाक्टरों के नाम हैंःतानियोशी इयोशिमि और सुरुता।

जाहिर है कि विमान दुर्घटना जापान में हैं तो दोनों डाक्टर भी जापानी हैं।

कथा यह है कि या तो तानियोशी इयोशिमि या फिर सुरुता ने नेताजी की चिकित्सा की है।

नेताजीके मत्यु प्रमाण पत्र इन दोनों डाक्टरों ने जब बी बारत के सत्तातबके को नेताजी की मौत साबित करने की जरुरत हुई,बेहिचक जारी कर दी।

नेताजी का मृत्यु प्रमाण पत्र पर पहली दफा दस्तखत हुआ 1946 मेें।

तसल्ली नही हुई जनता को तो फिर 1955 में नेताजी का डेथ सर्टिफिकेट जारी हो गया।

इस महादेश को फिर भी यकीन न हुआ तो फिर वहीं डेथ सर्टिफिकेट 1988 में जोरी हो गया।

सवाल है कि किसी मनुष्ट का डेथ सर्टिफिकेट कितनी दफा और कितने कितने समय के अंतराल में जारी हो सकता है।

बाकी दस्तावेजअलग अलग जारी अलग अलग डेथ सर्टिफिकेड के ब्यौरे और उनके अंतर्विरोध हैं और उनका ब्यौरा जरुरी भी नहीं है।जिन्हें जरुरी लगता है ,खुद पढ़ लें और अनुवाद करवा लें।

गरज के साथ बरसात शुरु हो गयी है।बिजलियां गिर रही हैं और बिजली जा सकती है।इसलिए यहीं तक।

দেশনায়ক নেতাজীর মৃত্যু নিয়েও চলেছে ঘৃন্য ষড়যন্ত্র। লোক এক জনই কিন্তু death certificate দিয়েছেন দুজন। তার থেকেও বেশী তাজ্জব ব্যপার হলো মৃত্যু সার্টিফিকেটের সংখ্যা তিনটে। সেই তিনটে সার্টিফিকেটে মৃত্যুর দিন ও সময় আবার ভিন্ন ভিন্ন। একটা মানুষ তিনটে আলাদা দিন ও সময়ে মরতে পারেন? এতেই বোঝা যাচ্ছে যার নির্দেশে এই কাজ হয়েছে তার I.Q লেভেল কি বিশাল! আর যে ডাক্তারেরা মৃত্যু সার্টিফিকেট লিখেছেন তারা কতো বড় চিকিৎসক! এই সব ডাক্তার দেশে থাকলে দেশ ধন্য হয়ে যাবে। লজ্জা! লজ্জা!

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কলকাতা, ২০ অগাস্ট :

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নেতাজির "বিমান দুর্ঘটনা ও তারপর মৃত্যু" তত্ত্ব নিয়ে অনুসন্ধানে নেমে খুব স্বাভাবিকভাবেই গবেষকদের প্রথম প্রশ্ন ছিল - কে ছিলেন সেই চিকিৎসক, যিনি নেতাজিকে শেষ সময়ে চিকিৎসা করেছিলেন ? খুব স্বাভাবিক ও সঙ্গত প্রশ্ন। তাতে অন্তত একজন সাক্ষীর সাক্ষ্যগ্রহণ সম্ভব হবে। কিন্তু মুশকিল হল - এখানেও উঠে এল দু-জনের নাম। একজনের নাম - তানিয়োশি ইয়োশিমি । অন্যজনের নাম সুরুতা।

ইয়োশিমিই নেতাজির চিকিৎসা করেছিলেন বলে প্রচলিত মত। ভিন্ন মতে ডাক্তার সুরুতা। আবার আরও একমতে ২ জনেই ছিলেন ওই হাসপাতালে - একজন চিকিৎসক, অপরজন সহ-চিকিৎসক। এই তৃতীয় মত অনুযায়ী যদি এগোনো যায়, তাহলে তানিয়োশি ইয়োশিমিই চিকিৎসা করেছিলেন নেতাজির। সাহায্য করেছিলেন সুরুতা। কিন্তু মজার ব্যাপার হল, যখন (পডুন যখন যখন) ডেথ সার্টিফিকেটের প্রয়োজন পড়ল, তাঁরা ২ জনেই ডেথ সার্টিফিকেট ইস্যু করে দিলেন। একবার ১৯৪৬, একবার ১৯৫৫, একবার ১৯৮৮। এবং একেকবার একেক ধরনের ভিন্নতা ধরা পড়ল সার্টিফিকেটগুলিতে। আচ্ছা এতেও সন্দেহ হবে না ? একটা লোকের একটা মৃত্যু, তার একাধিক সার্টিফিকেট এবং একাধিক ভিন্নতা বা পার্থক্য।

মৃত্যুর সময় নিয়ে বিভ্রান্তি :-

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ডেথ সার্টিফিকেট নম্বর ১

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নেতাজি গবেষক ডঃ পূরবী রায় জানাচ্ছেন, ১৯৪৬ সালের জুলাই মাসে ডঃ সুরুতাকে দিয়ে একটি ডেথ সার্টিফিকেট লেখানো হয়। সে রিপোর্ট জমা পড়ে ২৫ জুলাই। তাতে লেখা ছিল, বিকেল ৪টের সময় তিনি হাসপাতালে সুভাষচন্দ্র বসুকে অ্যাটেন্ড করেন। এবং সন্ধে ৭টায় তাঁর মৃত্যু হয়। সেই রিপোর্টে নাকি উল্লেখ ছিল, একটি ক্যামফর ইনজেকশন দেওয়ার সঙ্গেসঙ্গে রোগী কোমায় চলে যান, আর তার কিছুপরেই তাঁর মৃত্যু হয়।

ডেথ সার্টিফিকেট নম্বর ২

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পূরবী রায় আরও জানান, এখানেই শেষ নয়। অক্টোবর মাসে আরও একটি ডেথ সার্টিফিকেট তৈরি করা হয়েছিল। সেই সার্টিফিকেট তৈরি করেছিলেন ডাক্তার তানিয়োশি ইয়োশিমি। তারিখ ছিল ১৯ অক্টোবর, ১৯৪৬। সেখানে ইয়োশিমি জানিয়েছিলেন রোগীর মৃত্যু হয়েছিল রাত ১১টা নাগাদ।

ডেথ সার্টিফিকেট নম্বর ৩

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আগের পর্বেই জানিয়েছিলাম, মুখার্জি কমিশনের রিপোর্ট অনুযায়ী, ওকারা ইচিরোর নামে ডেথ সার্টিফিকেট ইস্যু করেছিল তাইপেইয়ের ডিরেক্টর অফ ব্যুরো অফিস। নেতাজির নাম বদলে নাকি ওকারা ইচিরো করা হয়। নেতাজির মৃত্যু সম্পর্কে খতিয়ে দেখতে তাইপেই গিয়েছিলেন শ্রী হরিন শাহ (INTUC-র জার্নাল - ইন্ডিয়ান ওয়ার্কারের তৎকালীন সম্পাদক)। তিনি ওই অফিসে গিয়ে নেতাজির মৃত্যু এবং তাঁর শেষকৃত্য সংক্রান্ত রিপোর্ট দেখতে চেয়েছিলেন। তাঁকে ওই অফিস থেকে ওই ডেথ সার্টিফিকেট দেওয়া হয়। সেই সার্টিফিকেট আবার বলছে, ওকারা ইচিরো (পড়ুন নেতাজি) মারা যান ১৯ অগাস্ট, বিকেল ৪ টেয়। মানে বিমানদুর্ঘটনা যে দিন হয় তার পরের দিন। আশ্চর্য !

দুর্ঘটনার সময় ও হাসপাতালে "চন্দ্র বোসে"র পৌঁছনো নিয়ে বিভ্রান্তি

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বিমান দুর্ঘটনার সময় নিয়েই বিভ্রান্তি। কেউ বলে দুপুরে। এই ২টো - আড়াইটে হবে। আবার কেউ বলে বিকেল ৫টা। কেউ বলে সন্ধে ৬টা। একেকজনের একেক মত। কিন্তু সবচেয়ে আশ্চর্যের যিনি চন্দ্র বোসের চিকিৎসা করেছিলেন, সেই ডঃ ইয়োশিমির নিজেরই ২টি ভিন্ন মত। যেমন ধরুন তিনি যখন এফিডেভিট দিচ্ছেন, সেখানে বলছেন দুর্ঘটনা ঘটার পর আহত যাত্রীদের নিয়ে যখন হাসপাতালে গাড়ি পৌঁছয় তখন বিকেল ৫টা বাজে। আবার এই তথ্য ব্রিটিশ গোয়েন্দা-সংস্থা MI-2 পাঠাচ্ছে তার সদর কার্যালয়ে গোপনে নিজেদের সিল দিয়ে। (ছবি নীচে দেওয়া হল)

ডঃ ইয়োশিমির বয়ান অনুযায়ী (ব্রিটিশ গুপ্তচর সংস্থা MI-2 সিল দেওয়া) বিকেল পাঁচটার সময় হাসপাতালে এসেছিলেন দুর্ঘটনাগ্রস্ত যাত্রীরা। যাঁদের মধ্যে ছিলেন "চন্দ্র বোস"। এবং তিনি তাঁর চিকিৎসা করেন। এই একই চিকিৎসক ডেথ সার্টিফিকেট ইস্যু করতে গিয়ে লিখছেন সন্ধে ৬টার সময় বিমান দুর্ঘটনা ঘটেছিল।

ডঃ ইয়োশিমির ইস্যু করা ডেথ সার্টিফিকেট, যেখানে তিনি বলছেন সন্ধে ৬টার সময় বিমান দুর্ঘটনা ঘটেছিল। তাহলে প্রশ্ন হচ্ছে, দুর্ঘটনা ঘটার পর, রানওয়ে দিয়ে দৌড়ে গিয়ে বিমানের যাত্রীদের একে একে উদ্ধার করে, গাড়িতে চাপিয়ে, হাসপাতাল অবধি নিয়ে গিয়ে ডঃ ইয়োশিমির হাতে "চন্দ্র বোস"কে উদ্ধারকারীরা যখন পৌঁছে দিলেন তখন বিকেল ৫টা বাজে। অর্থাৎ ঘড়ির কাঁটা উলটো দিকে ঘুরছিল।

বিভ্রান্তি ডঃ সুরুতার ডেথ সার্টিফিকেট নিয়েও

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শুধু ইয়োশিমির রিপোর্টেই নয়, ডাক্তার সুরুতা যে ২টি ডেথ সার্টিফিকেট (প্রথমটি ১৯৪৬ ও দ্বিতীয়টি ১৯৫৫) দিয়েছিলেন বলে ডঃ পূরবী রায় জানিয়েছেন, সেগুলিতেও পরস্পরবিরোধী বক্তব্য আছে।

বিভ্রান্তি ১

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যেমন ১৯৪৬ সালের রিপোর্টে তিনি লিখেছিলেন নেতাজি যে বিমানে ছিলেন সেটি ১০ মিটার উচ্চতা থেকে ভেঙে পড়ে। কিন্তু, ১৯৫৫ সালের রিপোর্টে তিনি বলেন, নেতাজির বিমান ২০ মিটার উচ্চতা থেকে ভেঙে পড়ে।

বিভ্রান্তি ২

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নেতাজি গবেষক পূরবী রায়ের বক্তব্য অনুযায়ী, সুরুতা দ্বিতীয় রিপোর্টে লিখছেন, "চন্দ্র বোস"কে যখন হাসপাতালে নিয়ে যাওয়া হয়, তিনি দেখেন তখন বোসের গায়ে থার্ড ডিগ্রি বার্ন ছিল। তাঁর মনে হয়েছিল বাঁচানো সম্ভব নয়। তবে, তিনি সজ্ঞানে ছিলেন। কথাও বলছিলেন খুব আস্তে আস্তে। এরপর হঠাৎই হৃদযন্ত্র কাজ করা বন্ধ করে দেয়। অথচ প্রথম রিপোর্টে সুরুতা নিজেই লিখেছিলেন নেতাজিকে ক্যামফর ইঞ্জেকশন দেওয়া হয়েছিল। যার ফলে তিনি কোমায় চলে যান। দ্বিতীয় রিপোর্টে কিন্তু তার কোনও উল্লেখ নেই। কেন... ?

বিভ্রান্তি ৩

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বিমান দুর্ঘটনার পর, জাপানি সেনা অফিসারদের নির্দেশে নেতাজির ডেথ সার্টিফিকেট লিখতে বলা হয়েছিল সুরুতাকে। বলা হয়েছিল নাম বদলে দিতে। কারণ নেতাজির নাম গোপন রাখার নাকি নির্দেশ ছিল। সেই মতো সুরুতাও সুভাষ চন্দ্র বোসকে নাকি ওকারা ইচিরো করে দিয়েছিলেন। যা পরে তিনি নিজেই জানাচ্ছেন। কিন্তু প্রশ্ন হচ্ছে, তাঁরই সহ-চিকিৎসক ইয়োশিমির কাছে কেন সেই নির্দেশ ছিল না ? ইয়োশিমি দাবি করেছিলেন, তিনিই তো মরমপট্টি করেছিলেন। তাঁর চোখের সামনেই তো চন্দ্র বোস শেষ নিঃশ্বাস ত্যাগ করেন। তাহলে তাঁর কাছে কেন জাপানি সেনার সেই নির্দেশ যায়নি ? তিনি তো বেশ আত্মবিশ্বাসের সাথেই "চন্দ্র বোসে"র নামে ডেথ সার্টিফিকেট ইস্যু করেছিলেন বলে দাবি করেন।

অন্য বিভ্রান্তি :-

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তদন্তচলাকালীন তাইহোকু এয়ারপোর্টে সেদিনের দুর্ঘটনার বিবরণ দিয়ে একটি স্কেচ আঁকানো হয়েছিল। স্কেচে দেখা যাচ্ছে, নেতাজিকে নিয়ে বিমানটি ভেঙে পড়ার পর তিনি বেরিয়ে আসেন। এবং একটি জায়গায় দাঁড়িয়ে ছিলেন। প্রশ্ন হচ্ছে ২০ মিটার ( প্রায় ৭০ ফিট) বা আরও সহজ করে বললে প্রায় ৬-তলা বাড়ির উচ্চতা থেকে বিমান ভেঙে নীচে পড়ার পর, নেতাজি নাকি ওখানে দাঁড়িয়েছিলেন ! তাও আবার শরীরে থার্ড ডিগ্রি বার্ন নিয়ে.. !

ইয়োশিমি কি জাল সার্টিফিকেট তৈরি করেছিলেন ?

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বিচারপতি মুখার্জি কমিশনের রিপোর্ট কিন্তু সেই ইঙ্গিতই দিচ্ছে। মুখার্জি কমিশনের রিপোর্টে উল্লেখ, তানিয়োশি ইয়োশিমিকে জিজ্ঞাসাবাদ করে জানা গিয়েছিল, তিনি চন্দ্র বোসের নামে ডেথ সার্টিফিকেট ইস্যু করেছিলেন। কিন্তু তদন্তে নেমে কমিশন শেষকৃত্য সংক্রান্ত রেজিস্টার পরীক্ষা করে জানতে পারে, নেতাজি তো দূর অস্ত, তাঁর নিহত সহযাত্রীদের নামও সেই রেজিস্টারে ছিল না।

এখন প্রশ্ন হল দুর্ঘটনায় মৃত চন্দ্র বোসের নাম গোপনের প্রয়োজন ছিল যদি ধরেও নেওয়া যায়, মৃত জাপানিদের নাম গোপনের প্রয়োজন কোথায় ? নাকি আর কেউ মরেননি ওই ঘটনায়। কিন্তু সরকারি তথ্য বলছে আরও কয়েক জন মারা গিয়েছিলেন ওই দুর্ঘটনায়। তাঁদের কী হল ?

শুধু তাই নয়, ইয়োশিমি যে সত্যি বলছেন না তার আরও একটি সূত্র মেলে। ইয়োশিমির কাছ থেকে তিনি নেতাজির ডেথ সার্টিফিকেট পেয়েছেন বলে ডঃ পূরবী রায়কে জানিয়েছিলেন শিকাজ়ু শিমোদা। তার প্রেক্ষিতে কমিশনের পক্ষ থেকে যখন ইয়োশিমির কাছে জানতে চাওয়া হয়, তিনি শিমোদাকে চেনেন ? ইয়োশিমি বলেন, "না।" পরে তাঁকে সার্টিফিকেটের বিষয়টি জানানো হলে তিনি বলেন, ওটি একটি ফোটোকপি। এরপর তাঁকে প্রশ্ন করা হয় কী কারণে ওই ডেথ-সার্টিফিকেট তিনি ইস্যু করেছিলেন ? তার উত্তরে ইয়োশিমি বলেন, তাঁর নাকি মনে পড়ছে না। সবকিছু খতিয়ে দেখে মুখার্জি কমিশন মনে করে, ইয়োশিমি সত্যি বলছেন না। ওই ডেথ সার্টিফিকেট ভুয়ো হতে পারে।

উপরিউক্ত বিষয়গুলি পড়লে একটা বিষয় স্পষ্ট করে বলা যায়, নেতাজির কোনও নির্দিষ্ট ডেথ সার্টিফিকেট ছিল না। সময়ে সময়ে তাঁর ডেথ সার্টিফিকেট তৈরি করানো হয়েছিল। বলছেন ডঃ পূরবী রায়। কিন্তু কেন...?

তথ্যসূত্র :

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১. বিভিন্ন গবেষকের গবেষণাপত্র।

২. ডঃ পূরবী রায়ের রিপোর্ট।

৩. মুখার্জি কমিশনের রিপোর্ট

৪. ওয়েবসাইট : www.missionnetaji.org




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