BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Saturday, August 15, 2015

इस पखवारे_साठोत्तरी पीढ़ी के प्रमुख कथाकार महेंद्र भल्ला का पिछले दिनों निधन हो गया। एक तरल बहती हुई भाषा में बेहद अंडरटोन में लिखी गई उनकी कहानियाँ हों या कि एक पति के नोट्स जैसा चर्चित उपन्यास हो उन्हें पढ़ना हमेशा एक शानदार अनुभव रहा। ‘एक पति के नोट्स’ उनकी सबसे चर्चित कृति जरूर रही पर इसका एक बड़ा खामियाजा यह हुआ कि इस सब के नीचे प्रवासी स्थितियों पर उनकी उपन्यास त्रयी ‘उड़ने से पेश्तर’, ‘दूसरी तरफ’ तथा ‘दो देश और तीसरी उदासी’ जैसे बेहद महत्वपूर्ण रचनात्मक काम पर कभी कोई चर्चा ही नहीं हुई। इस बार हिंदी समय (http://www.hindisamay.com) पर प्रस्तुत हैं उनकी पाँच कहानियाँ - आगे, बदरंग, कुत्तेगीरी, तीन चार दिन और पुल की परछाईं।

मित्रवर

Hind Samay <mgahv@hindisamay.in>

साठोत्तरी पीढ़ी के प्रमुख कथाकार महेंद्र भल्ला का पिछले दिनों निधन हो गया। एक तरल बहती हुई भाषा में बेहद अंडरटोन में लिखी गई उनकी कहानियाँ हों या कि एक पति के नोट्स जैसा चर्चित उपन्यास हो उन्हें पढ़ना हमेशा एक शानदार अनुभव रहा। 'एक पति के नोट्स' उनकी सबसे चर्चित कृति जरूर रही पर इसका एक बड़ा खामियाजा यह हुआ कि इस सब के नीचे प्रवासी स्थितियों पर उनकी उपन्यास त्रयी 'उड़ने से पेश्तर''दूसरी तरफ' तथा 'दो देश और तीसरी उदासी' जैसे बेहद महत्वपूर्ण रचनात्मक काम पर कभी कोई चर्चा ही नहीं हुई। इस बार हिंदी समय (http://www.hindisamay.com) पर प्रस्तुत हैं उनकी पाँच कहानियाँ - आगेबदरंगकुत्तेगीरीतीन चार दिन और पुल की परछाईं। कभी देवीशंकर अवस्थी ने लिखा था कि उनके 'यहाँ वस्तुतः कहानी के माध्यम से यथार्थ की खोज है - खोज तो गहन प्रश्नाकुलता से संबंधित है। यह भी कहना चाहूँगा कि सचाई की खोज एक श्रेष्ठतर कलाशिल्प की खोज भी है। दोनों वस्तुतः एक ही हैं। जिस मानवीय समस्या को उठाया जाता है उसी के अनुरूप कलाशिल्प को भी होना चाहिए। महेंद्र भल्ला ने इस शिल्प की खोज की चेष्टा की है और दूर तक इसमें सफल भी हुए हैं।' 

 

गाब्रिएल गार्सिया मार्केज विश्व के महानतम लेखकों में शुमार किए जाते हैं। दूसरी तरफ क्यूबा के लोकप्रिय क्रांतिकारी नेता फिदल कास्त्रो भी कम चर्चा में नहीं रहे हैं। यहाँ पढ़ें मार्खेज का फिदल कास्त्रो पर लिखा गया रेखाचित्र फिदल कास्त्रो। अनुवाद किया है चर्चित कवि-पत्रकार शिवप्रसाद जोशी ने। संस्मरण के अंतर्गत पढ़ें चर्चित कथाकार अखिलेश का संस्मरणभूगोल की कला। चर्चित आलोचक मदन सोनी ने हिंदी उपन्यास का एक बहसतलब जायजा हिंदी उपन्यास की अल्पता पर कुछ ऊहापोह शीर्षक से किया है तो मीराँ साहित्य के गंभीर अध्येता माधव हाड़ा मीराँ के संदर्भ में एक नई दृष्टि लेकर आए हैं मीराँ का कैननाइजेशन में। विशेष के अंतर्गत पढ़ें पल्लवी प्रसाद का बहसतलब आलेख ग़ालिब के गलत अनुवाद। आलोचना के अंतर्गत पढ़ें समकालीन कहानी पर युवा आलोचक राकेश बिहारी के दो आलेख भविष्य के प्रति आश्वस्त करती कहानियाँ और बेचैनी और विद्रोह के बीच एक सामाजिक विमर्श। पुस्तक संस्कृति के अंतर्गत पढ़ें महेश्वर का लेख एक दिन किताबों के लिए भी। सिनेमा के अंतर्गत पढ़ें युवा कथाकार विमल चंद्र पांडेय का आलेख कोई भी सच अंतिम नहीं होता : कानून। और अंत में कविताओं के अंतर्गत पढ़ें कुमार विक्रमआरसी चौहानधीरज श्रीवास्तवशरद आलोक और रवींद्र स्वप्निल प्रजापति की कविताएँ। साथ में जनपदीय हिंदी के अंतर्गत पढ़ें  भोजपुरी के चर्चित कवि प्रकाश उदय की कविताएँ।


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