BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Friday, August 14, 2015

हम साम्प्रदायिक मूर्ख हैं, और अपने बच्चों को वैसा ही बनाते हैं (सच्ची घटना)


हम साम्प्रदायिक मूर्ख हैं, और अपने बच्चों को वैसा ही बनाते हैं (सच्ची घटना)

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हालांकि मेरे वो मित्र और बड़े भाई नहीं चाहते थे, फिर भी आज चूंकि ये घटना बेहद प्रासंगिक है, इसलिए साझा करना चाहूंगा….शायद पिछले साल 14 अगस्त का वाकया है…
मेरी वो 12 साल की भतीजी, अपनी स्कूल बस में थी। रोज़ की ही तरह वो स्कूल गई थी, 14 अगस्त आज़ादी का दिन तो होता है, लेकिन हिंदुस्तान और पाकिस्तान ने आधी रात की आज़ादी को अपने-अपने हिसाब से बांट लिया है। ठीक वैसे ही झगड़े के बाद कोई दो भाई, एक दूसरे से अलग दिखने की चाहत में, सिर्फ मकान के अपने-अपने हिस्से के रंग अलग करवा देते हैं, ज़ाहिर सी बात है फिर मकान बाहर से बेढंगा दिखता है, लेकिन…

India and Pakistan
कहानी पर आते हैं, मेरी भतीजी, जिसके बाप-दादा हिंदुस्तान में ही पैदा हुए और बंटवारे में भी इसे छोड़ कर नहीं गए, क्योंकि ये उनका ही मुल्क था और उनको किसी मुसलमानों के अलग मुल्क से ज़्यादा मोहब्बत…उस सेक्युलर हिंदुस्तान से थी, जिसमें उनके बापू कभी कोई महात्मा थे तो कभी भाई कोई मयंक…उस बच्ची की उस दिन, स्कूल की छुट्टी नहीं थी, क्योंकि वो एक हिंदुस्तानी बच्ची थी…उसके वालिद हिंदुस्तानी थे, अम्मी भी…दादी भी और पुरखे भी…हां, स्कूल से निकलते वक्त वह खुश थी, क्योंकि अगले दिन शायद स्कूल जाना था और ये एक दिन होता है, जिसका उन सारे बच्चों को साल भर इंतज़ार रहता है…अगले दिन 15 अगस्त था…सो खुश वह भी रही ही होगी…

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लेकिन बस में बैठते ही, उसके साथ बैठी एक और बच्ची ने उसे 'हैप्पी इंडीपेंडेंस डे' विश किया…उसके यह कहने पर कि इंडीपेंडेंस डे तो कल है…उस नन्ही सी बच्ची का जवाब था…"लेकिन तुम लोगों का तो आज ही होता है न…" आप को अंदाज़ा भी है क्या कि उस बच्ची पर क्या गुज़री होगी? 12 साल की बच्ची, बिल्कुल छोटी बच्ची नहीं होती…वह घर लौटी और अपने मां-बाप को बताया कि उनका मज़हब, उनका गुनाह है…ये वाकया सुन कर मेरे वो भाई भी सकते में थे…क्योंकि मेरे उनके नाम में भाषा और एक मज़हबी मतलब के सिवा क्या फर्क था…मुझ में और उन में तो नाम के अलावा कोई फ़र्क भी नहीं था…
इसके बाद उस बच्ची के अभिभावकों से बात करने की कोशिश की गई…तो 14 अगस्त को मेरी उस 'पाकिस्तानी नाम' वाली भतीजी को पाकिस्तानी इंडीपेंडेस डे की बधाई देने वाली बच्ची के अभिभावकों की प्रतिक्रिया औरल दुख देने वाली थी। उनको इस बात का कोई अफ़सोस नहीं था, बल्कि उन्होंने इसको एक छोटी और साधारण बात कह कर टाल दिया।
इस कहानी को आज कहना बहुत ज़रूरी था, और इसका मकसद सिर्फ यह पूछना था कि स्कूलों में तो हर जगह बताया ही जाता है, कि देश सेक्युलर है…यहां हिंदू-मुस्लिम सब साथ मिल कर रहते हैं…सब नागरिक हैं…फिर आखिर उस बच्ची ने यह कहां से सीखा कि उसके साथ, भारत के एक शहर में, एक ही स्कूल में पढ़ने वाली उसकी दोस्त, सिर्फ मुस्लिम होने की वजह से पाकिस्तानी हो गई?
मेरा जवाब और मानना साफ है…हम बचपन से ही अपने बच्चों को साम्प्रदायिक बना रहे हैं…हो सकता है कि पाकिस्तान में स्कूल जाने वाले किसी हिंद बच्चे से उसके किसी सहपाठी ने भी ऐसी ही बात की हो…तो क्या हम राष्ट्रीयता धर्म से तौलते हैं? और अगर हम ऐसा करते हैं…तो फिर हम जिनको इस देश का मानते ही नहीं हैं…उनसे देशभक्त होने की उम्मीद क्यों करते हैं?????
बच्चों को बख्श दीजिए प्लीज़….उनको कम से कम भविष्य में इंसान बनने दीजिए…
पाकिस्तान के दोस्तों और इंसानों को उनकी आज़ादी के दिन की बहुत बधाई…हम कल मनाएंगे…

Mayank SaxenaMayank Saxena

(मयंक सक्सेना – लेखक पूर्व टीवी पत्रकार और सम्प्रति स्वतंत्र लेखक एवम् टिप्पणीकार हैं। यह लेख 2013 में लिखा गया था। लेखक से सम्पर्क के लिए तस्वीर पर क्लिक करें।)

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