BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Saturday, April 12, 2014

आधार नही है संविधान के मुताबिक। फिरभी विधानसभा प्रस्ताव के विपरीत बंगाल सरकार का आधार अभियान तेज।

आधार नही है संविधान के मुताबिक। फिरभी विधानसभा प्रस्ताव के विपरीत बंगाल सरकार का आधार अभियान तेज।


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


पश्चिम बंगाल सरकार आधार की अनिवार्यता के खिलाफ सबसे ज्यादा मुखर रही है। बंगाल विधानसभा में सर्वदलीय आधार विरोदी प्रस्ताव भी वाम समर्थन से सत्तापक्ष ने ही पास करवाया। लेकिन इसके बावजूद आधार परियोजना को खारिज करने की मांग बंगाल से अभी तक नहीं उठी है।इस पर तुर्रा यह कि अब राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर की जनगणना परियोजना के तहत बंगाल में जिस आधार का काम सबसे ज्यादा सुस्त रहा है,वह बाकायदा नागरिकों को बायोमैट्रिक पहचान दर्ज कराना अनिवार्य बताते हुए आम चुनाव से पहले आधार फोटोग्राफी तेज कर दी गयी है,जबकि बंगाल सरकार अपनी तरफ से डिजिटल राशनकार्ड का कार्यक्रम अलग से चला रही है।आधार व्यस्तता और आसन्न चुनाव की वजह से अनिवार्य डिजिटल राशन कार्ड बनाने का काम हालांकि रुका हुआ है।


गौर करें कि पश्चिम बंगाल विधानसभा ने यह मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया कि केंद्र को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम से आधार कार्ड को जोड़ने का अपना फैसला तुरंत वापस लेना चाहिए।न विधानसभा में पारित प्रस्ताव में और न सरकारी या राजनीतिक तौर पर किसी ने आधार परियोजना को खत्म करने की कोई मांग उठायी है।इसलिए आधार प्रकल्प स्थगित तो हो सकता है,खत्म नहीं हो सकता।राज्य सरकार के मौजूदा युद्धस्तरीय आधार अभियान की जड़ें दरअसल अधूरे सर्वदलीय विधानसभा प्रस्ताव में ही है,जिसमें कहा गया था कि राज्य के केवल 15 फीसदी लोगों को ही आधार कार्ड मिल पाया है ऐसे में 85 फीसदी लोग नौ सब्सिडी वाले सिलेंडर नहीं ले पाएंगे। प्रस्ताव के मुताबिक केंद्र ने सीधे ही संबंधित बैंकों में सब्सिडी पहुंचाने के लिए आधार कार्ड डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम से जोड़ दिया है।


प्रस्ताव के अनुसार इस फैसले से आम जनता भारी परेशानी में आ जाएगी। संसदीय कार्य मंत्री पार्थ चटर्जी ने सदन में यह प्रस्ताव रखा था। विपक्ष के नेता सूर्य कांत मिश्रा ने यह कहते हुए इसका समर्थन किया कि आधार कार्ड से जुड़े कई मुद्दे अब भी अनसुलझे हैं।  


अब दरअसल आधार का अधूरा काम पूरा करके राजकाज पूरा करने का ही दावा कर रही है राज्य में सत्तारूढ़ मां माटी मानुष की सरकार अपने नागरिकों की निजता,गोपनीयता और संप्रभुता का अपहरण करते हुए।


डिजिटल राशनकार्ड प्रकल्प राज्य सरकार का है और प्रतिपक्ष को भी इस पर ऐतराज नहीं है।तो जाहिर है कि आधार परियोजना की बायोमेट्रिक डिजिटल प्रक्रिया पर तकनीकी तौर पर न सत्ता पक्ष को और न विपक्ष को कोई एतराज है। कांग्रेस और भाजपा तो पंजीकृत डिजिटल नागरिकता के पैरोकार हैं ही,वामपक्ष ने भी देश में कहीं इस परियोजना का विऱोध नहीं किया है।


जाहिर है कि बंगाल विधानसभा में पारित आधार विरोधी प्रस्ताव राज्यसरकार के निर्विरोध आधार अभियान से सिरे से गैर प्रासंगिक हो गया है।लेकिन अब तक मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जो बार बार कहती रही हैं कि आधार गैरजरुरी है और भारी प्रचार के मध्य आधार विरोदी सर्वदलीय प्रस्ताव जो विधानसभा में पारित हो गया है,उससे नागरिकों में बारी विभ्रम की स्थिति है।मीडिया में एकतरफ तो असंवैधानिकता के आधार पर नागरिक सेवाओं  के लिए आधार की अनिवार्यता खत्म करने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के फैसले की खबर है तो दूसरी तरफ गैस एजंसियों की ओर से नकद सब्सिडी के लिए बैंक खाते आधार से लिंक कराने का कटु अनुभव है और दूसरे राज्यों में तमाम अनिवार्य सेवाओं से आधार को अनिवार्य बनाने का भोगा हुआ यथार्थ सच।


सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बिना बंगाल शायद एकमात्र राज्य है,जहां आम नागरिक आधार को फालतू और आईटी कंपनियों के मुनाफे का फंडा मानते हैं।नंदन निलेकणि के चुनाव मैदान में उतर जाने से लोग आधार प्राधिकरण के अस्तित्व को भी मानने को तैयार नहीं है।लेकिन फिर भी लोग आधार फोटोग्राफी की कतार में खड़े सिर्फ राज्य सरकार की नोटिस में इसे अनिवार्य बताये जाने के कारण हो रहे हैं।दूसरी ओर, लोगों को राजनीतिक अस्थिरता की वजह से जोखिम उठाने की हिम्मत भी नहीं हो रही है क्योंकि न जाने केंद्र में कौन सी सरकार बनें और नई संसद में कौन सा कानून बन जाये।जनगणना दस साल में एक बार होती है तो जनसंख्या रजिस्टर में अपने आंकड़े दर्ज करवा रहे हैं लोग आधार विरोध के बावजूद।



गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल में ऐसे तमाम नोटिफिकेशन तुरंत वापस लेने के आदेश दिए, जिनमें सरकारी सर्विस की सुविधा पाने के लिए आधार कार्ड जरूरी किया गया है। कोर्ट ने एक बार फिर साफ कहा कि आधार कार्ड किसी भी सरकारी सेवा को पाने के लिए जरूरी नहीं है। इस बाबत सर्कुलर तमाम विभागों को तुरंत जारी करने को कहा गया।


सुप्रीम कोर्ट ने यूआईडीएआई (यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया) से भी कहा कि वह आधार कार्ड की कोई भी जानकारी किसी भी सरकारी एजेंसी से शेयर नहीं करे। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी. एस. चौहान की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि बायोमेट्रिक या अन्य डेटा किसी भी अथॉरिटी से शेयर नहीं किया जा सकता। आरोपियों का डेटा भी तभी साझा किया जा सकता है, जब आरोपी खुद लिखित में इसकी सहमति दे।


गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी अपने अंतरिम आदेश में कहा था कि सरकारी सेवाओं के लिए आधार कार्ड अनिवार्य नहीं होगा। उस मामले में हाई कोर्ट के पूर्व जज और अन्य की ओर से अर्जी दाखिल कर कहा गया था कि सरकार कई सेवाओं में आधार कार्ड अनिवार्य कर रही है। ऐसे में सरकार को निर्देश दिया जाना चाहिए कि आधार कार्ड अनिवार्य न हो।


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