BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Welcome

Website counter
website hit counter
website hit counters

Sunday, March 2, 2014

बाजार की जहरीली मछलियों से बचना उतना आसान भी नहीं है

बाजार की जहरीली मछलियों से बचना उतना आसान भी नहीं है

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


बंगाल में मछलियों की खपत खूब होती है। महाराष्ट्र और दूसरे समुद्रतटवर्ती इलाकों में भी मछलियों की खपत बहुत ज्यादा है। लेकिन सरकारी दावों और कार्यक्रमों के विपरीत बंगाल में मत्स्यसंकट बाकी राज्यों की तुलना में कहीं ज्यादा है।इसी वजह से बाजार भाव चाहे कुछ भी हो,मछली बाजार की भीड़ जस की तस रहती है।


आसमान चूमती मांग और अपर्याप्त आवक के मध्य सरकारी निगरीनी की प्रणाली कारगर न  होने की वजह से साल भर बंगाल के लोग शवगृहों में सहेजी गयी और मांग मुताबिक भेजे जानी वाली बांग्लादेशी ईलिस से उत्सव मनाते रहते हैं।


औद्योगिक प्रदूषण से नदियों के ताजा जल में मिलने वाली मछलियां भी सेहत के लिए खतरनाक है। बंगाल में पेट की बीमारियां महामारी जैसी बारह मास आम लोगों को परेशान करती रहती है और इसकी खास वजह है गली गली में मिठाई और फास्टफूड की कूकूरमुत्ता दुकानें,जिनमें  परोसे जाते खाद्य की कभी जांच पड़ताल ही नहीं हो पाती।


जलमल एकाकार जहा जलापूर्ति व्यवस्था है महानगरों से लेकर उपनगरों और कस्बों  तक में,शुद्ध तेल और शुद्द वनस्पति जहां दुर्र्लभ है, और मरे नहीं लेकिन कुछ भी खिलाने पिलानेकी निरंकुश आजादी जहां संस्कृति और व्यवसाय दोनों हैं,उनकेलिए अस्वस्थ जीवन का अभिशाप तार्किक परिणति है।


मछलियां बंगाल में सेहत बिगड़ने की दूसरी बड़ी वजह है क्योंकि मीठा पानी की मछलियां भी आरसेनिक समेत तमाम जहरीले रसायनों से सराबोर है।


कोलकाता के मछली मार्केट में रोज़ाना अपनी पसंदीदा मछलियों के लिए मारामारी होती है। यहां से मछलियां सिर्फ पश्चिम बंगाल में ही सप्लाई नहीं होतीं बल्कि देश भर के ज्यादातर शहरों में बंगाल की मछलियां ही आती हैं। लेकिन कोई नहीं जानता कि इस बाजार में उतर रही मछलियां अपने साथ एक जहर ला रही हैं। ऐसा जहर जो धीरे-धीरे शरीर में जमा होता है और खतरनाक बीमारियों को जन्म देता है।


बाहर से आ रही मछलियों को सड़ने से बचाने के लिए जिस पीला रसायन का इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है,वह जानलेवा साबित हो सकता है। फरमैलडीहाइड नामक रसायन का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है।


यह सही है कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन का नकारात्मक असर कैरिबियन मछलियों पर स्पष्ट दिख रहा है। इसके कारण वहां की मछलियां काफी जहरीली हो रही हैं। लेकिन प्रदूषण और मिलावट का जो स्थानीय तंत्र है,उसपर मजबूत प्रशासनिक कदम उठाकर बेशक काबू पाया जा सकता है।


देशभर में समुद्री मछलियों की व्यापक लोकप्रियता और खपत है जबकि समुद्र में रहने वाली शाकाहारी मछलियां शैवाल के सहारे ही जीवित रहती हैं। विषैले शैवाल की बढ़ती संख्या के कारण मछलियों को मजबूरन इसे ही खाकर गुजारा करना पड़ रहा है। इसे खाते ही मछलियां जहीरीली हो जाती हैं। इसके बाद जब मनुष्य इन मछलियों को खाता है, तो वे भी विष की चपेट में आ जाते हैं।


अब बर्फ की कीमतों में इजाफा हने के कारण जैसे बांग्लादेश में शवगृहों में दस दस साल तक ईलिश का प्लेट बनाकर विदेशी वाणिज्य का कारोबार है,उसी तरह आंध्र से लेकर उत्तर प्रदेश तक से कई  कई दिनों की सड़क रेल यात्रा के बाद थोक और खुदरा बाजार में सड़ने से बचाने के लिए भी रसायन का भी बेरोकटोक इस्तेमाल हो रहा है।रासायनिक खाद और कीटनाशक पगी हाईब्रिड सब्जियों के साथ ऐसी जहरीले रसायन का समीकरण किस नायाब रुप में लोगों की थाली में पहुंचता है,यह शोध का विषय है।


बाजार में छापामारी से इस समस्या का शायद समाधान नहीं है।न आम विक्रेताओं और न क्रेताओं को इस जहर के बारे में कोई जानकारी है। जिन्हें अंदाजा है ,वे चालान के बदले जिंदा मछलियां खरीद पकाकर खाते हुए मस्त हैं और उन्हें आर्सेनिक चावल और सब्जियों की तरह यह सबकुछ सेहतमंद लगता है।कोई भी सरकारी मशीनरी इस वायरस का सफाया नहीं कर सकता जबतक न कि समूची मत्स्य प्रणाली सुधार न दी जाये।दो चार विक्रेताओं की धरपकड़ से यब बंदोबस्त बदलने नहीं जा रहा है


गैर-सरकारी संस्था टॉक्सिक्स लिंक का 2010 में  दावा है कि बाज़ार में बिक रही आधी से ज्यादा मछलियों में मरकरी यानी पारा मिला है। पारा वही पदार्थ जो बुखार नापने के लिए थर्मामीटर में चढ़ता उतरता रहता है, जो ब्लड प्रेशर नापने वाली मशीन में भी नजर आता है। मरकरी की मात्रा मछलियों के शरीर में सुरक्षित सीमा से कहीं ज्यादा मिली है।


टॉक्सिक्स लिंक ने कोलकाता के मछली बाज़ारों से मछलियों के 60 सैम्पल लिए जबकि नदियों और तालाबों से मछलियों के 204 सैम्पल उठाए गए। 60 में से 40 सैपल्स में मरकरी की मात्रा सुरक्षित सीमा से ज्यादा पाई गई जबकि दूसरे इलाकों से आए 204 सैम्पल में से 167 सैम्पल भी लैब टेस्ट में फेल हो गए। ज्यादातर सैम्पल में तो मरकरी की मात्रा तय सीमा से 50 फीसदी ज्यादा पाई गई।


अभी उस समस्या पर कुछ हुआ ही नहीं कि नयी समस्या खड़ी हो गयी।इसी बाच सियालदह और पातिपुकुर मछली थोक बाजारों में मत्स्य विभाग के अधिकारियों ने छापा मारक कुछ सैंपल जमा किया है। लेकिन इस समस्या की रोकथाम के लिए कोई ठोस उपाय अभी तक हुआ नहीं है।




No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...