BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Saturday, June 23, 2012

रायसीना की रेस, विवादों का इतिहास

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रायसीना की रेस, विवादों का इतिहास

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रायसीना की रेस, विवादों का इतिहास
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देश के सर्वोच्च पद के लिए महाभारत छिड़ा है. सर्वोच्च पद की लड़ाई अब प्रतिष्ठा का सवाल बन गयी है। रायसीना की रेस..यानि राष्ट्रपति पद को लेकर मची तकरार की। सरकार और विपक्ष में तो छोड़िए. सरकार और उनके सहयोगियों में ही तकरार चरम पर है। एक दूसरे को देख लेने तक की धमकियां दी जा रही हैं। सर्वोच्च पद को लेकर ये तकरार आज़ाद भारत के इतिहास में कोई पहली बार नहीं हुई है।

26 जनवरी 1950 को आज़ाद भारत का संविधान लागू होने से पहले ही रायसीना की रास थामने को लेकर तकरार शुरू हो गयी थी, जो बीच बीच में कुलाचें भरती रही और एक बार फिर से रायसीना को लेकर महाभारत अपने चरम पर है। अब सहयोगी तृणमूल कांग्रेस नाराज हो तो हो, प्रणव के नाम पर साथ दे या न दे, ममता बनर्जी चाहे जितना चिल्ला ले, यूपीए ने साफ कर दिया है कि रायसीना तो प्रणव मुखर्जी को ही भेजेंगे। सपा, बसपा के समर्थन ने भी यूपीए की हिम्मत बढ़ा दी हैं, अब एक एम यानी ममता यूपीए से अलग हो भी जाएं तो क्या...दो एम...यानि मुलायम और मायावती तो साथ खड़े ही हैं। प्रणव की जीत को लेकर भले ही यूपीए आश्वस्त दिखाई दे रही हो लेकिन पीए संगमा को समर्थन देकर भाजपा ने साफ कर दिया है कि वे सर्वोच्च पद के लिए कांग्रेस को वॉक ओवर देने के मूड में नहीं है। हालांकि पलड़ा प्रणव दा का भारी है लेकिन फिर भी संगमा को उम्मीद है कि यूपीए से भी उन्हें वोट मिलेंगे।

रायसीना की रेस में वर्तमान हालात ने तो रायसीना की रास विवादों के इतिहास में एक और पन्ना जोड़ दिया है। इतिहास के ये दुर्लभ पन्ने देश के सर्वोच्च पद से जुडे विवादों की स्याही से लिखे गए हैं। जिसका पहला पन्ना आज़ाद भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और पंडित जवाहर लाल नेहरू के बीच हुए विवादों से लिखा गया है। 26 जनवरी 1950 को आजाद भारत का संविधान लागू होने के पहले ही राष्ट्रपति पद के लिए तत्कालीन गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालचारी और संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ बाबू राजेन्द्र प्रसाद में होड छिड़ गई थी। बंबई से प्रकाशित होने वाले एक साप्ताहिक में चार जून 1949 के अंक में इस विवाद की खबर छप गई। आनन-फानन में आला नेताओं के स्तर पर इसका खंडन किया गया। इसके बाद 10 दिसंबर 1949 को पंडित जवाहर लाल नेहरु ने डा राजेन्द्र प्रसाद को एक खत लिखा जिसका आशय कुछ यूं था कि 'उन्होंने श्री बल्लभ भाई पटेल से इस संदर्भ में विचार विमर्श किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सभी दृष्टिकोण से सर्वोत्तम और सर्वाधिक सुरक्षित रास्ता यह होगा कि राजगोपलचारी को राष्ट्रपति बना दिया जाए'।

पत्र पाकर राजेन्द्र बाबू बहुत दुखी हुये और उन्होंने उसी दिन नेहरु जी को जवाब दिया कि वो किसी पद की दौड़ में शामिल नहीं है...लेकिन कांग्रेस संसदीय बोर्ड ने राष्ट्रपति पद के लिए राजेन्द्र बाबू का नाम पूर्ण बहुमत से पारित कर दिया...और वे भारत के पहले राष्ट्रपति चुने गये। राजेन्द्र प्रसाद के पहले कार्यकाल से पहले भले ही पंडित नेहरू से उनकी ठनी रही...लेकिन नेहरू देश का दूसरा राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन को बनवाना चाहते थे...लेकिन यहां भी नेहरू की नहीं चली और राजेन्द्र प्रसाद लगातार दूसरी बार राष्ट्रपति चुने गए। ये घटना विवादों के इतिहास में दूसरे पन्ने पर दर्ज हुई। बात मई 1957 की है जब डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का उपराष्ट्रपति के रुप में कार्यकाल समाप्त हो रहा था...ऐसे में नेहरू ने उन्हें देश के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में कांग्रेस का प्रत्याशी बनाने का आश्वासन दे दिया। दरअसल डॉ राधाकृष्णन नेहरु की निजी पंसद थे क्योंकि उनकी सोच नेहरु की अभिजात्य संस्कृति में फिट हो जाती थी। इसी बीच मौलाना अबुल कलाम आजाद ने कांग्रेस के आलाकमान के प्रतिनिधि की हैसियत से डा राजेन्द्र प्रसाद से मिलकर उनसे दूसरी बार राष्ट्रपति पद का कांग्रेसी उम्मीदवार बनने का अनुरोध किया। राजेंद्र बाबू ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। इस फैसले से पं नेहरु हैरान रह गए। पंडित नेहरु डा राधाकृष्णन को राष्ट्रपति बनाने का वचन दे चुके थे। उन्होंने डा राधाकृष्णन को कांग्रेस का प्रत्याशी बनाने के लिए तमाम कोशिशें की। इसके लिए राज्यों के मुख्यमंत्रियों को खत लिखे और यहां तक की सार्वजनिक मंचों पर कहा कि इस बार राष्ट्रपति उत्तर भारत का नहीं दक्षिण भारत का होना चाहिए...इसे भारतीय राजनीति का दुर्भाग्य ही कहेंगे..कि यहीं से भारतीय राजनीति में भाषा व क्षेत्रवाद का बीजारोपण हुआ।

नेहरु की लाख कोशिशों के बावजूद मार्च 1957 में कांग्रेस संसदीय बोर्ड की बैठक में सर्वसम्मति से डा राजेन्द्र प्रसाद का नाम राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेसी प्रत्याशी के रुप में प्रस्तावित किया गया। पं नेहरु ने बोर्ड के निर्णय को मायूसी से स्वीकार कर लिया और दूसरी बार डॉ राजेन्द्र प्रसाद पुनः देश के राष्ट्रपति बने। 1967 के आम चुनाव ने देश की फिज़ा बदली और 17 राज्यों में से 6 राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकार सत्ता में आयी...ऐसे में इन सरकारों को डर था कि इंदिरा गांधी राष्ट्रपति के माध्यम से उनकी सरकार को बर्खास्त करवा सकती थी, ऐसे में इन्होंने राष्ट्रपति के लिए कांग्रेस उम्मीदवार जाकिर हुसैन के सामने न्यायाधीश सुब्बाराव को उतार दिया। जाकिर हुसैन उपराष्ट्रपति थे और आजादी के बाद से लगातार कांग्रेस प्रत्याशी बिनी किसी मुश्किल के चुन लिए जाते थे...लेकिन इस बार हालात जुदा थे।

सुब्बाराव के समर्थकों का तर्क था कि देश के बदले राजनीतिक हालात में जब छह राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकार है तो किसी विशेष दल का राष्ट्रपति नहीं होना चाहिए। कांग्रेसियों ने अपने प्रचार में मुद्दा बनाया की देश में पहली बार मुस्लिम राष्ट्रपति बनने जा रहा है और हिन्दू सम्प्रदायवादी ताकतें उन्हें परास्त करना चाहती हैं उनकी पराजय से भारत ही नहीं समूचे विश्व के मुस्लिम समुदाय में गलत संकेत जायेगा। इसी असमंजस के बीच चुनाव हुआ और आखिरकार जीत डा जाकिर हुसैन की हुई। जाकिर हुसैन अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके और 3 मई 1969 को उनका आक्समिक निधन हो गया...ऐसे में उपराष्ट्रपति वीवी गिरी कार्यवाहक राष्ट्रति बने। 6 माह के अंदर नए राष्ट्रपति का चुनाव होना था। कांग्रेस ने नीलम संजीवा रेड्डी को उम्मीदवार बनाया..लेकिन इंदिरा गांधी वीवी गिरी को राष्ट्रपति बनवाना चाहती थी। ऐसे में इंदिरा ने यहां पर एक सियासी चाल खेली जिसने कांग्रेस को ही चारों खाने चित्त कर दिया। इंदिरा ने सभी लोगों से अपनी अंतर्रात्मा की आवाज़ पर वोट देने की अपील की...और आखिरकार जीत वीवी गिरि की हुई। ये रायसीना से जुड़े इतिहास के वे पन्ने हैं जिन्हें विवादों की स्याही ने अमिट बना दिया है।

इसमें एक और ताजा पन्ना जुड़ गया है...2012 का राष्ट्रपति चुनाव जो किसी महाभारत से कम नहीं लग रहा है। इस महाभारत में जुबानी हथियारों से जमकर एक दूसरे पर वार किया जा रहा है...किसी को किसी का कोई लिहाज नहीं है...शायद सही मायने में यही तो राजनीति है।

(दीपक तिवारी टीवी पत्रकार हैं और खबर भारती में बतौर निर्माता काम कर रहे हैं.)

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