BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Saturday, June 23, 2012

उत्तराखंड में अब जनता बनायेगी बिजली

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उत्तराखंड में अब जनता बनायेगी बिजली

उत्तराखंड में अब जनता बनायेगी बिजली

By  | June 23, 2012 at 8:25 am | One comment | राज्यनामा

उत्तराखंड के आन्दोलनकारी संगठनों ने स्थानीय स्तर पर सामुदायिक रूप से बिजली बनाने का सुझाव दिया है। उत्तराखंड लोक वाहिनी, उत्तराखंड महिला मंच और चेतना आन्दोलन ने उत्तराखंड की जनता का आह्वान किया है कि वह बाहर की बड़ी कम्पनियों और प्रदेश के भीतर के पूँजीपतियों को अपने इलाके में न घुसने दे। पहाड़ में सिंचित जमीन बहुत कम है और अधिकतर स्थानों पर खेती बारिश के भरोसे है। इसलिये नदियों के किनारे की जमीन का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। अब बिजली बनाने के लिये नदियों के पानी को सुरंगों में डालने से नदियाँ सूख रही हैं और उपजाऊ जमीनें रौखड़ बन रही हैं। खेती और जंगल नष्ट हो रहे हैं। सुरंगें बनाने से पहाड़ हिल रहे हैं और रिहायशी मकान दरार पड़ कर टूट रहे हैं। मंदिर और श्मशान घाट खत्म हो रहे हैं। जहाँ-जहाँ ये परियोजनायें बन रही हैं, वहाँ के लोग विरोध कर रहे हैं। मगर उनकी यह प्रार्थना कि हमें हमारे हाल पर छोड़ दो, हमें बर्बाद मत करो, को अनसुना किया जा रहा है। आन्दोलन करने पर उन्हें पीटा जा रहा है, जेलों में डाला जा रहा है। ये परियोजनायें बनाने वाली कम्पनियाँ राजनैतिक पार्टियों को चुनाव लड़ने के लिये इतना ज्यादा पैसा देती हैं कि फिर इन पार्टियों की सरकारें वोट देने वाली जनता की नहीं रहतीं, इन कम्पनियों की हो जाती हैं। कम्पनी का नमक खाने के बाद हमारे द्वारा चुनी गई सरकारें जनता को बहलाती, फुसलाती और फिर भी न मानने पर उसका क्रूर दमन करती हैं।

पानी से बिजली बनाने के इस धंधे में पैसा बहुत है। सिर्फ एक मेगावाट की एक छोटी जलविद्युत परियोजना से बिजली बना कर बेचने से साल भर में लगभग तीन करोड़ रुपये की आमदनी होती है। जबकि ऐसी एक परियोजना लगाने का शुरूआती खर्च लगभग चार-पाँच करोड़ रुपया आता है। यानी दो साल के भीतर परियोजना का खर्च निकल आता है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि 300 से 500 मेगावाट की परियोजनाओं में कितनी आमदनी होती होगी! इतने भारी-भरकम मुनाफे से ललचाते हुए ही अब कच्छा-बनियान बनाने वाली 'कृष्णा निटवियर' जैसी कम्पनी भी बिजली बनाने यहाँ आ गई है। सैकड़ों बड़ी-बड़ी कम्पनियों के लिये उत्तराखंड खुली लूट का मैदान बन गया है। स्थानीय लोगों को रोजगार का झुनझुना दिखाया जाता है, मगर वह रोजगार यदि मिला भी तो चौकीदारी या ड्राइवरी करने जैसा ही होता है। ज्यादातर तो मजदूर भी ठेकेदारों के माध्यम से नेपाल, बिहार, उड़ीसा, झारखंड आदि पिछड़े इलाकों से ले आये जाते हैं। कुछ ठेकेदारों और दुकानदारों को छोड़ दिया जाये तो स्थानीय जनता के लिये तो ये परियोजनायें बर्बादी और पलायन ही लेकर आती हैं।

उत्तराखंड में ये परियोजनायें खुशहाली ला सकती हैं, यदि जनता इन्हें खुद बनाये। परम्परागत घराटों की तरह, अपने पर्यावरण को बगैर किसी तरह का नुकसान पहुँचाये 'प्रोड्यूसर्स कम्पनी' बना कर एक या दो मेगावाट तक बिजली बनाई जा सकती है। इसकी मालिक जनता होगी। बाहर का, यहाँ तक कि ग्राम सभा के बाहर का व्यक्ति 'प्रोड्यूसर्स कम्पनी' का सदस्य नहीं हो सकता। श्रमदान करके कम से कम खर्च में इन्हें बनाया जा सकता है। जरूरत पड़ने पर बाहर से तनख्वाह देकर इंजीनियर लाये जा सकते हैं। इस बिजली का घरेलू जरूरतों और छोटे-छोटे उद्योगों के लिये इस्तेमाल कर बाकी को बेचा जा सकता है। घराटों की तरह ऐसी हजारों परियोजनायें लग जायें तो उत्तराखंड वास्तव में ऊर्जा प्रदेश बन जायेगा। मगर किसी भी कीमत में बड़ी कम्पनियों को यहाँ आने से रोकना होगा, वे चाहे उत्तराखंड के बाहर की हों या उत्तराखंड के पूँजीपति हों। अल्मोड़ा जिले में सरयू और टिहरी जिले में बालगंगा पर जनता द्वारा 'आजादी बचाओ आन्दोलन' की मदद से ऐसी 'प्रोड्यूसर्स कम्पनी' बना भी ली गई है। जल्दी ही वहाँ परियोजनायें बनाने का काम शुरू हो जायेगा। मगर अब यह सिलसिला पूरे उत्तराखंड में शुरू होना है। पानी जनता का है, इससे बिजली बनाने का हक भी सिर्फ जनता को है। अपनी किस्मत का निर्धारण जनता स्वयं करेगी।

पर्चे में बिजली बनाने का अर्थशास्त्र समझाते हुए कहा गया है कि एक मेगावाट की एक छोटी सी परियोजना लगाने पर यदि 80 फीसदी उत्पादन भी हुआ तो 6 करोड़ की पूँजी से शुरू हुई परियोजना में ब्याज और अन्य खर्चे काट कर 200 परिवारों की एक 'प्रोड्यूसर्स कम्पनी' के प्रत्येक साझीदार को पाँच हजार रुपया प्रति माह से अधिक मिल जायेगा। अपने पानी से इतना कमाने का हक उत्तराखंड की जनता का बनता है।

 साभार – नैनीताल समाचार

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