BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Welcome

Website counter
website hit counter
website hit counters

Friday, May 18, 2018

अल्मोड़ा में पानी का एटीएम? हिमालयक्षेत्र की जनता को धीमे जहर से मारा जा रहा है! पलाश विश्वास

अल्मोड़ा में पानी का एटीएम? हिमालयक्षेत्र की जनता को धीमे जहर से मारा जा रहा है!   पलाश विश्वास
सबसे ज्यादा मुखर आंदोलनकारी उत्तराखंड में अल्मोड़ा में हैं और अल्मोड़ा में   पानी का एटीएम? विकास का यह माडल पहाड़ी अस्मिता को जख्मी नहीं करता तो समझ लीजिये कि पहाड़ और पहाड़ियों का कुछ नहीं हो सकता।उत्तराखंड अलग राज्य बनने से माफिया राज कायम है तो देहरादून का माफिया जब गैरसैण से पहाड और मैदान पर राज करेगा तो उनके विकास का माडल यही होगा।

टिहरी बांध के बाद पहाड़ को ऊर्जा प्रदेश कहा जाता है और विकास का आलम यह है कि पानी भी एटीएम से ले रहे हैं हिमालयक्षेत्र में खुद को सबसे ज्यादा जागरुक और प्रबुद्ध कहने वाले लोग।

मुझे महाश्वेता दी कुमायूंनी बंगाली कहती लिखती रही हैं और विडंबना यह है कि बंगाल में मुझे कोई बंगाली नहीं मानता तो पहाड़ में कोई मुझे कुमायूंनी मानने को तैयार नहीं है।हम तो त्रिशंकु हैं लेकिन जो विशुद्ध पहाड़ी हैं वे दावानल की तरह फैलते इस नरसंहारी अश्वमेध अभियान के खिलाप कैसे मौन हैं ?

हिमालय इस उपहाद्वीप के लिए अनंत जलस्रोत है।

अभी शायद 2015 में देहरादून में चिपको संत सुंदरलाल बहुगुणा से लंबी बातचीत हुई थी,जिसे हमने सार्वजनिक किया था।उन्होंने गंगोत्री में रेगिस्तान देखने के बाद पहाड़ फिर पहाड़ न जाने की बात कही थी।उन्होंने आशंका जताई थी हिमालय के जलस्रोत सूखने से पूरा महाद्वीप रेगिस्तान में बदल जायेगा और जलयुद्ध छिड़ जायेगा।

आकाश नागर की अल्मोड़ा से यह रपट उनकी भविष्यवाणी को सच बता रही है।हमने डीएसबी के छात्र रहते हुए नैनीताल समाचार के लिए कुमायूं और गढ़वाल में व्यापक पैदल यात्राएं की थी।बीहड़ से बीहड़ गांव में और शिखरों पर भी पानी का संकट जैसा कुछ दिखाई नहीं दिया।नैनीताल,अल्मोड़ा जैसे शहरों में भी नहीं।

मैं पहली बार दिल्ली 1974 में इंटर प्रथम वर्। की परीक्षा हो जाने के बाद गर्मियों के मौसम में गया था।पिताजी इंदिरा जी के कहने पर देशबर के शरणार्थी इलाकों में घूमकर आये थे और इस बारे में रपट बनाने में उन्हें मेरी मदद की जरुरत थी।

मैं दिल्ली पहुंचा तो चांदनी चौक में फव्वारे के सामने एक धर्मशाला में पिता के साथ ठहरा।वहीं पहली बार दस पैसे गिलास पानी बिकता हुआ दिखा और मुझे राजधानियों से सख्त घृणा हो गयी क्यों मैं सीधे नैनीताल से उतरकर गया था,जहां उन दिनों पानी के बिकने की कल्पना ही नहीं की जा सकती।उसके बाद 1979 में जेएनयू में वाया इलाहाबाद होकर ठहरा तो दिल्ली मुझे कतई रास नहीं आयी।दिल्ली में आज भी मैं खुद को अजनबी महसूस करता हूं।लेकिन लगता है कि हिमालय भी तेजी से दिल्ली की तरह निर्मम होने लगा है।

धनबाद जब पहुंचा अप्रैल 1980 में ,तब संजीव सावधान नीचे आग है,चासनाला दुर्घटना पर उपन्यास लिख रहे थे।हम उनके साथ चासनाला गये।झरिया कोलफील्डस में कोयलाखानों में आग लगी हुई थी और चारों तरफ आग और धुंआ का नजारा ,जिसका चित्र मदन कश्यप ने अपनी कविता भूमिगत आग प्रस्तुत की है।

हमारी सफेद कमीज काली हो गयी और धनबाद लौटते न लौटते मैं बीमार हो गया।फिरभी झारखंड में मैंने पानी बिकते हुए नहीं देखा।

प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध हिमालय हो या फिर आदिवासी बहुल इलाके,वहीं जल जंगल जमीन से निर्मम बेधखली का यह नतीजा है।

गांधी वादी नेता हिमांशु कुमार अक्सर आदिवासियों के खिलाफ राष्ट्र के युद्ध की बात करते हैं,जिसे गैर आदिवासी इलाके के लोग नहीं समझते।

आम जनता को प्राकृतिक संसाधनों से राष्ट्रशक्ति की मदद से बेदखल कर देना और हमा पानी भोजना का मोहताज बना देना युद्ध के सिवा क्या है?

धर्मवीर भारती के नाटक अंधायुग का भी यही तात्पर्य है।

हिमालयक्षेत्र की जनता को धीमे जहर से मारा जा रहा है जिन्हें अपनी भौगोलिक अस्पृश्यता का तनिकअहसास नहीं है क्योंकि वे सभी अपने को कुलीन मानते हैं,सवर्ण मानते हैं।
वास्तव में उनकी हालत अस्पृश्य,बाकी बहुजनों और आदिवासियों से भी खराब है।पहाड़के लोग इस सच का सामना करें तभी हालात बदलने की लड़ाई के लिए मोर्चा बन सकता है।सेमीनार करने से माफिया की सेहत पर कोई असर नहीं होता।

पहाड़ में पैसे नही, पानी ATM से पीजिए

दोस्तों आज मैं उत्तराखंड के प्रसिद्ध साहित्यिक शहर अल्मोड़ा में हूँ । वह भी दिन थे जब यहा कभी प्याऊँ लगती थी । केमू स्टेशन के पास और बाल मिठाई के विक्रेता खेम सिंह मोहन सिंह की दुकान के पास , लाला बाजार में तथा शहर से गांव के आने जाने वाले प्रत्येक रास्ते पर बड़े-बड़े मटको में पानी भरकर लोगों को निशुल्क पानी पिलाया जाता था । मैंने देखे थे वह दिन भी । और देख रहा हूं आज का यह दिन भी जब अल्मोड़ा में पानी ATM से रुपए देकर पीने को मजबूर हो रहे है । क्या यह हमारी तरक्की है या विकास का यह आईना जो हमें हमारे भविष्य की ओर खतरे के संकेत देता प्रतीत हो रहा है । क्या हम अब नदी , झरना और चाल , खाल नॉलो , धारों और प्राकृतिक स्रोतों से पानी पीने की अपेक्षा मशीन से निकला हुआ पानी पीकर अपने आपको गौरवान्वित महसूस करेंगे..... ?


आकाश नागर ने लिखा हैः

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...