BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Thursday, September 21, 2017

रवींद्र का दलित विमर्श-31 बांग्लादेश में रवींद्र और शरत को पाठ्यक्रम से बाहर निकालने के इस्लामी राष्ट्रवाद खिलाफ आंदोलन तेज हमारे यहां शिक्षा और इतिहास के हिंदुत्वकरण के खिलाफ सन्नाटा कट्टरपंथ के खिलाफ आसान नहीं होती लड़ाई। श्वेत आंतकवाद के युद्धस्थल वधस्थल बन गये भारत,पाकिस्तान और बांग्लादेश, हालांकि रंग श्वेत दीखता नहीं है पलाश विश्वास

रवींद्र का दलित विमर्श-31

बांग्लादेश में रवींद्र और शरत को पाठ्यक्रम से बाहर निकालने के इस्लामी राष्ट्रवाद खिलाफ आंदोलन तेज

हमारे यहां शिक्षा और इतिहास के हिंदुत्वकरण के खिलाफ सन्नाटा

कट्टरपंथ के खिलाफ आसान नहीं होती लड़ाई।

श्वेत आंतकवाद के युद्धस्थल वधस्थल बन गये भारत,पाकिस्तान और बांग्लादेश, हालांकि रंग श्वेत दीखता नहीं है

पलाश विश्वास

कट्टरपंथ के खिलाफ आसान नहीं होती कोई लड़ाई।

लालन फकीर और रवींद्रनाथ की रचनाओं को पाठ्यक्रम से निकालने के खिलाफ बांग्लादेश में आंदोलन तेज हो रहा है और रवींद्र और प्रेमचंद समेत तमाम साहित्यकारों को पाठ्यक्रम से निकालने और समूचा इतिहास को वैदिकी साहित्य में बदलने  के खिलाफ भारत में अभी कोई आंदोलन शुरु नहीं किया जा सका है।

बांग्लादेश में पाकिस्तानी शासन के दौरान 1961 में भी रवींद्र साहित्य और रवींद्रसंगीत पर हुक्मरान ने रोक लगा दी थी,जिसका तीव्र विरोध हुआ और वह रोक हटानी पड़ी।बाग्लादेश मुक्तिसंग्राम के दौरान तो रवींद्र के लिखे गीत आमार सोनार बांग्ला आमि तोमाय भोलोबासि  बांग्लादेश का राष्ट्रीय संगीत बन गया।

गौरतलब है कि 1961 के प्रतिबंध के खिलाफ ढाका में बांग्ला नववर्ष और 25 बैशाख को रवींद्र जयंती मनाने का सिलसिला शुरु हुआ जो कभी रुका नहीं है।

विविधता,बहुलता,सहिष्णुता के लोकतंत्र के खिलाफ हैं भारत के हिंदू राष्ट्रवादी और बांग्लादेश के इसलामी राष्ट्रवादी दोनों।जिस तरह संघ परिवार शिक्षा व्यवस्था के आमूल हिंदुत्वकरण के लिए लगातार विश्वविद्यालयों पर हमले कर रहा है,पाकिस्तान बनने के बाद और पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लादेश बनने के बाद वहां भी विश्विद्यालय कट्टर इस्लामी राष्ट्रवादियों  के निशाने पर हैं।

रवींद्रनाथ कहते थे कि पश्चिम के ज्ञान विज्ञान वहां के शासक वर्ग की देन नहीं है और यह आम जनता की उपज है।हमें इसे स्वीकार करना चाहिए।इसी तरह फासीवादी राष्ट्रवाद के धर्मोन्माद,नस्ली वर्चस्व और समाज और मनुष्यता के धर्म के नाम बंटवारे के राष्ट्रवाद और हिंसा,घृणा,युद्ध और विध्वंस के राष्ट्रवाद का रवींद्रनाथ विरोध करते रहे।

हम शिक्षा और ज्ञान के बदले पश्चिमी धर्मोन्मादी सैन्य राष्ट्रवाद के उत्तराधिकारी बन गये हैं तो स्वतंत्रता के बाद भी स्वदेश अभी साम्राज्यवाद का मुक्तबाजारी उपनिवेश है,जहां उच्च शिक्षा और ज्ञान के लिए कोई जगह नहीं है।मध्ययुगीन बर्बर इतिहास को दोहराने का उपक्रम हमारा धर्म कर्म है।

भारत में जयभीम कामरेड के नारे के साथ जाति धर्म का दायरा तोड़कर मनुस्मति विरोधी ब्राह्मणवाद विरोधी आंदोलन और बंगाल के होक कलरव छात्र आंदोलन से पहले युद्ध अपराधियों को फांसी पर लटकाने के खिलाफ शाहबाग छात्र युवा आंदोलन के दौरान इस महादेश के तमाम  कट्टरपंथी धर्मोन्मादी राष्ट्रवादी युद्धअपराधियों को एक ही रस्सी से फांसी पर लटकाने की मांग उठ चुकी है।

शाहबाग आंदोलन के तहत ही बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान नरसंहार के युद्ध अपराधी रजाकर और जमात नेताओं को फांसी पर लटकाने का सिलसिला जारी है। मनुष्यता के विरुद्ध युद्ध अपराधी वहां फांसी पर लटकाये जा रहे हैं,फिर भी बांग्लादेश सरकार और प्रशासन में इस्लामी राष्ट्रवादियों का वर्चस्व कायम है।

भारत में हिंदुत्व एजंडा के तहत पाठ्यक्रम के हिंदुत्वकरण अभियान के समांतर बांग्लादेश में हिफाजत और जमात के असर में पाठ्यक्रम से रवींद्रनाथ टैगोर,लालन फकीर ,शरतचंद्र,सत्यजीत रे के दादा उपेंद्र किशोर रायचौधरी और बांग्लादेश के बेहद लोकप्रिय लेखक हुमायूं आजाद की रचनाएं बाहर फेंक दी गयी है।इसके खिलाफ बांग्लादेश में छात्र,प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष शक्तियों के मोर्चे ने ढाका विश्विद्यालय से आंदोलन शुरु कर दिया है।

हम पहले ही इस बारे में चर्चा कर चुके हैं कि बांग्लादेश में लालन फकीर और रवींद्रनाथ के खिलाफ भयंकर घृणा अभियान जारी है। बंकिम के हिंदू राष्ट्रवाद के साथ लालन और रवींद्रनाथ को जोड़कर उन्हें मुसलमानों के खिलाफ बताने का अभियान शुरु से चल रहा है।इसका व्यापक प्रतिरोध भी वहां हो रहा है।

रवींद्रनाथ के मशहूर उपन्यास गोरा के नायक को आखिरकार अहसास होता है कि उनकी कोई जाति नहीं है और वे अंत्यज है।रवींद्रनाथ ने अपनी रचनाओं में अपने को कई दफा अछूत, अंत्यज, जातिहीन, मंत्रहीन कहा है।अपनी मध्य एशिया की यात्रा के वृत्तांत उन्होंने इस्लाम और इस्लामी विरासत के बारे में उन्होंने सिलसिलेवार लिखा है।

उन्होंने लिखा हैः

'কাছের মানুষ বলে এরা যখন আমাকে অনুভব করেছে তখন ভুল করে নি এরা, সত্যই সহজেই এদের কাছে এসেছি। বিনা বাধায় এদের কাছে আসা সহজ, সেটা স্পষ্ট অনুভব করা গেল। এরা যে অন্য সমাজের, অন্য ধর্মসম্প্রদায়ের, অন্য সমাজগণ্ডীর, সেটা আমাকে মনে করিয়ে দেবার মতো কোনো উপলক্ষই আমার গোচর হয় নি।' (ঠাকুর ১৩৯২ : ২৮-২৯)

(मेरे अपना अंतरंग हाने का अहसास इन लोगों ने किया है।इन्होंने कोई गलती नहीं की है।मैं सचमुच सहज ही इनके पास चला आया।ये दूसरे समाज के लोग है,दूसरे धर्म संप्रदाय के लोग हैं या दूसरे समामाजिक अनुशासन के दायरे में हैं ये,ऐसा कुछ भी महसूस करने का कोई मौका मुझे मिला नहीं है।)

उत्तर कोरिया को तबाह करने की जो अश्लील चेतावनी श्वेत जायनी साम्राज्यवाद ने हिरोशिमा और नागासाकी के परमाणु धमाकों की गूंज के साथ दी है,उसमें यूरोप में धर्मयुद्ध और दैवीसत्ता का नस्ली वर्चस्व है जो यूरोप का राष्ट्रवाद पूंजीवाद और साम्राज्यवाद का त्रिशुल है।इस त्रिशुल की मार अफगानिस्तान में मिसाइली हमलों,इराक के विध्वंस,लीबिया में गद्दाफी को खत्म करने के लिए बमबारी,सीरिया के गृहयुद्ध और मिश्र समेत पूरी अरब दुनिया में अमेरिकी अरब वसंत तक मनुष्यता को लहूलुहान कर रही है और इससे आतंकवाद की धर्मोन्मादी राजनीति अब मनुष्यता का अंत करने पर आमादा है।

रग और झंडा जो भी हो,यह विशुद्धता का श्वेत आतंकवाद है।धर्मयुद्ध है।

सभ्यताओं के संघर्ष के पश्चिमी उपक्रम की चर्चा रवींद्रनाथ की मध्यएशिया यात्रा के सिलसिले में पश्चिमी श्वेत आतंकवाद के इस आसमानी धर्मयुद्ध के खिलाफ रवींद्रनाथ की लंबी चेतावनी का सार प्रस्तुत किया है विनायक सेन नेः

"বোগদাদে ব্রিটিশদের আকাশফৌজ আছে। সেই ফৌজের খ্রিস্টান ধর্মযাজক আমাকে খবর দিলেন, এখানকার কোন শেখদের গ্রামে তারা প্রতিদিন বোমাবর্ষণ করছেন। সেখানে আবালবৃদ্ধবনিতা যারা মরছে তারা ব্রিটিশ সাম্রাজ্যের ঊর্ধ্বলোক থেকে মার খাচ্ছে; এই সাম্রাজ্যনীতি ব্যক্তিবিশেষের সত্তাকে অস্পষ্ট করে দেয় বলেই তাদের মারা এত সহজ। খ্রিস্ট এসব মানুষকেও পিতার সন্তান বলে স্বীকার করেছেন, কিন্তু খ্রিস্টান ধর্মযাজকের কাছে সেই পিতা এবং তার সন্তান হয়েছে অবাস্তব; তাদের সাম্রাজ্য-তত্ত্বের উড়োজাহাজ থেকে চেনা গেল না তাদের; সেজন্য সাম্রাজ্যজুড়ে আজ মার পড়ছে সেই খ্রিস্টেরই বুকে। তাছাড়া উড়োজাহাজ থেকে এসব মরুচারীকে মারা যায় এতটা সহজে, ফিরে মার খাওয়ার আশঙ্কা এতই কম যে, মারের বাস্তবতা তাতেও ক্ষীণ হয়ে আসে। যাদের অতি নিরাপদে মারা সম্ভব, মারওয়ালাদের কাছে তারা যথেষ্ট প্রতীয়মান নয়। এই কারণে, পাশ্চাত্য হননবিদ্যা যারা জানে না, তাদের মানবসত্তা আজ পশ্চিমের অস্ত্রীদের কাছে ক্রমশই অত্যন্ত ঝাপসা হয়ে আসছে।"

अनुवादः बगदाद में ब्र्टिश हुकूमत की आसमानी फौज है।उसी फौज के एक ईसाई धर्मयजक ने मुझे खबर दी कि यह फौज यहां किसी शेखों के गांव पर रोज बमबारी कर रही है।वहां बच्चे बूढ़े स्त्रियों समेत जो आम लोग मारे जा रहे हैं,वे ब्रिटिश साम्राज्यवाद के उर्द्धलोक की मार से मारे जा रहे हैं।यह साम्राज्यवादी नीति व्यक्तिविशेष की निजी सत्ता को इस तरह अस्पष्ट रहस्यमयी भाषा में पेश करती है कि बेगुनाह मनुष्यों को मारना इतना सरल है।यीशु मसीह ने इन सभी मनुष्यों को ईश्वर की संतान माना है लेकिन ईसाई धर्मयाजक के लिए वह पिता और उनकी संतान अवास्तव बन गये हैं,उनका साम्राज्यवाद की अवधारणा युद्धक विमानों से पहचाना नहीं गया है और इसीलिए ब्रिटिश साम्राज्य में ये सारे हमले ईशा मसीह के सीने पर हो रहे हैं। इसके अलावा युद्धक विमान से मरुभूमि के वाशिंदों को मारना इतना आसान है कि जबावी मार खाने की कोई आशंका होती नहीं है और इसीलिए उनके मारे जाने का सचभी इतना क्षीण होता जाता है।जिन्हें इतनी सुरक्षित तरीके से मारना संभव है,मारनेवालों के लिए उनका कोी वजूद होता ही नहीं है।इसलिए जो लोग पश्चिम की हत्या संस्कृति से अनजान हैं,उनकी मनुष्यता का अस्तित्व भी पश्चिमी सैन्य ताकतों के लिए क्रमशः धूमिल होता जाता है।

रवींद्र की यह चेतावनी जितना पश्चिम एशिया और बाकी दुनिया का सच है,उससे बड़ा सच भारत में कृषि व्यवस्था,किसानों,दलितों,आदिवासियों और गैर हिंदुओं का सच है।यह गोरक्षा तांडव का सच है तो नरसंहार संस्कृति का सचभी है तो फिर यह आदिवासी भूगोल में अनंत बेदखली का सच भी है।

रवींद्र नाथ की यह चेतावनी आज की पृथ्वी ,आज की मनुष्यता और प्रकृति के विरुद्ध जारी उसी धर्मयुद्ध का सच है,जिस धर्मयुद्ध के श्वेत आतंकवाद की भाषा उत्तर कोरिया के लिए तबाही की चेतावनी है।

(संदर्भःরবীন্দ্রনাথ ও মধ্যপ্রাচ্য (Tagore and the Middle East)

Posted on May 9, 2014

বিনায়ক সেন)

रवींद्र समय का ब्रिटिश साम्राज्यवाद का श्वेत आतंकवाद अब अमेरिका साम्राज्यवाद है और पश्चिम एशिया में फिलीस्तीन और यरूशलम पर कब्जे का यूरोप का धर्मयुद्ध अब अमेरिका का धर्मयुद्ध भी है,जिसे हम कभी खाड़ी युद्ध तो कभी तेल युद्ध और फिर जल युद्ध या लोकतंत्र के लिए युद्ध और आखिरकार आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका का युद्ध कहते रहे हैं।

नस्ली आतंकवाद के विरुद्ध इस चेतावनी के बाद और पश्चिम एशिया के यथार्थ को दूसरे विश्वयुद्ध से पहले इतना सही तरीके से पेश करने वाले रवींद्रनाथ को इस्लामी राष्ट्रवाद के झंडेवरदार मुसलमानों का दुश्मन साबित करने में लगे हैं।

दरअसल, रवींद्रनाथ और काजी नजरुल इस्लाम दोनों तुर्की के आधुनिकीकरण के कमाल पाशा करिश्मे के प्रशंसक रहे हैं।

धर्म के नाम समाज के बंटवारे के खिलाफ थे नजरुल इस्लाम और रवींद्रनाथ दोनो।इसलिए कमाल अतातुर्क की क्रांति का दोनों ने स्वागत किया है।

रवींद्रनाथ ने लिखा हैः

"কামাল পাশা বললেন মধ্যযুগের অচলায়তন থেকে তুরস্ককে মুক্তি নিতে হবে। তুরস্কের বিচার বিভাগের মন্ত্রী বললেন : মেডিয়াভেল প্রিন্সিপলস্ মাস্ট গিভ ওয়ে টু সেক্যুলার ল'স। উই আর ক্রিয়েটিং আ মডার্ন, সিভিলাইজড্ নেশন।"

अनुवादः कमाल पाशा ने कहा कि मध्ययुग की जड़ता से तुर्की को आजाद करना होगा।तुर्की के न्याय मंत्री ने कहा कि मध्यकालीन सिद्धांतों के बदले धर्मनिरपेक्ष कानून लागू करना होगा।हम एक आधुनिक ,सभ्य राष्ट्र का निर्माण करना चाहते हैं।

रवींद्रनाथ ने शुरु से लेकर अपने जीवन के अंत तक जिस राष्ट्रवाद का विरोध किया है,वह दरअसल पश्चिम के धर्म युद्ध का वही राष्ट्रवाद है,जो समाज और मनुष्यता को धर्म के नाम पर बांटता है।

अंग्रेजों ने भारत में दो सौ सालों के अपने राज में हिंदुओं और मुसलमानों को एक दूसरे का दुश्मन बना दिया और दुश्मनी की इस मजहबी सियासत की नींव पर जो भारत ,पाकिस्तान और बांग्लादेश  का निर्माण हुआ - अखंड भारत वर्ष के वे तीनों ही टुकड़े आखिर कार श्वेत आतंकवाद के उपनिवेश बन गये,जो एक अनंत युद्धस्थल वधस्थल है और फर्क सिर्फ इतना है कि वह श्वेत आतंकवाद दीखता नहीं है और न उसका रंग श्वेत है।पश्चिम के ज्ञान विज्ञान की जगह पश्चिम की यांत्रिक आटोमेशन सभ्यता और तकनीक ने ली है।यही डिजिटल इंडिया की असल तस्वीर है।

इस्लामी कट्टरपंथ से आजादी के हक में रवींद्रनाथ का बयान इस्लामी कट्टरपंथियों को उसीतरह नागवार लगता है जैसे विविधता बहुलता,सहिष्णुता,अनेकता में एकता के मनुष्यता के धर्म से हिंदू राष्ट्रवाद को सख्त ऐतराज है।

रवींद्र नाथ के नाटक विसर्जन में मूर्तिपूजा के विरोध में देवी के अस्तित्व को झूठा साबित करने से हिंदू समाज शुरु से रवींद्र के खिलाफ रहा है।

अरब दुनिया के मशहूर शायर हाफिज के मजार पर बैठकर उन्हें अपने देश में धर्मोन्मादी सांप्रदायिकता की याद आयी और उन्होंने लिखाः

'এই সমাধির পাশে বসে আমার মনের মধ্যে একটা চমক এসে পৌঁছল, এখানকার এই বসন্তপ্রভাতে সূর্যের আলোতে দূরকালের বসন্তদিন থেকে কবির হাস্যোজ্জ্বল চোখের সংকেত। মনে হল আমরা দুজনে একই পানশালার বন্ধু, অনেকবার নানা রসের অনেক পেয়ালা ভরতি করেছি। আমিও তো কতবার দেখেছি আচারনিষ্ঠ ধার্মিকদের কুটিল ভ্রুকুটি। তাদের বচনজালে আমাকে বাঁধতে পারে নি; আমি পলাতক, ছুটি নিয়েছি অবাধপ্রবাহিত আনন্দের হাওয়ায়। নিশ্চিত মনে হল, আজ কত-শত বৎসর পরে জীবন-মৃত্যুর ব্যবধান পেরিয়ে এই কবরের পাশে এমন একজন মুসাফির এসেছে যে মানুষ হাফেজের চিরকালের জানা লোক। (ঠাকুর ১৩৯২ : ৪৩-৪৪)

बांग्लादेश के सिलाईदह,शाहजादपुर और कालीग्राम परगना में टैगोर परिवार की तीन जमींदारियां थीं।युवा रवींद्रनाथ पहलीबार 1890 में अपनी जमींदारी की देखरेख के लिए 1890 में पातिसर पहुंचे।उस वक्त तक टैगोर जमीदारियों में भयंकर सामंती व्यवस्था थी।इस बारे में कंगाल हरिनाथ के खुलना जिले के कुमारखाली से प्रकाशित अखबार ग्रामवार्ता में लगातार लिखा जाता रहा है।

लालन फकीर के सहयोगी और अनुयायी बाउल पत्रकार कंगाल हरिनाथ और उनके अखबार ग्रामवार्ता को अंग्रेजी हुकूमत और जमींदारों के खिलाफ पाबना और रंगपुर के किसान  विद्रोहों के लिए जिम्मेदार माना जाता रहा है।टैगोर जमींदारी के लठैतों ने उनपर हमले भी किये और उन हमलों से  पास ही स्थित लालन फकीर के अखाड़े के उनके अनुयायियों ने उन्हें बचाया।इस पर बी हमने चर्चा की है।

महर्षि देवेंद्रनाथ के सामंती चरित्र से रवींद्रनाथ के मनुष्यता का धर्म उन्हें अलग करता है।टैगोर जमींदारी के प्रजाजनों पर सामंती शिकंजा तोड़ने की पहल भी रवींद्रनाथ ने की। बाकायदा जमींदार की हैसियत से रवींद्रनाथ पहलीबार कुष्ठिया जिले के सिलाईदह में गये तो पांरपारिक पुन्याह पर्व पर उन्होंने हिंदू मुसलमान और सवर्ण दलित का भेदभाव खत्म कर दिया।

गौरतलब है कि रवींद्र नाथ के दादा प्रिंस द्वारकानाथ ठैगोर के जमाने से पुन्हयाह पर्व पर हिंदुओं और मुसलमानों के अलग अलग बैठाने का बंदोबस्त था तो हिंदुओं के लिए उनकी हैसियत और जाति के मुताबिक अलग बैठने का इंतजाम था।हिंदुओं के लिए चादर से ढकी दरिया तो मुसलमानों के लिए बाना चादर की दरिया।ब्राह्मणों को अलग से बैठाने का इंतजाम।

जमींदार के लिए रेशम से सजा सिंहासन।

रवींद्रनाथ ने यह इंतजाम देखते ही सिंहासन पर बैठे बिना नायब से इस भेदभाव की वजह पूछ ली तो उन्होंने परंपरा का हवाला दे दिया।

इसपर रवींद्रनात ने कह दिया की भेदभाव की यह परंपरा नहीं चलेगी। अलग अलग बैठने की व्यवस्था तुरंत खत्म करके हिंदू मुसलमान ब्राह्मण चंडाल सभी को एक साथ बैठाना होगा।नायब ने ऐसा करने से इंकार कर दिया तो युवा रवींद्रनाथ अड़ गये।उन्होंने खुद सिंहासन पर बैठने से इंकार कर दिया।

बाहैसियत जमींदार सबके लिए समानता का यह उनका पहला आदेश था। नायब,गोमस्ता सभी कर्मचारियों ने इस नये इंतजाम के खिलाफ एकमुश्त इस्तीफे की धमकी दे दी।इसकी परवाह किये बिना रवींद्रनाथ ने सबके लिए एक साथ बैठने का इंतजाम चालू कर दिया।नायब और कर्मचारी देखते रह गये।

यही नहीं जमींदारों के अत्याचार उत्पीड़न से मुसलमान प्रजाजनों को बचाने को रवींद्रनाथ सबसे ज्यादा प्राथमिकता देते थे।

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