BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Friday, November 25, 2016

नोटबंदी नहीं,यह मृत्यु महोत्सव है! मारे जायेंगें देश के आम नागरिक क्योंकि तमाम रंगबिरंगे अरबपति राजनेता मुक्तबाजार के कारिंदे हैं और उन्हें इस देश की जनता से कोई मुहब्बत नहीं है। #BankruptRBI #BnakruptIndianbanking #Nobanktorefusepaymentworldwide #IndialivesonPayTMBigBazarAirtel #PoliticalsystemconvertedintoBlackhole #MultipleorganfailureculminatinginfamineandslumptoaccomplishtheHindutvaagendaofmassdestruction पलाश विश्वास

नोटबंदी नहीं,यह मृत्यु महोत्सव है!

मारे जायेंगें देश के आम नागरिक क्योंकि तमाम रंगबिरंगे अरबपति राजनेता मुक्तबाजार के कारिंदे हैं और उन्हें इस देश की जनता से कोई मुहब्बत नहीं है।


#BankruptRBI

#BnakruptIndianbanking

#Nobanktorefusepaymentworldwide

#IndialivesonPayTMBigBazarAirtel

#PoliticalsystemconvertedintoBlackhole

#MultipleorganfailureculminatinginfamineandslumptoaccomplishtheHindutvaagendaofmassdestruction

पलाश विश्वास

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में नोटबंदी को क़ानूनन चलाई जा रही व्यवस्थित लूट की संज्ञा दी है।

डा.मनमोहन सिंह मुक्तबाजार के मौलिक ईश्वर हैं और अर्थशास्त्र वे हमसे बेहतर जानते हैं भले ही कल्कि महाराज और उनकी अर्थक्रांति के बगुला विशेषज्ञ का अर्थशास्त्र उनसे बेहतर हो।

माननीय ओम थानवी ने कल फेसबुक पर टिप्पणी की है कि पुराना पाप उनका धुल गया है।लेकिन उनका पाप इतना बड़ा है कि तमाम ग्लेशियर पिघलकर गंगाजल बनकर भी उसे धो नहीं सकता।वे संसद में जो बोले,वह दरअसल मुक्तबाजार का व्याकरण है।जो सौ टका सही है।

दुनिया में सचमुच ऐसा कोई देश नहीं है जहां बैंक करदाताओं और ग्राहकों कोमना कर कर दें।भुगतान न कर पाने की स्थिति दिवालिया हो जाना है।नोटबंदी ने भारतीय बैंकिंग प्रणाली को दिवालिया बना दिया है।

सिर्फ मनमोहन सिंह ही नहीं,तमाम रेटिंग एजंसियां विकास दर में कमी की आसंका जता चुके हैं।कृषि उत्पादन ठप है।औद्योगिक उत्पादन गिर रहा है।मुद्रा का लगातार अवमूल्यन हो रहा है।अब बेदखल हुआ बाजार भी नोटबंदी की वजह से बंद है।बाजार की गतिविधियां इसी तरह ठप रही और डिजिटल देश का नानडिजिटल बहुसंख्या जनता अगर उत्पादन प्रणाली,अर्थव्यवस्था और बाजार से बाहर कर दिये जाये तो यह दिनदहाड़े डकैती नहीं है।डकैती के बावजूद अर्थव्यवस्था,उत्पदन प्रणाली और बाजार की गतिविधियां ठप नहीं पड़े जाती।

देश के नागरिकों से उनकी क्रय क्षमता रातोंरात छिनकर कल्कि महाराज ने मुक्तबाजार को ही बाट लगा दी है और यह नोटबंदी मुक्त बाजार के व्याकरण के खिलाफ है।डा.मनमोहन सिंह का कहना कुल मिलाकर यही है।

सारी बुनियादी सेवाएं और बुनियादी जरुरतें जब आपकी क्रय क्षमता से जुड़ी हैं तो वह क्रयक्षमता छिन जाने से आप हवा पानी भी खरीदने की हालत में नहीं हैं और राशन पानी दूर की कौड़ी है।पूरा देश अब गैसत्रासदी के शिकंजे में हैं।

एक मुश्त खेती,कारोबार और बाजार को ठप करने का एक ही नतीजा है और वह है मौत जिसका भुगतान बैंकों की नकदी प्रवाह की तरह आहिस्ते आहिस्ते होगा।

कतारों में खड़े कुछ लोगों को नकद भुगतान जरुर हो गया है लेकिन जो अपने घरों में बीवी बच्चों,मां बाप बहन के साथ तिल तिल तड़प तड़प कर मरने को अभिशप्त हैं,उनकी लाशों की गिनती कभी नहीं होने वाली है।

पिछले सत्तर सालों से भारत के देहात में किसान सपरिवार इसीतरह मरते खपते रहे हैं और बाकी देश ने तनिको परवाह नहीं की।

आजादी के बाद से आदिवासियों की बेदखली जारी है।उनका कत्लेआम जारी है।प्राकृतिक संसाधनों की इस खुली लूट और सैन्य राष्ट्र के सलवा जुड़ुम का बाकी देश समर्थन करता है।

कश्मीर और मणिपुर में सैन्य शासन और दमन का भी राजनेता विरोध नहीं करते।न आदिवासियों,दलितों, पिछडो़ं,अल्पसंख्यकों और स्त्रियों के कत्लेआम की कोई परवाह है उन्हें,जबतक न वोटबैंक राजनीति इसके लिए उन्हें मजबूर न कर दें।

बिग बाजार कोई बैंक नहीं है।उसे बैंकिंग की इजाजत है।पेमेंट बैंकिगं अलग हो रही है।ईटेलिंग के अलावा अब कोई विकल्प बचा नहीं दिखता।

दूसरी ओर,चौतरफा खरीदारी के इस माहौल में भी आज पीएसयू बैंकों की पिटाई देखने को मिल रही है। निफ्टी का पीएसयू बैंक इंडेक्स 0.12 फीसदी की कमजोरी के साथ कोरोबार कर रहा है।

पेटीएम के अलावा नकदी कहीं नहीं है।ऐसे हालात में देहात और कस्बों से लेकर महानगरों तक किराना दुकानदारों से लेकर फलवालों,रेहड़ीवालों,फुटपाथवालों, हाकरों,सब्जी मछलीवालों का सारा कारोबरा अब शापिंग माल में चला गया है।

छह महीन तक नकदी का संकट नहीं सुलझा तो इनके पास कारोबार चलाने लायक पैसा भी नहीं बचेगा।खुदरा बाजार में कितने लोग हैं,कल्कि महाराज इसका कोई सर्वे करा लेते तो बेहतर होता।

एटीएम और बैंकों से लाशें बहुत कम निकलने वाली है जाहिर है।खेत खलिहानों, कारखानों और खुदरा बाजार,चायबागानों से लाशों का जो जुलूस निकलने वाला है,उनमें नौकरीपेशा लाशें भी कम नहीं निकलेंगी।एकाधिकार पूंजी सारी नौकरियां का जायेंगी।

नोटबंदी नहीं,यह मृत्यु महोत्सव है।

अकेले बंगाल के 300 चाय बागानों के करीब पांच लाक मजदूरों को उनकी दिहाड़ी नहीं मिल रही है।खेत मजदूरों और असंगठित क्षेत्र के करोडो़ं लोग यकबयक बेरोजगार हो गये हैं और हाट बाजार में खुदरा दुकानदारों का कारोबार ठप हैं।

किसान न खेत जोत पा रहे हैं न बीज बो पा रहे हैं।फसल तैयार है तो उसे बेच भी नहीं पा रहे हैं।

अब आगे भुखमरी है जो मंदी की वजह से और भयंकर होगी।आटा चाल दाल तेल सबकुछ मंहगा हो रहा है और आय के सारे साधन खत्म हो रहे हैं।

लोगों के हाथ पांव तो एकमुश्त काट ही लिये गये है।उनके दिलोदिमाग और एक एक अंग प्रत्यंग बेदखल हैं।

अब वे सीना ठोंककर कहने लगे हैं कि वे डिजिटल इंडिया बना रहे हैं और नोटबंदी का मकसद दरअसल कैशलैस सोसाइटी है।

कालाधन निकालने का मकसद वे खुद गलत बताने लगा है।

अपनी सिरजी आपदा को लंबे अरसे तक जारी रखकर वे एकाधिकार पूंजी केहवाले कर रहे हैं सबकुछ और आम जनता की तकलीफों,उनकी जिंदगी और मत की उन्हों कोई परवाह नहीं है।

अब 28 नवंबर को नोटबंदी के खिलाफ भारत बंद है।इस बारे में आदरणीय मोहन क्षोत्रियकी टिप्पणी लाजबाव है।उन्होने लिखा हैः

दुकान बंद हो जाती है तो लगता है भारत बंद है ,

दुकान खुली रहती है तो लगता है भारत खुला है l

बाबा को व्यापारी और व्यापारी को बाबा बनाने की नीति के बारे में सोचिये l

अब दुकानदारों को सोचना है कि भारत बंद रहेगा या खुला l

भारत तो अब 8 नवंबर से बंद ही है।सारी जनता काम धंधा बंद करके एटीएम,बैंक से लेकर बिग बाजार के सामने कतारबद्ध है।एक एक करके उत्पादन इकाइयां बंद है।असंगठित क्षेत्र में नकदी के अभाव के चलते कोई काम नहीं है।

शापिंग माल के अलावा सारा खुदरा कारोबार मय किराना साग सब्जी फल मछली अनाज हाट बाजार राशन पानी घर का चूल्हा सारा कुछ बंद है और आम जनता इसतरह केसरिया फौज हैं कि उनकी तबीयत हरी हरी है।

सावन के अंधे को सारा कुछ हरा हरा नजर आता है।कहीं किसी प्रतिरोध की सुगबुगाहट नहीं है।लोग कतार में खड़े खड़े मर रहे हैं।

लाशें निकल रही हैं एटीएम और बैंकों से।

दुनिया में भारत पहला देश है जहां नकद जमा होने के बावजूद करदाताओं और ग्राहकों को धेला भी नहीं मिल रहा है।

रोज दिहाड़ी नहीं मिल रही है।चूल्हा सुलगाने के लिए दिल्ली दरबार से रोज नये फरमान जारी हो रहे हैं।रिजर्व बैंक के नियम रोज बदल रहे हैं।

सारे बैंकों और एटीएम पर नो कैश की तख्ती टंगी है और हाट बाजार के साथ साथ काम धंधे से लोग बेदखल हो रहे हैं।

जलजंगलजमीन नागरिकता से वे पहले ही बेदखल हैं।

कानून बदलकर पूंजीपतियों के तीस लाख करोड़ देश से बाहर निकालने के बाद नोट बंदी हुई है जिसकी गोपनीयता का आलम अब बेपर्दा है क्योंकि राष्ट्र के नाम वह ऐतिहासिक भाषण लाइव नहीं था।पहले से जो रिकार्डिंग की गय़ी थी,उस संबोधन की गोपनीयता की भी बलिहारी।

जिन क्षत्रपों ने राजनीतिक गोलबंदी के लिए पहल की है,कमसकम वे कल्कि महाराज के विकल्प नहीं है क्योंकि आम जनता को उनके कारनामे और तमाम किस्से मालूम है।वे अपने अपने हिस्से के कालाधन बचाने की जुगत लगा रहे हैं और कुल मिलाकर उन्हें शिकायत यही है कि संघियों और भाजपाइयों ने तो अपना कालाधन सफेद कर लिया,लेकिन उन्हें कोई मोहलत नहीं मिली है।

इसीलिए हिंदुत्व एजंडे के संघियों से भी बड़े झंडेवरदार शिवसेना के सारे अंग प्रत्यंग नोटबंदी के खिलाफ चीख पुकार मचाने लगे हैं।

इस राजनीतिक गोलबंदी से बदलेगा कुछ भी नही।

आधार परियोजना से लेकर तमाम आर्थिक सुधारों के नरमेधी अश्वमेधी अभियान के रंगबिरंगे सिपाहसालार एकजुट होकर आगामी चुनाव में सत्ता पर काबिज होने की जुगत लगा रहे हैं और यूपी पंजाब के चुनाव के बाद पता भी चल जायेगा कि इसका नतीजा क्याहोने वाला है।

1991 के बाद से लगातार हो रहे सत्ता परिवर्तन से लगातार आम जनता के सफाया का कार्यक्रम जारी है जो हर सत्ता बदल के बाद तेज से तेज होता जा रहा है,जो हिंदुत्व का विशुध पतंजलि ग्लोबल एजंडा है।

मुक्तबाजार के पहरुओं से जनांदोलन की उम्मीद लगाना बेवकूफी के अलावा कुछ नहीं है।ये तमाम लोग समता और न्याय के किलाफ रंगभेदी वर्ण वर्चस्व और अस्मिता गृहयुद्ध के महारथी हैं।

जनविद्रोह जो आजादी तक लगातार जारी रहा है,उसका सिलसिला भारत विभाजन के बाद थम गया है।

जमींदारियों और रियासतों के वारिशान ने सत्ता में साझेदारी के तहत देश के तमाम संसाधनों पर कब्जा कर लिया है और मिलजुलकर वे देश बेच रहे हैं।

हिस्सेदारी की लड़ाई बाकी है।

सलवा जुड़ुम के खिलाफ कोई नहीं बोल रहा है।फर्जी मुठभेडों के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठा रहा है।

सैन्य दमन के पक्ष में हैं सारे के सारे और रंगभेदी युद्धोन्माद इन सभी का राष्ट्रवाद है क्योंकि वे अइपनी जमींदारी और रियासत बचाने में लगे हैं।

देश की राजनीति आम जनता के लिए ब्लैकहोल है।

यह सुरसामुखी राजनीति सबकुछ हजम कर जाने वाली है।

मारे जायेंगें देश के आम नागरिक क्योंकि तमाम रंगबिरंगे अरबपति राजनेता मुक्तबाजार के कारिंदे हैं और उन्हें इस देश की जनता से कोई मुहब्बत नहीं है।

इसी बीच टाटा ग्रुप के कार्यकारी चेयरमैन रतन टाटा ने नोटबंदी पर ट्वीट किया है। उन्होंने कहा है कि नोटबंदी के कारण जनता को काफी दिक्कत हो रही है। खासकर इलाज कराने में ज्यादा परेशानी हो रही है। कैश की कमी के कारण गरीबों को रोजमर्रा की चीजें नहीं मिल रही हैं। सरकार अपनी तरफ से नए नोट मुहैया कराने की पूरी कोशिश कर रही है लेकिन अभी वैसी राहत की जरूरत है जैसी राष्ट्रीय आपदा के समय होती है।

सीएनबीसी-आवाज़ को सूत्रों से मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक सरकार कालेधन वालों को 2 विकल्प दे सकती है। बताया जा रहा है कि पहले विकल्प के तौर पर 60 फीसदी टैक्स और पेनाल्टी जमाकर चिंतामुक्त हो सकते हैं। वहीं दूसरे विकल्प के तौर पर 50 फीसदी टैक्स के साथ 4 साल के लॉक-इन पीरियड के जरिए राहत मिल सकती है।

सूत्रों का कहना है कि सरकार ने अघोषित आय पर 2 नए विकल्पों के प्रस्तावों को मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेज दिया है। इन विकल्पों में गोल्ड होल्डिंग सीमा तय करने की योजना नहीं है। लेकिन, बैंक में अघोषित आय जमा करने पर 50 फीसदी टैक्स और 4 साल का लॉक-इन पीरियड लागू हो सकता है। साथ ही बैंक में अघोषित आय जमा करने पर 60 फीसदी टैक्स और पेनाल्टी लागू हो सकता है।

इस बीच नोटबंदी का आज 17वां दिन है। विपक्षी दल चाहते हैं कि सरकार इस फैसले को वापिस ले जबकि पीएम नरेंद्र मोदी का कहना है कि जनता उनके साथ है इसलिए वे अपना फैसला वापिस नहीं लेंगे। वहीं लोकसभा और राज्यसभा में आज भी जोरदार हंगामा हुआ। राज्यसभा में विपक्षी सदस्यों ने पीएम को बुलाने की मांग के साथ फिर हंगामा किया। विपक्षी दलों ने पीएम से अपने बयान पर माफी मांगने की मांग की जिसमें पीएम ने कहा था कि विपक्ष को हमारी तैयारियों से दिक्कत नहीं हैं बल्कि नोटबंदी के ऐलान ने उन्हें तैयारी करने का मौका नहीं दिया इसलिए वो भड़के हैं।

नोटबंदी के मुद्दे पर शुक्रवार सुबह विपक्ष ने आते ही राज्य सभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हमला बोला। विपक्ष ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि नोटबंदी के मुद्दे पर पीएम मोदी सड़कों पर खूब बोलते है लेकिन संसद में उसी बात को बोलने में क्यों डर रहे हैं। बता दें इससे पहले विपक्ष की मांग पर प्रधानमंत्री गुरुवार को राज्यसभा में बहस के दौरान मौजूद रहे लेकिन वे इस मुद्दे पर एक शब्द भीनहीं बोले। विपक्ष नोटबंदी के मुद्दे पर संसद में बहस के दौरान प्रधानमंत्री की लगातार मौजूदगी की मांग कर रहा है। आज भी इस मुद्दे को लेकर राज्यसभा में विपक्ष हंगामा किया।

आजतक के मुताबिक नोटबंदी को लेकर संसद में हंगामा जारी है. शुक्रवार सुबह 11 बजे से लोकसभा-राज्यसभा की कार्यवाही शुरू हुई. राज्यसभा में विपक्षी सदस्यों ने पीएम को बुलाने की मांग के साथ फिर हंगामा किया, जिसके बाद सदन को 2.30 बजे तक स्थगित कर दिया गया. वहीं हंगामे के चलते लोकसभा को 28 नवंबर तक स्थगित कर दिया गया है. इस बीच कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि मोदी जी पहले हंस रहे थे, फिर रोने लगे.

जनसत्ता में हमारे पूर्व संपादक ओम थानवी के मुताबिक मोदी और उनके भक्त आपस में नोटबंदी "सर्वे" की बधाई बाँट रहे हैं, हक़ीक़त यह है कि लोग त्राहिमाम-त्राहिमाम कर उठे हैं। यह होना ही था। रिज़र्व बैंक की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक़ देश में 16.4 लाख करोड़ के नोट चलन में हैं। इनमें 38.6 प्रतिशत 1000 के नोट हैं, 47.8 प्रतिशत 500 के। अर्थात् देश की 86 प्रतिशत से ज़्यादा की मुद्रा को बग़ैर बदलवाए उसका 'धारक' इस्तेमाल नहीं कर सकता।

इसे किसी ने बेहतर उपमा यों दी है - आप अगर किसी के शरीर से 86 प्रतिशत ख़ून निकाल दें, तो उसका Multiple Organ Failure होना लाज़िमी है।

पर इस बात को देश के स्वनामधन्य "सर्जन" को कौन समझाए? उनके इर्द-गिर्द चापलूसों की भीड़ है, जैसे इंदिरा गांधी के गिर्द हुआ करती थी। ख़ासकर इमरजेंसी के "अनुशासन पर्व" के बाद।

राजनीति और राजनेताओं की साख के मद्देनजर ही हमारे गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी ने लिखा हैः

जस अम्बानी तस पेटीएम.

भाई पलाश! अभी गहराई से देखते रहो. राजनीतिक दलों की हाय तोबा तो अपने कालाधन पर खतरे के कारण है. कम से कम नोट्बन्दी के इस दर्द के सहते हुए भी आम जन के चेहरे पर उम्मीदों की लाली देख रहा हूँ क्या साम्यवाद या समाजवाद के झंडा बरदारों ने आम जनता में भीतर ही भीतर में पनप रहे इस आक्रोश को वाणी व देने ाका प्रयास किया.. हिन्दूवाद का घोर विरोधी होते हुए भी मैं अभी इस मामले में मोदी के साथ हूँ. 'अभी" शब्द पर भी ध्यान दें

रौतेला जी! जुगाड़ और कथनी और करनी में अन्तर ही भारतीय संस्कृति की आत्मा है. यही उपनिषदों के तवत्तिष्ठति दशांगुलम का सार है.( वह उससे ( हर विधान से) दस अंगुल आगे है) मौका लगने पर हम भी कहाँ पीछे रहने वाले हैं. जनधन खातों में इक्कीस हजार करोड़ की माया आ गयी है. महाभारत है मित्र! जो जुए में पत्नी को भी दाँव पर लगा दे वह धर्मराज, जिसके लिए लक्ष्य प्राप्ति के लिए नीति और अनीति में कोई फर्क ही न हो केवल गीता का उपदेश दे. जो ्नियम से चलने का प्रयास कर उस राम को १२ कलाओं का अवतार माना जाय और जो आज के अर्थों में चालू हो ( कृष्ण)वह १६ कलाओं का अवतार. सब लीला है.

ललित सती ने अपने फऱेसबुकवाल पर खूब लिखा हैः

- बाकी पार्टियों ने 2014 में काले धन से चुनाव लड़ा, हमने 10 हजार करोड़ रुपया अनुलोम-विलोम करके उत्पन्न कर लिया, बस उत्ते से पैसे से काम चला लिया। एक कानी कौड़ी ब्लैक मनी नहीं हमारे पास

- कैसे-कैसे भ्रष्टाचारी, दुराचारी, देशद्रोही दूसरी पार्टियों में भरे पड़े हैं। हमारे यहाँ एक नहीं। हमारे यहाँ जो आता है हम उसके कान में एक मंत्र फूँक देते हैं, वह तत्काल प्रभाव से सदाचारी, पक्का राष्ट्रभक्त हो जाता है

- स्कैम, घोटाला जैसा कोई शब्द हमारी डिक्शनरी में कहीं नहीं है। हमने उन्हें अपनी भाषा से बहिष्कृत कर दिया। भ्रष्टाचार शब्द ही नहीं रहेगा तो भ्रष्टाचार का वजूद कैसा। हम यज्ञ और उत्सव की परंपरा वाले हैं। व्यापमं यज्ञ, विमुद्रीकरण उत्सव आदि

- कांग्रेस ने कैसी देश विरोधी नीतियाँ लागू कर रखी थीं, देशी-विदेशी लुटेरों की मौज आई हुई थी। हमने सारी नीतियों को शंख फूँककर अपना बना लिया, वे अब राष्ट्रवादी हो गईं। अवतार के तेजोमयी प्रकाश में लुटेरों का हृदयपरिवर्तन हो गया, वे अब देशसेवक हो गए। बला के जादूगर हैं हम

.... और भी बहुत बहुत कुछ हैं हम। बताएँगे नहीं। हमारा मातृसंगठन भी बहुत कुछ नहीं बताता है। उसने आज तक नहीं बताया कि आजादी की लड़ाई में कहाँ थे हम। हालाँकि अब समय आ गया है अपने इतिहासकारों से लिखवाएँगे कि कहाँ थे हम। नये सत्य गढ़ने के पारंगत जो हैं हम।

'नोटबंदी क़ानूनन चलाई जा रही व्यवस्थित लूट'

साभार बीबीसी हिंदी

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में नोटबंदी को क़ानूनन चलाई जा रही व्यवस्थित लूट की संज्ञा दी है.

संसद में कई दिनों तक नोटबंदी के मामले में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच हुई हंगामें के बाद राजयसभा में नोटबंदी पर बहस शुरू हुई है.

मनमोहन सिंह ने अपने भाषण में ये 6 अहम बातें कहीं-

1. मैं नोटों को रद्द किए जाने के उद्देश्यों से असहमत नहीं हूं, लेकिन इसे ठीक तरीके से लागू नहीं किया गया.

2. पीएम बताएं ऐसा कौन सा देश है जहाँ लोग बैंक में पैसा जमा करा सकते हैं लेकिन अपना पैसा निकाल नहीं सकते हैं.

3. लॉन्ग रन या लंबे समय में असर की बात हो तो उस अर्थशास्त्री की बात याद करें - दीर्घकाल में तो हम सब मर चुके होंगे.

4. असर क्या होगा मुझे नहीं पता. इससे लोगों का बैंकों में विश्वास ख़त्म होगा. जीडीपी में 2 पर्सेंट की गिरावट आ सकती है.

5. इससे छोटे उद्योगों और कृषि को भारी नुकसान का सामना करना पड़ेगा.

6. बैंक हर दिन नियम बदल रहे हैं जिससे लगता है कि पीएमओ और रिज़र्व बैंक ठीक से काम नहीं कर रहे हैं.

मनमोहन सिंह के बाद राज्यसभा में बोलते हुए समाजवादी पार्टी सांसद नरेश अग्रवाल ने कहा कि प्रधानमंत्री, अहंकार हमेशा अंधकार की ओर ले जाता है. उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया था तो उन्हें भी लगता था जनता इस फ़ैसले से खुश है लेकिन चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था. अग्रवाल ने कहा कि पीएम मोदी को भी ऐसा ही लगता है कि लोग खुश हैं पर आनेवाले चुनाव में उन्हें पता चल जाएगा.

बहुजन समाजवादी पार्टी चीफ़ मायावती ने भी कहा कि उनकी पार्टी नोटों को रद्द करने के ख़िलाफ़ नहीं है लेकिन इसे लागू करने का तरीका सही नहीं है. उन्होंने कहा कि लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. मायावती ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया कि वह सदन में मौजूद रहें.


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