BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Thursday, June 9, 2016

उदलपुरा ( भीलवाड़ा ) जहाँ पशुओं के लिये पानी है पर दलितों के लिये नहीं ! - भंवर मेघवंशी


ग्राउंड दलित रिपोर्ट -8

उदलपुरा ( भीलवाड़ा )

जहाँ पशुओं के लिये पानी है पर दलितों के लिये नहीं !

- भंवर मेघवंशी 
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बाबा साहब अम्बेडकर ने बरषों पहले अगस्त 1926 में पानी पर दलितों के अधिकार के लिए महाड के चवदार तालाब पर सत्याग्रह किया था .इसके बाद जब देश आजाद हुआ तो संविधान ने सार्वजनिक स्थानों से छुआछूत और भेदभाव को कानूनन ख़त्म कर दिया .बाद में अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण कानून ने दलितों के जल पर अधिकार को बाधित करने को अपराध घोषित कर दिया .देश में सत्ताएं बदल गई ,मगर मानसिकता नहीं बदली .भारत को विश्व आर्थिक शक्ति बनाने के दावे करने वालों और तरक्की के मापदंड सकल घरेलु उत्पाद को लेकर लगातार ढोल पीटने वालों से अगर कहा जाये कि आज भी भारत में लाखों गांवों में दलितों को सार्वजनिक पेयजल स्त्रोतों से पानी लेने का अधिकार नहीं है तो वे इस बात की यह कह कर खिल्ली उड़ायेंगे कि ये सब पुरानी बातें हो चुकी है .आज के दौर में यह सब नहीं होता है .
आजकल अक्सर ऐसा भी सुनने को मिलता है कि अब जातिगत छुआछूत बीते ज़माने की बात हो गई है ,अब भेदभाव जैसी बातें सिर्फ जातिवादी लोग करते है .जिन्हें दलितों के मसीहा बनने की इच्छा होती है ,वे ही लोग समाज को बांटने के लिए ऐसी विघटनकारी बातें उछालते रहते है ,जिनके कोई सर पैर नहीं होते है ,क्योंकि अब भेदभाव जैसी कोई बात नहीं बची है .
जिन्हें जाति के आधार पर हो रहे भेदभाव को अपने क्रूर और नग्न स्वरुप में देखना हो ,उन्हें राजस्थान के भीलवाड़ा जिले की आसीन्द पंचायत समिति की गांगलास पंचायत के उदलपुरा गाँव का दौरा करना चाहिये .छुआछूत की जमीनी हकीकत से रूबरू होने के लिए यह एकदम उपयुक्त गाँव है .इस गाँव में तक़रीबन 145 परिवार निवास करते है ,जिनमें 55 परिवार दलित समुदाय के है और शेष 90 परिवार अन्य पिछड़े वर्ग की कुमावत ,गुर्जर ,गाडरी तथा वैष्णव जाति के परिवार है .सर्वाधिक 80 परिवार कुमावत समाज के है .ब्राह्मण ,बनिया और राजपूत जिन्हें हम पानी पी पी कर रात दिन मनुवाद के लिये कौसते रहते है ,उनका एक भी परिवार यहाँ निवास नहीं करता है .पूरा गाँव ही दलितों और पिछड़ों का है .85 फीसदी बहुजनों और मूलनिवासियों की एकता की बात करने वालों को भी इस गाँव का दौरा करना चाहिये . दलित और पिछड़ों की एकता का राग अलापने वालों को भी जरुर उदलपुरा एक बार आना ही चाहिये ताकि वे जान सके कि आज तथाकथित पिछड़े ही दलितों पर अत्याचार ,भेदभाव और छुआछूत करने में सर्वाधिक आगे है .वर्णव्यस्था के शूद्र आज के नव सामंत ,नव ब्राह्मण और नए धन पिशाच बन गए है .वे हिंदुत्व प्रणीत ब्राह्मणवाद के शव को सिर पर लादे हुए घूम रहे है और श्रेष्ठता की ग्रंथि से ग्रसित हो चुके है .
मैं यह बात अपने अनुभवों के साथ पूरे दावे के साथ कह सकता हूँ कि देश भर में दलित समुदाय इन कथित पिछड़ों के अत्याचारों से त्रस्त है और वे इनसे मुक्ति चाह रहे है ,इसलिये उन्हें बहुजन और मूलनिवासी की अवधारणा अब अप्रासंगिक लगने लगी है और जगह जगह पर अब दलित कथित अगड़ों के साथ जाता हुआ दिखाई पड़ रहा है .
खैर ,उदलपुरा के पिछड़े वर्ग के लोग यहाँ के दलितों को सार्वजनिक सरकारी नल से पानी नहीं भरने देते है ,पिछले एक वर्ष से दलित महिलाएं पेयजल के गंभीर संकट से जूझ रही है ,उन्हें डेढ़ किलोमीटर दूर से पानी लाने को मजबूर किया जा रहा है .गाँव में पीने के पानी की अलग अलग व्यवस्था है ,पिछड़े शूद्र अपने आप को ऊँचा समझते है और वे अपने मोहल्ले में स्थित नल पर दलितों को फटकने भी नहीं देते है .गाँव की दलित महिलाएं बताती है कि जब वे पानी लेने कुमावतों के मोहल्ले में जाती है तो उन्हें भद्दी भद्दी जातिगत गालियाँ दे कर अपमानित किया जाता है और उनके मटके फोड़ने की कोशिस की जाती है .बार बार के अपमान और धमकियों के चलते उदलपुरा की दलित औरतें अब पानी के लिए सरकारी नल पर नहीं जाती बल्कि इधर उधर भटकती रहती है .दलितों के पेयजल की समस्या के समाधान को लेकर वहां की सरकारी एजेंसियां बिलकुल भी संवेदनशील नहीं है .तीन साल पहले विधायक निधि से दलित बस्ती में एक पानी की टंकी स्वीकृत हुई थी ,जो सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ कर जस की तस ताबूत बने खड़ी है ,उसका काम पूरा भी नहीं हुआ कि फंड खत्म हो गया .उदलपुरा के जानवरों एक ही प्याऊ से पानी पी लेते है ,ग्राम पंचायत भी पशुओं की इस प्याऊ में टेंकर से पानी डलवाती है .उसे दलितों से ज्यादा पशुओं की चिंता अधिक है . 
भेदभाव का यह सिलसिला यहीं खत्म नहीं होता बल्कि महात्मा गाँधी नरेगा में भी यह बदस्तूर जारी है .अव्वल तो दलितों को नरेगा में काम ही नहीं दिया जाता है .आज भी 15 से अधिक दलित परिवार रोजगार गारंटी में काम के इच्छुक है ,मगर उन्हें बार बार मांगने पर भी काम नहीं दिया जा रहा है ,जिन छह परिवारों को महिलाएं काम पर नियोजित की गई है ,उनके साथ कार्यस्थल पर भयंकर छुआछूत किया जाता है .नरेगा श्रमिक पारसी बलाई का कहना है कि हमसे पूरा काम लिया जाता है जबकि दुसरे समुदाय की औरतें बैठी रहती है ,इसके बदले में काम जे सी बी मशीन से करवाया जाता है ,जिसका पैसा श्रमिकों से वसूला जाता है .इन दलित महिलाओं का आरोप है कि उनसे हर माह 100 रुपये वसूला जाता है जबकि वे हर दिन अपना काम पूरा करती है .नरेगा का काम में मशीनों का इस्तेमाल कानूनन अवैध है ,लेकिन यहाँ पर मेट शम्भू लाल कुमावत की ओर से यह काम बेख़ौफ़ किया जा रहा है और इसके बदले में चौथ वसूली की जा रही है .
नरेगा में पानी पिलाने के काम में यहाँ पर सिर्फ पिछड़े वर्ग की महिलाओं को ही रखा जाता है .दलित स्त्रियों को पानी के काम पर रखने पर अघोषित प्रतिबन्ध लगा हुआ है ,उदलपुरा में भी ऐसा ही है ,यहाँ पर कुमावत या गुर्जर समुदाय को ही पानी के काम पर रखा जाता है ,नतीजतन दलित नरेगा श्रमिकों को पानी नहीं पिलाया जाता है ,उदलपुरा की छह दलित महिला नरेगा श्रमिक अपने साथ घर से पानी की बोतलें ले कर जाती है .अगर दिन में उनकी बोतलों में से पानी ख़त्म हो जाता है तो उन्हें ऊपर से दूर से पानी डाला जाता है ,साथ ही जातिगत उलाहने दिए जाते है कि इनकी वजह से उनका पानी अशुद्ध हो गया है ,इस तरह दिन में कईं बार अपमानित होते हुए यहाँ की दलित महिलाएं नरेगा पर काम करती है ,जहाँ पर उनका मेजरमेंट कम लिखा जाता है ताकि पूरी मजदूरी भी नहीं मिल सके .
उदलपुरा के दलितों के साथ अन्याय की दास्तान यहीं खत्म नहीं होती ,बरसात के दिनों में पूरे गाँव का पानी बहकर दलित बस्ती की तरफ आता है ,जिस नाले से पानी निकलता था ,उसे भी इस साल बंद कर दिया गया ,इसके चलते यह सम्भावना बन गई है कि जिन दलितों के कच्चे मकान है ,वे इस बार की बारिश में ढह जायेंगे .शेष दलितों को कीचड में रहने को मजबूर होना पड़ेगा .
गाँव के गैरदलितों के मोहल्ले में सरकारी सी सी रोड बना हुआ है ,जबकि दलितों को इससे जानबूझ कर वंचित किया गया है ,आज अगर देखा जाये तो यह साफ दिखाई पड़ता है कि उदलपुरा के दलित समुदाय को रोड ,पानी जैसी सुविधाओं से योजनाबद्द तरीके से वंचित किया जा रहा है ,यहाँ के दलितों ने इस अन्याय के खिलाफ कई बार कईं स्तर पर आवाज भी उठाई मगर कहीं भी कोई सुनवाई नहीं हुई ,इस बार यहाँ की दलित महिलाओं ने मोर्चा संभाला है ,आज ही दलित बस्ती की सार्वजनिक सराय में यहाँ की महिलाएं अपने पुरुषों के बराबर बैठी और उन्होंने मामले को उच्च स्तर पर ले जाने की योजना को अंतिम रूप दिया है ,कल वे जिला कलक्टर से मिलकर अपनी समस्याएं रखेगी ,उन्होंने अब एक भी और दिन अन्याय को सहने से इंकार किया है और छुआछूत ,भेदभाव और अन्याय ,अत्याचार के खात्में तक संघर्ष करने का मन बनाया है .
- भंवर मेघवंशी 
( लेखक 'ग्राउंड दलित रिपोर्ट' के सम्पादक है )


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