BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Monday, March 9, 2015

महाबलि क्षत्रपों की मूषकदशा निरंकुश सत्ता की चाबी बहुसंख्य बहुजनों को अस्मिताओं से रिहा करके वर्गीय ध्रूवीकरण के रास्ते पर लाये बिना मुक्तिमार्ग लेकिन खुलेगा नहीं। पलाश विश्वास

महाबलि क्षत्रपों की मूषकदशा निरंकुश सत्ता की चाबी

बहुसंख्य बहुजनों को अस्मिताओं से रिहा करके वर्गीय ध्रूवीकरण के रास्ते पर लाये बिना मुक्तिमार्ग लेकिन खुलेगा नहीं।



पलाश विश्वास

कोलकाता में राजनीतिक हालात की तरह मौसम भी डांवाडोल है।सर्दी गर्मी से सेहत ढीली चल रही है महीनेभर से और अजीबोगरीब सुस्ती है।नींद खुल ही नहीं रही है।खांसी से महीनेभर से परेशान हूं तो पेट भी कराब चल रहा है।अब हालात से ज्यादा अपनी सेहत बनाये रखकर सक्रिय रहने की चुनौती है। फिलहाल लंबे समय तक लगातार पीसी के साथ बैछ नहीं पा रहा हूं।


हम पहले से लिख रहे थे कि कश्मीर घाटी के जनादेश को रौंदकर संघपरिवार की कश्मीर की सत्ता दखल करने की बेताबी देश के लिए बेहद खतरनाक है।


सरकार बनते न बनते मुफ्ती की सरकार में भाजपा की हालत अब्दुल्ला दीवाना है।


संघ परिवार के पुराने स्टैंड के विपरीत जिस कामन मिनिमम प्रोग्राम के तहत पीडीपी भाजपा की सरकार बनी,उसकी धज्जियां उड़ गयी है।


हिंदुत्व के सिपाहसालार प्रवीण तोगाड़िया पूढ रहे हैं कि क्या मुफ्ती अगला चुनाव पाकिस्तान से लड़ेंगे तो जोगेंदर सिंह ने आर्गेनाइजर में लिखा कि मुफ्ती से पूछो की क्या वह भारतीय है।


जिसके भारतीय होने में संघ परिवार को शक है,उसके साथ संघ परिवार की सत्ता में भागेदारी के जैसे गुल खिलने चाहिए,खिलेंगे।


गौरतलब है कि हिंदुत्व के एजंडा से मुफ्ती को कुछ लेना देना नहीं है और न ही बाकी देश में उनको राजनीति करनी है।न मुफ्ती कश्मीर घाटी की अनदेखी करके जम्मू से राजकाज चला सकते हैं।


राजनीतिक तौर पर मुफ्ती का फौरी एजंडा भाजपा के साथ सरकार बनाने की वजह से घाटी में जो जनाक्रोश है और जो साख उनकी गिरी है,उससे निपटना है।


मुख्यमंत्री मुफ्ती हैं और उन्हें मुख्यमंत्री भाजपा ने ही बनवाया है।


वैसे भी संघीय ढांचे में राज्य के मुक्यमंत्री को हर नीतिगत फैसले के लिए केंद्र की इजाजत लेनी हो ,ऐसा जरुरी नहीं है।


ऐसे में संसद में प्रधानमंत्री की सफाई कि मुफ्ती जो भी फैसले कर रहे हैं,उस बारे में उन्होंने केद्र को बताया नहीं है,अपने आप में असंवैधानिक बयान है और राज्य सरकार के अधिकारक्षेत्र का अतिक्रमण है।


मुफ्ती के फैसले से भाजपा का कुछ लेना देना नहीं है,यह भी सरासर गलतबयानी है।


अगर मुफ्ती के कामकाज से संघपरिवार को इतना ही ऐतराज है तो भाजपा को चाहिए कि तुरंत उस सरकार से अलग हो जाये। लेकिन भाजपा ऐसा करने नहीं जा रही है।


कश्मीर घाटी का धर्मांतरण हो नहीं सकता है और न शत प्रतिशत हिंदुत्व का एजंडा घाटी में लागू हो सकता है।संघ परिवार को इसका अहसास है।


दरअसल वह जम्मू में अपना राजकाज चलाने के लिए सरकार में है लेकिन सरकार के फैसलों की जिम्मेदारी भी लेना नहीं चाहता वह,जो संघ परिवार के हिंदुत्व के एजंडा के खिलाफ है।


इस पाखंड को समझने की जरुरत है।


भारत का संघीय ढांचा संवैधानिक परिकल्पना है लेकिन वह वास्तव में कहीं नहींं है।


केंद्र की सत्ता से नाभि नाल के संबंध के बिना राज्यसरकार के लिए न विकास का कोई काम करना संभव है और न राजकाज चलाने की कोई हालत है।


ताजा उदाहरण बंगाल की अग्निकन्या की मूषकदशा है।जिस मोदी को कमर में रस्सी डालकर जेल भेजने की घोषणाएं कर रही थी दीदी,भाजपी की जिस केंद्र सरकार को वे दंगाई सरकार कह रही थीं,जिस मोदी के खिलाफ लगातार वे आग उगल रही थीं,आज उन्हींं मोदी से राज्य सरकार के कर्ज का बोझ घटाने के लिए गिड़गिड़ाना पड़ा दीदी को।जिसपर मोदी ने सिरे से पल्ला झाड़ लिया।


अब दीदी दुर्गति समझ लीजिये।


इस पर तुर्रा यह कि संघपरिवार की रणनीति तृणमूल कांग्रेस को दोफाड़ करके बंगाल फतह करने की है और मुकुल राय की सीबीआई रिहाई के बावजूद दीदी पर सीबीआई का कसता शिकंजा उसके खेल को बेनकाब कर रहा है।


दीदी जिस वक्त मोदी से मुलाकात कर रही थीं,उसी वक्त तृणमूल पार्टी मुख्यालय को सीबीआी का नोटिस जारी हुआ है पार्टी के आय व्य का ब्यौरा दाखिल करने का।जाहिर है कि दीदी की घेराबंदी की रणनीति में कोई ढील नहीं है।


कमोबेश यह मूषक दशा महाबलि क्षत्रपों की सामूहिक व्याधि है।इस व्याधि से कोई क्षत्रप मुक्त है तो उनका नाम बताइये।


महाबलि क्षत्रपों की यह मूषक दशा ही केंद्र की निरंकुश सत्ता की चाबी है।


इसीलिए बहुमत हो या न हो,केंद्रीय एजंसियों के जरिये क्षत्रपों की घेराबंदी और केंद्रीय मदद के बहाने जनविरोधी नीतियों को अमली जामा पहनाने में अब तक किसी केंद्र सरकार को किसी मुश्किलात का समना नहीं करना पड़ा है।


इसीलिए यह निरंकुश संसदीय सहमति है।

इसीलिए अध्यादेशों के कानून में तब्दील होने के रास्ते में दरअसल कोई अवरोध नहीं है।


विडंबना यह है कि ये तमाम क्षत्रप रंग बिरंगी अस्मिताओं के महानायक महानायिकाएं हैं और इन्हीं अस्मिताओं के जाति धर्म ध्रूवीकरण की राजनीति भारतीय राजनीति है।


वर्गीय ध्रूवीकरण जिनकी विचारधारा है,वे भी अस्मिता की राजनीति करने से चूक नहीं रहे हैं।विचारधारा तक ही सीमाबद्ध है वर्गीयध्रूवीकरण और राज्यतंत्र में बदलाव का एजंडा।


अब इसे और साफ तौर पर समझने के लिए देश की जनसंख्या के बूगोल को समझना जरुरी है।इस देश की पचासी फीसद जनसंख्या किसी न किसी रुप में कृषि समुदाओं से जुड़ी हैं,जो जाति,धर्म, भाषा, नस्ल,क्षेत्र के बहाने हजारों टुकड़ों में बंटी है।


क्षेत्रीय महाबलियों की उत्थान के पीछे यह आत्मघाती बंटवारा है जो भारतीय जनता के वर्गीय ध्रूवीकरण के आधार पर राष्ट्रीय स्तर पर गोलबंद होने के रास्ते में सबसे बड़ा अवरोध है।


क्षत्रपों की अस्मिता राजनीति चूंकि केंद्र की निरंकुश सत्ता की चाबी है और इसके साथ ही वह हिंदू साम्राज्यवाद के अश्वेमेधी दिग्विजयी अभियान का ईंधन है तो मुक्त बाजार और अबाध पूंजी प्रवाह, एफडीआई राज, पीपीपी माडल, संपूर्ण निजीकरण और निरंतर बेदखली अभियान,कालाधन वर्चस्व इत्यादि के लिए मददगार सबले बड़ा कारक है,तो क्षत्रपों को नाथने की राजनीति ही केंद्रीय सत्ता की राजनीति है।


अब इसे और कायदे से समझने के लिए तेलंगाना,तेभागा,भूमि सुधार,खाद्य आंदोलन, किसान मजदूर और छात्र आंदोलन की नींव पर तामीर भारतीय वाम के चरित्र में हुए कायाकल्प पर गौर करना जरुरी है।


खास तौर पर बंगाल में कामरेड ज्योति बसु ने कभी कुलीन तबकों की परवाह नहीं की और न उनने बाकी बंगाल हारकर सिर्फ कोलकाता जीतने की कोशिश की। कामरेड ज्योतिबसु का राजकाज जनपद केंद्रित विकेन्दरीकरण का राजकाज रहा है जहां कृषि उनकी प्राथमिकता रही है।


ज्योति बसु के मुख्यमंत्री पद से हटते ही कृषि को हाशिये पर धकेल कर औद्योगीकरण और पूंजी के पीछे भागने लगे कामरेड।


उनकी प्राथमिकता भूमि सुधार की खत्म हो गयी और जमीन अधिग्रहण उनका जनांदोलन हो गया, जिसकी परिणति सिंगुर और नंदीगारम जेसी त्रासदियां है।



अचानक सर्वहारा की पार्टी भद्रलोक पार्टी में बदल गयी औरमहानगर कोलकाता उनकी राजनीति की प्राथमिकता बन गयी।


नतीजा सामने है।

बंगाल ही नहीं,बाकी देश में वाम हाशिये पर है।

इसके अलावा बंगाल में 34 साल के राजकाज के माध्यम में संसदीय राजनीति में बने रहने के लिए जहां वामपंथ ने बांग्ला और मलयालम राष्ट्रवाद का बेरहमी से इस्तेमाल करते हुए पोलित ब्यूरो और केंद्रीय समिति में बाकी भारत का प्रतिनिधित्व को खत्म करके वामपंथ को केरल ,बंगाल और त्रिपुरा में सीमाबद्ध करके आंध्र,यूपी,बिहार, पंजाब,महाराष्ट्र,राजस्थान,तमिलनाडु और कश्मीर जैसे राज्यों के मजबूत वाम किलों को जाति अस्मिताओं को हस्तातंरित कर दिया वहां के क्षत्रपों से और उनकी अस्मिता से गठबंधन करके राष्ट्रीय राजनीति में वर्गीय ध्रूवीकरण का रास्ता छोड़कर चुनावी समीकरण साधने के नजरिये से अपनी प्रासंगिकता बनाये रखने के लिए,जिसतर केंद्र की रंग बिरंगी सरकारों की जनविरोधी सरकारों के साथ अलग अलग बहाने और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर तालमेल बनाये रखकर जनांदोलन की विरासत को तिलांजलि दे दी और खास तौर पर नवउदारवादी आर्थिक सुधारों और मुक्तबाजीरी अर्थ व्यवस्था के आगे बेशर्म आत्मसमर्पण कर दिया,उससे भारतीय सर्वहारा वर्ग से सर्वहारा की राजनीति करने वाली पार्टियों का कोई संबंध ही नहीं रहा है।


दूसरी तरफ,अनुसूचितों के सारे राम हनुमान हो गये और इसका नतीजा हयह हुआ कि संग परिवार की सरकार के ताजा बजट में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के हिस्से में बेरहम कटौती हो गयी। राम से हनुमान बवने किसी बजरंगी अनुसूचित नेता के विरोध करने का सवाल नहीं उठता लेकिन अंबेडकरी राजनीति के झंडेवरदार भी इस मामले में खामोश हैं।जो समाजिक योजनाएं बंद कर दी गयी,उससे नुकसान बहुजनों का ही है।जो मुक्तबाजीरी वधस्थल है ,वहां वध्य तो बहुजन ही हैं।जो बेदखली अभियान है,जनपदों का सफाया है,कृषि समुदायों का सफाया है,संपूर्ण निजीकरण ,निरंकुश पूंजी प्रवाह,प्रोमोटर बिल्डर माफिया राज है और घोड़ों और सांढ़ों का जो जश्न है,उसके शिकार भी होगें बहुजन ही।बहुजनों को लिकिन इसका तनिको अहसास नहीं है और न कोई जनमोर्चा बहुजनों को कहीं संबोदित कर रहा है।


जयभीम,जयमूलनिवासी और नमो बुद्धाय कहते अघाती नहीं जो बहुसंख्य बहुजन जनता,जो बात बात पर अपनी दुर्गति के लिए ब्राह्मणवाद मनुस्मृति को जिम्मेदार बताती है,उन्हें इसका अहसास ही नहीं है कि सवर्ण समाज फिरभी एकजुट है लेकिन उनके बहुजन समाज केहजार लाख टुकड़े हैं।


जिस जाति को अपनी गुलामी की जिम्मेदार मानता है बहुजन,उस जाति को दिलो दिमाग और वजूद का हिस्सी बनाकर जीने को अभ्यस्त वह बाबासाहेब को ईश्वर तो बनाये हुए है लेकिन बाबासाहेब के जाति उन्मूलन का एजंडा वह छोड़ना नहीं चाहता।किसी भी कीमत पर नहीं।


अंबेडकरी क्षत्रप भी बहुजन समाज के हजार लाख अलग अलग टुकड़े सत्ता के मुक्तबाजार में बेचकर गुजारा कर रहे हैं।


अंबेडकरी जनता को इसका अहसास है ही नहीं कि आरक्षण के संवैधानिक प्रावधान अब सिर्फ राजनीति संरक्षम में सीमाबद्ध हैं और इस राजनीतिक संरक्षण के जरिये संसद,विधानसभा और सरकारों में शामिल सारे के सारे बहुजन चेहरे मिलियनल बिलियनर सत्ता वर्ग में शामिल है और बहुजन के बजाये चरित्र से नवब्राह्मण हैं।


विनवेश,संपूर्ण निजीकरण के आलम में,मुक्तबाजार में नौकरी और आजीविका के क्षेत्र में आरक्षण से न आजीविका मिल सकती है और न नौकरी।


स्थाई नियुक्तियां बंद है।बाबासाहेब के बनाये श्रम कानून  खत्म हैं।ठेके की मुक्तबाजारी नियुक्तियों और अंबेडकरी संविधान की बले देते हुए रोज बदलते कायदे कानून से अनुसूचितों के सारे संवैधानिक रक्षा कवच,पांचवीं और छठीं अनुसूचियों समेत अब सिरे से गैर प्रासंगिक हैं।



इसके बाजवजूद धर्मांतरित बहुजन भी हिंदुत्व के परित्याग के बावजूद जाति की पहचान छोड़ना नहीं चाहता तो इस जाति व्यवस्था की बहाली और मनुस्मृति अनुशासन और निरंकुश हिंदू साम्राज्वाद के लिए सबसे ज्यादा जिमेदार तो बहुजन समाज है।


जनम से ब्राह्मण भी वर्गीय ध्रूवीकरण के तहत ब्राह्मणवाद से जूझ सकता है लेकिन विडंवना यह है कि जाति और अस्मिता को पूंजी बनाये हुए बहुजन समाज वर्गीय ध्रूवीकरण के विरुद्ध होकर न सिर्फ जाति व्यवस्था ,मनुस्मृति शासन और हिंदू साम्राज्यवाद का सबसे बड़ा आधार बना हुआ है बल्कि केसरियाकरण से वह इतना कमल कमल है कि वह हिंदुत्व की इतनी बड़ी बंजरंगी पैदल सेना है कि इस महाभारत में भारतीय जनता के लिए महाविनाश के अलावा कोई दूसरा विकल्प है ही नहीं।


विडंबना है कि हिंदुत्व के तमाम कर्मकांड में बहुजन समाज सबसे आगे हैं।

धर्मोन्माद में बहुजन सबसे आक्रामक हैं।

बजरंगियों की सेना भी दरअसल बहुजनों की सेना है जो बहुजनों के कत्लेआम के लिए बनी है।


अवतारों की शरण में बहुजन समाज,बाबाओं की शरण में बहुजन समाज,तंत्र मंत्र यंत्र से जकड़ा बहुजन समाज, तमाम कांवड़िये बहुजन ,हिंदुत्व के तमाम क्षत्रप,सिपाहसालार और यहां तक कि मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक सारे के सारे कुशी लव बहुजनों के चेहरे हैं।


भारतीय वामपंथ ने इस बहुजन समाज के वर्गीय ध्रूवीकरण के लिए कभी कोई बीड़ा उठाया हो या नहीं,हम ठीक से कह नहीं सकते और न अंबेडकरी दुकानदारों और उनके अंध भक्त जाति में जीने मरने वाले लोग वर्गीय ध्रूवीकरण की दिशा में कभी सोच पायेंगे या नहीं,मौजूदा केसरिया कारपोरेट समय में हमारे पास इसकी कोई स्पष्ट परिकल्पना भी नहीं है।


बहुसंख्य बहुजनों को अस्मिताओं से रिहा करके वर्गीय ध्रूवीकरण के रास्ते पर लाये बिना मुक्तिमार्ग लेकिन खुलेगा नहीं।





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