BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Friday, May 4, 2012

कौन सआदत हसन मंटो...वह मुसलमान, कश्मीरी लडक़ा ?

http://www.janjwar.com/society/1-society/2597-sahadat-hasan-monto-urdu-kahanikar

इन्कलाबी कलमकार मंटो ताउम्र निजाम में नुक्स ढूंढते रहे लेकिन इस अवाम का नुक्स कौन देखे जो उनके नाम तक से वाकिफ नहीं.गुलजार मोहम्मद मंटो की याद में बहुत कुछ करना चाहते हैं लेकिन मंटो के मुसलमान होने के कारण उनका यह ख्वाब पूरा नहीं हो पा रहा है... 

मनीषा भल्ला 

मंटो की जन्मशताब्दी वर्ष पर

उर्दू के बेबाक लेखक सआदत हसन मंटो भारत या पाकिस्तान के नहीं बल्कि दुनिया के अजीम कलमकारों में शुमार हैं. लेकिन हमारे देश में संस्कृति की कदर यह है और सांप्रदायिकता की जड़ें इतनी गहरी हैं कि किसी लेखक को उसके लेखन से नहीं बल्कि उसके हिंदू या मुस्लिम होने से जाना जाता है. मैं जब भी मंटो के गांव जाती हूं मुझे ऐसा ही लगता है.

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बच्चों के साथ मंटो

मेरे गृहनगर चंडीगढ़ के पास समराला (लुधियाना) के गांव पपड़ौदी में मंटो का जन्म हुआ था. जब पता लगा कि मेरे इस पसंदीदा लेखक का गांव चंडीगढ़ से चंद मिनट दूर है तो मैं वहां गई. पहली दफा यह सोचकर कि यहां उनसे जुड़ा कुछ जरूर मिलेगा. बेशक यह वर्ष मंटो की जन्मशताब्दी के रूप में मनाया जा रहा है लेकिन मंटो ने कहा था कि एक दिन सआदत हसन मर जाएगा लेकिन मंटो हमेशा जिंदा रहेगा. 

गांव में पहली दुकान किराने की है. वहां बैठे बुजुर्ग अक्षर सिंह से मैंने पूछा, मंटो का घर कहां है? दुकानदार ने कहा, मुझे नहीं पता. मैं उन्हें याद दिलवाने की कोशिश करती रही कि व मंटो जो लेखक थे..बहुत मशहूर . उन्हें याद आया और कहने लगे कि हां..हां वह तो बहुत बड़ा लेखक था..कश्मीरी था..उसका घर भी है गांव में. फिर अक्षर सिंह बोले आप चौपाल पर जाओ शायद कुछ और पता लग जाए. 

चौपाल पर ताश खेल रहे बुजुर्गों से पूछा कि मंटो का घर कहां है. वे लोग हैरान हो गए कि मंटो कौन है? मैं मंटो के बारे में जो भी बता सकती थी बताया कि वह लेखक थे..कहानियां लिखते थे,यहां पैदा हुए थे, उनका दुनिया में बहुत नाम है. बहुत मगजमारी के बाद एक बुजुर्ग ने कहा, ' हां..हां. ठीक है वो लिखारी बंटवारे के बाद पाकिस्तान चला गया था, सुनते हैं कि वहां जाकर वह पागल हो गया था.'

इससे ज्यादा किसी को मंटो के बारे में कुछ नहीं पता. मैंने उन्हें मंटो का पूरा नाम बताया, सआदत हसन मंटो. एक ने पूछा, 'मुस्लमान था क्या? मैंने कहा 'हां'. दूसरे बुजुर्ग ने कहा 'फिर तो फरियाद अली ही जानता होगा.' मैं हैरान रह गई कि इन्कलाबी कलमकार मंटो ताउम्र निजाम में नुक्स ढूंढते रहे लेकिन इस अवाम का नुक्स कौन देखे जो उनके नाम तक से वाकिफ नहीं. उनमें से एक व्यक्ति फरियाद अली को उनके घर बुला लाया. 

मेरी तमाम उम्मीदें सिर्फ फरियाद अली पर ही टिकी थीं. मैंने उनसे निराशा में कहा कि मैं मंटो के बारे में जानने आई हूं. वह जो लेखक थे,कहानियां लिखते थे. मंटो का नाम सुनते ही फरियाद अली की आंखों में चमक आ गई. कहने लगे हां मैं जानता था उन्हें. वह मेरे बड़े भाईजान के साथ छड़ी से हॉकी खेला करते थे. 

चौपाल पर बैठे बुजुर्गों ने पूछा भई कौन था वह? तो फरियाद ने उन्हें बताया 'अरे वह अपना कश्मीरियों का लडक़ा.' मंटो के बारे में यह कड़वी सच्चाई हजम नहीं हो रही थी कि जिसने अपनी कलम से साहित्य, हुकूमतें और अदालतें हिला दी थीं जिसकी कलम ने ठंडा गोश्त, खुली सलवार, धुआं, खोल दो, नंगी आवाजें और टोबा टेक सिंह जैसी कहानियों के जरिये देश के बंटवारे का हाहाकार साकार कर दिया उसे उसके गांव में कोई नहीं जानता.

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मंटो का घर : कोई नामलेवा नहीं


मैंने फरियाद अली से कहा कि मुझे मंटो का घर दिखा लाएंगे क्या. गांव के तत्कालीन सरपंच की बड़ी सी हवेली का छोटा से कमरा था वह जहां मंटो का जन्म हुआ था. सरपंच ने हमें घर में नहीं घुसने दिया. फरियाद अली ने बताया कि उन्हें लगता है कि कहीं सरकार उनसे यह कमरा छीन न ले. संकरी गलियों से गुजरते हुए मैंने फरियाद अली से पूछा कि आखिर सरकार यहां मंटो के नाम पर कुछ करती क्यों नहीं. वह कहने लगा कि मैडम जी ये लोग क्या जाने की मंटो कौन था, इनकी नजर में तो मंटो सिर्फ एक मुसलमान था. 

फरियाद अली बताता है कि मंटो की मां सरदार बेगम पास के ही गांव सरीं की थीं. मंटो अक्सर स्कूल के ग्राउंड में खेला करते थे. लेकिन बड़े होने पर वह अपने पिता गुलाम हसन मंटो के पास शिमला चले गए. फिर वह छुट्टियों में पपड़ौदी आया करते थे. 

गांव के शिक्षक गुलजार मोहम्मद गोरया ने मंटो के बारे में जानने की बहुत कोशिश की. उनकी जानकारी के अनुसार इस गांव में उनकी ननसार थी. मुंबई जाने के बाद मंटो कभी पपड़ौदी नहीं आए. गांववासी गुलजार मोहम्मद मंटो की याद में बहुत कुछ करना चाहते हैं लेकिन उनका कहना है कि गांव की सियासत और मंटो के मुसलमान होने के कारण उनका यह ख्वाब पूरा नहीं हो पा रहा है. 

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पत्रकार मनीषा भल्ला आउटलुक पत्रिका में वरिष्ठ संवाददाता हैं.

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