BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Sunday, February 5, 2012

शेयर सूचकांक पर आधारित भारतीय अर्थव्यवस्था उत्पादन प्रणाली से नहीं, विदेशी पूंजी पर निर्भर


शेयर सूचकांक पर आधारित भारतीय अर्थव्यवस्था उत्पादन प्रणाली से नहीं, विदेशी पूंजी पर निर्भर

बाजार में जारी रह सकती है तेजी

मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


इस साल विदेशी संस्थागत निवेशकों ने बाजार में दो अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया है। पिछले साल के मुकाबले हालात काफी बदल गए हैं। पूंजी बाजार नियामक सेबी के आंकड़ों के अनुसार विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) इस साल अभी तक देसी शेयर बाजारों में 15,317 करोड़ रुपये का निवेश कर चुके हैं। जबकि ऊंची ब्याज दरों, सरकारी घाटे और भ्रष्टाचार के मामलों से उकताकर उन्होंने पिछले साल 3,417.60 करोड़ रुपये निकाल लिए थे।विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) तो भारत में धंधा करने के लिए आए हैं। काम खत्म, पैसा हजम। कमाई हो गई, निकल लिए। उनके मूल देश में कुछ गड़बड़ हुई तो अपना आधार बचाने निकल पड़े। यूरोप-अमेरिका के मामूली से घटनाक्रम पर भी वे बावले हो जाते हैं।

2011 में डॉलर के मुकाबले 18.70 फीसदी लुढ़कने वाला रुपया इस साल 3 फरवरी तक 8.23 फीसदी चढ़ चुका है। आज रुपया डॉलर के मुकाबले 48.69 पर बंद हुआ। इस साल अभी तक सेंसेक्स डॉलर में करीब 24.04 फीसदी चढ़ चुका है, इससे भी विदेशी निवेशकों की देसी शेयर बाजारों में दिलचस्पी बढ़ गई है।

नकद बाजार के कारोबार में इजाफा हुआ है। फरवरी के पहले तीन दिन में इस बाजार ने औसतन 19,000 करोड़ रुपये का कारोबार किया है। यह नवंबर 2010 के बाद सबसे ज्यादा है। तकनीकी आधार पर हालात मजबूत दिख रहे हैं। अप्रैल 2011 के बाद से ऐसा पहली बार हुआ है कि सेंसेक्स और निफ्टी दोनों ही अपने 200 दिन के औसत (डीएमए) से ज्यादा पर कारोबार कर रहे हैं। 200-डीएमए से ऊपर कारोबार करना एक महत्त्वपूर्ण तकनीकी संकेतक है। इससे पता चलता है कि निवेशक किसी शेयर के लिए उसके पिछले 200 कारोबारी सत्रों की औसत कीमत से ज्यादा रकम चुकाने को तैयार हैं।

जनवरी 2012 में एफआईआई ने अनुमानित रूप से करीब 10,444 करोड़ रुपये का निवेश किया
वर्ष 2001 के बाद एफआईआई ने 2006 में 3,678 करोड़ रुपये का निवेश जनवरी में किया था

शेयर सूचकांक पर आधारित भारतीय अर्थव्यवस्था उत्पादन प्रणाली से नहीं, विदेशी पूंजी पर निर्भर है,सो अमेरिका में रोजगार की स्थिति में सुधार की रिपोर्ट और विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा भारत में निवेश बढ़ाने से स्थानीय बाजार में लिवाली का दौर बने रहने की संभावना है। हालांकि, सप्ताहांत में मुनाफावसूली हो सकती है। इसके विपरीत
देश की 10 सर्वश्रेष्ठ कंपनियों में से 9 के बाजार

पूंजीकरण में पिछले सप्ताह 81,898 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। सबसे अधिक नुकसान रिलायंस इंडस्ट्रीज को हुआ। हालांकि, इस दौरान भारती एयरटेल के बाजार पूंजीकरण में बढ़त रही। भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था क्रय शक्ति समानता के आधार पर दुनिया में चौथी सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था है। यह विशाल जनशक्ति आधार, विविध प्राकृतिक संसाधनों और सशक्‍त वृहत अर्थव्‍यवस्‍था के मूलभूत तत्‍वों के कारण व्‍यवसाय और निवेश के अवसरों के सबसे अधिक आकर्षक गंतव्‍यों में से एक है। दलाल स्ट्रीट में लंबे समय के बाद एक बार फिर से तेजडिय़ों की वापसी की चर्चा होने लगी है। इस साल जनवरी में शेयर बाजार में आई तेजी से इस क्षेत्र के जानकार भी चकित हैं और इस बात की चर्चा कर रहे हैं कि क्या तेजी का दौर शुरू हो गया है।

वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के देश में निवेश की कोई सीमा तय किये जाने की संभावना से साफ इनकार किया है.

बेहतर मुनाफे की लालसा में विदेशी निवेशक बिजली, तेल एवं गैस, दूरसंचार और लोहा तथा इस्पात क्षेत्र में बढ़चढ़ कर निवेश कर रहे हैं। यह बात एक रिपोर्ट से सामने आई। भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक विदेश से लिए जाने वाले कर्ज में 2011 में 50 फीसदी वृद्धि हुई और यह बढ़कर 36 अरब डॉलर रहा। जबकि पिछले साल सिर्फ 24 अरब डॉलर विदेशी कर्ज लिए गए थे।

उद्योग जगत के प्रतिनिधि संगठन पीएचडी चैम्बर ने रविवार को जारी एक रिपोर्ट में कहा, "विदेशी कर्ज का अधिकांश हिस्सा ढांचा गत क्षेत्र के लिए लिया गया, जिसमें दूरसंचार, बिजली, तेल एवं गैस और लोहा तथा इस्पात शामिल है।"

इसमें कहा गया कि विदेशी कर्ज में वृद्धि के दो कारण हैं, एक तो यह देशी में कर्ज लेने की तुलना में सस्ता है और दूसरा देश में ढांचागत क्षेत्र में विकास की सम्भावनाओं की अभी अधिक खोज नहीं हुई है।


मई 2010 में देश में कुल पंजीकृत विदेशी संस्थागत निवेशकों की संख्या 1710 थी और जनवरी-मई 2010 के दरमियान इक्विटी में कुल विदेशी संस्थागत निवेश 4606.50 मिलियन अमेरिकी डॉलर रहा। 1 जून से 14 जून 2010 के  मध्य विदेशी संस्थागत निवेशकों ने इक्विटी में कुल 530.05 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया।

2011 में बंबई स्टॉक एक्सचेंज का सेंसेक्स में करीब एक-तिहाई गिरावट देखी गई लेकिन इस साल सेंसेक्स में करीब 14 फीसदी की तेजी आई है। खास बात यह कि सेंसेक्स अन्य वैश्विक सूचकांकों के मुकाबले कहीं बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। शुक्रवार को 30 शेयरों पर आधारित बंबई स्टॉक एक्सेंचज का सेंसेक्स 1 फीसदी की तेजी के साथ 17,604.96 पर बंद हुआ। सेंसेक्स पिछले 5 हफ्तों से लगातार तेजी के साथ बंद हो हुआ है।

मॉर्गन स्टैनली में इक्विटी प्रमुख (भारत) और प्रबंध निदेशक रिद्म देसाई ने ग्राहकों को एक नोट में कहा, 'बाजार में नई तेजी के संकेत नजर आ रहे हैं। फरवरी 2011 के बाद से सूचकांकों ने अपने 200 दिन के औसत कारोबार को पीछे छोड़ दिया है। वहीं क्षेत्रों का प्रदर्शन भी 15 माह के उच्च स्तर पर है। ऐसे में रक्षात्मक शेयरों का प्रदर्शन अपेक्षाकृत बेहतर नहीं रहा है। उन्होंने कहा कि बाजार में आगे भी तेजी बनी रह सकती है। हालांकि इसमें थोड़ा उतार-चढ़ाव भी देखा जा सकता है।

हालांकि फस्र्ट ग्लोबल के शंकर शर्मा का कहना है कि घरेलू बाजार इस साल अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच चुका है। उन्होंने कहा, ' ब्याज दरों में कटौती और विकास में तेजी के बाद बाजार को इस साल नई ऊंचाई मिल सकती है। रुपये में सुधार और विदेशी संस्थागत निवेश बढऩे का भी बाजार को फायदा मिल सकता है।'

जनवरी में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई)के निवेश का प्रवाह समग्र वर्ष के दौरान बाजार की मजबूत चाल का संकेत बन रहा है। अगर आंकड़ों को देखें तो पिछले 11 वर्षों में इस तरह की स्थिति कई बार आई है और उन वर्षों में बाजार ने मजबूती की राह पकड़ी है।


पिछले 11 वर्षों के आंकड़ों के मुताबिक जनवरी के दौरान एफआईआई का निवेश लगातार सात वर्ष सकारात्मक रहा है। इन सात वर्षों में 3.52 फीसदी से लेकर 72.89 फीसदी तक का रिटर्न दिया है। केवल वर्ष 2011 के जनवरी में 4,045 करोड़ रुपये का एफआईआई प्रवाह हुआ था, जिससे बाजार में 18 फीसदी की गिरावट देखी गई थी।


पिछले 11 वर्षों के दौरान सिर्फ चार वर्षों (वर्ष 2008-11) के दौरान ही बाजार ने नकारात्मक रिटर्न दिया है। लेकिन जनवरी 2012 में विदेशी संस्थागत निवेशकों ने अनुमानित रूप से करीब 10,444 करोड़ रुपये का निवेश किया है। गौरतलब है कि सितंबर 2010 के बाद किसी एक महीने में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का सेंसेक्स इसी जनवरी महीने में सबसे ज्यादा 11.5 फीसदी बढ़ा है। जबकि नवंबर 2010 के बाद किसी एक महीने में विदेशी संस्थागत द्वारा सबसे ज्यादा निवेश भी इसी जनवरी में किया गया।


सीएनआई रिसर्च के चेयरमैन किशोर ओस्तवाल कहते हैं कि जिस तरह से रिजर्व बैंक द्वारा मार्च में दरों में कमी की संभावना दिख रही है उससे यह तय है कि बाजार की यह रैली आगे भी जारी रहेगी। उनके मुताबिक अब लीडरशिप लार्ज कैप से शिफ्ट होकर मिड कैप में जा रही है।


पिछले साल मिड कैप के शेयरों की 60-70 फीसदी तक पिटाई हो गई थी इसमें खासकर सार्वजनिक बैंकों और अन्य कंपनियों को खासा नुकसान हुआ था। लेकिन अब जो रैली है, इसमें यही मिड कैप लीडरशिप के साथ बाउंस बैक कर रहे हैं।



भारतीय अर्थव्यवस्था को आज भी बेहद कमजोर माना जाता है। भारतीय अर्थव्यवस्था ने आजादी के बाद विकास तो किया लेकिन दुनिया के मुकाबले बहुत कम। भारतवर्ष में आज भी ना तो गरीबी कम हुई है, ना ही भुखमरी और ना ही इंसानो का शोषण। लेकिन उदारीकरण के समर्थकों की नजर से देखें तो वर्ष1991 में आरंभ की गई आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया से सम्‍पूर्ण अर्थव्‍यवस्‍था में फैले नीतिगत ढाँचे के उदारीकरण के माध्‍यम से एक निवेशक अनुकूल परिवेश मिलता रहा है। भारत को आज़ाद हुए 65 साल हो चुके हैं और इस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा में ज़बरदस्त बदलाव आया है। औद्योगिक विकास ने अर्थव्यवस्था का रूप बदल दिया है।कौशल या स्किल डेवलपमेंट के साथ-साथ इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था के 8.7 फीसदी सालाना की दर से बढ़ने की संभावना है और वर्ष 2020 तक यहां 3.75 करोड़ रोजगार के अवसरों का भी सृजन होगा। आज भारत की गिनती दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में होती है। विश्व की अर्थव्यवस्था को चलाने में भारत की भूमिका बढ़ती जा रही है। आईटी सॅक्टर में पूरी दुनिया भारत का लोहा मानती है।

केंद्रीय स्‍तर पर, आउटसोर्सिंग तथा सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) उद्योग के समग्र विकास के लिए उत्‍तरदायी नोडल अभिकरण सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय है।


केंद्र तथा राज्‍य/संघ राज्‍य क्षेत्र , दोनों स्‍तरों पर बीपीओ, आईटी तथा केपीओ की सुद़ृढ़ संवृद्धि का संवर्धन करने के लिए अनेक नीतिगत उपाय तथा पहलें की गई है। संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन सूचना प्रौद्योगिकी विभाग आउटसोर्सिंग उद्योग के लिए उत्‍तरदायी केंद्रीय प्राधिकरण है, जबकि राज्‍यों/संघ राज्‍य क्षेत्रों में संबंधित 'सूचना प्रौद्योगिकी विभाग' हैं। इसके अतिरिक्‍त, 600 से अधिक बहुराष्ट्रिक कंपनियों द्वारा भारत में अपने केंद्रों से उत्‍पाद विकास तथा इंजीनियरी सेवाओं काकी सोर्सिंग करने संबंधी जानकारी मिली है। इस प्रकार, यह कहना सही है कि भारत में आईटी-बीपीओ के वैश्विक आउटसोर्सिंग में संवृद्धि के बृहत् अंश को हथियाने के लिए योग्‍यता, लागत, गुणता तथा शीघ्र संचालनकर्ता लाभ / अनुभव के अपने आधारभूत लाभों को उत्‍प्रेरित करना जारी रखा है। भारत में कई अन्‍य प्रक्रिया आउटसोर्सिंग कार्यकलाप भी किए जा रहे है यथा अनुसंधान, बीमा, विधिक, इत्‍यादि।



भारत में अरबपतियों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है जो यह दिखाता है कि व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में देश तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। प्रतिष्ठित फोर्ब्स पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार अरबपतियो की संख्या मे 15 प्रतिशत की वृद्घि हुई है और अब कुल 793 अरबपति है और एशिया में भारत अग्रणी बनकर उभरा है। विश्व अर्थव्यवस्था में आई उछाल के कारण भारत में अरबपतियो की संख्या में आलेख में बढोत्तरी हुई है। इस सर्वे के अनुसार भारत में 23 अरबपति हैं जिनके पास भारतीय सकल घरेलू उत्पाद का 16 प्रतिशत हिस्सा है। इसका यह अर्थ निकाला जा सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की सेहत बेहतर हो रही है। इकॉनॉमिक टाइम्स के ब्यूरो चीफ़ एम.के. वेणु का मानना है कि भारत मे पहले से कहीं ज़्यादा अवसर उपलब्ध हैं।

विदेशी निवेशकों की लिवाली के समर्थन से देश के प्रमुख शेयर सूचकांकों में लगातार पांचवें सप्ताह तेजी देखने को मिली और इस सप्ताह शुक्रवार को बीएसई सेंसेक्स 371 अंक की तेजी के साथ 17,605 अंक पर बंद हुआ।

वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने अमेरिकी निवेशकों को भारत में बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निवेश के लिए आमंत्रित किया है। उन्होंने अमेरिकी निवेशकों को इस बात का विश्वास भी दिलाया कि देश में दीर्घकालीन ब्याज की दरों पर भरोसा किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि भारत के बुनियादी ढांचे में 12वीं योजना के तहत 1,000 अरब डॉलर के निवेश का अनुमान लगाया गया है।



मुखर्जी ने 'फाच्र्यून' पत्रिका की 500 शीर्ष कंपनियों के अधिकारियों के साथ बैठक में कहा कि भारत ने बिजली, दूरसंचार, बंदरगाह, हवाई अड्डा, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस जैसे क्षेत्रों में एक पारदर्शी और स्थिर नियामक व्यवस्था कायम की है। उन्होंने बताया कि भारत ने हाल में ऋण और शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों की भागीदारी को उदार बनाया है। विदेशी निवेशकों को अब भारतीय शेयर बाजार में सीधे निवेश की अनुमति है। विदेशी निवेशकों की अधिक भागीदारी पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि बुनियादी ढांचा क्षेत्र की परियोजनाओं के लिए ऋण के रूप में बड़ी राशि की जरूरत है।



इस बीच एलजी, सैमसंग और गोदरेज जैसी कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों ने होम अप्लायंसेज प्रोडक्ट के दाम 2-5 फीसदी बढ़ा दिए हैं। कुछ कंपनियों के फ्रॉस्ट फ्री रेफ्रिजरेटर और स्प्लिट एसी 10 फीसदी महंगे हो गए हैं। इसकी वजह ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशियंसी की नई गाइडलाइंस है। रुपए में कमजोरी और कच्चे माल की ऊंची कीमतों से कंपनियों पर कॉस्ट प्रेशर बढ़ गया है। इससे तीन महीने में दूसरी बार उन्हें प्रोडक्ट के दाम बढ़ाने पड़े हैं। पिछले साल कंज्यूमर ड्यूरेबल मार्केट में सेल्स सुस्त रही थी। बड़ी कंपनियां 2011 के अपने सेल्स टारगेट को पूरा नहीं कर सकीं। इंडस्ट्री के सीनियर अधिकारियों का कहना है कि 2012 के लिए भी आउटलुक अनिश्चित दिख रहा है। ह्वर्लपूल इंडिया में वाइस प्रेसिडेंट-कॉरपोरेट अफेयर्स एंड स्ट्रैटेजी शांतनु दासगुप्ता ने कहा, 'हम तुरंत किसी बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं कर रहे। हालांकि, चुनाव और केंद्रीय बजट जैसे कई अहम इवेंट आ रहे हैं, जो कुछ बदलावों का संकेत दे सकते हैं। हम ग्रोथ को लेकर अब भी बहुत उत्साहित नहीं हैं। 2009 के स्तरों तक पहुंचने में कुछ वक्त लग जाएगा।'

ग्राहकों की बेरुखी इस साल कंज्यूमर ड्यूरेबल कंपनियों पर भारी पड़ी। गए  साल एयर-कंडीशनर की बिक्री में गिरावट दिखी, वहीं रेफ्रिजरेटर और वॉशिंग मशीन की बिक्री बढ़ने की रफ्तार सुस्त रही। दरअसल कीमतों में बढ़ोतरी, कर्ज के महंगा होने और रहन-सहन पर खर्च बढ़ने के चलते ग्राहकों ने खरीदारी मुल्तवी कर दी। कंपनियों को आशंका है कि आने वाले साल में भी मुश्किलें कम नहीं होने वाली।

कंज्यूमर ड्यूरेबल रीटेलर्स ने बताया कि साल 2008 के बाद गए  साल नवंबर में बिक्री सबसे खराब रही है। इंडस्ट्री से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक जीएफके नील्सन इंडिया के आंकड़े बताते हैं कि जनवरी-अक्टूबर के दौरान एयर-कंडीशनर की बिक्री में सालाना आधार पर 24 फीसदी गिरावट देखी गई। इसी अवधि में रेफ्रिजरेटर और वॉशिंग मशीन की सेल्स ग्रोथ सिर्फ 4 फीसदी रही। हालांकि, रिसर्च एजेंसी ने इस बात की पुष्टि नहीं की।

इस सप्ताह भारती ने अपने बाजार मूल्य में 816 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी दर्ज की और 18 नवंबर को कंपनी का बाजार पूंजीकरण 1,51,008 करोड़ रुपए रहा। बाजार पूंजीकरण के लिहाज से रिलायंस इंडस्ट्रीज देश की शीर्ष कंपनी बनी रही, जबकि ओएनजीसी दूसरे स्थान पर रही।

टीसीएस तीसरे नंबर पर और सीआईएल मूल्यांकन के लिहाज से चौथे नंबर पर रही, जिसके बाद इंफोसिस, आईटीसी, भारती, एनटीपीसी, एसबीआई और एचडीएफसी बैंक का स्थान रहा। आरआईएल को बाजार मूल्यांकन में सबसे अधिक 24,819 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ और उक्त अवधि में इसका पूंजीकरण 2,64,583 करोड़ रुपए रहा। आलोच्य सप्ताह में सरकारी कंपनी ओएनजीसी का बाजार पूंजीकरण 5,603 करोड़ रुपए गिरकर 2,21,801 करोड़ रुपए रहा।

आशिका स्टॉक ब्रोकर्स के शोध प्रमुख पारस बोथरा ने बताया, ' स्थितियां उत्साहजनक लगती हैं इसलिए उम्मीद है कि बाजार में तेजी का माहौल इस सप्ताह भी बना रहेगा। अमेरिका में रोजगार के आंकड़े बेहतर हुए हैं और विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भारतीय बाजार में फिर से रुचि दिखाई है। इससे बाजार और चढ़ेगा। पर हो सकता है कि निवेशक सप्ताह के आखिरी दिनों में मुनाफावसूली करें। ' उनकी राय में इस सप्ताह तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों का बाजार पर असर पड़ सकता है।

रुपए की विनिमय दर में सुधार से भी शेयर बाजार को बल मिला है। साथ ही, बाजार में विदेशी पूंजी प्रवाह के बढ़ने से रुपए को बल मिला है। ताजा आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका में जनवरी में बेरोजगारी दर घटकर 8.3 प्रतिशत रह गई है। महीने के दौरान 2.4 लाख से अधिक नए रोजगारों का सृजन हुआ। बाजार इस समय विदेशी संस्थानों की ताल पर नाच रहा है। विदेशी कोषों ने पिछले सप्ताह स्थानीय शेयर बाजार में 5,850 करोड़ रुपए का शुद्ध निवेश किया है।

कोटक सिक्योरिटीज के प्रबंध निदेशक डी कन्नन ने कहा कि भारतीय कंपनियों के अब तक घोषित तिमाही परिणाम मोटे तौर पर उम्मीद के अनुरूप रहे हैं। इसके अलावा मुद्रास्फीति के नरम पड़ने और रिजर्व बैंक द्वारा सीआरआर घटाए जाने से भी माहौल सुधरा है।
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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

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