इन बिल्डरों पर किसी का बस नहीं
By बची बिष्ट on September 22, 2009
http://www.nainitalsamachar.in/these-builders-are-uncontrollable-now/
नैनीताल के आसपास की कुछ नीची पहाड़ियों पर पर्यटन विकास के नाम पर कृषि भूमि को रातोंरात व्यावसायिक बनाकर उनमें होटल और बिक्री के लिये कॉटेज बनाये जा रहे हैं। भीमताल का ज्यादातर क्षेत्र ऐसे भवनों से ढँक चुका है। रामगढ़, धारी विकासखण्डो में बड़े बिल्डरों ने पहाड़ियों पर निर्माण जारी रखा है। इन लोगों ने वनों का तो जम कर कटान किया ही है, ऐसे स्थानों पर भी निर्माण कर डाला है, जहाँ इनका वैध कब्जा ही नहीं है।
मुक्तेश्वर रोड पर 'क्लाउड नाईन' नामक एक कम्पनी तथा उसी तरह के अन्य बिल्डरों ने वन और पर्यावरण कानूनों एवं नागरिक हक-हकूकों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ा रखी हैं। यह अस्पष्ट है कि इनके पास वैध भूमि वास्तव में कितनी है। पर इनका निर्माण आरक्षित जंगलों तथा वन पंचायतों के अन्दर तक दिखता है। इनके मजदूरों द्वारा मुख्य जलागम व जलस्रोतो को गंदगी से भर दिया गया है, जिसका असर नीचे निवास करने वाले ग्रामीणों पर पड़ रहा है। गाँव की औरतों के जंगल जाने वाले रास्तों, पानी के स्रोतों पर इनका कब्जा है। इनकी दादागिरी का आलम यह है कि दुत्कानेधार के लिये स्वजल की योजना पर खबराड़ के गधेरे में इन्होंने खुलेआम कब्जा कर लिया है। स्वजल के टैंक पर कब्जा कर, उस पर दो मोटरें लगाकर यह कंपनी गाँव का पूरा पानी अपने कॉटेजों में खींच रही है। पूछने पर कंपनी इसे अपना बताती है और डर के मारे गाँव वाले चुप्पी लगा जाते हैं। प्रशासन पूरी तरह कंपनी का जरखरीद गुलाम बना हुआ है। यहाँ का पटवारी भी अपनी तरह का भूमाफिया है। ग्राम पंचायत सचिव भी सैकड़ों नाली बेनामी जमीन खरीद कर कारोबार चला रहा है। वन विभाग ने कंपनी के हितों को सुरक्षित रखने के लिये उसके अवैध कटान पर चुप्पी साध रखी है।
यह पूरा निर्माण सल्यूगा वन पंचायत के अंदर हुआ है। परंतु इस वन पंचायत का दस्तावेजी बस्ता गुम कर दिया जा चुका है। क्षेत्र में बिल्डरों ने अपने दलाल पाल रखे हैं, जो क्षेत्र में आतंक भी फैलाते हैं और लोगों को जमीनें बेचने के लिये पटाते भी हैं। प्रशासन के लोग भी कंपनी के प्रचारक की भूमिका में हैं। वे भी ग्रामीणों को समझाते हैं कि इन पैसे वाले लोगों के खिलाफ मत बोलो। इन अधिकारियों की भूमिका को लेकर संदेह होना स्वाभाविक हैं क्योंकि होटल और कॉटेज बनाने के लिये कृषि भूमि रातोंरात गैर कृषि भूमि में कैसे बदल गई?
यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं कि इस क्षेत्र में कार्यरत बड़े-बड़े, ख्यातिप्राप्त एन.जी.ओ. इस प्रकरण पर चुप्पी साधे बैठे हैं। लगता है कि उनका काम फंडिंग बटोरना और सरकारी परियोजनाओं की दलाली खाना है। सबसे पहले इस मामले को 'जनमैत्री संगठन' ने 2005 में प्रशासन के सामने रखा। फिर 'महिला समाख्या' और 'उत्तराखंड नदी बचाओ अभियान' ने भी इसे उठाया। परंतु प्रशासन का रुख बहुत ही गैर जिम्मेदारी के साथ बिल्डर के पक्ष में बना रहा। इसी संदर्भ में पिछले दिनों हुई एक बैठक में सुप्रसिद्ध समाजसेविका और गांधी शांति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष राधा बहन ने कहा कि 'सामाजिक संगठनों का काम अपने आसपास के परिवेश में घट रही घटनाओं को समझना और लोगों के साथ खड़े रहना है। कुल्हाड़ी तभी पेड़ को काटती है जब पेड़ का कोई तना उसका वैट बनता है।
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