BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Monday, June 20, 2011

Fwd: भाषा,शिक्षा और रोज़गार



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From: भाषा,शिक्षा और रोज़गार <eduployment@gmail.com>
Date: 2011/6/20
Subject: भाषा,शिक्षा और रोज़गार
To: palashbiswaskl@gmail.com


भाषा,शिक्षा और रोज़गार


पटना:कृष्णा इंस्टीट्यूट ऑफ पारा मेडिकल में नामांकन शुरू

Posted: 19 Jun 2011 02:30 AM PDT

कृष्णा इंस्टीच्यूट ऑफ पारा मेडिकल एण्ड पारा डेन्टल साइंसेज ने अपना दूसरा साल पूरा किया। इंस्टीच्यूट के अध्यक्ष एसके मण्डल ने बताया कि यहां सर्टिफिकेट इन मेडिकल ड्रेसर, एक्सरे टेक्नीशियन, मेडिकल लेबोरेस्ट्री टेक्नोलॉजी, ऑपरेशन थियेटर असिस्टेंट तथा ऑफथेलमिक असिस्टेंट में डिप्लोमा कोर्स कराया जाता है। वर्ष 2011 के लिए यहां नामांकन की प्रक्रिया शुरू है। श्री मण्डल ने बताया कि पिछले वर्ष छात्रों का प्रशिक्षण सफलता पूर्वक संचालित कराया, जिसमें पटना मेडिकल कॉलेज एवं देश के अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों के शिक्षकों ने अपने मार्ग निर्देशन में पठन-पाठन कार्य सम्पन्न कराया। उन्होंने बताया कि यह संस्थान राज्य सरकार के स्वास्थ्य समिति को अपनी सेवाएं इस वर्ष अर्पित करेगा, जिसके अनुसार राज्य स्वास्थ्य समिति के संसाधनों का उपयोग राज्य के हित में करेगी। उन्होंने बताया कि अक्टूबर से यहां नर्सिग का एएनएम कोर्स भी चलाया जाएगा(राष्ट्रीय सहारा,पटना,19.6.11)।

पटना वीमेंस कॉलेज में कॉमर्स की सूची जारी

Posted: 19 Jun 2011 01:50 AM PDT

पटना वीमेंस कॉलेज में स्नातक कॉमर्स संकाय में नामांकन के लिए कट ऑफ मार्क्‍स जारी कर दिया गया। कॅट ऑफ मार्क्‍स की लिस्ट जारी होते ही उसे देखने के लिए छात्राओं की भीड़ वहां उमड़ पड़ी, वहीं फॉर्म आदि खरीदने के लिए भी छात्राओं व अभिभावक भी भारी संख्या में पहुंच रहे हैं। मगध महिला कॉलेज में विभिन्न कोर्स के लिए 29 जून को कट ऑफ मार्क्‍स जारी किये जायेंगे। पटना वीमेंस कॉलेज के बाद छात्राओं की दूसरी पसंद मगध महिला कॉलेज ही है। पटना वीमेंस कॉलेज में कॉमर्स में नामांकन के लिए सामान्य कैटेगरी में 81-87 प्रतिशत अंक चाहिए। एसी में 64 से 60 प्रतिशत, एसटी के लिए 55 से 63 प्रतिशत, बीसी वन में 67 से 72 प्रतिशत व बीसी टू में 78 से 82 प्रतिशत अंक होने चाहिए। फिलहाल इस दायरे में आने वाली छात्राओं का ही नामांकन लिया जायेगा। इसके बाद भी अगर सीटें बचती हैं तो दूसरा कट ऑफ लिस्ट जारी किया जायेगा। बतातें चलें कि अभी सिर्फ पटना विविद्यालय के पटना वीमेंस कॉलेज ही अपना कट ऑफ लिस्ट जारी कर रही है। पटना विविद्यालय के अन्य सारे कॉलेजों में 22 जून के बाद ही कट ऑफ लिस्ट जारी की जाएगी। इससे पहले नामांकन फॉर्म खरीदा व भरा जा सकता है, वहीं मगध विविद्यालय के कॉलेजों में 30 जून तक फॉर्म मिलेंगे और भरे जाएंगे। 30 जून के बाद वहां कट ऑफ मार्क्‍स जारी किये जायेंगे। हालांकि दोनों ही विविद्यालयों में एक जुलाई से सेशन की शुरुआत होनी है। इन सब कॉलेजों में नामांकन समाप्त होने के बाद निजी कॉलेजों व संस्थानों में एडमिशन के लिए छात्रों के राह खुले हैं, वहीं इन दिनों बड़ी संख्या में कॅरियर फेयर के माध्यम से भी छात्रों का स्पॉट एडमिशन भी लिया जा रहा है(राष्ट्रीय सहारा,पटना,19.6.11)।

100 फीसदी कट ऑफ के विरोध में डीयू में प्रदर्शन

Posted: 19 Jun 2011 01:30 AM PDT

डीयू में 100 फीसदी कट ऑफ के विरोध में छात्र संगठनों ने शनिवार को नॉर्थ कैंपस में प्रदर्शन किया। छात्रों ने हाथों में नारे लिखे बैनर ले रखे थे। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने एसआरसीसी कॉलेज परिसर में ही 100 फीसदी कट ऑफ के विरोध में नारेबाजी की। विद्यार्थी परिषद के प्रदेश मंत्री रोहित चहल ने डीयू की पहली कट ऑफ को अप्रत्याशित बताते हुए डीयू से नए कॉलेज खोलने की मांग की। डूसू अध्यक्ष जितेंद्र चौधरी ने कट ऑफ को डीयू की मनमानी करार दिया। सचिव नीतू डबास ने कहा कि 100 फीसदी कट ऑफ से छात्रों पर अभिभावकों का अतिरिक्त दबाव पडे़गा। अंकों के खेल में छात्रों का सर्वागीण विकास कैसे होगा। उधर डीयू की आर्ट फैकल्टी से ऑल इंडिया स्टूडेंट वेलफेयर (आइसा) ने 100 फीसदी कट ऑफ और ओबीसी कोटे के तहत कॉलेजों में हो रहे भेदभाव पर प्रदर्शन किया। छात्र आर्ट फैकल्टी से होते हुए डीन स्टूडेंट कार्यालय पहुंचे। उन्होंने डीयू प्रशासन के विरोध में जमकर नारेबाजी। आइसा महासचिव रवि राय ने बताया कि डीयू की कट ऑफ देखकर जहां छात्र और अभिभावक तनाव में हैं, वहीं अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों के साथ कट ऑफ में भेदभाव किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश हैं कि ओबीसी छात्रों को सामान्य छात्रों से 10 फीसदी की छूट दी जाए। लेकिन डीयू के कॉलेजों की कट ऑफ में सामान्य श्रेणी के छात्रों और ओबीसी छात्रों के बीच 2 से 3 फीसदी का ही अंतर है। छात्रों ने कहा कि डीयू प्रशासन समस्या निदान की दिशा में कुछ नहीं करेगा तो वह न्यायालय जाएंगे(दैनिक जागरण,दिल्ली,19.6.11)।

डीयू:दाखिले की मुश्किल बढ़ी

Posted: 19 Jun 2011 01:12 AM PDT

डीयू के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स की दूसरी कट ऑफ लिस्ट नहीं आएगी। पहली ही कट ऑफ में निर्धारित सीटों से ज्यादा दाखिले हो चुके हैं और दाखिला फीस जमा कराने के लिए छात्रों के पास अब (सोमवार) एक दिन बाकी है। नॉर्थ कैंपस के अन्य कॉलेजों में कॉमर्स के अंदर 70 फीसदी सीटें भर चुकी हैं। अनुमान लगाया जा रहा है कि सोमवार को कुछ कॉलेजों में ही कुछ सीटें बचेंगी। इससे नामी कॉलेजों में दाखिले के रास्ते और मुश्किल हो गए हैं। बची सीटें भरने के लिए कैंपस कॉलेजों की कट ऑफ में 0.25 से आधा फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। खास बात यह है कि पहली कट ऑफ में आउट ऑफ कैंपस कॉलेजों में दाखिले का रुझान फीका नजर आ रहा है। एसआरसीसी में कुल 624 सीटें हैं। इनमें से 501 बीकॉम ऑनर्स और 123 इकॉनोमिक्स ऑनर्स की हैं। कॉलेज में 548 दाखिले बीकॉम ऑनर्स और 110 दाखिले इकॉनोमिक्स ऑनर्स में हो चुके हैं। कॉलेज प्राचार्य डा. पीसी. जैन ने बताया कि सामान्य श्रेणी के छात्रों का कोटो पूरा हो चुका है फिर भी पहली कट ऑफ के तहत अगर कोई छात्र सोमवार को दाखिला लेने आता है तो उसे दाखिला दिया जाएगा। अनुमान है कि 125 से 150 छात्र दाखिले की कतार में हैं। इनमें विदेशी छात्र, शारीरिक रूप से अक्षम, पूर्व सैनिक विधवा आदि कोटा शामिल है। उन्होंने कहा कि कॉलेज की दूसरी कट ऑफ नहीं आएगी(दैनिक जागरण,दिल्ली,19.6.2011)।

डीयू के अधिकतर प्राचार्यो के 65 फीसदी से कम अंक

Posted: 18 Jun 2011 11:56 PM PDT

अपनी शिक्षा व्यवस्था की हम चाहे कितनी भी आलोचना क्यों न कर लें। लेकिन दिल्ली के नामी कॉलेजों की जो कट ऑफ लिस्ट आई है, उससे इसका एक सकारात्मक पहलू भी उभर कर आया है। जागरण की खोजबीन से यह बात सामने आई है कि जिन कॉलेजों की कट ऑफ लिस्ट 96 फीसदी तक आई है, खुद उनके प्राचार्यो ने पढ़ाई के दौरान अपने समय में 11वीं की परीक्षाओं में 65 फीसदी से अधिक अंक प्राप्त नहीं किए थे। कृपया इसे अन्यथा न लें, इससे नौजवानों के लिए बढ़ी प्रतिस्पर्धा की स्थिति तो स्पष्ट होती ही है, साथ ही शिक्षा व्यवस्था में हुई तरक्की की तस्वीर भी खुलती है। यह भी पता चलता है कि मूल्यांकन पद्धति में कितनी दरियादिली हुई है। एसआरसीसी के प्राचार्य डा. पी.सी. जैन ने बताया कि उन्होंने अजमेर बोर्ड से प्रथम श्रेणी में बारहवीं पास की और राजस्थान-जयपुर विश्वविद्यालय से बीकॉम व एमकॉम में टॉप किया। उस समय टॉपर के अंक 60 से 70 फीसदी के बीच होते थे। चालीस साल पहले डीयू में गोल्ड मेडलिस्ट रहे डा. गौरी शंकर के अंक 60 फीसदी थे। रामजस कॉलेज के प्राचार्य डा. राजेंद्र प्रसाद बताते हैं कि 1969 में उन्हें सेंट स्टीफंस में 62 फीसदी अंकों पर दाखिला मिल गया था। उस दौरान इतने अंक पाने वाले छात्र इक्का-दुक्का ही हुआ करते थे। डीयू के डीन स्टूडेंट वेलफेयर प्रो. जेएम खुराना बताते हैं कि इंटर कॉलेज में उनके अंक 60 फीसदी से अधिक थे। सन् 1971 में उन्हें रामजस कॉलेज के कैमिस्ट्री ऑनर्स कोर्स में आराम से दाखिला मिल गया था। भारती कॉलेज की प्राचार्य डा. प्रोमोदनी वर्मा बताती हैं कि उन्होंने कैंब्रिज बोर्ड से पढ़ाई की थी। वह फ‌र्स्ट डिविजनर रहीं 60 फीसदी अंक पर आपको हर कॉलेज में आसानी से दाखिला मिल जाता था। जाकिर हुसैन कॉलेज के प्राचार्य डा. मो. असलम परवेज बताते हैं कि उन्होंने 70 के दशक में जाकिर हुसैन कॉलेज में दाखिला लिया था। गणित में कम अंक आने से उनके 60 फीसदी अंक नहीं बन पाए थे। घर से नजदीक होने के कारण बडे़ भाई साहब ने कहा इस कॉलेज में दाखिला लेना है और उनके आदेश अनुसार यहां दाखिला ले लिया। आज इसी कॉलेज में प्राचार्य हूं। रामलाल आनंद कॉलेज के प्राचार्य डा. विजय शर्मा ने बताया कि 1968 में इंटर में करीब 59 फीसदी अंक आए। इसके आधार पर उन्हें जाकिर हुसैन कॉलेज में अंग्रेजी ऑनर्स में दाखिला मिल गया। आज तो छात्रों के अंक और कट ऑफ को देखकर हैरानी होती है। श्यामलाल कॉलेज के प्राचार्य डा. जी.पी. अग्रवाल ने बताया कि उन्होंने 1964 में एसआरसीसीसी कॉलेज में 52 फीसदी अंकों के आधार पर आवेदन किया और बीकॉम ऑनर्स में उन्हें तुरंत दाखिला मिल गया। स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज के प्राचार्य डा. एस.के. कुंद्रा बताते हैं कि 1966 में साइंस स्ट्रीम से इंटर करने पर उन्हें 61 फीसदी अंक मिले थे। इसके बाद डीयू के कैमिस्ट्री विभाग से उन्होंने बीएससी कैमिस्ट्री की थी। तब लोग सोचते ही थे कि 100 में से 100 किसी के नहीं आ सकते। लेकिन आज 100 फीसदी कट ऑफ जाती है। छात्रों के एक नहीं कई-कई विषयों में सौ फीसदी अंक आते है(एस.के. गुप्ता, दैनिक जागरण ,नई दिल्ली,19.6.11)।

डीयू के कई टॉप कॉलेज हाउसफुल

Posted: 18 Jun 2011 10:00 PM PDT

डीयू के लोकप्रिय कोर्सों में दाखिला लेने की उम्मीद लिए छात्रों को सेकेंड कटऑफ लिस्ट का इंतजार महंगा पड़ सकता है। क्योंकि पहले कटऑफ के खत्म होने के दो दिन पहले ही कई कॉलेजों में सीट की तुलना में दाखिला ज्यादा हो चुके हैं।

कॉलेज प्रशासन भी इस बात की संभावना जता रहे हैं कि फस्र्ट कटऑफ के अंतिम दिन शायद दाखिले की खिड़की पर हाउसफुल का बोर्ड लगा दिया जाए।

इन कोर्सो में सबसे ज्यादा बीकॉम ऑनर्स, बीकॉम और इकोनॉमिक्स ऑनर्स हैं। सबसे ज्यादा मुश्किल एसआरसीसी और मिरांडा हाउस में देखने को मिल सकता है, जहां सीट से कहीं ज्यादा दाखिला पहले कटऑफ के समाप्त होने से पहले ही हो चुके हैं।

बता दें कि एसआरसीसी के बीकॉम ऑनर्स में 252 सीट हैं, जबकि यहां शनिवार की शाम तक 398 छात्रों का दाखिला लिया गया। यहां इको ऑनर्स की ६२ सीटों पर 70 छात्रों का दाखिला हुआ। भारी संख्या में छात्रों के दाखिले को देखते हुए कॉलेज प्रशासन यह उम्मीद जता रहा है कि बीकॉम ऑनर्स के लिए सेकेंड कटऑफ नहीं आएगी, जबकि इको ऑनर्स में दाखिले की उम्मीद है। कुछ ऐसा ही हाल मिरांडा हाउस का भी है।

यहां शनिवार तक 994 छात्राओं के दाखिले हुए, जबकि बीएलएड कोर्स को छोड़कर यहां कुल 989 सीट ही हैं। मिरांडा हाउस की प्रिंसिपल प्रतिभा जौली ने बताया कि यहां अब तक पॉल साइंस, इको ऑनर्स, मैथ्स ऑनर्स, जूलॉजी, कॉमर्स के करीब सभी कोर्सों में दाखिला सीट से ज्यादा हुए हैं।


हंसराज कॉलेज के प्रिंसिपल वीके क्वात्रा ने बताया कि उनके यहां कुल 1140 सीटों में 550 सीट पर दाखिला हो चुका है। इनमें सबसे ज्यादा दाखिला कम्प्यूटर साइंस, बीकॉम ऑनर्स, बीकॉम और इंगलिश में हुआ है। उम्मीद है कि इन विषयों में सेकेंड कटऑफ लिस्ट न जारी की जा सके। हालांकि उनके यहां इकोनोमिक्स ऑनर्स और साइंस कोर्सों के लिए अभी सीट उपलब्ध है। 
हिन्दू कॉलेज में 744 सीटों में 731 सीटों पर दाखिला हो चुका है। हिन्दू कॉलेज के प्रिंसिपल विनय कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि उनके यहां भी दाखिले को देखते हुए उम्मीद की जा रही है कि सेकेंड कटऑफ में कॉमर्स और इकोनॉमिक्स के लिए हाउसफुल का बोर्ड लग जाए। 

दयाल सिंह कॉलेज के प्रिंसिपल आईएस बख्शी ने बताया कि उनके यहां 1404 सीटों पर 704 के करीब दाखिला हो चुका है। इनमे सबसे ज्यादा दाखिला बीकॉम ऑनर्स, इको ऑनर्स और मैथ्र्स आनर्स में हुए हैं और कॉलेज की तरफ से सेकेंड लिस्ट जारी करने में मुश्किल आ सकती है। यह भी संभावना जताई गई कि अंतिम दिन यहां हाउसफुल का बोर्ड लग जाए। सत्यवती कॉलेज में 1400 सीटों पर 222 पर अब तक दाखिला हुआ है।

छात्रों की हलचल से कैम्पस रहा गुलजार 

पहले कटऑफ में दाखिले लेने के लिए कैम्पस में छात्रों की हलचल शनिवार देर शाम तक देखने को मिली। कोई फर्श पर बैठकर अपना दाखिला फॉम भरते नजर आए तो कोई लॉन में अपने डॉक्यूमेंट समेटते दिखे। तेज धूप के बावजूद यहां भारी संख्या में ऐसे छात्र व उनके माता-पिता भी दिखे, जो दूसरी कटऑफ की जानकारी लेने दूसरे राज्यों से आए हुए हैं(दैनिक भास्कर,दिल्ली,19.6.11)।

झारखंडःएडीजे की परीक्षा आज

Posted: 18 Jun 2011 09:30 PM PDT

अपर जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रांरभिक परीक्षा आज हो रही है। आठ पद के लिए होनेवाली नियुक्ति के लिए 2300 वकीलों ने आवेदन दिया है। इसके लिए सात सेंटर बनाए गए हैं। 


परीक्षा एसएस डोरंडा बालिका उच्च विद्यालय +2 डोरंडा, श्री डोरंडा बालिका हाईस्कूल, हिनू यूनाइटेड स्कूल, गोस्सनर हाईस्कूल, डोरंडा बालिका हाईस्कूल, निर्मला कॉलेज और जेएमजे बालिका हाईस्कूल डोरंडा में होगी। इसमें सफल होनेवाले उम्मीदवार 200 अंकों की मुख्य परीक्षा में शामिल होंगे। इसके बाद 40 अंकों का साक्षात्कार होगा। मुख्य परीक्षा व साक्षात्कार के अंक को मिला कर मेरिट लिस्ट तैयार की जाएगी। हाईकोर्ट की ओर से वर्ष 2001 के बाद यह परीक्षा आयोजित की जा रही है। परीक्षा झारखंड सुपीरियर ज्युडीशियल सर्विस (रिक्रूटमेंट, एप्वाइंटमेंट एंड कंडिशन ऑफ सर्विस) रूल्स 2001 व 2010 के प्रावधानों के तहत होगी।
हाईकोर्ट ने एपीपी को परीक्षा में शामिल होने की अनुमति दी 

झारखंड हाईकोर्ट ने अपर जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए 19 जून को होनेवाली प्रारंभिक परीक्षा में दो एपीपी को शामिल करने की अनुमति प्रदान कर दी है। जस्टिस डीएन पटेल की अदालत ने एपीपी कृष्ण कुमार मिश्रा और सुजय बिहारी अंबष्ठ को परीक्षा में शामिल कराने के लिए औपबंधिक प्रवेश पत्र निर्गत करने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने इस मामले में सरकार से जवाब मांगा है। मामले पर अगली सुनवाई के लिए चार जुलाई की तिथि तय की गई है। 

हाईकोर्ट ने कहा कि इनके परीक्षाफल का प्रकाशन अदालत के अंतिम आदेश से प्रभावित होगा। याचिका में हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई है, जिसके तहत इनके आवेदन को सरकारी कर्मी बताते हुए खारिज कर दिया है। याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस करते हुए अधिवक्ता राजीव रंजन व राजीव आनंद ने बताया कि ये दोनों पेशे से वकील हैं। सरकार का पक्ष कोर्ट में रखते हैं। इन्हें सरकारी कर्मी बताना अनुचित है(दैनिक भास्कर,रांची,19.6.11)।

राजस्थान में 10वीं का रिजल्ट आज

Posted: 18 Jun 2011 09:01 PM PDT

राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड सेकंडरी परीक्षा 2011 का परिणाम रविवार शाम को घोषित करेगा। परिणाम www.examresult.net, rajeduboard.nic.in, rajasthaneducation.net, indiaresults.com, educationgateway.co.inआदि वेबसाइटों पर उपलब्ध होगा। बोर्ड सूत्रों के मुताबिक परीक्षार्थी द्वारा इंटरनेट पर स्कूल का नाम फीड करने पर संबंधित स्कूल के सभी परीक्षार्थियों का परिणाम भी सामने आ जाएगा(दैनिक भास्कर,अजमेर,19.6.11)।

डीयूःनामी के बाद ऑफ कैंपस की ओर बढ़े कदम

Posted: 18 Jun 2011 08:00 PM PDT

कैंपस के नामी कॉलेजों में दाखिला लेना कई छात्रों का सपना बनकर रह गया है। दाखिला न मिलने से मायूस छात्र डीयू के बाकी कॉलेजों की ओर रूख कर रहे हैं। एडमिशन की मारामारी के कारण बाकी कॉलेजों की सीटें भी तेजी से भरती जा रहीं हैं।

एआरएसडी कॉलेज के प्रिंसिपल डा. राकेश ने बताया कि उनके यहां शनिवार तक 600 से ज्यादा सीटें भर चुकी हैं। छात्र ज्यादा से ज्यादा संख्या में आ रहे हैं। दूसरी कटऑफ के बारे में उनका कहना हैं कि वह फिलहाल कुछ नहीं कह सकते कि छात्रों को कितनी राहत मिलेगी। वहीं सांध्य कॉलेजों में भी छात्रों का क्रेज बढ़ने लगा है।

मोतीलाल सांध्य के प्राचार्य बी.के.शर्मा कहते हैं कि कॉलेज में सामान्य वर्ग के लिए बीकॉम ऑनर्स में तीस सीटें है और सभी तीस सीटें भर चुकी है। कैंपस के बाहर के कॉलेजों की और भी छात्रों का रूझान दिख रहा हैं। पीजीडीएवी सांध्य कॉलेज के प्राचार्य रामजी नारायण ने बताया कि इस बार दाखिले में छात्रों की काफी भीड़ दिख रही है। बीकॉम ऑनर्स की सामान्य वर्ग की 39 सीटें है और बारह सीटों में दाखिला हो चुका है और दाखिले का एक दिन बाकी है।

आत्माराम में लिया दाखिला
दक्षिणी परिसर में सबसे ज्यादा इकोनोमिक्स, कॉमर्स, फिजिक्स, केमेस्ट्री और गणित कोर्सेस को लेकर मांग बढ़ने लगी है। बारहवीं में 92 प्रतिशत अंक पाने वाली नेहा बताती हैं कि वह केएमसी में इकोनोमिक्स में दाखिला लेनी चाहती थी। कटऑफ के कारण आत्मा राम में दाखिला लेना पड़ा।


विकल्प की तलाश
वेंकटेशवर कॉलेज के बी.कॉम में महज एक प्रतिशत से पीछे रह गए अमित कुमार कहते हैं कि वह शुरू से ही वेंकटेशवर में पढ़ना चाहते थे। लेकिन वह अब बाकी कॉलेजों में विकल्प तलाश रहे हैं। सौ प्रतिशत तक पहुंची कटऑफ से छात्रों के अभिभावक भी परेशान है। जहां शनिवार को नॉर्थ कैंपस सुनसान रहा वहीं साउथ कैंपस में दाखिले के लिए काफी भीड़ देखने को मिली।
(रोहित पंवार,हिंदुस्तान,दिल्ली,19.6.11)

छात्रों की पसंद बना यूपी बोर्ड

Posted: 18 Jun 2011 07:30 PM PDT

उप्र माध्यमिक शिक्षा परिषद कभी अपनी कठिन पढ़ाई, भारी भरकम पुस्तकों, कठिन प्रश्नपत्र और खराब परिणामों के लिए जाना जाता था। कभी रातों की नींद उड़ाने वाला यह बोर्ड अब छात्रों को लुभाने लगा है। छात्रों को बोर्ड परीक्षा देने से डर नहीं लगता। कम से कम आंकड़े तो यही गवाही दे रहे हैं। पढ़ाई व प्रश्नपत्रों के स्तर में चाहे जो गिरावट हुई हो, परीक्षार्थियों की संख्या में इजाफा हुआ है। पूर्व वर्षो के मुकाबले इस बार परीक्षा छोड़ने वाले भी घट गए हैं। यूपी बोर्ड ने पिछले कुछ वर्षो में अपनी प्रणाली में काफी बदलाव किए हैं। पिछले वर्षो में हर विषय का एक ही प्रश्नपत्र रखने, पाठ्यक्रम घटाने, मूल्यांकन में स्टेप मार्किग प्रणाली लागू करने की व्यवस्था की गई है। इन बदलावों व छूट ने माध्यमिक शिक्षा परिषद का क्रेज बढ़ा दिया है। स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2010 में हाईस्कूल में 3640110 छात्र पंजीकृत थे। इनमें से 334537 ने परीक्षा छोड़ दी थी। यह पंजीकृत छात्रों का कुल 9.2 प्रतिशत था। इस साल इंटर में 1536944 छात्र पंजीकृत थे। इनमें 58909 ने परीक्षा छोड़ दी। । यानि कुल मिलाकर वर्ष 2010 में 5177059 पंजीकृत छात्रों में 13 प्रतिशत ने परीक्षा छोड़ी। 2011 में हाईस्कूल में कुल 3659180 पंजीकृत थे। इनमें 420237 नेपरीक्षा छोड़ दी। इस साल इंटर में 2063015 छात्र पंजीकृत थे। इनमें 78947 ने परीक्षा छोड़ी। यह 3.8 प्रतिशत रहा। यानि वर्ष 2011 में कुल 5722195 पंजीकृत छात्रों में 15.28 फीसदी छात्रों ने परीक्षा छोड़ दी। 2010 के मुकाबले 2011 में कुल पंजीकृत छात्र संख्या में 10.5 प्रतिशत का इजाफा हुआ जबकि परीक्षा छोड़ने वालों की संख्या इस बार महज 2.28 प्रतिशत ही बढ़ी है। परीक्षा छोड़ने वालों का यह अनुपात पिछले सालों के मुकाबले खासा कम है। 2007 में कुल दस प्रतिशत ने जबकि 2008 में 13.7 प्रतिशत ने परीक्षा छोड़ी थी। यानि अंतर 3.7 प्रतिशत का था। जाहिर है परिषद की सुविधाएं अब हाईस्कूल-इंटर उत्तीर्ण करने की इच्छा रखने वाले छात्रों को लुभा रही हैं(एलएन त्रिपाठी,दैनिक जागरण,वाराणसी,18.6.11)।

भाजयुमो की सभी कॉलेजों में सांध्य कक्षाएं शुरू करने की मांग

Posted: 18 Jun 2011 07:00 PM PDT

अच्छे नंबर हासिल करने के बाद भी छात्र-छात्राओं को प्रवेश न मिलने से आक्रोशित भारतीय जनता युवा मोर्चा ने शनिवार को जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर सभी कॉलेजों में सांध्य कक्षाएं शुरू करने की मांग रखी। भाजपा दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष विजेन्द्र गुप्ता के नेतृत्व में धरने का आयोजन किया गया।

प्रदेश अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि सीबीएसई ने छात्रों को परीक्षा में पास करने के लिए जो प्रतिशत निर्धारित की है, उससे कहीं अधिक कट ऑफ कॉलेजों ने रखी है। ऐसे में अधिकतर छात्र पास होने के बावजूद उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए कॉलेज में दाखिला लेने में पिछड़ रहे हैं। ऐसे छात्रों की संख्या को देखते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के सभी कालेजों में द्वितीय पाली में कक्षाएं चलाई जाएं।

दिल्ली में बड़े पैमाने पर नए कालेज खोले जाएं। इस समस्या के हल के लिए दिल्ली में एक नया केन्द्रीय विश्वविद्यालय भी खोला जाए। केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल को एक ज्ञापन भी दिया गया।

गुप्ता ने कहा कि पिछले 13 वर्षो में दिल्ली में कांग्रेस का शासन है फिर भी न तो कोई नया कालेज इस सरकार ने खोला, न ही कालेजों में सीटों की संख्या में वृद्घि की। इसी का परिणाम है कि आज कट-ऑफ सूची 100 प्रतिशत, 98 प्रतिशत अंक पर जारी हो रही है। उन्होंने सवाल किया कि क्या 90 प्रतिशत अंक पाने वाले छात्र-छात्रओं का कोई भविष्य ही नहीं है?


नौकरी मिलना तो दूर की बात है यह सरकार तो छात्र-छात्रओं को पढ़ने भी नहीं देना चाहती है! उन्होंने कहा कि यह कांग्रेस सरकार तथा निजी शिक्षा माफिया की गहरी साजिश है। सरकार चाहती है कि शिक्षा व्यवस्था भी धीरे-धीरे निजी क्षेत्र संभाल ले जिससे आम जनता का भरपूर आर्थिक दोहन हो(हिंदुस्तान,दि्लली,19.6.11)।

नोएडाःकोर्स के लिए छात्र कर रहे राजस्थान का रुख

Posted: 18 Jun 2011 06:30 PM PDT

राजस्थान में खुल रहे विश्र्वविद्यालयों से नॉलेज पार्क के कॉलेज संचालकों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गई है। वहां के विश्र्वविद्यालय नॉलेज पार्क में स्थित कॉलेजों की लगभग आधी फीस पर एमबीए व बीटेक करा रहे हैं। जिस कारण नॉलेज पार्क से छात्रों का रुझान घटने लगा है। कोर्स करने के लिए छात्र राजस्थान का रुख कर रहे हैं। बीटेक व एमबीए के कोर्स के प्रति छात्रों की बढ़ती दिलचस्पी को देखते हुए नॉलेज पार्क में नए-नए कॉलेज खुल गए। वर्तमान में लगभग तीन दर्जन संस्थानों में बीटेक व एमबीए की पढ़ाई होती है। लेकिन लगातार बढ़ती फीस की वजह से नॉलेज पार्क के संस्थानों से छात्रों का मोह भंग होता जा रहा है। नए शिक्षा केंद्र के रूप में छात्रों को राजस्थान अधिक रास आ रहा है। वहां पर वर्तमान में 36 निजी व सरकारी विश्र्वविद्यालय संचालित हो रहे हैं। नॉलेज पार्क में बीटेक व एमबीए कोर्स की फीस प्रति वर्ष नब्बे से एक लाख बीस हजार रुपये हैं। जबकि राजस्थान के विश्र्वविद्यालयों में इन कोर्सो की फीस तीस से 65 हजार रुपये के बीच है। फीस के भारी अंतर के कारण कोर्स करने के लिए छात्र राजस्थान का रुख कर रहे हैं। एक कॉलेज के डायरेक्टर का कहना है कि कॉलेज में प्रवेश चल रहा है। अभी तक गिनती के छात्रों ने प्रवेश लिया है। प्रवेश की जानकारी के लिए आने वाले छात्र फीस सुनकर चौक जा रहे हैं। वह राजस्थान के विश्र्वविद्यालयों की कम फीस का हवाला दे रहे हैं। फीस में भारी अंतर को देखते हुए छात्र वहां का रुख कर रहे हैं। छात्र अर्पित, रिया व सोनू का कहना है कि फीस में लगभग आधे का अंतर है। चार साल की फीस में लगभग दो से ढाई लाख रुपये का अंतर आ जाता है। नॉलेज पार्क के कॉलेज से कोर्स करने के बाद गिने चुने छात्रों को ही नौकरी मिली है। प्लेसमेंट के लिए छात्रों को अपने स्तर से प्रयास करना पड़ता है। फीस के भारी अंतर को देखते हुए राजस्थान के विश्र्वविद्यालयों में प्रवेश का प्रयास किया जा रहा है(दैनिक जागरण,ग्रेटर नोएडा,18.6.11)।

100 प्रतिशत कट-ऑफ है खतरनाक संकेत

Posted: 18 Jun 2011 05:30 PM PDT

दिल्ली विश्वविद्यालय के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में दाखिले के लिए 100 प्रतिशत तक का कट ऑफ तय करने पर उठे विवाद पर एक अखबार में कार्टून छपा, जिसमें छठी-सातवीं कक्षा के एक विद्यार्थी को 99 प्रतिशत अंक लाने पर उसके माता-पिता उसे डांटते हुए कहते हैं कि सिर्फ 99 फीसदी। तुम्हारे कॉलेज पहुंचने के समय तो कट ऑफ 110 प्रतिशत तक हो जाएगा। गंभीरता से सोचें तो यह व्यंग्य एक खतरनाक भविष्य की ओर इशारा कर रहा है, जिसके लिए कोई और नहीं, बल्कि इस देश के नीति निर्धारक जिम्मेदार हैं। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल की नाराजगी और यह कहना कि इस मामले में वह पूरी तरह छात्रों और उनके अभिभावकों के साथ हैं, एक ऐसी सदिच्छा भर है जो इस देश की वास्तविकता और यथार्थ से कटी हुई है। अंग्रेजी मीडिया में बहस का रूप और दिशा देखें तो वह भी बहुत हास्यास्पद है। अधिकांश बहस इस बात पर है कि 100 प्रतिशत कट ऑफ कतई तर्कसंगत नहीं है, या गलत है और कट ऑफ अंक को व्यावहारिक होना पड़ेगा। हालांकि अनेक लोगों ने इसे मांग और आपूर्ति के नियम से जोड़ते हुए कहा कि समस्या दरअसल इसलिए है कि विद्यार्थियों की संख्या बढ़ती जा रही है और कॉलेजों में सीट उस अनुपात में नहीं बढ़ रही हैं। इसलिए बड़ी संख्या में उच्च गुणवत्ता वाले कॉलेजों और शिक्षा संस्थानों को खोलने की जरूरत है। यह तर्क यहां तक तो ठीक था, लेकिन इन उच्च वर्गीय लोगों के इस तर्क का अगला चरण यह था कि इसके लिए प्राइवेट सेक्टर को आगे आना होगा, क्योंकि सरकार के पास उतना धन-संसाधन नहीं है। यही दलील बहुत पहले से पूंजीवादी-शुद्ध मुनाफावादी मानसिकता के बुद्धिजीवियों की रही है। पूरा तर्क न केवल इसलिए खतरनाक है कि कॉरपोरेट और शुद्ध मुनाफावादी इन संस्थानों की ऊंची फीस को 120 करोड़ जनता का महज 2 से 4 प्रतिशत हिस्सा ही चुका पाएगा, अर्थात लगभग 96-98 प्रतिशत लोग गुणवत्ता वाली उच्च शिक्षा से वंचित रहेंगे और परिणाम स्वरूप वे सामाजिक पायदान पर कभी ऊपर नहीं आ पाएंगे। ज्यादा खतरनाक बात यह होगी कि इस 100 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाली संख्या के प्रतिभाशाली बच्चों की मेधा से देश और समाज वंचित हो जाएगा। इसका दूसरा खतरनाक दुष्परिणाम सामाजिक तनाव और संघषरें का पैदा होना होगा। माओवादियों के आंदोलन की समस्या का एक पक्ष यह भी है। दरअसल विविधताओं, बल्कि विषमताओं से भरे इस देश में इस समस्या की जटिलता को पूरे परिप्रेक्ष्य में समझने की जरूरत है। एडमिशन की समस्या का एक हल यह तो है ही कि अधिकाधिक संख्या में उच्च गुणवत्ता वाले संस्थान खोले जाएं, लेकिन सरकार का यह रोना कि इसके लिए कोष नहीं है, महज एक बहाना भर है। यहां बताना जरूरी है कि कांग्रेसनीत संप्रग सरकार ही ऐसा नहीं कहती, बल्कि भाजपानीत राजग का भी यही रुख रहा है। इस देश में आम जनता के लाखों करोड़ रुपये नेता-अधिकारी-माफिया हड़पते जा रहे हैं। इसमें सभी राजनीतिक पार्टियों के लोग शामिल हैं, लेकिन आम जनता के विकास, बेहतरी और उच्च शिक्षा के लिए धन का रोना रोया जाता है। कोठारी आयोग ने स्पष्ट रूप से शिक्षा पर जीडीपी का 6 प्रतिशत खर्च करने का निर्देश दिया था, लेकिन देश के शासक वर्ग को आम जनता की चिंता कब रही है। यहां यह बताना अनुचित न होगा कि प्राइवेट क्षेत्र के अधिकांश संस्थान आज नेताओं और मंत्रियों के हैं, जिनका उद्देश्य मुनाफा कमाना है। ये गुणवत्ता के मामले में बहुत पीछे हैं। आंध्र प्रदेश जैसे अनेक राज्यों में यह तस्वीर देखी जा सकती है। आज बहुत जरूरी है कि विद्यार्थियों की बढ़ती हुई तादाद को देखते हुए हर राज्य में जनसंख्या की प्रतिशतता के अनुपात में सेंट स्टीफेंस, श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स या हिंदू कॉलेज की तरह के कम से कम 10-15 कॉलेज खोले जाएं, जिनमें उच्च गुणवत्ता की शिक्षा प्रदान की जाए। केंद्रीय विश्वविद्यालयों की तर्ज पर इन्हें पूर्ण स्वायत्त रखा जाए ताकि नेताओं और अधिकारियों के हस्तक्षेप से मुक्त रहकर ये कार्य कर सकें। इसमें केंद्र सरकार की तरफ से 80 प्रतिशत और राज्य सरकारों की ओर से 20 प्रतिशत अंशदान होना चाहिए। अतिरिक्त कोष के लिए निजी क्षेत्र से सहायता ली जा सकती है, लेकिन निजी क्षेत्र की भूमिका यहां मुनाफाखोरी की न हो, इसका ध्यान रखने की जरूरत है। अनेक लोग ऐसे मामलों में सरकार से सहयोग करने के लिए तैयार रहते हैं, लेकिन उनका सरकारी तंत्र से भरोसा ही उठ गया है, अत: उन्हें विश्वास में लेने की जरूरत है। इसमें साफ-सुधरी छवि वाले अधिकारियों, शिक्षाविदों या समाजसेवियों की मदद ली जा सकती है। यहां यह भी रेखांकित करने की जरूरत है कि ये नए कॉलेज दिल्ली या विभिन्न राज्यों की राजधानियों में न खोलकर अन्य विभिन्न शहरों में खोले जाएं। इससे न केवल बड़े शहरों से बोझ घटेगा, बल्कि नए केंद्रों का विकास भी होगा। आज इस तरह के विकेंद्रीकृत विकास की सख्त जरूरत भी है। यहां अमेरिका का उदाहरण लिया जा सकता है। दुनिया के सर्वश्रेष्ठ हार्वर्ड, येल, प्रिंसटन, स्टैनफोर्ड, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कली या डेविस जैसे विश्वविद्यालय महानगरों में न होकर छोटे-छोटे शहरों में ही बसे हैं। छोटे शहरों में विद्यार्थियों का खर्च भी कम होगा। समस्या का एक अन्य पहलू है इन कॉलेजों के प्रवेश में सीबीएसई बोर्ड के छात्रों का एकाधिकार होना। होता यह है कि सीबीएसई बोर्ड परीक्षा में 90 प्रतिशत अंक लाना अत्यंत कठिन नहीं है। 95 प्रतिशत से ऊपर भी सैकड़ों छात्र होते हैं। 70-80 प्रतिशत लाना तो एक सामान्य बात है। जबकि राज्यों के बोडरें में तो 85-90 प्रतिशत पर तो छात्र टॉप कर जाते हैं। कई बार तो राज्यों के बोडरें में प्रथम श्रेणी लाना भी मुश्किल हो जाता है। हाल ही में झारखंड में बारहवीं का परिणाम आया है। अधिकांश छात्र द्वितीय और तृतीय श्रेणी में लटक गए हैं, जबकि इनमें से अनेक छात्र बहुत मेधावी हैं। मेरा प्रस्ताव है कि बारहवीं के अंकों में भी एक स्केलिंग या समायोजन किया जाए, जिससे विभिन्न राज्यों के प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को भेदभाव का शिकार न होना पड़े। यहां यह बताना जरूरी है कि राज्य बोडरें के स्कूलों में अधिकांश छात्र निम्न वर्ग से होते हैं, जो अत्यंत प्रतिभाशाली होने के बावजूद संसाधनों के अभाव में पीछे छूट जाते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि नीति निर्धारक जनहित में जल्दी ही उचित कदम उठाएंगे(प्रो. निरंजन कुमार,दैनिक जागरण,18.6.11)।
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Palash Biswas
Pl Read:
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