BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Tuesday, May 26, 2015

अंजनी कुमार की चार कविताएं: जी.एन. साइबाबा के नाम

अंजनी कुमार की चार कविताएं: जी.एन. साइबाबा के नाम





एक


मैं देख रहा हूं खबर
मैं पढ़ रहा हूं खबर
मैं डाउनलोड कर रहा हूं खबर पर एक रिपोर्ट
मैं देख लेना चाहता हूं
खबरों का पूरा सिलसिला,
यह जानते हुए भी कि खबरें बनाई गई हैं
शब्द मेंचित्र मेंकोड में ढलने से पहले
तराशी गई हैं बाजार के लिए
पाठक की आंख में घुसने से पहले
घुसपैठिये होंगे विज्ञापन
और फिर भीतर घुसता हुआ उनका तर्क,
फिर भी मैं सारी खबरों से गुजर जाना चाहता हूं,
मेरे पैसे का भुगतान सिर्फ इतना भर नहीं है कि
खबरें चुभती हुई गुजर जाएं आंख से,
मैं वसूल करना चाहता हूं वह हिकारत
जो अब भी फैली हुई है खबर के हर हर्फ़ पर
मैं उतनी ही हिकारत से पढ़ना चाहता हूं खबर
और उतनी ही शिद्दत से चूमना चाहता हूं शब्द
जो तुम्हारा प्रोडक्ट बनने में कुचल दिए गए हैं।



दो


मैंने कविता लिखी
लेख लिखे
कहानी लिखी
उपन्यास का पूरे विस्तार से खींचा खांचा
और इस तरह रोज ही
यहां से वहां दौड़ता रहा
जुटाता रहा किताब
कुछ लय
कुछ शब्द
कुछ नाटक के अंश
मैं पूरा शहर हो गया था
जहां मर रहा था गांव,
अटकलबाजी से हो सकती है राजनीति
और हो सकती है एक नए तरह की कविता
हो सकता है बहुत कुछ
जब तक बचा है शहर में अवकाश



तीन


मैं जानता हूं इस भव्य भवन में चलता है सिर्फ कानून का राज
देशसमाजव्यक्तिआजादीसब कानून हैं
और कानून के ऊपर हो तुम
भारत सरकार
इसके भी ऊपर है कोई...?
मेरा सवाल
और मेरा तुम्हें दिया गया संबोधन
तुम्हारे शक के दायरे से बाहर है
जिस बिना पर तुम
खारिज करते रहते हो कोई भी अपील,
जबकि मैं यहां बैठा हूं
तुम्हारे जेलखाने के अतल धसकती जमीन पर,
यहां अंधेरा उतर रहा है
चंद मिनट में भयावह चुप्पी में
मेरा धड़कता हुआ दिल ले चल रहा होगा
सुबह के सैलाब में
जिंदगी की पूरी कायनात में उतारने
जहां सांस लेने की बेफिक्री है
और अपनेपन का पूरा उजास,
तुम जो सिर्फ चेहरे बदल रहे हो
और भंगिमा एक ही बदशक्ल की तरह बनी हुई है
तुम अपनी जिंदगी का क्या कर रहे होगे भारत सरकार
एक और बिल
एक और कानून
एक और संविधान संशोधन
एक और काट-छांट
बदलती शक्ल में तुम
कितना रह सकोगे भारत
और कितनी सरकार
और मैं कितना नागरिक
और कितना देशद्रोही
मैं तुमसे बात कर रहा हूं भारत सरकार
तुम्हारे कोर्ट में नहीं
तुम्हारे इस जेलखाने के भीतर
जहां मैं कैद हूं तुम्हारे खिलाफ बगावत के जुर्म में
हांऐसा ही कहा गया है
मैं बनाम भारत सरकार।



चार


मैं एक झूठ में फंसा हुआ हूं
यह मिठाई खाने
दो रुपया चुराने
या पढ़ाई से मुंह चुराने का मसला नहीं है
यह फाइलों के बीच का गायब पन्ना नहीं है
यह दांतों में फंसा हुआ तिनका नहीं है
झूठ तो झूठ है
यह बहुत सारा नहीं, नहीं है
यह उबाल के ठीक पहले
के ताप जैसा है
यह इंतजार जैसा है
अर्थहीनआत्महीनबर्बर बनाता हुआ।

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