BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Thursday, May 29, 2014

पक्के हरामजादे है हमारे मसीहा आजकल

मसीहियत बदला लेने में नहीं बल्कि माफ़ करने में विश्वास करती है, इसलिए तुम भी उन्हें माफ़ कर दो

हिन्दू तालिबान -27 

पक्के हरामजादे है हमारे मसीहा आजकल 

भंवर मेघवंशी
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बसपा मूलतः बामसेफ नामक एक अधिकारी कर्मचारी संगठन था ,जिसमे अनुसूचित जाति ,जनजाति ,अन्य पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक समुदाय के कर्मचारी शामिल थे ,निसंदेह इस संगठन ने सामाजिक चेतना जगाने का काम पूरी शिद्दत से किया ,बाबा साहेब के ' पे बैक टू सोसाईटी ' के सिद्धांत को आधार बना कर समाज के पढ़े लिखे तबके ने बहुजन समाज को संगठित करने ,जागृत करने तथा संघर्षशील बनाने के कार्य में अद्भुत सफलता पाई ,शुरुआत में कांशीराम इसका नेतृत्व कर रहे थे ,लेकिन जब उन्होंने बामसेफ और दलित शोषित समाज संघर्ष समिती ( डी एस फोर ) को बसपा में बदल डाला तो पीछे रह गए कुछ लोगों ने बामसेफ को समाप्त करने के बजाय जिंदा रखने पर बल दिया और इस काम में जुट गए ,फलतः आज बामसेफ अपने कई समूहों व गुटों में मौजूद है ,हर गुट स्वयं को असली साबित करने में लगा रहता है ,अलग अलग प्रान्तों में अलग अलग समूहों का जोर है ,राजस्थान में जो गुट ज्यादा प्रभावी है वह वामन मेश्राम का है ,ये महाशय भी शुरुआत में मान्यवर कांशीराम के घनिष्ठ सहयोगी रहे थे ,बाद में बसपा बन जाने के बाद इन्होने बामसेफ के एक धड़े को नेतृत्व देना शुरू कर दिया ,मेश्राम आज भी सर्वाधिक सक्रिय बामसेफ समूह के नेता है ..
एक बार बामसेफ के मेश्राम गुट ने ' आरक्षण समाप्ति की ओर ' विषय पर राजसमन्द जिला मुख्यालय पर सम्मलेन आयोजित किया ,मुझे भी बतौर वक्ता आमन्त्रित किया गया ,सो मैं भी गया ,कई वक्ता बोल चुके थे ,मुख्य वक्ता बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम बोलने वाले थे ,इससे पहले ही केलवा राजकीय माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाचार्य सोहन लाल रेगर ने खड़े हो कर मंच पर मौजूद लोगो से एक सवाल पूंछा कि अगर सब लोगों को रोजगार का अधिकार मिल जाये तो क्या आरक्षण समाप्त हो सकता है ?बस इतनी सी बात पर माननीय वामन मेश्राम बुरी तरह भड़क गए ,वे सामान्य शिष्टाचार भी भूल गए और दलित गरिमा और स्वाभिमान की धज्जियाँ उड़ाते हुए बोले –रे रेगर ,तुझे प्रिंसिपल किसने बना दिया है ?सोहन लाल जी ने मेश्राम जी को टोका और बोले कि आप संसदीय भाषा नहीं बोल रहे है,माईंड योर लैंग्वेज .इस बात पर तो मेश्राम साहब बेकाबू ही हो गए ,बोले – ' मुझे तमीज सिखाता है ,मैं चांहू तो अभी मेरे लोग उठा कर इस सभा से तुझे बाहर फैंक देंगे ,चुपचाप बैठ ,सवर्णों के दलाल जैसे सवाल करता है .
बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष जिन्हें माननीय कह कर लोग सम्मानित करते है और एक बड़ा नेता मानते है ,उनके द्वारा किये गए इस तरह के घटिया व्यव्हार से हर कोई स्तब्ध था ,पर वहां एक चुप्पी सी छाई हुयी थी ,कोई भी साहब के गुस्से का शिकार नहीं होना चाहता था ,पता नहीं सोहन जी की तरह किसी और को भी अपमानित होना पड़े ,इसलिए कोई कुछ नहीं बोला ,लेकिन मैं कैसे सहन करता,मैंने माइक पर जा कर अपना गुबार निकाल ही दिया कि – ' हम इस तरह के व्यवहार का समर्थन नहीं कर सकते है ,बहुजन नायकों की ऐसी बेलगाम भाषा को हम सहन नहीं करेंगे ,हमारी पूरी लड़ाई ही इज्जत ,स्वाभिमान और गरिमा की है ,अगर कोई भी ,चाहे वो वामन मेश्राम साहब ही क्यों न हो ,हमारे लोगो के स्वाभिमान को ठेस पंहुचायेंगे तो हम उनसे भी संघर्ष को तैयार है ,हम अनंत समय तक कथित अपने रहनुमाओं और परायों से लड़ेंगे ,रही बात आज के इस निकृष्ट व्यव्हार की तो मैं मंच की ओर से आदरणीय सोहन लाल जी रेगर से क्षमा प्रार्थना करता हूँ और इस सभा का बहिस्कार करता हूँ ,हमें ऐसे लोगो की जरुरत नहीं है ,जो सवालों ,असहमतियों और आलोचनाओं से डर जाते हो .ऐसा कायर नेतृत्व हमें मंज़ूर नहीं है ,हमें समावेशी और धीर, गंभीर तथा सबको सम्मान देने वाला सामूहिक नेतृत्व चाहिए ' . मैं यह कह कर मंच से नीचे आ गया ,मेरे पीछे पीछे बड़ी संख्या में शेष लोग भी निकल आये ,अन्य कई मंचस्थ लोगों ने भी सभा छोड़ दी ,बचे रहे केवल मेश्राम और उनकी चंदा उगाओ –चंदा खाओ टीम ..इस दुखद अनुभव के बाद मैंने बामसेफ से एक दूरी बना ली ,वैचारिक रूप से आज भी बामसेफ को स्वयं के नज़दीक पाता हूँ पर रहबरों की कथनी और करनी के फर्क ने मुझे उनसे जुड़ने से पहले ही तोड़ डाला .
अब सुनता हूँ कि वामन मेश्राम का धंधा जोर शोर से चल रहा है ,उनकी दुकान चल निकली है ,पुरे मसीहा बन बैठे है ,जय भीम के नारे को उन्होंने जय मूल निवासी में बदल डाला है ,बामसेफ से पेट नहीं भरा तो भारत मुक्ति मोर्चा खड़ा कर लिया और अब राज सत्ता की ओर बढ़ने के लिए बहुजन मुक्ति पार्टी बना ली है ,चंदा उगाही का काम बदस्तूर जारी है ,मिशन के नाम पर सब कुछ जायज हो गया है ,समाज के लिए जीवन देने वाले मसीहा अपने ही कार्यकर्ता की अपने से आधी उम्र की बेटी से परिनय सूत्र बंधन में बंध कर शादीशुदा हो गए है ,खुद की कोई फैक्ट्री तो उनकी चलती नहीं है कि अपनी बुढ़ापे की इस शादी का रिसेस्प्शन निजी पैसों से करते सो समाज से संग्रहित धन से ही शानदार आशीर्वाद समारोह कर डाला ,बातें अब भी मिशन की ही होती है ,जीवन में बड़े मजे है ,मंचो पर समाज परिवर्तन के उपदेश और खुद की ज़िन्दगी में रत्ती भर भी बदलाव नहीं ,यह क्या हो जाता है हमारे मसीहाओं को अचानक ? ज्यादातर दलित नेता थोड़ी सी प्रसिद्धी मिलते ही ओरतखोरी पर क्यों उतर आते है ,कई बार इन रहबरों की कारगुजारियां बेहद पीड़ा के साथ मिशनरी साथी सुनाते है ,तब कहना पड़ता है कि पक्के हरामजादे हो गए है हमारे मसीहा आजकल ..दलित वर्ग की विडम्बना यह है कि कोई भी बाबा साहब के नाम पर मुर्खतापूर्ण थियरीज लेकर आ जाये ,उसे ही माननीय या साहब मान लिया जाता है ,विगत कई वर्षों से बहुत सारी अमरबेलें दलित समाज के निरंतर सूखते जा रहे पेड़ पर फलती फूलती रही है जो साल भर घूम घूम कर ' पे बैक टू सोसाईटी ' के नाम पर लोगों को मुर्ख बनाती है ,चंदा उगाहती है और साल के आखिर में एक अधिवेशन करके हिसाब किताब पूरा कर देती है ,इनका यही काम हो गया है ,बस बाबा साहब 
की कृपा से सबकी दुकानें चल रही है ,कोई अगर इस दुकानदारी पर सवाल खडा कर दे तो उसे ' यूरेशियन ब्राहमणों का दलाल ' घोषित कर देते है या चंदे के कूपनों में घोटाले का मुख्य आरोपी करार देते है ,बस्स उनका काम चलता रहता है और दलित बहुजन समाज अपना सिर धुनता रहता है ,यह निरंतर प्रक्रिया है ..दशकों से चल रही है,मेरा मानना है कि जब तक दलित बहुजन मूलनिवासी समाज के लोग अपने ही मसीहाओं से जवाबदेही नहीं मांगेगे तब तक हर दौर हरामी मसीहाओं का दौर ही रहेगा ..( जारी )
-भंवर मेघवंशी 
लेखक की आत्मकथा ' हिन्दू तालिबान ' का सताईसवा अध्याय

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