रांची के आदिवासियों द्वारा उनके संगठन 'झारखण्ड इंडिजिनस पीपुल्स फोरम' द्वारा 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस का आयोजन होता है. यह आयोजन किसी एनजीओ का उपक्रम नहीं है. हमें पता है आयोजकगण किस परिश्रम से और सहयोग मांग-मांग कर आर्थिक व अन्य व्यवस्थाएं जुटाते हैं. पर हमारे 'वामपंथी' मित्रों को यह एनजीओ टाइप आयोजन लगता है. सफेदी की चमकार का यह कैसा आत्ममुग्ध दावा है और आपको किसने हक दिया कि आप आदिवासी समुदाय के संगठनकर्ताओं को, उनके आयोजनों पर ऐसी हिकारत व अवमानना भरी टिप्पणी करें?
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