BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Sunday, May 12, 2013

बाट से भटक गया जाट आंदोलन By सत्यजीत चौधरी

बाट से भटक गया जाट आंदोलन

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अब यह समझना मुश्किल हो गया है कि जाट ज्यादा भोले हैं या आरक्षण के मुद्दे पर उनका कथित नेतृत्व कर रहे नेता और सरकारें ज्यादा चालाक। आजाद भारत के इतिहास अब तक इतना भटका, बिखरा और संदेहों से भरा कोई आंदोलन नहीं हुआ है। इस आंदोलन का सबसे दुखद पहलू है इसका कोई असली माई-बाप न होना। लगातार पैदा हो रहे नेता आंदोलन की ताकत लगातार बंट और बिखरा रहे हैं। पर्दे के पीछे चल रही चल रहीं दुरभि संधियां आंदोलन की रीढ़ पर सतत वार कर रही हैं।

जाट आरक्षण की मांग को लेकर अपनी दुकानों के साथ ढेरों नेता मैदान में हैं। दो—तीन बड़े संगठनों जैसे अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति (पार्ट वन और पार्ट टू) और संयुक्त जाट आरक्षण संघर्ष समिति के अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में ढेरों जाट संगठन उग आए हैं। हद तो यह है कि हाल में ही दिल्ली स्थित मावलांकर हॉल में अखिल भारतीय जाट महासम्मेलन का आयोजन किया गया,  जिसमे पूर्व केंद्रीय मंत्री नटवर सिंह और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ के अलावा हरियाणा का मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने शिरकत की। हरियाणा और पंजाब के कई पूर्व और मौजूदा मंत्री सम्मेलन में मौजूद थे। इस दौरान समुदाय के नेताओ   ने आरक्षण की लड़ाई को धार देने के लिए आंदोलन की कमान तेज-तर्रार नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय सिंह को सौंपने का निर्णय लिया। यानी आरक्षण के मुद्दे पर एक और जाट नेता का उदय।
दरअसल जाट आरक्षण आंदोलन की बासी—सी हो चली कढ़ी में एक बार फिर उबाल लाने की कोशिश की जा रही है। इस आंदोनल का स्वरूप शुरू से ही उग्र रहा है। कभी दिल्ली को पानी की सप्लाई रोककर तो कभी निषेध को तोडक़र कांग्रेस अध्यक्ष के आवास की तरफ कूच कर जाट नेता लगातार उद्दंड तेवर दिखाते रहे हैं। हाल में दिल्ली स्थित जंतर-मंतर पर एक गुट ने दूसरे को धरने को हाईजैक करने की कोशिश की। हाल में ही केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे के सरकारी आवास में कुछ जाट आंदोलनकारियों ने घुसकर तोडफ़ोड़ की।

इसमें कोई शक नहीं जाट एक जुझारू कौम है। देश के लिए उनकी सेवाएं, बलिदान और शौर्य गाथाओ का जब—तब जिक्र भी होता है, लेकिन जब बात हक-हिस्से की आती है तो इन धरती पुत्रों को हाशिये पर डाल दिया जाता है। आजादी के बाद से लगातार ऐसा हो रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हरित क्रांति लाने की जिम्मेदारी हो या हरियाणा में हरियाली का वाहक बनने का दायित्व, इस कौम ने जान लड़ा दी। राजस्थान, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जहां—जहां ये बिरादरी आबाद है, देश और समाज को अपना सर्वोच्च दे रही है, लेकिन जाटों को मेन स्ट्रीम में लाने की बात होती है तो कइयों के पेट में दर्द हो जाता है। जाट पिछले कई सालों से आरक्षण की लड़ाई लड़ रहे हैं। ओबीसी कोटे के तहत वे सरकारी नौकरियों और शिक्षा में अपनी हिस्सेदारी मांग रहे हैं, लेकिन उनकी इस जायज मांग को केंद्र और राज्यों की सरकारें बड़ी चालाकी से टालती आ रही हैं।
दरअसल देखा जाए तो जाटों की इस मांग का राजनीतिक दलों ने इस्तेमाल ही किया है। पिछले साल विधानसभा चुनाव से ऐन पहले बसपा प्रमुख मायावती में जाटों का दर्द जागा और उन्होंने केंद्र से जाटों को आरक्षण देने की मांग कर डाली। चुनाव हुआ और उनकी पार्टी सत्ता से बेदखल हो गई। अब काहे को मायावती जाटों की बात करेंगी। यही हाल दीगर पार्टियों को है। सभी को जातीय समीकरण देखकर चलना है, लिहाजा जाटों के अधिकारों की बात गोल—गोल की जाती है।

दूसरी बड़ी बात यह है कि जाटों के पास इस आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए कोई स्वभाविक नेता नहीं है। कभी खाया—अघाया कोई बिल्डर स्वत:स्फूर्त ढंग से आरक्षण आंदोलन की बागडोर संभाल लेता है तो कभी कोई दूसरा पैसे वाला। समुदाय की मजबूरी बन जाती है के वो अधिकार प्राप्त करने के लिए इनके साथ हो लेती है। बड़े जाट नेता हमेशा आरक्षण के मुद्दे से खुद को अलग रखते रहे हैं। स्व. महेंद्र सिंह टिकैत की पूरी राजनीति किसान और गन्ने तक सिमटी रही। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता चौधरी अजित सिंह खुद को जाट नेता कहलाने के बजाये राष्ट्रीय नेता के रूप में देखना ज्यादा पसंद करते हैं। जब मुखिया ने जाटों की तरफ से मुंह फेर रखा है तो राष्ट्रीय लोकदल भी आरक्षण को तव्वजो नहीं देती। यह बात दीगर है कि चौधरी चरण सिंह की विरासत की इज्जत करने वाले जाट ही छोटे चौधरी और उनके साहबजादे को वोट देते हैं।

जाटों में नेतृत्व का जो वैक्यूम पैदा हुआ, उसे भरने के लिए कई जाट नेता सामने आए। इनमें से एक हैं यशपाल मलिक, जिनके संगठन ने सबसे पहले पूरे दमखम के साथ इस मुद्दे को उठाया और दिल्ली का पानी रोककर सरकार को दिन में तारों के दर्शन करा दिए। यशपाल मलिक के उग्र तेवर और लोगों को जोडऩे की क्षमता को देखकर एक बार तो बिरादरी को यकीन हो गया कि जाटों को आरक्षण मिलकर रहेगा, लेकिन संगठन से एचपी सिंह परिहार और हवा सिंह सांगवान सरीखे नेताओ  के अलग होने या कर दिए जाने के बाद यशपाल मलिक का तिलिस्म टूट गया।

अब हालत यह है कि जाट आरक्षण आंदोलन में रह—रहकर उबाल आता है। कुछ दिन धरना—प्रदर्शन और सरकार को घेरने की उठा—पटख होती है। फिर जैसे ही किसान बुआई या कटाई में व्यस्त हो जाता है आंदोलन शीत निद्रा में चला जाता है। एक आंदोलन कई हिस्सों में बंटा हुआ है।

पिछले साल हरियाणा सरकार ने विशेष श्रेणी के तहत पांच जातियों को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 31.39 (थ्री वन प्वाइंट थ्री नाइन) फीसद आरक्षण देने का एलान किया। त्यागी, बिश्नोई, रोड़ के साथ पांच जातियों की फेहरिस्त में जाट और सिख जाट भी शामिल  है। नोटिफिकेशन भी हो गया, लेकिन अमल नहीं। चूंकि हुड्डा सरकार ने एक पहल की है, इसलिए जाटों से जुड़ा पूरा आंदोलन हरियाणा में जा सिमटा। पश्चिम उत्तर प्रदेश के जाट नेता, जैसे एचपी सिंह परिहार और यशपाल मलिक ने हरियाणा में तंबू गाड़ दिया। कभी हरियाणा में यशपाल मलिक के झंडाबरदार रहे हवा सिंह सांगवान अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के नाम से ही अलग संगठन चला रहे हैं और भूपेंद्र सिंह हुड्डा की शान में कसीदे पढऩे में किसी तरह की कोताही नहीं बरत  रहे हैं। दरअसल देखा जाए तो साल 2010  में मैय्यड़ कांड के दौरान यशपाल मलिक हरियाणा में जाटों के हीरो बनकर अवतरित हुए तो हवा सिंह सांगवान को यह बात बात अखर गई। हरियाणा के नेताओ  के होते हुए उत्तर प्रदेश का जाट नेता कैसे सियासी फसल काटे, यह उनको बर्दाश्त नहीं हुआ। तना—तनी बढ़ी और यशपाल मलिक के पॉलिटिकल फाइनेंसरों में से एक हवा सिंह ने हवा का रुख बदलते हुए अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के नाम से ही अलग संगठन खड़ा कर लिया।

इस कड़ी में तीसरा नाम आता है एचपी सिंह परिहार। परिहार भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बड़े जाट नेता हैं और संयुक्त जाट आरक्षण संघर्ष समिति के बैनर तले जाटों की लड़ाई लड़ रहे हैं। अभी कुछ समय पहले  उन्हीं के नेतृत्व में बड़ी संख्या मे जाट  जंतर मंतर  पर भी जुटे थे ।

इस आंदोलन की सबसे बड़ी ताकत एकता होती, जो सिरे से नदारद है। बकौल यशपाल मलिक  एक बार मेरठ में जाट आरक्षण आंदोलन को चौधरी अजित सिंह ने हाईजैक करने की कोशिश की थी। वही काम श्री मलिक ने एचपी सिंह परिहार के आंदोलन के साथ किया। हालांकि वह असफल रहे। अब दोनों धड़े एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। यशपाल मलिक गुट का कहना है के परिहार का आंदोलन राजनीति से प्रेरित है और पूरी मुहिम को कमजोर करने के लिए उन्हें भेजा गया है, जबकि परिहार के लोगों का कहना है कि एक आवाज पर इक्कसी दलों, खापों और जाट संगठन के हजारों लोग दिल्ली पहुंचे हैं। वह कहते हैं-यह बात जाहिर करती है कि कौन जाटों के लिए असली लड़ाई लड़ रहा  है।

सचाई तो यह है कि एकता को दरकिनार कर जाट वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। दरअसल देखा जाए तो कई जाट नेताओ की मंशा आरक्षण पाने की चाह कम और आंदोलन लंबा खींचने की मंशा ज्यादा दीख रही है । मिसाल के तौर पर यशपाल मलिक को देखा जाए। वह अब मुस्लिम जाट आरक्षण पर जोर दे रहे हैं, जबकि वह जानते हैं कि सरकार मुसलमानों की इस बिरादरी को आरक्षण देकर मधुमक्खी के छत्ते को छेडऩे जैसा काम कतई नहीं करेगी।

वैसे देखा जाए तो केंद्र सरकार वाकई जाट समुदाय के साथ न्याय नहीं कर रही है। आंदोलन में शामिल जाट नेताओ  के साथ पिछले कुछ सालों में सरकार की कई बार बात हो चुकी है। हर बार गोल—गोल बातें कर सरकार उन्हें मना लेती है। दरअसल सरकार भी सोची—समझी मैथमेटिक्स के साथ चल रही है। वह जानती है कि जाटों को आरक्षण दिया नहीं कि कई जातियां एकदम से आंदोतिल हो उठेंगी और सबको खुश करना सरकार के बूते में नहीं। पिछले महीने जब जाट जंतर-मंतर पर जुट रहे थे तो संसद में बैठे उनकी बिरादरी के कुछ प्रतिनिधियों को लगा कि उनको भी बोलना चाहिए, लिहाजा सांसद जयंत चौधरी और दीपेंद्र हुड्डा कुछ और पूर्व जाट सांसदों के साथ प्रधानमंत्री के पास जा पहुंचे। सांसदों ने डॉ. मनमोहन सिंह को बताया कि जाट पिछड़ रहे हैं और उन्हें आरक्षण नहीं देना नाइंसाफी होगी। पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक ने माना कि प्रधानमंत्री की तरफ से उन्हें कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया गया है।

दरअसल जाट नेताओ  को लग रहा है मिशन—2014 के तहत केंद्र सरकार जाटों के लिए आरक्षण का ऐलान कर सकती है। इस समय जाट नेतृत्व में जो अफरा—तफरी मची है, वह इसी गफलत का नतीजा है। कांग्रेस शासित राज्यों ने जले पर नमक छिडक़ने का काम किया है। राजस्थान और हरियाणा में राज्य स्तर पर जाटों को ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण दे दिया गया है, जबकि पंजाब के जाट इससे वंचित है।

आरक्षण को लेकर जाटों के आंदोलन का स्वरूप भ्रम में डालने वाला है। दिल्ली में अखिल भारतीय जाट महासम्मेलन में बिरादरी से जुड़े कई मसलों पर चर्चा हुई, लेकिन फोकसलाइन आरक्षण ही रहा। महासम्मेलन में हरियाणा के मुख्यमंत्री और उनकी काबीना की एक महिला मंत्री की मौजूदगी उल्लेखनीय रही। यहां यह गौरतलब है कि हुड्डा सरकार जाटों समेत पांच जातियों को विशेष श्रेणी के तहत आरक्षण दे चुकी है, लेकिन जाट ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण की मांग कर रहे हैं। इस मुद्दे पर हवा सिंह सांगवान जहां सरकार के साथ हैं, वहीं यशपाल मलिक धड़ा इस आरक्षण को मानने को तैयार नहीं है। मलिक गुट के नेताओ  की पिछले दिनों मुख्यमंत्री के ओएसडी से हुई बातचीत बेनतीजा रही थी।

उधर, उत्तर प्रदेश में एचपी सिंह परिहार खेमे का दावा है कि गृहंमत्री सुशील कुमार शिंदे ने चार महीनों में सभी प्रांतों में जाट समुदाय को आरक्षण देने का वादा किया है। अगर वादा पूरा नहीं किया गया तो फिर आंदोलन किया जाएगा। कुल मिलाकर जाट आंदोलन तारीखों, चेतावनियों, अल्टीमेटमों और आश्वासनों के भंवर में घूम रहा है। निर्रथक और दिशाहीन।

http://visfot.com/index.php/current-affairs/9148-jat-movement-story-1305.html

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