BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Saturday, May 5, 2012

महात्‍मा बनाम महात्‍मा की बहस चलाएँ

http://forwardpress.in/innerehindi.aspx?Story_ID=27

महात्‍मा बनाम महात्‍मा की बहस चलाएँ
Publish date (Thursday, May 03, 2012)


वामन मेश्राम
फॉरवर्ड प्रेस की बहुजन साहित्य वार्षिकी (अप्रैल 2012) देखकर मुझे बहुत खुशी हुई। एक बात का अफ़सोस ज़रूर हुआ कि यह वार्षिकी इतने कम पन्‍नों की क्‍यों है? हमारे लोग इससे संतुष्ट नहीं हो पाएँगे। वार्षिकी कम से कम वार्षिकी के हिसाब से अधिक पन्‍नों की होनी चाहिए थी। लोग इसके लिए पैसे देने को तैयार होंगे। मैं खुद उसकी 1000 प्रतियां खरीदूँगा।

यहाँ मैं वे बातें कहना चाहता हूँ जो फॉरवर्ड प्रेस को राष्ट्रीय स्तर स्थापित होने के लिए आवश्यक हैं। महात्मा फ़ुले के विचारों को यह मैगज़ीन ध्यानपूर्वक आगे बढा रही  है। यह एक अनूठा  प्रयास है। फुले की विचारधारा को आगे बढ़ाने का मतलब है आग में हाथ डालना। जिस ओबीसी वर्ग के लोगों के लिए फॉरवर्ड प्रेस में बातें लिखी जाती हैं, उस वर्ग के लोग महात्मा गाँधी को मानते हैं महात्मा फुले को नहीं। उत्तर भारत में राममनोहर लोहिया ने ओबीसी को गांधी के पीछे लगाया। योजना बनाकर, प्लान बनाकर। मैं ये बातें सारे डाक्यूमेंट्स और दस्तावेज़ के आधार पर कह रहा हूँ। गाँधी सवणों की वर्चस्ववादी राजनीति का बहुत बड़ा हथियार हैं।  दूसरी बात, जोतिराव फुले आज़ादी के आंदोलन को आज़ादी का आंदोलन नहीं मानते थे। बैकवर्ड क्लास के बहुत सारे लोग इस मानने से बिलकुल इनकार कर देंगे। आज़ादी के आंदोलन में महात्मा फ़ुले को शामिल करने का प्रयास किया गया। फुले ने उस आंदोलन में शामिल होने से इनकार कर दिया। यह उस वक्त की बात है जब गाँधी पैदा भी नहीं हुए थे। कांग्रेसी नेताओं ने छत्रपति शाहू जी महाराज को भी आज़ादी के आंदोलन में शामिल करने का प्रयास किया। छत्रपति शाहू जी महाराज ने भी आज़ादी के आंदोलन में शामिल होने से मना  किया। बाबासाहेब आंबेडकर के लिए भी दो बार प्रयास किया गया कि वह आज़ादी के आंदोलन में शामिल हों। आपको सुनकर हैरानी होगी कि उन्होंने भी आज़ादी के आंदोलन में शामिल होने से इनकार कर दिया था। मैं सोचता हूँ कि अगर हमारे महापुरुष आज़ादी के आंदोलन में शामिल हो गये होते तो कितना भयंकर परिणाम होता!

संविधान में अब जो बातें आप हमारे पक्ष की देख रहे हो, अगर महात्मा फुले और आंबेडकर आज़ादी के आंदोलन में शामिल हो गए होते तो आप वो भी नहीं देख पाते।

मैं मानता हूँ कि आज़ादी के दो आंदोलन चल रहे थे। एक आंदोलन कांग्रेस का, जो अँग्रेज़ों की गुलामी से ब्राह्मणों की आज़ादी का था। ब्राह्मणों को अँग्रेज़ों से 15 अगस्त 1947 को आज़ादी मिल गई और उनका आंदोलन समाप्त हो गया। लेकिन आज़ादी का दूसरा आंदोलन – ब्राह्मणों से आज़ादी का आंदोलन – अभी चल रहा है।  

दोस्तों, ओबीसी पर विचार-विमर्श करने से पहले हमें ओबीसी के समाजशास्त्र को समझना होगा। वर्ष 1952 में जब पहला पिछड़ा वर्ग आयोग बनाया गया तब महाराष्ट्र का ब्राह्मण भी ओबीसी में था। इसलिए आयोग के अध्यक्ष पद की ज़िम्मेवारी एक ब्राह्मण काका कालेलकर को दी गई। इसके विरोध में बाबासाहब आंबेडकर ने (केंद्रीय कैबिनेट से) इस्तीफ़ा तक दे दिया।  बाबासाहब कहते थे कि पुणे का ब्राह्मण सबसे अधिक बदमाश होता है। कालेलकर तो ब्राह्मण होने के साथ-साथ गाँधीवादी भी था। इसलिए वह डबल बादमाश था। एक बार उसे एक ज़िले में भ्रमण के लिए जाना था। उसने मुसलमान कलेक्टर को लिखा कि खाना बनाने वाला ब्राह्मण ही चाहिए। इसकी बदमाशी का एक दूसरा प्रमाण यह कि जब कालेलकर कमीशन ने अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को दी तो कालेलकर ने अलग से 30 पन्नों का एक स्पेशल पत्र नेहरु को दिया, जिसमें उसने लिखा था कि आयोग की रिपोर्ट से वह सहमत नहीं है। इसी पत्र को आधार बनाकर नेहरू ने आयोग की रिपोर्ट को सदन में रखने भी नहीं दिया।

अंत में मैं कहना चाहता हूं कि आपको महात्मा वर्सिस महात्मा एक विशेष अभियान चलाना चाहिए। महात्मा जोतिराव फुले बनाम महात्मा गाँधी। इसके लिए बहुत कलेजा और जिगर चाहिए। यह जिगर फ़ारवर्ड प्रेस के पास है ऐसा मैं मानता हूँ। मैं जो सलाह दे रहा हूँ, वह  अलोकप्रिय होने का तरीका है, मगर यह तरीका अपनाए बगैर आप आगे नहीं बढ़ सकते। हमें और आपको  यह तरीका अपनाना ही होगा। अभी तक फॉरवर्ड प्रेस ने जो लिखा है वह वाकई में बल्ले-बल्ले कराने वाला है। मैं तो यह भी कहूँगा कि फॉरवर्ड प्रेस को हर साल वृहत स्तर पर बहुजन साहित्यकारों का सम्मेलन आयोजित करना चाहिए, ताकि बहुजन वर्ग के साहित्य को आगे बढाया जा सके।

वामन मेश्राम बामसेफ और भारत मुक्त मोर्चा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष हैं। उपरोक्त 20 अप्रैल 2012 को कॉन्सटिट्यूशन क्लब, नई दिल्ली में आयोजित फॉरवर्ड प्रैस की तीसरी सालगिरह पर दिए गए उनके भाषण के संपादित अंश हैं।

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