BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Wednesday, October 7, 2015

पुरस्कार लौटाने से कुछ बदलने वाला नहीं है अगर हम लड़ाई के मैदान में कहीं हैं ही नहीं! पलाश विश्वास


पुरस्कार लौटाने से कुछ बदलने वाला नहीं है अगर हम लड़ाई के  मैदान में कहीं हैं ही नहीं!

पलाश विश्वास

कृपया देखेंः

https://youtu.be/6oH9KoIk52A


Did Gandhi endorse the Hindu Nation? Had he any role in partition at all?

फिर क्यों गांधी की हत्या कर दी हिंदुत्व ने और हत्या का वह सिलिसिला क्यों जारी है?




    • अशोक वाजपेयी के लिए चित्र परिणाम

  • अशोक वाजपेयी

  • कवि

  • अशोक वाजपेयी समकालीन हिंदी साहित्य के एक प्रमुख साहित्यकार हैं। सामाजिक जीवन में व्यावसायिक तौर पर वाजपेयी जी भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक पूर्वाधिकारी है, परंतु वह एक कवि के रूप में ज़्यादा जाने जाते हैं।विकिपीडिया

  • जन्म: 1941, दुर्ग

  • पुस्तकें: Kabhi-Kabhar, P-pratinidhi Kavita(g.m.m), अधिक


अपने प्रिय मित्र उदय प्रकाश के बाद अंग्रेजी की मशहूर लेखिका नयनतारा सहगल ने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिये तो आज माननीय अशोक वाजपेयी ने भी साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया।धन्य हैं वे लोग जो इस हैसियत में हैं तो कुछ लौटा दें तो सारा देश,महादेश उन्हीं का गुणगान करता है।


हमउ कछु लौटा देते,का करें,लौटाने लायक मिला ही नहीं कुछ।


कुल चार लोगों ने साहित्य अकादमी विजेता कुलबर्गी की हत्या के बाद साहित्य अकादमी के पुरस्कार लौटा दिये हैं और आगे यह कारवां यकीनन लंबा होने वाला है।इस कारवां का स्वागत है।


खास बात यह है कि उदय प्रकाश,अशोक वाजयेयी और नयनतारा सहगल किसी राजनीतिक खेमे से जुड़े हैं,ऐसा आरोप उनके घनघोर दुश्मन बी लगा नहीं सकते।हालांकि साहित्य में उनकी अपनी अपनी राजनीति रही होगी।उससे हमें लेना देना भी कुछ नहीं है।उसीतरह जैसे मजहबी मुक्त बाजारी राजनीति से हमें कुछ भी लेना देना नहीं है।


बल्कि अशोक वाजपेयी को तो हमने कभी जनपक्षधर कवि या साहित्यकार या संस्कृति कर्मी माना ही नहीं है और न उनके लिखे का कभी खास नोटिस लिया है।वे प्रशासक रहे हैं और साहित्य में भी उनकी भूमिका प्रशासक से बेहतर नहीं है।


हमें उनसे खास मुहब्बत भी नहीं है।वे प्रभाष जोशी के खास मित्र रहे हैं जो उन्हें दारुकुट्टा कहते रहे हैं।


हमारे लिए तो वे तो आपातकाल के दौरान भारत भवन भोपाल के सर्वेस्रवा हैं और भोपाल को भारत की सांंस्कतिक राजधानी बनाने में उनने अपने प्रशासकीय हैसियत को इंदिरा गांधी की एकाधिकार सत्ता को सांस्कृतिक परिदृश्य बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और उनके इस तिलिस्म में कैद हो गये थे भारत के अनेक जनपक्षधर संस्कृतिकर्मी।हम उस हादसे को भूल भी नहीं सकते।


फिरभी अशोक वाजपेयी ने अंततः इस देश के लोकतंत्र और उसके विविध सांस्कृतिक स्वरुप के पक्ष में साहित्यअकादमी का पुरस्कार लौटाया तो हम उसका स्वागत करते हैं।


हमें माफ करें,वीरेनदा या मंगलेश दा ने पुरस्कार न लौटाये तो इस राजनीतिक अवस्थान के मद्देनजर हम उन्हें अशोक वाजपेयी के मुकाबले कमतर नहीं मानते और हर हालत में,हजार बार उन्हींको बेहतर और जनपक्षधर कवि मानते रहेंगे।


आदरणीय विष्णु खरे ने उदय प्रकाश के साहित्य अकादमी के पुरस्कार लौटाने पर एक पत्र सनसनीखेज लिखकर टाइमिंग का सवाल उठाया था।


विष्णु खरे जी का हम लोग बेहद सम्मान करते हैं।


उदय प्रकाश हमारे मित्रों में हैं,उनसे प्यार वार,नफरत,दोस्ती या दुश्मनी का रिश्ता भले हों,उनका हम उस तरह सम्मान कर नहीं सकते,जैसे हम विष्णुजी का सम्मान करते रहे हैं।


हमें टाइमिंग से लेना देना नहीं है।देश में जो फासीवादी राजकाज है और जैसे बेगुनाह मजहबी सियासत के शिकार बनाये जा रहे हैं और जातियों की जंग में कुत्तों की लड़ाई की तरह सत्ता की जो राजनीति है,उसके खिलाफ संस्कृतिकर्मियों के विरोध दर्ज कराने के मौलिक अधिकार का सम्मान हम करते हैं।


इसीलिए हमने उदय प्रकाश के सौ खून माफ करते हुए उसकी इस पहल का स्वागत किया था।


साथ ही हमने निवेदन किया था कि पुरस्कार लौटाने से सबकुछ बदल नहीं जायेगा,जबतक न कि हम जमीन पर रीढ़ सीधी करके फासीवाद के खिलाफ देश दुनिया को लामबंद करने की कोई हरकत न करें।इसलिए हमने किसी से पुरस्कार लौटाने को नहीं कहा।तब साहित्य अकादमी विजेता हमारे वीरेन दा जीवित थे और मंगलेशदा अब भी  सक्रिय हैं।


उनने पुरस्कार नहीं लौटाये या दूसरों ने भी नहीं लौटाये तो यह उनका फैसला है।हम अब भी कह रहे हैं कि पुरस्कार लौटाने से कुछ बदलने वाला नहीं है अगर हम लड़ाई के  मैदान में कहीं हैं ही नहीं।


बहरहाल मीडिया के मुताबिक पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की रिश्तेदार नयनतारा सहगल के बाद अब जान-माने साहित्यकार अशोक वाजपेयी ने भी आज साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया। दोनों ने दादरी में गोमांस खाने की अफवाह के बाद एक शख्स की हत्या और कुछ साहित्यकारों की हत्या होने के विरोध में यह पुरस्कार लौटाया है।


वाजपेयी ने अपने फैसले के बारे में कहा कि एक व्यक्ति की सिर्फ इस अफवाह पर हत्या कर दी गई कि उसने गोमांस खाया था? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ऐसा अपराध करने वालों को रोकना होगा।जाने-माने कवि और राष्ट्रीय ललित कला अकादमी के पूर्व प्रमुख अशोक वाजपेयी को उनकी कविताओं के लिए साल 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने पुरस्कार लौटाने का फैसला करने के बाद एक-एक कर इसकी वजह भी बताई।

वाजपेयी ने कहा, नयनतारा सहगल ने अपना पुरस्कार लौटा दिया। वे अंग्रेजी में लिखने वाली पहली भारतीय साहित्यकार हैं, जिन्होंने इस मामले में अपना विरोध दर्ज कराया है। आमतौर पर अंग्रेजी में लिखने वाले साहित्यकार ऐसे पचड़े में नहीं पड़ते। अगर उन्होंने पहल की है तो उनकी मदद करनी चाहिए।

वाजपेयी ने कहा कि साहित्य अकादमी हम सभी लेखकों के लिए राष्ट्रीय संस्था है। वह लेखकों के हित में क्यों नहीं खड़ी हुई? उसने हत्याओं की निंदा क्यों नहीं की? उसने सरकार पर दबाव क्यों नहीं डाला ताकि इस मामले में कार्रवाई हो? पुरस्कार लौटाने की यही वजह है। हम नवंबर में एक अधिवेशन भी करेंगे ताकि बुद्धिजीवी आगे आएं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में खड़े हों।

अशोक वाजपेयी ने कहा- प्रधानमंत्री को न सिर्फ बयान देना चाहिए और बोलना चाहिए बल्कि यह भी देखना चाहिए कि इस तरह की घटनाओं में तुरंत न्यायिक प्रक्रिया चले और ऐसे लोगों को रोका जाए। भारत बहुधार्मिक देश है। बहुभाषिक देश है। इसकी बहुलता पुरानी और सभी का स्वागत करने वाली है। ऐसे भारत में अफवाहों के आधार पर, धर्म के आधार और धार्मिक रिवाज को लेकर एक व्यक्ति की हत्या कर दी जाए कि उसने गोमांस खाया है? जबकि उसका कोई प्रमाण नहीं है?


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