BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

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Thursday, October 8, 2015

कब तक अन्‍धविश्‍वास की बलि चढ़ती रहेंगी महिलाएं - मज़दूर बिगुल

Satya Narayan and मज़दूर बिगुल shared a link.
ग़ौर करने लायक तथ्य यह है कि अधिकांश मामलों में इस निरंकुश कुप्रथा की आड़ में ज़मीन हथियाने और ज़मीन संबंधी विवादों को कानूनेतर तरीकों से सुलटाने के इरादों को अंजाम…
  • इस तरह की घटना न तो पहली है न ही आखि़री। ग़ौरतलब है कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2008-2013 के बीच इसी तरह डायन घोषित करके झारखण्ड में 220 महिलाओं, उड़ीसा में 177 महिलाओं, आंध्रप्रदेश में 143 महिलाओं और हरियाणा में 117 महलाओं को मौत के घाट उतार दिया गया। इस दौरान पूरे देश में ऐसी 2,257 हत्याओं को अंजाम दिया गया। यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि यह आँकड़े संपूर्ण वास्तविक तस्वीर को बयान नहीं करते क्योंकि अधिकतर मामले या तो पीड़ित परिवार वाले गुनाहगारों के डर से दर्ज नहीं कराते या फिर पुलिसवाले मामले को दर्ज करने में आनाकानी करते हैं।

    अक़सर इस बर्बर कुप्रथा का दंश अकेली रह रही विधवा महिलाओं को झेलना पड़ता है। डायन घोषित करके उन्हें बर्बर तरीके से प्रताड़ित और अपमानित किया जाता है। निर्वस्त्र करना, सिर मुंडवाना, दाँत तोड़ना, मल-मूत्र खाने और जानवरों का खून पीने को बाध्य किया जाना, जान से मार डालना तो इस बर्बरता के कुछ उदाहरण मात्र है। जिन महिलाओं को मारा नहीं जाता उन्हें गाँव से बेदखल कर जीवन के बुनियादी संसाधनों तक से वंचित करके नए इलाकों में रहने के लिए बाध्य कर दिया जाता है। वैसे तो कहने के लिए कई राज्यों (झारखंड, छतीसगढ़, बिहार, उड़ीसा और राजस्थान) में डायन कुप्रथा के खि़लाफ़ कानून भी मौजूद है पर किताबों की शोभा बढा़ने के अलावा उनके अस्तित्व का कोई महत्व नहीं है।

    ग़ौर करने लायक तथ्य यह है कि अधिकांश मामलों में इस निरंकुश कुप्रथा की आड़ में ज़मीन हथियाने और ज़मीन संबंधी विवादों को कानूनेतर तरीकों से सुलटाने के इरादों को अंजाम दिया जाता है। अक़सर जब किसी परिवार में पति की मृत्यु के बाद ज़मीन का मालिकाना उसकी स्त्री को हस्तांतरित होता है तब नाते-रिश्तेदार ज़मीन को हथियाने के लिए इस बर्बर कुप्रथा का सहारा लेते हैं। विधवा महिला को डायन घोषित करके तमाम प्रकोपों, आपदाओं-विपदाओं, दुर्घटनाओं, बीमारियों के लिए ज़िम्मेदार ठहराकर उसकी सामूहिक हत्या कर दी जाती है और इस तरह ज़मीन हथियाने के उनके इरादे पूरे हो जाते हैं। चूँकि भारतीय जनमानस में भी यह अंधविश्वास, कि उनके दुखों और तकलीफ़ों के लिए डायनों द्वारा किया गया काला जादू ज़िम्मेदार है, गहरे तक जड़ जमाये हुए है इसलिए वह डायन घोषित की गई महिलाओं की हत्या को न्यायसंगत ठहराने के साथ ही साथ इन क्रूरतम हत्याओं को अंजाम दिए जाने की बर्बर प्रक्रिया में भी शामिल होता है। निजी संपत्ति पर अधिकार जमाने की भूख को इस बर्बर निरंकुश स्त्री विरोधी कुकर्म से शांत किया जाता है।
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