BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Welcome

Website counter
website hit counter
website hit counters

Sunday, September 20, 2015

देश को आजाद कराने के लिए क्यों छोड़ा नेताजी ने देश और क्यों सत्ता वर्ग ने उन्हें जिंदा दफना दिया? क्या चल रहा था नेताजी के दिलोदिमाग में? क्यों नेताजी पूंजीवाद और साम्राज्यवाद से बड़ा खतरा मान रहे थे हिंदुत्व के पुनरूत्थान को मुल्क और इंसानियत के लिए? क्यों नेताजी स्टालिन से प्रेरित होकर जर्मनी पहुंच गये जंग में हार का नतीजा जानते हुए? क्यों नेताजी की लगातार चेतावनियों के बावजूद कांग्रेस ने पूरे देश को जोड़ने की कोई कोशिश नहीं की? नेताजी ने दो टुक शब्दों में कह दियाः मुसलमान हमारे दुश्मन हैं और अंग्रेज हमारे दोस्त हैं ,यह मानसिकता हमारी समझ से बाहर है। उनने कहा कि राजनीति का पहला सबक यह है कि हम याद रखें कि हमारा दुश्मन विदेशी साम्राज्यवाद है।फिर याद रखना है कि विदेशी साम्राज्यवाद के सहयोगी जो हैं,जो भारतीय नागरिक और भारतीय संगठन साम्राज्यवादियों के हमजोली हैं,हमारे दुश्मन वे तमाम लोग और उनके वे तमाम संगठन भी हैं। विडंबना है कि जिस कांग्रेस के सिपाही खुद को मानते रहे हैं नेताजी शुरु से आखिर तक,नेताजी की गुमशुदगी के मामले में वही कांग्रेस कटघरे में हैं।


देश को आजाद कराने के लिए क्यों छोड़ा नेताजी ने देश और क्यों सत्ता वर्ग ने उन्हें जिंदा दफना दिया?

क्या चल रहा था नेताजी के दिलोदिमाग में?

क्यों नेताजी पूंजीवाद और साम्राज्यवाद से बड़ा खतरा मान रहे थे हिंदुत्व के पुनरूत्थान को मुल्क और इंसानियत के लिए?

क्यों नेताजी स्टालिन से प्रेरित होकर जर्मनी पहुंच गये जंग में हार का नतीजा जानते हुए?

क्यों नेताजी की लगातार चेतावनियों के बावजूद कांग्रेस ने पूरे देश को जोड़ने की कोई कोशिश नहीं की?


नेताजी ने दो टुक शब्दों में कह दियाः

मुसलमान हमारे दुश्मन हैं और अंग्रेज हमारे दोस्त हैं ,यह मानसिकता हमारी समझ से बाहर है।


उनने कहा कि राजनीति का पहला सबक यह है कि हम याद रखें कि हमारा दुश्मन विदेशी साम्राज्यवाद है।फिर याद रखना है कि विदेशी साम्राज्यवाद के सहयोगी जो हैं,जो भारतीय नागरिक और भारतीय संगठन साम्राज्यवादियों के हमजोली हैं,हमारे दुश्मन वे तमाम लोग और उनके वे तमाम संगठन भी हैं।


विडंबना है कि जिस कांग्रेस के सिपाही खुद को मानते रहे हैं नेताजी शुरु से आखिर तक,नेताजी की गुमशुदगी के मामले में वही कांग्रेस कटघरे में हैं।


पलाश विश्वास

http://www.epaper.eisamay.com/


सच अभी मालूम नहीं है।


नेताजी अगर जिंदा थे,तो उन्हें किसने मारा और हत्यारे ने कोई सबूत पीछे नहीं छोड़ा कि इस महादेश के नेताजी क व्यक्तित्व कृतित्व पर परदा जो तना हुआ है.उसे एक झटके से हटा दिया जाये और कातिल का चेहरा भी बेनकाब हो जाये।


ममता बनर्जी और नरेंद्र भाई मोदी के साथ साथ संघ परिवार का एजंडा मालूम है।लेकिन ममता बनर्जी ने एक तीर से दो निसाने साधकर कांग्रेस और वामपंधियों को किनारे करके जनसंहारी अश्वमेध में हिंदुत्व सुनामी का नये सिरे से जो महाआयोजन किया है,वह संघ परिवार के लिए खतरे की घंटी भी है प्रलयंकर।


जगजाहिर है कि हमारे तमाम कामरेड ऐतिहासिक भूलों के लिए मशहूर हैं और लकीर के फकीर भी वे बने हुए हैं बेशर्म और जनता ने इसकी सजा बी उन्हें खूब दी है।


ममता दीदी का धन्यवाद कि नेताजी का रहस्य खुला भी नहीं तो क्या,नेताजी के दिलोदिमाग में हिंदुस्तान की जो तस्वीर थी और उनकी आजादी का जो मतलब था,वे सारी बातें अब सार्वजनिक हैं।


मसलन आज सुबह के संस्करण में बांग्ला दैनिक एइ समय ने अंतर्ध्यान से पहले नेताजी का बंगाल में 24 परगना युवा सम्मेलन को संबोधित भाषण का पुलिसिया रिकार्ड हूबहू छाप दिया है।


इस भाषण से पता चलता है कि नेताजी द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले से आजादी की खुशबू महसूस ही नहीं रहे थे बल्कि आजादी के लिए हर तैयारी कर रहे थे।आजादी जीतने के लिए हर जंग के लिए वे तैयार थे।इसी जंग के लिए वे जनता को जोड़कर मोर्चाबंद करने के मुहिम में लगे थे तो कांग्रेस ने उनका साथ कतई नहीं दिया।


अपने इस संबोधन में दुनियाभर की घटनाओं का उनने विश्लेषण किया।पूंजी वाद और साम्राज्यवाद के गढ़ों को ढहाने के लिए वे स्टालिन के साथ हिटलर की मोर्चाबंदी को रणनीतिक तौर पर सही मान रहे थे और मान रहे ते कि इस महादेश को अंग्रेजी हुकूमत के खात्मे के बाद पूंजी और साम्राज्यवाद से सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचने वाला है और इसे रोकने के लिए जोसेफ स्टालिन की रणनीति को वे सही मान रहे थे।


भारत छोड़ने की उनकी प्रेरणा निर्णायक आजादी की लड़ाई छेड़ने की मुकम्मल तैयारी थी।


इस भाषण से साफ जाहिर है कि नेताजी बेहद बेचैनी के साथ महसूस करने लगी थी कि कांग्रेस कोई आजादी वाजादी की लड़ाई लड़ ही नहीं रही थी।आजादी की लड़ाई को नेतृत्व देने की बात तो बहुत दूर की कौड़ी है,वैश्विक हालात और बरतानिया की शिकस्त को नेताजी  जिस तरह पढ़ पा रहे थे,तथाकथित राष्ट्रीय नेता उसे सिरे से नजरअंदाज कर रहे थे और सारे के सारे लोग किसी भी तरह,येन तेन प्रकारेण  सत्ता पर काबिज होने के फिराक में थे।



दूसरी तरफ, नेताजी बार बार गुहार लगा रहे थे कि देश के तमाम वामपंथियों, सेकुलर और डेमोक्रेटिक ताकतों का गठजोड़ बनाकर कांग्रेस आजादी का हीरावल दस्ता बने और हिंदुत्व के पुनरूत्थान के खिलाफ जमकर लोहा लें।


नेताजी मान रहे थे कि मुसलमानों से नफरत की वजह से मुल्क का बंटवारा करने पर तुली हैं सबसे ज्यादा हिंदुत्ववादी ताकतें और कांग्रेस जानबूझकर उन ताकतों की मददगार है।


नेताजी मान रहे थे कि हिंदुत्व से इंसानियत का मुल्क हिंदुस्तां की सरजमीं का चप्पा चप्पा खतरे में है जो आज भी सबसे बड़ा हकीकत है।नेताजी ने तब बंगाली युवाजनों को चेता रहे थे कि हिंदू महासभा का,संघ परिवार का मुकाबला डटकर नहीं किया तो पूरा देश जलेगा नफरत की आग में और खून की नदियां बहेंगी।


वही तो हासिल हुआ है और बाकी सबकुछ नेताजी की तरह गुमशुदा है।किसी को मालूम भी नहीं है कि जिंदा भी है या मर गया है नेताजी की तरह सबकुछ।


युवाजनों का वे वक्त की चुनौतियों का मुकाबला करने की तैयारियों में चुस्त चाकचौबंद और लामबंद रहने का आवाहन कर रहे थे और उनकी चेतावनी थी कि वक्त का मुकाबला न किया तो बंगाल तो क्या सारा देश सांप्रदायिक हो जायेगा और हिंदुस्तान तबाह हो जायेगा।वे हिंदुत्व को मुल्क और इंसानियत के लिए सबसे बड़ा खतरा बता रहे थे।


संघ परिवार के लिए नेताजी को भगवान बनाकर पूजना उतना ही आसान है जैसे वे फिलवक्त अंबेडकर को विष्णु का अवतार बनाने को तुले हुए हैं।अंबेडकर और नेताजी के डायनामाइट से उनके हवाई किले सबसे पहले तहस नहस होने हैं।


सारी अफवाहें बिना किसी सबूत के नेताजी के हत्यारे बतौर नेहरु को कटघरे में खड़ा करने के मकसद से हैं।


दीदी ने जो दस्तावेज जारी किये हैं,उससे कांग्रेस और वामपंथी भले कटघरे में खड़े हैं,लेकिन किसी भी सूरत में साबित नहीं हुआ है कि आखिर इस देश की सबसे अजीज शख्सियत का अंजाम क्या हुआ और सच यही है कि पहले जैसे लापता थे नेताजी,इन दस्तावेजों के जगजाहिर होने के बावजूद उसीतरह लापता है नेताजी।


केंद्र के पास जो 135 फाइलें है ,जाहिर है कि उनसे नेहरु को हत्यारा साबित किया नहीं जा सकता।


वरना अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार उन्हें तभी सार्वजनिक कर देती।नेहरु और कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करने से नहीं चूकती।


केंद्र के बजाय बंगाल सरकार की पहल पर भी संघ परिवार में मामूली सी हलचल नहीं है।


ऐसा करिश्मा क्यों हो रहा है,इस पर खास गौर करने की जरुरत है।

ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि नेताजी पूंजी और साम्राज्यवाद से भी बड़ा खतरा हिंदुत्व को मान रहे थे और संघ परिवार इस सच को किसी कीमत पर उसीतरह लाना नहीं चाहती।


उसीतरह  जैसे अंबेडकर की पूजा अर्चना के सिवाय अंबेडकर के विचारों और खासकर उनके आर्थिक विचारों से संघियों,कांग्रेसियों या वामपंथियों को कुछ लेना देना नहीं है।


जाति उन्मूलन के जरिये वर्गीय ध्रूवीकरण की हर गुंजाइश को खत्म करने की कोशिशों का नाम है क्लास रूल,क्लास कास्ट हेजेमनी की यह सियासत जो चरित्र से फासीवादी है और इसीवजह से राष्ट्र सैन्य व्यवस्था में तब्दील है।नागरिकों के तमाम हकहकूक का काम तमाम और जनसंहारी अश्वमेध है तरक्की का नाम।


नेताजी के इस भाषण में अंध राष्ट्रवाद का नामोनिसां नहीं है जिसका अवतार उन्हें आजाद देश की सियासत ने बनाया है और न फासीवाद के हक में नेताजी खड़े थे जबकि भारत में फासीवाद को रोकने की हरचंद कोशिश के लिए वे जनता की लामबंदी के लिए  लड़ रहे थे और उनके इस फासीवादविरोधी इंसानियत की जमीन पर तामीर हुआ आजाद हिंद फौज का मुकम्मल हिंदुस्तानी फौज जिसका हिंदुत्व से दूर दूर का वास्ता नहीं है।


कांग्रेस को अपने पापों का घड़ा फूटने का डर रहा होगा लेकिन संघ परिवार को उससे बड़ा डर है कि सच उजागर हो गया तो नेताजी उसके हिंदुत्व के एजंडा के लिए जिंदा या मुर्दा बेहद भारी पड़ने वाले हैं और इसीलिए संघ परिवार की दो दो सरकारे नेताजी की 135 फाइलों पर खामोश बैठी रही और इस मुल्क से उनका सरोकार बस बिजनेस फ्रेंडली हुकूमत का नस्ली वर्चस्व वेले अबाध पूंजी का राजकाज है,जिसके सखत खिलाफ रहे हैं नेताजी।


यहां तक कि  नेताजी साम्राज्यवाद,पूंजी और फासीवाद के त्रिशुल के मुकाबले जहर से जहर काटने की तर्ज पर फासीवादियों के साथ स्टालिन के नक्शेकदम पर लामबंद होकर एकमुस्त अमेरिकी और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के साथ साथ हिंदुत्व के पुनरूत्थान को भी शिकस्त देने की कोशिश कर रहे थे।


मजहबी सियासत जिनकी पूंजी है,नफरत की नींव पर खड़े हैं जिनके तमाम शीशे के तिलिस्म,उनके लिए नेताजी से बढ़कर कोई खथारा दूसरा नहीं हो सकता।


इसीलिए संघ परिवार इन सवालों से टकराने से परहेज कर रहा है किः


देश को आजाद कराने के लिए क्यों छोड़ा नेताजी ने देश और क्यों सत्ता वर्ग ने उन्हें जिंदा दफना दिया?


क्या चल रहा था नेताजी के दिलोदिमाग में?


क्यों नेताजी पूंजीवाद और साम्राज्यवाद से बड़ा खतरा मान रहे थे हिंदुत्व के पुनरूत्थान को मुल्क और इंसानियत के लिए?


क्यों नेताजी स्टालिन से प्रेरित होकर जर्मनी पहुंच गये जंग में हार का नतीजा जानते हुए?


क्यों नेताजी की लगातार चेतावनियों के बावजूद कांग्रेस ने पूरे देश को जोड़ने की कोई कोशिश नहीं की?


मेरे पिता पुलिनबाबू ने और उनके दोस्त बनारस में शहीद मणींद्र बनर्जी के सबसे छोटे भाई स्वतंत्रतासेनानी बसंतकुमार बनर्जी की खास कोशिश रही है कि कमसकम नेताजी क्या हैं,मैं इसे समझ लूं।


इतिहास कायदे से पढ़ भी नहीं पाया था कि उनदोनों ने मिलकर मुझे पहले और दूसरे विश्वयुद्ध का इतिहास सारे ब्यौरों के साथ पढ़ा दिया और तबसे लेकर ये सवाल हमरे वजूद के हिस्से हैं और हम उनसे टकराकर बार बार बारंबार लहूलुहान होते रहे हैं कि देश का बंटवारा किन्हीं विदेशी ताकतों की न साजिश है और न कारस्तानी।


बंटवारा उन्हीं लोगों ने कियाजो फिर बंटवारे पर आमादा हैं।


यह कुरुक्षेत्र बेइंतहा,बेपनाह सजाया हमारे ही लोगों ने जिन्हें हम राष्ट्र नेता के बतौर हर वक्त अपने साथ नत्थीकिये हुए हैं और उन्ही साजिशों और कारस्तानियों का कुल नतीजा यह है कि नेताजी जनता की नजर में जो हैं सो हैं,सेकुलर और डेमोक्रेट,कम्युनिस्ट और माओवादियों की नजर में भी फासिस्ट खलनायक गद्दार हैं नेताजी  और जो असल गद्दार,असल खलनायक,असल फासिस्ट हैं वे सारे के सारे सेकुलर डेमोक्रेट हैं।


नेताजी की फाइलों में दरअसल यही राज दफन है और इंसानियत के मुल्क को फासीवाद के शिकंजे से रिहा करने वास्ते इस सच का खुलासा करना बेहद जरुरी है और उन सवालों का जवाब भी खोजना अनिवार्य है,जिसका सामना न करने से आज देश में हर कहीं आग लगी हुई है और हर कहीं खून की नदियां बहने लगी हैं और हर किसीके हाथ पांव तो कटे ही कटे हैं,चेहरा तक गायब है।


अपने वजूद के बारे में मालूमात करने के लिए बी ये सवाल बेहद मौजू हैं किः

देश को आजाद कराने के लिए क्यों छोड़ा नेताजी ने देश और क्यों सत्ता वर्ग ने उन्हें जिंदा दफना दिया?


क्या चल रहा था नेताजी के दिलोदिमाग में?


क्यों नेताजी पूंजीवाद और साम्राज्यवाद से बड़ा खतरा मान रहे थे हिंदुत्व के पुनरूत्थान को मुल्क और इंसानियत के लिए?


क्यों नेताजी स्टालिन से प्रेरित होकर जर्मनी पहुंच गये जंग में हार का नतीजा जानते हुए?


क्यों नेताजी की लगातार चेतावनियों के बावजूद कांग्रेस ने पूरे देश को जोड़ने की कोई कोशिश नहीं की?


अब उस भाषण के कुछ टुकड़े आपके लिए पेश हैंः


24 परगना युवा सम्मलन में नेताजी ने अपने भाषण में ब्रिटिश प्रधानमंत्री चैंबरलेन के इस्तीफे का जिक्र करते हुए कहा कि वे संकट की घड़ी में प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर सर्वदलीय सरकार में मामूली मंत्री बन सकते हैं तो भारत की आजादी की लड़ाई में शामिल तमाम लोग कांग्रेस में क्यों नहीं हो सकते और कांग्रेस को वामपंथियों से इतनी परहेज क्यों है।हूबहू अनुवादः


नेताजी ने कहाः1938 में म्युनिख समझौते से जो अमन चैन का दावा किया गया,उसीसे साफ जाहिर है कि फिर जंग लाजिमी है।तबसे लगातार चीख रहा हूं कि वक्त के मुकाबले के लिए तैयार हो जाइये।तब कोई तैयारी की नहीं।अब लड़ाई जब शुरु हो चुकी है और 8-9 महाने बीत गये,तब भी आप कुछ कर नहीं रहे हैं।...हमने जबाव में कहा और आज भी कहता हूं कि अगर आजादी की लड़ाई में हम हार भी गये तो परवाह नहीं,हमें आजादी की जंग लड़नी होगी।हमें पीछे हटना नहीं है और आगे बढ़ते चले जाना है।लड़ाई से पहले हाथ पांव जोड़कर बैठ जाने का कोई मतलब है नहीं।1921 में आंदोलन हुआ।1930 में हुआ।1932 में हुआ।हम हारते रहे हैं।उस हार से हमें शर्मिंदा होने की जरुरत नहीं है।क्योंकि उन हारों के जरिये हमने लड़ाई के मार्फत अपने आत्मसम्मानबोध का परिचय दिया।और इन्हीं हारों से आजादी का जुनून पैदा हुआ और वही हारें हमारी ताकत में तब्दील हैं।हम कह भी सकते हैं कि कमसकम हमने कोशिश की।कमसकम एक पार्टी लड़ रही थी।लेकिन हम नाकाम रहे क्योंकि गांधीजी की कांग्रेस ने हमारा साथ नहीं दिया….


नेताजी ने कहाः

यूरोप में इतना उथल पुथल है और कांग्रेस वर्किग कमिटी क्या कर रही है।कोई काम करना तो दूर,एकसाथ बैठकर इस मसले पर कोई सलाह मशविरा की भी नौबत नहीं है।वे अंग्रेज अगर लेटलतीफ हैं,तो हम क्या हैं,मुझे मालूम नहीं है।लेकिन उम्मीद है कि देश के युवाजन हालात पर जरुर गौर करेंगे।वे अपने खून की गर्मजोशी जरुर जाहिर करेंगे,मुझे उम्मीद है।


नेताजी ने कहाः


हमारे लिए सबसे बड़ा कार्यभार यह है कि हम किस तरह पूरे मुल्क को जोड़कर एक बना दें।यह जो भीषण परिस्थितियां हैं,हम एकसाथ लामबंद हुए बिना किसी भी सूरत में उनका मुकाबला कर नहीं सकते।हम लोग एकताबद्ध होने के लिए जो कुछ कर रहे हैं,वह कतई काफी नहीं है।


नेताजी ने कहाः

सवाल यह है कि कांग्रेस में यह विभाजन क्यों है।राष्ट्रहित में गांधी वादी और वामपंथी अलग अलग क्यों हैं,सवाल यह है।क्यों नहीं उनमें एकता होती,सवाल यह है।नार्वे पर हमला हुआ तो ब्रिटिश प्रधानमंत्री को लगा कि हालात के मुकाबले पहल उन्हीं को करनी चाहिए।उनने कर दी पहल।यही असल देशभक्ति है।अब भी उनमें (अंग्रेजों में) देशभक्ति है।मिस्टर चैंबरनलेन ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और नये मंत्रिमडल में मामूली मंत्री भी बन गये। कितना निःस्वार्थ होने पर ऐसा संभव है,सोचें।नतीजा यह हुआ कि ब्रिटेन में सारे दलों में एकता हो गयी।



नेताजी ने कहाः

उनकी जैसी भयंकर समस्या है,उससे कम भयंकर हमारे हालत नहीं हैं।अगर हमारी युवाशक्ति जाग रही होती तो बहुत पहले देश एकताबद्ध हो गया होता।

नेताजी ने कहाः

कांग्रेस के बाहर जो ताकतें हैं,उनका और कांग्रेस का एका क्यों नहीं हो पा रहा है,सवाल यह है।यह एकता तभी संभव है जब हम सारे लोग मिलजुलकर कोशिश भी करें।हम कोशिश करें कि जो हालात हैं,उनके मुकाबले कांग्रेस के मध्य हम पूरे देश को एकजुट करें।बाहर जो हैं खड़े,उनको कांग्रेस में शामिल करके पूरे देश को लामबंद किया जाये,फौरी जरुरत इस कोशिश की है।इस कोशिश में जान की बाजी दांव पर लगानी है।हम कोशिश करें और फेल हो जाये,यह अलग किस्सा है।लेकिन अफसोस कि कोई कोशिश ही नहीं हो रही है।


इस भाषण की शुरुआत में पूंजी और साम्राज्यवाद के मुकाबले स्टालिन की पहल को उनने तरजीह दी।


नेताजी ने कहाः

...इस महायुद्ध में शुरु से लेकर आजतक की सारी घटनाएं जो घटित हुई,उनका अंदेशा किसी को नहीं था।जब पहले दुनिया में लोगों को मालूम पड़ा कि जर्मनी और रूस में समझौता हो गया,तो लोगों को यकीन न हुआ।क्यों नहीं हुआ यकीन,इस पर गौर करें क्योंकि तब तक जर्मनी लगातार लगातार सोवियत संघ पर हमले करता रहा।किसी को यकीन ही नहीं हुआ कि इस दुश्मनी का कोई अंत कहीं होना है।इस दुश्मनी की वजह विचारधाराओं में फर्क रहा है।लेकिन हैरतअंगेज करिश्मा यह हुआ कि जो नाजी रोजाना कम्युनिस्टों पर हमला किये बिना अन्नजल ग्रहण नहीं कर रहे थे उनने रातोंरात वैचारिक मतभेद भूलकर तुरतफुरत कम्युनिस्टों के साथ समझौता कर लिया।…


अब नेताजी के भाषण के इस हिस्से पर खास गौर करेंः

नेताजी ने कहा-

लड़ाई का कोई विकल्प नहीं है।यह लड़ई तब शुरु हो गयी जब,रामगढ़ में हमने सोचा कि देश के किस सूबे में,किस जिले में हम लड़ाई कैसे शुरु करें।बांग्लादेश (संयुक्त बंगाल) के संदर्भ में सोचा यही गया कि हम व्यक्ति के नागरिक अधिकारों को मुद्दा बनाकर लड़ें सबसे पहले।वजह यह थी कि बंगाल में जिसतरह आर्डिनेंस पर आर्डिनेंस जारी करके नागरिक अधिकारों का निर्मम हनन हो रहा था,वैसा दूसरे सूबों में नहीं हो रहा था।जब आर्डिनेंस के खिलाफ हमने पहली सभा की तो हमें मालूम न था कि सरकार बहादुर की क्या प्रतिक्रिया होगी।पता नहीं क्यों, किस सुबुद्धि या दुर्बुद्धि के तहत सरकार बहादर ने हमपर हमले नहीं किये।कहीं कहीं गिरफ्तारियां हुईं लेकिन व्यापक गिरफ्तारियां नहीं हुईं।इस जनवरी से हमने फिर नागरिक अधिकारों के लिए आंदोलन शुरु किया है।इसका नतीजा यह है कि पिछले सितंबर में जो हमारे नागरिक हक हकूक थे,उन्हें दोबारा बहाल करने में हमें कामयाबी मिल गयी…


आगे नेताजी ने जो कहा है उसपर ताजा हालात के मद्देनजर खास गौर करने की जरुरत है।


नेताजी ने कहा-

हम तथाकथिक कानून तोड़कर आंदोलन कर रहे हैं और किसी भी बाधा को हम मान नहीं रहे हैं।लेकि हमें रोकने वाली सरकार कभी कभार और अक्सरहां दूसरे दलों को सभा करने की खुली इजाजत दे रही है..नदिया जिले में हमने इजाजत मांगी तो नहीं दी गयी।लेकिन हिंदू महासभा ने सम्मेलन करने की जब इजाजत मांगी तो दे दी।...हमें किसी की इजाजत की जरुरत नहीं है।रामगढ़ के बाद बहुत गिरफ्तारियां हुई हैं और गिरफ्तारियों का सिलसिला आगे भी जारी रहने वाला है क्योंकि आंदोलन जारी है।लडा़ई के तौर तरीके हर सूबे में और हर जिले में अलग अलग होंगे।


फिर नेताजी ने चेतावनी दी एकदम खुली चेतावनी।


नेताजीने कहाः


हम जैसे आजादी के लिए लड़ रहे हैं वैसे ही प्रतिक्रियावादी ताकतों का भी हमें मुकाबला करना है।बहुतों को ऐतराज है कि हम जंग शुरु करने के बाद म्युनिसिपल चुनावों में क्यों हिंदू महासभा से भिड़ गये।अगर जिस जनशक्ति के सहारे हम आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं,वह कांग्रेस में आस्था खो दें और कांग्रेस विरोधी दूसरे संगठन पर यकीन कर लें तो कांग्रेस का क्या होगा और भारतीय राष्ट्रवाद का क्या होगा,मसला यह है।


फिर नेताजी ने जिस गहराते फासीवादी हिंदुत्व पुनरूत्थान के संकट को आजादी,मुल्क और इंसानियत के लिए सबसे बड़ा संकट बताया,हम आज उसीके शिकंजे में हैं और इसीलिए खास गौर करें कांग्रेस को चुनौती दे रही हिंदू महासभा से राष्ट्र और राष्ट्रवाद को सबसे बड़ा खतरा बताते हुए नेताजी ने कहाः


भारतीय राष्ट्रवाद का यह शत्रू तत्व है और इसे हराने की हमारी चुनौती है। आज हिंदू महासभा मुसलिम विद्वेष से प्रेरित अंग्रेजी हुकूमत के साथ खड़ी दीख रही है।उनका एक ही मकसद है किसी भी तरह मुसलमानों को सबक सीखाना।इस मकसद को हासिल करने के लिए वे अंग्रेजों का साथ देने में हिचकिचायेंगे भी नहीं।अंग्रेजों की कदमबोशी करने से भी उन्हें खास परहेज नहीं है।


नेताजी ने दो टुक शब्दों में कह दियाः

मुसलमान हमारे दुश्मन हैं और अंग्रेज हमारे दोस्त हैं ,यह मानसिकता हमारी समझ से बाहर है।


उनने कहा कि राजनीति का पहला सबक यह है कि हम याद रखें कि हमारा दुश्मन विदेशी साम्राज्यवाद है।फिर याद रखना है कि विदेशी साम्राज्यवाद के सहयोगी जो हैं,जो भारतीय नागरिक और भारतीय संगठन साम्राज्यवादियों क हमजोली हैं,हमारे दुश्मन वे तमाम लोग और उनके वे तमाम संगठन भी हैं।


मेरे ख्याल से इतना अनुवाद ही काफी है हाजमे के लिए।


मूल भाषण जो एई समय में छपा है,उसका इमेज नत्थी कर रहा हूं और इस मुल्क से,इंसानियत से जिन्हें मुहब्बत है वे खुद पढ़ लें।


बांग्ला नहीं आती तो तर्जुा करके पढ़ लें और दूसरों को जरूर पढ़ा दें क्योंकि जब नेताजी ने यह भाषण दिया था तब देश फासीवाद के शिकंजे में नहीं था और कांग्रेस तब भी आजादी की लड़ाई लड़ रही थी।अब हालात उससे कहीं भयंकर हैं।


अब कांग्रेस वह कांग्रेस भी नहीं है और सियासत मजहब और हुकूमत फासीवादी है और मुल्क बाजार।


विडंबना है कि जिस कांग्रेस के सिपाही खुद को मानते रहे हैं नेताजी शुरु से आखिर तक,नेताजी की गुमशुदगी के मामले में वही कांग्रेस कटघरे में हैं





  1. नेताजी सुभाषचंद्र बोस का ऐतिहासिक भाषण ...

  2. www.ajabgjab.com/.../netaji-subhash-chandra-bose-sp...

  3. Translate this page

  4. Dec 30, 2014 - सन् 1941 में कोलकाता से नेताजी सुभाष चन्द्र बोस अपनी नजरबंदी से भागकर ठोस स्थल मार्ग से जर्मनी पहुंचे, जहां उन्होंने भारत सेना का गठन किया। जर्मनी में कुछ कठिनाइयां सामने आने पर जुलाई 1943 में वे पनडुब्बी के जरिए सिंगापुर ...


  5. नेताजी सुभाष चंद्र बोस की असली भाषण ...

  6. Video for नेताजी का भाषण▶ 5:02

  7. www.youtube.com/watch?v=h2jxmiw8jA0

  8. Jan 2, 2010 - Uploaded by Pranjal Chaudhary

  9. नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा दिया भाषण से एक!

  10. नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूल वीडियो (बंगाली ...

  11. Video for नेताजी का भाषण▶ 3:24

  12. www.youtube.com/watch?v=eOoru0GR3VY

  13. Jul 28, 2012 - Uploaded by NetajiSubhashVideos

  14. नेताजी सुभाष चंद्र बोस (बंगाली)। नेताजी सुभाष की मूल वीडियो ....भारत,नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सच्चे योद्धा! अधिक 04:59 .... कम दिखाएँ पढ़ें ...


  15. एक दूरदराज के गांव में नेता जी का भाषण था ...

  16. www.bhaskar.com › Madhya Pradesh › Gwalior

  17. Translate this page

  18. Jul 27, 2015 - एक दूरदराज के गांव में नेता जी का भाषण था। करीब 25 मील के सड़क प्रवास के पश्चात जब वे सभा स्थल पर पहुंचे तो देखा कि वहां सिर्फ एक किसान उन्हें सुनने के लिए बैठा हुआ था। उस अकेले को देख नेता जी निराश भाव से बोले, "भाई, तुम तो एक ...

  19. सुभाष चन्द्र बोस - विकिपीडिया

  20. https://hi.wikipedia.org/wiki/सुभाष_चन्द्र_बोस

  21. Translate this page

  22. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जब नेता जी ने जापान और जर्मनी से मदद लेने की कोशिश की थी तो ब्रिटिश सरकार ने अपने ख़ुफ़िया एजेंटों को 1941 में उन्हें ख़त्म करने का आदेश ..... इस अधिवेशन में सुभाष का अध्यक्षीय भाषण बहुत ही प्रभावी हुआ।

  23. जन्म और कौटुम्बिक जीवन - ‎शिक्षादीक्षा से लेकर ...


--
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...