BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Welcome

Website counter
website hit counter
website hit counters

Wednesday, September 9, 2015

हिंदी अँगने में तुम्हारा क्या काम है ? विष्णु खरे


क्षमा कीजिएगा,आनंदजी की इस सूची का फ़ायदा उठाकर आपको अपनी वह टिप्पणी
भेज रहा हूँ जो कुछ संशोधनों के बाद बी.बी.सी. पर आई है.
Vishnu Khare <vishnukhare@gmail.com>


हिंदी अँगने में तुम्हारा क्या काम है ?

विष्णु खरे


भारत ही संसार का एकमात्र देश है जहाँ बॉक्स-ऑफिस पर सफल अभिनेताओं-अभिनेत्रियों तथा स्टेडियम में कामयाब क्रिकेटरों को ब्रह्माण्ड के किसी भी विषय का विशेषज्ञ मान कर चला जाता है.आप सल्मान ख़ान को सौर-ऊर्जा और ईशांत शर्मा को ईशावास्योपनिषद पर परामर्श देते देख-सुन सकते हैं.उन जैसों की  सेलेब्रिटी आड़ में अपना बौद्धिक दीवालियापन और अलोकप्रियता छिपाने, भीड़ तथा स्पाँसर जुटाने और मीडिया-कवरेज सुनिश्चित करने के लिए सरकारें और संस्थाएँ किसी-न-किसी बहाने उन्हें मंच पर अपनी बग़ल में बैठाल ही लेती हैं.

इस भोपाली विश्व हिंदी सम्मेलन को ही लीजिए.पिछले एक-दो में मैं गया हूँ और बाक़ी के बारे में बतौर पत्रकार पढ़ा-सुना-छापा है.नागपुर के बाद ही मेरा विश्वास दृढ़ हो गया था कि इस सम्मेलन सहित हिदी के नाम पर चल रहे ऐसे सारे आयोजनों और संस्थानों को,जिन्हें आढ़तें और दूकानें कहना अधिक उपयुक्त होगा, अविलम्ब और स्थायी रूप से बंद कर देना चाहिए. मेरे अनेक विदेशी हिंदी विद्वान मित्र इस विश्व सम्मेलन से बहुत दुःखी और निराश रहते हैं.हाँ,मुफ़्तखोर हिन्दीभाषी हिंदी ''विद्वानों'' के लिए यह विभिन्न जुगाड़ों की एक स्वर्ण-संधि रहती है.और इस बार तो अवतार-पुरुष अमिताभ बच्चन के ऐतिहासिक दरस-परस, सैल्फ़ी-सान्निध्य की प्रबल संभावना है.देखते हैं कौन बनता है करोड़पति.

यूँ अमिताभजी की हिंदी पैडिग्री शंकातीत है.वह हिंदी के ''मधुशाला'' जैसे लोकप्रिय काव्य और ''क्या भूलूँ क्या याद करूँ'' सरीखे दिलचस्प,भले ही नैतिक रूप से कुछ संदिग्ध, आत्मकथा-खंड के प्रणेता,लेकिन अंग्रेज़ी के एम.ए.पीएच.डी. इलाहाबादी प्राध्यापक  हरिवंशराय ''बच्चन'' के बेटे हैं,हिंदी उनकी मातृभाषा है,जो कि बहुत कम फिल्मवालों के लिए कहा जा सकता है, और हिंदी साहित्य के सभी छोटे-बड़े  हस्ताक्षर इलाहाबाद या दिल्ली में उनके निवास पर अत्यंत मिलनसार और डेमोक्रेटिक पिता बच्चन और अनिन्द्य सुन्दर किन्तु उतनी ही सख्त माँ तेजीजी के सान्निध्य हेतु आते-जाते रहते थे.एक ''नमश्कार'' को छोड़कर इतनी सही और अच्छी हिंदी बोल पानेवाला इतना बड़ा अभिनेता मुंबई में अमिताभ से पहले कोई नहीं हुआ.

लेकिन यह अपवाद नहीं,नियम होना चाहिए था.जिस तरह हम अपने इन्फ़ीरिऑरिटी कॉम्प्लेक्स में किसी विदेशी को हिंदी बोलते सुनकर धन्य या कृतकृत्य होते हैं,वैसे किसी बड़े या छोटे हिन्दुस्तानी एक्टर को देखकर क्यों हों ? फिल्म उद्योग अब तक हिंदी से कई खरब रुपये कमा चुका है.हिंदी-उर्दू-हिन्दुस्तानी में अँगूठा-छाप,नामाक़ूल एक्टर-एक्ट्रेस अरबपति हैं.खाते हिंदी की हैं,बोलते ग़लत-सलत ख़ानसामा-अंग्रेज़ी में हैं और उसे भी ठीक से लिख नहीं सकते.

इसलिए जब अर्ध-विश्वसनीय,अनर्गल  हिंदी अखबारों में कहा जा रहा है कि अमिताभ बच्चन विश्व हिंदी सम्मेलन के मंच से  आख़िरी दिन युवा पीढ़ी को हिंदी वापरने के लिए प्रेरित करेंगे और उसे सीखने के गुर बताएँगे,जबकि ऐसी युवा पीढ़ी वहाँ निमंत्रित ही नहीं है, तो इब्तिदा में ही लाचारी से कहने का दिल करता है कि मियाँ हकीम साहब पहले अपने कुनबे का तो इलाज कीजिए.जया बच्चन तो जबलपुर-भोपाल की और लेखक-पत्रकार तरुणकुमार भादुड़ी की बेटी होने के कारण उम्दा हिंदी बोल लेती हैं,लेकिन उनके बेटे-बहू की हिंदी ?

दरअसल अमिताभ बच्चन,और उनसे पहले दिलीप कुमार,ने फिल्म इंडस्ट्री में तहजीब और ज़ुबान के साथ खयानत की है.उन्होंने निजी तौर पर तो हुनर के नए मयार कायम किए लेकिन अपने रोब-दाब के बावजूद अपनी बिरादरी को वह रूहानी रहनुमाई नहीं दी जो वह दे सकते थे.इन्होने अपना एकांत निर्वाण पा लिया लेकिन मूसा,बुद्ध,मुहम्मद,गाँधी,नेहरू,आम्बेडकर की तरह अपनी कौम को मुक्ति नहीं दिला सके.उनमें एक कृपण स्वार्थपरकता है.आज सिने-उद्योग में उर्दू का फ़ातिहा पढ़नेवाला कोई नहीं है और खराब हिंदी ग़लत रोमन में लिखी जा रही है.

बच्चनजी ने श्रद्धालु या मित्र-लेखकों के समर्पित दस्तखतों वाली स्वयं को भेंट की गई सैकड़ों साहित्यिक पुस्तकों को घर में स्थानाभाव के कारण दरियागंज दिल्ली के फ़ुटपाथी कबाड़ी बाज़ार में बिकवा कर बरसों पहले ऐसा स्कैंडल बरपा किया था जो अब तक एक दुस्स्वप्न की तरह याद किया जाता है.लेकिन अमिताभजी के पास अपनी या ग़ैरों की सौ हिंदी किताबें भी होंगी इसकी कल्पना कठिन है.हिंदी की किसी साहित्यिक पत्रिका का तो कोई सवाल ही नहीं उठता.

उन्होंने अपने पिता की आत्मकथा के पहले खंड का अनुवाद रूपर्ट स्नैल से करवा कर छपवाया ज़रूर था,उनकी अन्य रचनाओं को लेकर भी उनकी कुछ योजनाएँ हैं,लेकिन उनकी   स्मृति में कोई महत्तर साहित्यिक पुरस्कार या न्यास स्थापित नहीं किया,इलाहाबाद या दिल्ली  यूनिवर्सिटी को हरिवंशराय बच्चन चेयर या फ़ैलोशिप नहीं दी, न  अपने शेरवुड स्कूल या  किरोड़ीमल कॉलेज में कोई हिंदी लेखन,भाषण या वाद-विवाद प्रतियोगिता ही स्थापित की,जबकि पैसा है कि उनके सभी पारिवारिक बँगलों में चतुर्भुज बरस रहा है.उन्होंने यदि हिंदी भाषा या साहित्य पढ़े हैं तो किस स्तर तक,इसकी कोई जानकारी हासिल नहीं है.अमिताभ बच्चन का कोई भी सम्बन्ध मुंबई की या वृहत्तर हिंदी साहित्यिक दुनिया से नहीं है.उनका सम्बन्ध साहित्य से ही नहीं है.

तब उन्हें इस विश्व हिंदी सम्मेलन के अंतिम दिन के शायद अंतिम सत्र में हिंदी को स्वीकार्य और लोकप्रिय बनाने का उपक्रम और आह्वान करने का जिम्मा प्रधानमंत्री ने क्यों सौंपा? प्रधान मंत्री इसलिए कि हर स्तर पर कहा जा रहा है कि इस सम्मेलन का एक-एक ब्यौरा ख़ुद नरेनभाई देख और तय कर रहे हैं.सब कुछ टॉप सीक्रेट है.हम जानते ही हैं कि अमितभाई चैनलों और अखबारों में न जाने क्या-क्या,उन्हें खुद याद नहीं होगा कि क्या, बेचने के अलावा गुजरात के ब्रांडदूत भी हैं,भले ही पता नहीं कहाँ से प्रकट होकर इस हार्दिक पाटीदार-पटेल ने आठ आदमी मरवा डाले और गर्वीले गुजरात का गुड़-गोबर कर दिया.

भाजपा करे भी तो क्या ? उसके पास न सही बुद्धिजीवी हैं न असली लेखक.अटलजी बहुत खराब  कवि हैं लेकिन सुपर स्टार नरेनभाई तो बदतर कहानीकार हैं और महान गुजराती कथा साहित्य और आलोचना  को बदनाम कर रहे हैं.समझ से परे है कि नेताओं को कवि-लेखक बनने  का शौक़ क्यों चर्राता है ? लेखकों के नाम पर भाजपा के पास  उन्हीं-उन्हीं मीडियाकर प्रतिक्रियावादी जोकरों की गड्डी है,उसे जितना भी फेंटो वही निकर कर आते हैं.इसीलिए इस सम्मेलन में प्रासंगिक सर्जनात्मक हिंदी लेखन के लिए कोई गुंजाइश नहीं रखी गई है. जैसे भी हैं,जहाँ भी हैं,आज हिंदी के अधिकांश साहित्यकार कम-से-कम अपने लेखन और घोषणाओं के अनुसार सेक्युलर,प्रतिबद्ध और वामपंथी तो हैं.सुना है आर.एस.एस. के पास उनकी एक लम्बी,काली सूची भी है जो अस्पृश्यता की चेतावनी  के साथ  मंत्रालयों-विभागों के पास रख दी गई है,हालाँकि मुझे लगता है कि इसमें नाटकीय अतिशयोक्ति है क्योंकि लुम्पेन हिन्दुत्ववादी तत्व हिंदी के लेखकों को फ़िलहाल इतना ख़तरनाक नहीं समझते हैं.इसीलिए नागपुर के उत्तर में अभी तक दाभोलकर या पानसरे  नहीं हो पाया है.

हॉलीवुड,ब्रॉलीवुड या यूरोवुड में सैकड़ों एक्टर-एक्ट्रेस हैं जिनके पास आर्ट्स,साइंस और कॉमर्स-बिजनेस-आइ.टी. में स्नातकोत्तर तथा पीएच.डी तक की डिग्रियाँ हैं, अपनी मातृभाषा और अन्य ज़ुबानों पर असाधारण अधिकार है.उनमें से कई तो असली लेखक हैं.वहाँ साहित्यकारों और उनकी कृतियों पर फ़िल्में बनती हैं.''लॉस्ट इन ट्रांसलेशन'' सरीखा बहुअर्थी फिल्म-शीर्षक हिंदी में असंभव है,जिसका सन्दर्भ अधिकांश हिंदी लेखकों-पत्रकारों तक की जानकारी और समझ से परे है.विदेशों  में सरकारी या निजी कोई विश्व देशभाषा सम्मेलन नहीं  होते हैं और होते भी तो उनमें न तो नेता जाते,न एक्टर बुलाए जाते न वह खुद जाते.वह अपनी भद्द नहीं पिटवाते.यहाँ तो जितने छिछले और छिछोरे नेता, उतने ही मतिमंद, मौक़ापरस्त और मुसाहिब अभिनेता.अब तनी द्याखौ अइसन सरउ बिस्व हिंदी सम्मेलन मा हमका हिंदी सिखैहैं.





--
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...