BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Welcome

Website counter
website hit counter
website hit counters

Sunday, September 20, 2015

अद्वितीय योद्धा के भूमिगत होने की मजबूरी को समझें

अद्वितीय योद्धा के भूमिगत होने की मजबूरी को समझें

---------------------------------------------------------------------

अद्वितीय योद्धा और भारत के सच्चे नायक सुभाष चंद्र बोस "नेता जी" के संबंध में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा पत्रावलियों को सार्वजनिक कर दिया गया है, जिससे एक बार फिर देश भर में निंदा और आलोचना का दौर शुरू हो गया है। नेता जी आम जनता के बीच चर्चा का विषय बने हुए हैं। बदनामी के छींटे जवाहर लाल नेहरू के साथ महात्मा गांधी पर भी पढ़ रहे हैं। कांग्रेसी जवाहर लाल नेहरू को महानतम व्यक्ति सिद्ध करने के लिए तर्क गढ़ रहे हैं, जो आम आदमी की समझ से परे हैं। जवाहर लाल नेहरू को सही सिद्ध करने के लिए कहा जा रहा है कि नेता जी का स्वभाव छुपने वाला नहीं था, वे बहुत साहसी और निडर थे, तो वे भूमिगत कैसे हो सकते थे?, ऐसे तर्क देकर कहा जा रहा है कि नेता जी विमान हादसे में ही प्राण गवां चुके थे, जबकि तमाम लिखित व मौखिक साक्ष्य कह रहे हैं कि विमान हादसा ही नहीं हुआ था और नेता जी जीवित थे, पर सवाल उठता है कि नेता जी भूमिगत क्यूं हुए?

इस सवाल का जवाब द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से भारत की कथित आजादी तक के इतिहास का अध्ययन करने से मिल जायेगा। नेता जी का सिद्धांत था कि दुश्मन का दुश्मन मित्र होता है, इस सोच के चलते वे अंग्रेजों से लड़ रहे थे और अंग्रेजों के हर दुश्मन से हाथ मिला रहे थे, इसके विपरीत महात्मा गांधी इटली, जर्मनी और जापान वगैरह की तुलना में अंग्रेजों को श्रेष्ठ मान कर चल रहे थे। असलियत में महात्मा गाँधी नेता जी से प्रचंड ईर्ष्या करते थे। स्वयं सामने नहीं आते थे और न ही चुनाव लड़ते थे, लेकिन सब कुछ अपने अधीन रखना चाहते थे। कांग्रेस में अध्यक्ष सर्वसम्मति से चुना जाता था, पर नेता जी का नाम सामने आया, तो उन्होंने तीन उम्मीदवार मैदान में उतार दिए, जिनमें दो सीतारमैय्या के पक्ष में बैठ गये, फिर भी नेता जी ने सीतारमैय्या को हरा दिया। परिणाम आने के बाद महात्मा गांधी अपने हृदय के अंदर छुपे उदगार रोक नहीं पाये। बोले- यह मेरी हार है, जबकि उन्हें तटस्थ और निष्पक्ष कहा जाता था, इसके बाद उन्होंने नेता जी के समक्ष तमाम अड़चनें उत्पन्न कराईं, जिस पर नेता जी ने त्याग पत्र दे दिया। महात्मा गांधी की उपस्थिति में राजेन्द्र प्रसाद अध्यक्ष और जे.बी. कृपलानी महासचिव बना दिए गये, तो बड़ा बवाल हुआ और नेता जी के समर्थकों ने राजेन्द्र प्रसाद और जे.बी. कृपलानी के साथ हाथापाई कर दी।  

महात्मा गांधी बड़े कूटनीतिज्ञ थे और जानते थे कि नेता जी के आधिपत्य में भारत स्वतंत्र हुआ, तो पूरा यश नेता जी को ही मिलेगा। शासन-सत्ता में भी उनके विचारों को अहमियत नहीं दी जायेगी, इस सोच के चलते वे नेता जी का प्रभाव बढ़ने पर अंग्रेजों के प्रति नरम हो गये और अंग्रेजों को युद्ध में मदद देने को तत्पर हो उठे, वहीं नेता जी ने अंग्रेजों को तबाह कर दिया। नौसेना में विद्रोह होने से अंग्रेज पूरी तरह टूट गये, इस अवस्था का जवाहर लाल नेहरू ने दुरूपयोग किया। नेता जी का महात्मा गांधी और अंग्रेजों पर समान दबाव था, जिससे अंग्रेज सत्ता हस्तांतरण को मजबूर हुए और महात्मा गांधी मौन ही नहीं रहे, बल्कि अंग्रेजों के सहयोगी बन गये। 7 अगस्‍त, 1942को कांग्रेस कमेटी के सम्‍मुख भाषण देते हुए महात्मा गांधी ने खुल कर कहा था, ''कभी भी यह विश्‍वास मत कीजिए कि ब्रिटेन युद्ध में हार जाएगा। मैं जानता हूं कि ब्रिटेन डरपोकों का राष्‍ट्र नहीं है। हार मानने के बदले वे रक्‍त की अंतिम बूंद तक लड़ेंगे। पर थोड़ी देर के लिए कल्‍पना कीजिए कि  युद्ध-नीति की वजह से कहीं मलाया,‍ सिंगापुर और बर्मा की भांति उन्‍हें भारतछोड़ना पड़ा, तो हमारी क्‍या दशा होगी। जापानी भारत पर चढ़ दौड़ेंगे और उस समय हम तैयार भी न होंगे। भारत पर जापानियों के अधिकार हो जाने का मतलब हैचीन और शायद रूस का भी अंत। हम चीन और रूस की हार का मुहरा नहीं होना चाहते। इसी पीड़ा के फलस्‍वरूप 'भारत छोड़ोप्रस्‍ताव उपस्थित किया गया है। आज ब्रिटेन को बुरा लग सकता है और वे लोग मुझे अपना दुश्‍मन समझ सकते हैं, पर कभी वे भी कहेंगे कि मैं उनका दोस्‍त था।'' महात्मा गांधी ने दो भूल कीं। एक तो युद्ध में फंसे नेता जी की उन्होंने मदद नहीं की, जबकि नेता जी ने जुलाई 1944 को रंगून रेडियो स्टेशन से निर्णायक युद्ध में विजय के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनायें सार्वजनिक रूप से माँगी थीं। दूसरी भूल सत्ता हस्तांतरण के समय मौन साध लेने की थी। महात्मा गाँधी इन दोनों अवसरों पर भूल न करते, तो भारत को कथित आजादी नहीं, बल्कि पूर्ण स्वतंत्रता मिली होती। महात्मा गांधी की उन दो भूल की भरपाई भारत आज तक कर रहा है।

अब बात कथित आजादी की करते हैं। अंग्रेजों पर नेता जी का प्रचंड दबाव था, वे नेता जी से भयभीत थे, साथ ही अंग्रेज महात्मा गाँधी से भी खुश नहीं थे और इन दोनों को ही खत्म करना चाहते थे। महात्मा गांधी नेता जी से भले ही ईर्ष्या करते थे, लेकिन वे अंग्रेजों के मित्र नहीं थे। नेता जी को कमजोर करने के लिए ही अंग्रेजों के प्रति थोड़े से नरम हो गये थे, यह बात अंग्रेज समझते थे, तभी अंग्रेजों ने महात्मा गाँधी को भी अहमियत नहीं दी। स्वतंत्रता के लिए नेता जी खून बहा रहे थे और महात्मा गांधी भी पसीना बहा रहे थे, इस बीच जवाहर लाल नेहरू अंग्रेजों के शीर्ष नेतृत्व से संबंध प्रगाढ़ कर रहे थे। जवाहर लाल नेहरू ने अंग्रेजों से समझौता किया, जिसमें जवाहर लाल नेहरू ने अंग्रेजों की सभी शर्तें स्वीकार कीं। सत्ता हस्तांतरण के लिए 15 अगस्त का दिन अंग्रेजों ने ही चुना था। अंग्रेजों के मित्र देश की सेना के सामने जापान के समर्पण की दूसरी वर्षगांठ 15 अगस्त को पड़ रही थी,इसी जश्न में वह दूसरा जश्न मनाना चाहते, क्योंकि हार के करीब पहुंच चुके अंग्रेज ससम्मान छूट रहे थे, यह उनके लिए जश्न की बात थी। स्वतंत्रता आंदोलन अंग्रेजों के विरुद्ध था, लेकिन नेहरू ने स्वीकार किया कि ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध था, जो भारत छोड़ गई। भारत की प्रथम नागरिक राष्ट्रपति नहीं, बल्कि ब्रिटेन की महारानी है। महारानी और प्रिंस को भारत में राष्ट्रपति से अधिक सम्मान देना पड़ेगा। महात्मा गांधी ब्रिटेन के लोकतंत्र की कड़ी आलोचना करते थे, लेकिन नेहरू ने ब्रिटेन के वेस्टमिनस्टर सिस्टम को स्वीकार किया, जिसे संसदीय प्रणाली कहा जाता है। संधि के तहत यह भी शर्त है कि भारतीय सत्ता नहीं संभाल पाये, तो अंग्रेज सत्ता वापस ले सकते हैं। असफल होने के बीज उन्होंने तत्काल बो भी दिए थे, जिसके परिणाम स्वरूप पाकिस्तान बना। वंदेमातरम संसद में नहीं गाया जायेगा, लेकिन चन्द्रशेखर ने संसद में गाने की आवाज उठाई, तो उसे सांप्रदायिक बना दिया गया। संविधान के अनुच्छेद 348 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालयउच्च न्यायालय तथा संसद की कार्रवाई अंग्रेजी भाषा में होगी। कोई ऐसा अपराध प्रकाश में आये, जिसके संबंध में कानून न हो, तो उसका निस्तारण अंग्रेजों की पद्धति से किया जायेगा। भारत सरकार के संविधान के अनुच्छेद नंबर- 366, 371, 372 एवं 392 को बदलने या भंग करने की शक्ति भारत सरकार के पास नहीं है। भारतीय संविधान की व्याख्या अनुच्छेद- 147 के अनुसार गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट-1935 तथा इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट- 1947 के अधीन ही की जा सकती है। प्रथम गवर्नर जनरल माउंटबेटन बनाये गये, इससे स्पष्ट है कि भारत अंग्रेजों से मुक्त नहीं हुआ। वित्तीय बजट संसद में शाम को पांच बजे के बाद इसलिए रखा जाता रहा है कि सुबह को करीब 11: 30 बजे अंग्रेज बजट पर हो रही चर्चा आराम से सुन सकें, ऐसी ही शर्तों के कारण प्रत्येक भारतीय का स्वाभिमान ब्रिटेन की महारानी के कदमों के नीचे आज भी दबा हुआ है, इस सबके साथ नेहरू ने दुश्मन स्वीकार करते हुए नेता जी को गिरफ्तार कर अंग्रेजों को सौंपने की भी शर्त स्वीकार की थी, इसी शर्त के चलते नेहरू ने नेता जी के पीछे जासूस लगाये थे, इसके पीछे दो कारण हैं। एक तो अंग्रेजों को खुश करना था, क्योंकि अंग्रेज नेता जी से भयंकर घृणा करते थे, दूसरा कारण यह था कि नेता जी को समाप्त कर नेहरू अपना प्रतिद्वंदी समाप्त कर देना चाहते थे और हुआ भी वैसा ही। अंग्रेज नौसेना के विद्रोह के कारण दबाव में आये थे, जिससे अंग्रेजों की यह भी महत्वपूर्ण शर्त रही कि नौसेना हमेशा उनके झंडे का प्रयोग करेगी।

महात्मा गाँधी से ऊपर जाकर अवसर का दुरूपयोग करते हुए नेहरू ने 15 अगस्त 1947 को सत्ता हथियाई थी, जबकि 21 अक्टूबर 1943 को ही नेता जी आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बना चुके थे, जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड की मान्यता प्राप्त थी। भारत के अंदर और वैश्विक पटल पर नेता जी छाये हुए थे, जिससे अंग्रेजों ने नेहरू से मिल कर षड्यंत्र रचा और यह प्रचारित करा दिया गया कि भारत आजाद हो गया। अंग्रेज भारत छोड़ गये। देशवासी षड्यंत्र में फंस भी गये और वे जश्न में डूब गये, ऐसे माहौल में महात्मा गांधी भी कुछ नहीं कर सके, तो नेता जी क्या कर पाते। महात्मा गांधी इस सत्ता हस्तांतरण के विरुद्ध थे, तभी वे बंगाल के नोआखाली में सांप्रदायिक दंगे के विरोध में अनशन पर जाकर बैठ गये थे और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के बुलाने पर भी नहीं आये, इससे नेहरू को कोई अंतर नहीं पड़ा, उन्होंने जश्न के साथ प्रधानमंत्री का ताज पहना। नेहरू ने 'ट्रिस्ट विद डेस्टनी' नाम से 14 अगस्त की मध्यरात्रि को वायसराय लॉज (वर्तमान राष्ट्रपति भवन) में भाषण दिया था। इस भाषण को पूरी दुनिया ने सुना, लेकिन महात्मा गांधी उस दिन नौ बजे ही सोने चले गए थे।

15 अगस्त1947 को माउंटबेटन ने अपने कार्यालय में कार्य किया। दोपहर में नेहरू ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल की सूची सौंपी और बाद में इंडिया गेट के पास प्रिसेंज गार्डेन में एक सभा को संबोधित किया। नेहरू ने 15 अगस्त को नहीं, बल्कि 16 अगस्त1947 को लालकिले से झंडा फहराया था। सत्ता हस्तांतरण के बाद महात्मा गाँधी ने विज्ञप्ति जारी की, जिसमें कहा गया कि "मैं भारत के उन करोड़ों लोगों को ये संदेश देना चाहता हूँ कि ये जो तथा-कथित स्वतंत्रता आ रही है, ये मैं नहीं लाया, ये सत्ता के लालची लोग सत्ता के हस्तांतरण के चक्कर में फंस कर लाये हैं, मैं मानता नहीं कि इस देश में कोई आजादी आई है।" महात्मा गांधी की इस विज्ञप्ति पर लोगों ने विशेष ध्यान नहीं दिया, उनके समर्थक तर्क करते रहे, पर जनता तब तक झांसे में पूरी तरह फंस चुकी थी और नेहरू को नेता व नायक मानने लगी थी। जनता को संधि की न समझ थी और न ही विस्तार से जनता को कुछ बताया गया था। अंग्रेजों की कूटनीति नेहरू के सहारे सफल रही, जिसके नीचे स्वराज दबता चला गया।

नेता जी जनता के लिए लड़ रहे थे, जो झांसे में फंस कर नेहरू को नायक मान बैठी। नेता जी को देश और देश के बाहर से मदद अंग्रेजों के विरुद्ध मिल रही थी, जबकि यह दुष्प्रचार करा दिया गया कि भारत स्वतंत्र हो गया, ऐसे में मदद मिलना बंद हो ही गई होगी, ऐसे में संघर्ष करना समझदारी नहीं थी, इसके बावजूद भी वे लड़ते रहते, तो देश की ही जनता से लड़ना पड़ता। जो जनता उन्हें अब तक नायक समझ रही थी, अपने बच्चों के नाम गर्व से सुभाष रख रही थी, वही जनता घृणा करने लगे, ऐसा कार्य करने से सभी बचेंगे, इसीलिए वे भूमिगत होने को मजबूर हुए होंगे। कुछ लोग यह कह रहे हैं कि नेता जी जैसा साहसी और निडर व्यक्ति भूमिगत नहीं हो सकता, वे यह क्यूं नहीं समझ पा रहे कि यह नेता जी की बुद्धि कौशल का ही कमाल है कि तमाम साधन और संसाधन होने के बावजूद नेहरू गिरफ्तार करना तो दूर की बात नेता जी को खोज तक नहीं पाये। नेता जी के सम्मुख नेहरू तो ठहरते ही नहीं हैं, लेकिन राष्ट्रवादी के रूप में महात्मा गाँधी से तुलना की जाये, तो नेता जी तुलनात्मक दृष्टि से उनसे भी महान थे। अब वो समय आ गया है कि भारत अंग्रेजों से की गई समस्त संधियों को तोड़ कर प्रत्येक भारतीय के स्वाभिमान को मुक्त करे और नेता जी को यथोचित सम्मान दिलाये।     

बी.पी. गौतम

स्वतंत्र पत्रकार

8979019871  


--
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...